एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत पाठ 6 सङ्कल्प सिद्धिदायक
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत अध्याय 6 सङ्कल्प: सिद्धिदायक – षष्ठ: पाठ: सङ्कल्प: सिद्धिदायक: के प्रश्न उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। पूरे पाठ का हिंदी अनुवाद, सभी प्रश्न उत्तर तथा रिक्त स्थान, मिलान आदि प्रश्नों के उत्तर यहाँ से निशुल्क प्राप्त करें। सभी उत्तर सरल तथा आसान भाषा में बनाए गए हैं ताकि विद्यार्थी आसानी से समझ सकें। छात्र पाठ को समझने के लिए दिए गए विडियो की भी मदद ले सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत अध्याय 6 सङ्कल्प: सिद्धिदायक
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत षष्ठ: पाठ: सङ्कल्प: सिद्धिदायक:
कक्षा 7 संस्कृत अध्याय 6 सङ्कल्प: सिद्धिदायक का हिंदी अनुवाद
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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(पार्वती शिवं पतिरूपेण अवाञ्छत्। एतदर्थं सा तपस्यां कर्तुम् ऐच्छत्। सा स्वकीयं मनोरथं मात्रे न्यवेदयत्। तत् श्रुत्वा माता मेना चिन्ताकुला अभवत्।) | (पार्वती शिव को पति के रूप में चाहती थी। इसलिए वह तपस्या करना चाहती थी। उसने अपना मनोरथ माँ को बताया। यह सुनकर माँ मेना चिन्ता से व्याकुल हो गई।) |
मेना – वत्से! मनीषिता: देवता: गृहे एव सन्ति। | मेना – बेटी! इष्ट देवता तो घर में ही होते हैं। |
तप: कठिनं भवति। | तप कठिन होता है। |
तव शरीरं सुकोमलं वर्तते। गृहे एव वस। | तुम्हारा शरीर कोमल है। घर पर ही रहो। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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अत्रैव तवाभिलाष: सफल: भविष्यति। | यहीं तुम्हारी अभिलाषा पूरी हो जाएगी। |
पार्वती – अम्ब! तादृश: अभिलाष: तु तपसा एव पूर्ण: भविष्यति। | पार्वती – माँ! वैसी अभिलाषा तो तप द्वारा ही पूरी होगी। |
अन्यथा तादृशं पतिं कथं प्राप्स्यामि। | अन्यथा मैं वैसा पति कैसे पाऊँगी। |
अहं तप: एव चरिष्यामि इति मम सटल्प:। | मैं तप ही करूँगी-यह मेरा संकल्प है। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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मेना – पुत्रि! त्वमेव मे जीवनाभिलाष:। | मेना – पुत्री, तुम ही मेरी जीवन अभिलाषा हो। |
पार्वती – सत्यम्। परं मम मन: लक्ष्यं प्राप्तुम् आकुलितं वर्तते। | पार्वती – ठीक है। पर मेरा मन लक्ष्य पाने के लिए व्याकुल है। |
सिद्धिं प्राप्य पुन: तवैव शरणम् आगमिष्यामि। | सफलता पाकर पुनः तुम्हारी ही शरण में आऊँगी। |
अद्यैव विजयया साकं गौरीशिखरं गच्छामि। (तत: पार्वती निष्क्रामति) | आज ही विजया के साथ गौरी शिखर पर जाऊँगी। (उसके बाद पार्वती बाहर चली जाती है) |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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(पार्वती मनसा वचसा कर्मणा च तप: एव तपति स्म। कदाचिद् रात्रौ स्थण्डिले, कदाचिच्च शिलायां स्वपिति स्म। एकदा विजया अवदत्।) | (पार्वती ने मन, वचन व कर्म से तप ही किया। कभी रात को भूमि पर और कभी शिला पर सोती थी। एक बार विजया ने कहा) |
विजया – सखि! तप:प्रभावात् हिंस्रपशवोऽपि तव सखाय: जाता:। | विजया – सखी! तप के प्रभाव से हिंसक पशु भी तुम्हारे मित्र बन गए हैं। पञ्चाग्नि व्रत भी तुमने किया। फिर भी तुम्हारा मनोरथ पूर्ण नहीं हुआ। |
पञ्चाग्नि-व्रतमपि त्वम् अतप:। | पञ्चाग्नि व्रत भी तुमने किया। |
पुनरपि तव अभिलाष: न पूर्ण: अभवत्। | फिर भी तुम्हारा मनोरथ पूर्ण नहीं हुआ। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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पार्वती – अयि विजये! किं न जानासि? | पार्वती – अरी विजया! क्या तुम नहीं जानती हो? |
मनस्वी कदापि धैर्यं न परित्यजति। | मनस्वी कभी धैर्य नहीं छोड़ता। |
अपि च मनोरथानाम् अगति: नास्ति। | एक बात और मनोरथों की कोई सीमा नहीं होती। |
विजया – त्वं वेदम् अधीतवती। | विजया – तुमने वेद का अध्ययन किया। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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यज्ञं सम्पादितवती। तप:कारणात् जगति तव प्रसिद्धि:। | यज्ञ किया। तप के कारण तुम्हारी संसार में ख्याति है। |
