कक्षा 7 हिंदी व्याकरण अध्याय 38 निबंध लेखन

कक्षा 7 हिंदी व्याकरण अध्याय 38 निबंध लेखन तथा विभिन्न निबंधों पर आधारित उदाहरण और लेख शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए विद्यार्थी यहाँ से मुफ्त में प्राप्त कर सकते हैं। इससे न सिर्फ छात्र हिंदी में पारंगत हो जाएंगे। यह विद्यार्थियों के समग्र बोलने और संज्ञानात्मक कौशल में भी सुधार करेगा।

निबंध-लेखन

निबंध का अर्थ है- बँधा हुआ। अपने मन के भावों या विचारों को नियंत्रित ढंग से लिखना निबंध कहलाता है। निबंध लिखते समय भाव-सामग्री को सुंदर ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए। इसकी भाषा सरल, सरस व रोचक होनी चाहिए। निबंध लिखते समय दिए गए विषय के सभी पक्षों पर क्रमानुसार प्रकाश डालना चाहिए। इसकी भाषा प्रवाहमयी होनी चाहिए।

निबंध-लेखन के नियम

निबंध-लेखन के संबंध में ध्यान देने योग्य बिंदु निम्नलिखित हैं:
1. सबसे पहले विषय पर विचार करके उसे मन में बिठा लेना चाहिए।
2. इसे प्रभावपूर्ण बनाने के लिए छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए।
3. भाषा सरल, सरस व सुबोध होनी चाहिए।
4. इसकी शैली रोचक होनी चाहिए जो पढ़ने वाले पर प्रभाव डाल सके।
5. इसकी भाषा में विराम-चिह्नों का समुचित प्रयोग करना चाहिए।
6. मुहावरों के प्रयोग से भी निबंध सशक्त बनता है। इससे निबंध की भाषा शैली में निखार आता है।

निबंध के भाग

एक अच्छे निबंध के मुख्य रूप से तीन भाग होते हैं:
1. आरंभ (भूमिका)
2. मधय भाग (कलेवर)
3. उपसंहार (निष्कर्ष)
आरंभ (भूमिका)
निबंध की शुरुआत भूमिका या प्रस्तावना से ही होनी चाहिए। इसे अधिक विस्तार नहीं देना चाहिए। इसे लिखते समय दिए गए विषय से नहीं हटाना चाहिए।
मध्य भाग (कलेवर)
इस भाग में दिए गए विषय के सभी पहलुओं पर विचार करना चाहिए। विषय से संबंधित सभी बिंदुओं का क्रमानुसार वर्णन इसी भाग के अंतर्गत आता है। छोटे-छोटे वाक्यों में विषय के बिंदुओं को पिरोना चाहिए।
उपसंहार (निष्कर्ष)
इस भाग में निबंध का सार तथा निष्कर्ष लिखना चाहिए। इसे अधिाक विस्तार नहीं देना चाहिए।
आइए, विविध विषयों पर दिए गए निबंधाों को पढ़ें और लिखने का अभ्यास करें।

दयालुता की देवी मदर टेरेसा

ममता और करुणा की मूर्ति मदर टेरेसा का जन्म 27 अगस्त 1910 ई० में यूगोस्लाविया में हुआ था। इनके पिता यूगोस्लाविया के एक किसान थे। उनका नाम स्कोटजे था। मदर टेरेसा के बचपन का नाम एग्नेस गोवशा वेजविशाहु था। जब ये बारह वर्ष की हुईं तभी ईश्वर-भक्ति से इनका लगाव हो गया था। ये नियमित रूप से गिरजाघर जाती थीं और वहाँ देर तक ईश्वर की प्रार्थना किया करती थीं।
मदर टेरेसा बारह वर्ष की आयु में बंगाल में सेवा कार्य के लिए चुन ली गईं। 18 वर्ष की आयु में उन्हें सेंट-मेरी स्कूल में अध्यापन का कार्य सौंपा गया। तत्पश्चात् इन्होंने अपना मिशनरी जीवन आरंभ किया और इनको ‘सिस्टर टेरेसा’ कहा जाने लगा।
17 वर्ष तक सिस्टर टेरेसा ने अधयापन का कार्य किया। 1974 में इन्होंने कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) की झुग्गी-झोपड़ियों की बस्ती में अपना पहला स्कूल खोला। इसमें असहाय बच्चों को शिक्षा देने लगीं। अधयापन कार्य के साथ-ही-साथ ये सेवा कार्य भी करने लगीं। तब इन्हें ‘मदर टेरेसा’ कहा जाने लगा। सन् 1952 में इन्हें मानवता की सेवा करने के कारण ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया।

मदर टेरेसा विकलांग, असहाय और अछूतों की खूब लगन से सेवा करने लगीं। भारत सरकार ने इन्हें 34 एकड़ भूमि दी जिसमें इन्होंने कुष्ठ रोगियों के लिए अस्पताल बनवाया। वे नेपाल, पाकिस्तान, मलाया, यूगोस्लाविया, माल्टा, संयुक्त राष्ट्र और इंग्लैंड आदि देशों में भी अपने सेवा-कार्य की संस्थाएँ स्थापित की थीं।
31 अगस्त 1962 ई० को मदर टेरेसा को मैग्सेसे पुरस्कार मिला। 6 जनवरी, 1971 को ‘पोप जॉन पाल पुरस्कार’ मिला। इसी वर्ष अमेरिका के कैथोलिक विश्वविद्यालय से ‘डॉक्टर ऑफ़ ह्यूमन लेटर्स’ की उपाधि मिली। मदर टेरेसा को जितना भी धन पुरस्कारों में मिला, ये सारा-का-सारा धन सेवा कार्यों में खर्च कर देती थीं। 18 अक्तूबर 1997 ई- को मदर टेरेसा को ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ दिया गया, जो विश्व में सबसे अधिक सम्मानित पुरस्कार है। संसार के कितने ही प्रतिष्ठित विश्वविद्यालयों ने इन्हें सम्मानार्थ ‘डॉक्टर’ की उपाधि से विभूषित किया। मदर टेरेसा ने लगभग 70 वर्ष तक मानवता की जी-जान से सेवा की।

सन् 1981 में इथोपिया देश में भयंकर सूखा पड़ा था। मदर टेरेसा कलकत्ता से दवाइयाँ और खाद्य-सामग्री लेकर वहाँ गईं। इन्होंने ईश्वर की प्रेरणा से अमेरिका के राष्ट्रपति के नाम एक पत्र लिखा। लगभग एक सप्ताह बाद अमेरिका के राष्ट्रपति रीगन का फ़ोन आया और उन्होंने मदर टेरेसा को पत्र के लिए धन्यवाद दिया तथा तत्काल सहायता-सामग्री पहुँचाने का आश्वासन दिया। उन्होंने अपने वचन को निभाया।
मदर टेरेसा का नाम केवल भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इन्हें हर स्थान पर श्रद्धा की दृष्टि से देखा जाता था।
5 सितंबर 1997 को 87 वर्ष की आयु में हृदय-गति रुक जाने से इनका स्वर्गवास हो गया। इनकी मृत्यु का समाचार पाते ही सारा संसार दुख के सागर में डूब गया। एक सप्ताह तक विश्व भर के श्रद्धालु इनके अंतिम दर्शन करने के लिए आते रहे। भारत सरकार ने पूर्ण राजकीय सम्मान के साथ इनका अंतिम संस्कार किया।
मदर टेरेसा अपने कार्यों के बलबूते पर विश्व की सर्वश्रेष्ठ महिला बन गई।

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