‘अपर्णा’ इति नाम्ना अपि त्वं प्रथिता। | ‘अपर्णा’ इस नाम से भी तुम विख्यात हो। |
पुनरपि तपस: फलं नैव दृश्यते। | फिर भी तप का फल नहीं दिखाई दे रहा। |
पार्वती – अयि आतुरहृदये! कथं त्वं चिन्तिता ………। | पार्वती- अरे, व्याकुल हृदय वाली, तुम चिन्तित क्यों हो? |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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(नेपथ्ये-अयि भो! अहम् आश्रमवटु:। जलं वाञ्छामि।) | परदे के पीछे- अरे कोई है! मैं आश्रम में रहने वाला ब्रह्मचारी हूँ। मैं पानी पीना चाहता हूँ। (मुझे पानी चाहिए)। |
(ससम्भ्रमम्) विजये! पश्य कोऽपि वटु: आगतोऽस्ति। | देखो कोई ब्रह्मचारी आया है। |
(विजया झटिति अगच्छत्, सहसैव वटुरूपधारी शिव: तत्र प्राविशत्) | विजया झट से गई और सहसा ही वटुरूपधारी शिव ने प्रवेश किया) |
विजया – वटो! स्वागतं ते। उपविशतु भवान्। | विजया – हे ब्रह्मचारी आपका स्वागत है। कृपया बैठिए। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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इयं मे सखी पार्वती। शिवं प्राप्तुम् अत्र तप: करोति। | यह मेरी सखी पार्वती है जो शिव को पति रूप में पाने के लिए तप कर रही है। |
वटु: – हे तपस्विनि! किं क्रियार्थं पूजोपकरणं वर्तते, स्नानार्थं जलं सुलभम्, भोजनार्थं फलं वर्तते? | वटुः – हे तपस्विनी! क्या तपादि करने के लिए पूजा सामग्री है, स्नान के लिए जल उपलब्ध है? भोजन के लिए फल हैं। |
त्वं तु जानासि एव शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्। (पार्वती तूष्णीं तिष्ठति) | तुम तो जानती हो शरीर ही धर्म पर आचरण के लिए मुख्य साधन है। (पार्वती चुपचाप बैठी है) |
वटु: – हे तपस्विनि! किमर्थं तप: तपसि? शिवाय? (पार्वती पुन: तूष्णीं तिष्ठति) | वटुः – हे तपस्विनी किसलिए तप कर रही हो? शिव के लिए? (पार्वती फिर भी चुप बैठी है) |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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विजया – (आकुलीभूय) आम्, तस्मै एव तप: तपति। | विजया – (व्याकुल होकर) हाँ, उसी के लिए तप कर रही है। |
(वटुरूपधारी शिव: सहसैव उच्चै: उपहसति) | वटुरूपधारी शिव सहसा ज़ोर से उपहास करता है) |
वटु: – अयि पार्वति! सत्यमेव त्वं शिवं पतिम् इच्छसि? | वटुः – अरी पार्वती! सच में तुम शिव को पति (रूप में) चाहती हो? |
(उपहसन्) नाम्ना शिव: अन्यथा अशिव: श्मशाने वसति। | (उपहसन्) नाम्ना शिव: अन्यथा अशिव: श्मशाने वसति। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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यस्य त्रीणि नेत्राणि, वसनं व्याघ्रचर्म, अग्राग: चिताभस्म, परिजनाश्च भूतगणा:। | जिसके तीन नेत्र हैं, वस्त्र, व्याघ्र की खाल है, अङ्गलेप चिता की भस्म और सेवकगण भूतगण हैं। |
किं तमेव शिवं पतिम् इच्छसि? | क्या तुम उसी शिव को पति के रूप में पाना चाहती हो? |
पार्वती – (क्रुद्धा सती) अरे वाचाल! अपसर। | पार्वती- (क्रुद्ध होकर) अरे वाचाल! चल हट। |
जगति न कोऽपि शिवस्य यथार्थं स्वरूपं जानाति। | सार में कोई भी शिव के यथार्थ (असली) रूप को नहीं जानता। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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यथा त्वमसि तथैव वदसि। | जैसे तुम हो वैसे ही बोल रहे हो। |
(विजयां प्रति) सखि! चल। | (विजया के प्रति) सखी! चलो। |
य: निन्दां करोति स: तु पापभाग् भवति एव, य: शृणोति सोऽपि पापभाग् भवति। | जो निन्दा करता है वह पाप का भागी होता है, जो सुनता है वह भी पापी होता है। |
(पार्वती द्रुतगत्या निष्क्रामति। तदैव पृष्ठत: वटो: रूपं परित्यज्य शिव: तस्या: हस्तं गृह्णाति। पार्वती लज्जया कम्पते) | (पार्वती तेज़ी से (बाहर) निकल जाती है। तभी पीछे से ब्रह्मचारी का रूप त्याग कर शिव उसका हाथ पकड़ लेते हैं। पार्वती लज्जा से काँपती है।) |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
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शिव: – पार्वति! प्रीतोऽस्मि तव सटल्पेन। | शिव – पार्वती ! मैं तुम्हारे (दृढ़) संकल्प से खुश हुआ। |
अद्यप्रभृति अहं तव तपोभि: क्रीतदासोऽस्मि। (विनतानना पार्वती विहसति) | आज से मैं तुम्हारा तप से खरीदा दास हूँ। (झुके मुख वाली पार्वती मुस्कराती है) |