एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत पाठ 2 दुर्बुद्धि: विनश्यति
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत अध्याय 2 दुर्बुद्धि: विनश्यति – द्वितीय: पाठ: दुर्बुद्धि: विनश्यति अभ्यास के प्रश्न उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए संशोधित किए गए हैं। पाठ 2 का हिंदी मीडियम अनुवाद भी प्रश्नोंत्तर के साथ साथ दिए गए हैं जिससे पाठ को समझने में आसानी होगी। कक्षा 7 संस्कृत अध्याय 2 के प्रश्न उत्तर बिना किसी पंजीकरण अथवा लॉग इन के प्रयोग किए जा सकते हैं। सभी विषयों के एनसीईआरटी समाधान मुफ़्त में प्रयोग किए जा सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत अध्याय 2 दुर्बुद्धि: विनश्यति
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत द्वितीय: पाठ: दुर्बुद्धि: विनश्यति
कक्षा 7 संस्कृत अध्याय 2 दुर्बुद्धि: विनश्यति का हिंदी अनुवाद
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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अस्ति मगधदेशे फुल्लोत्पलनाम सर:। | मगध प्रदेश में फुल्लोत्पल नामक तालाब था। |
तत्र संकटविकटौ हंसौ निवसत:। | वहाँ संकट और विकट नामक दो हंस रहते थे। |
कम्बुग्रीवनामक: तयो: मित्रम् एक: कूर्म: अपि तत्रैव प्रतिवसति स्म। | कम्बुग्रीव नामक उन दोनों का मित्र एक कछुआ भी वहीं रहता था। |
अथ एकदा धीवरा: तत्र आगच्छन्। | एक बार कुछ मछुआरे वहाँ आए। |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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ते अकथयन् -“वयं श्व: मत्स्यकूर्मादीन् मारयिष्याम:।” | उन्होंने कहा – कल हम सब मछली, कछुए आदि को मरेंगे। |
एतत् श्रुत्वा कूर्म: अवदत् मित्रे! किं युवाभ्यां धीवराणां वार्ता श्रुता? | यह सुनकर कछुआ अपने मित्र से बोला – क्या तुमने मछुआरों की बातचीत सुनी? |
अधुना किम् अहं करोमि? | अब मैं क्या करूँ? |
हंसौ अवदताम् – “प्रात: यद् उचितं तत्कार्ताव्यम्। | दोनों हंस बोले – सुबह जो उचित हो, वह करना चाहिए। |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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कूर्म : अवदत्- ‘‘मैवम्। | कछुआ बोला- “ऐसा मत करो, |
तद् यथाऽहम् अन्यं ह्रदं गच्छामि तथा कुरुतम।’’ | जिससे मैं दुसरे तालाब पर जा सकूँ, वैसा करो|” |
हंसौ अवदताम्-‘‘आवां किं करवाव? | दोनों हंस बोले “हम दोनों क्या करे|” |
’’कूर्म: अवदत्- ‘‘अहं युवाभ्यां सह आकाशमार्गेण अन्यत्र गन्तुम् इच्छामि।’’ | कछुआ बोला मैं तुम दोनों के साथ आकाश-मार्ग से दुसरे स्थान पर जाने की इच्छा करता हूँ ।” |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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हंसौ अवदताम्- ‘‘अत्र क: उपाय:?’’ | हंस बोले- “ यहाँ क्या उपाय है?” |
कच्छप: वदति-‘‘युवां काष्ठदण्डम् एकं चञ्च्वा धारयताम्। | कछुआ बोला: तुम दोनों एक लकड़ी के डंडे को चोंच से पकड़ों | |
अहं काष्ठदण्डमध्ये अवलम्ब्य युवयो: पक्षबलेन सुखेन गमिष्यामि।’’ | मैं लकड़ी के डंडे के बीच में लटककर तुम दोनों के पंखों के बल से सुखपूर्वक आराम से जाउँगा |” |
हंसौ अकथयताम्- ‘‘सम्भवति एष: उपाय:। | हंस बोले- “ यह उपाय हो सकता है | |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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किन्तु अत्र एक: अपायोऽपि वर्तते। | परन्तु यहाँ एक हानि भी है। |
आवाभ्यां नीयमानं त्वामवलोक्य जना: किञ्चिद् वदिष्यन्ति एव। | हम दोनों के द्वारा ले जाए जाते हुए तुन्हें देखकर लोग कुछ बोलेंगे ही। |
यदि त्वमुत्तरं दास्यसि तदा तव मरणं निश्चितम्। | यदि तुम उत्तर दोगे तब तुम्हारा मरना निश्चित ही है। |
अत: त्वम् अत्रैव वस।’’ | इसलिए तुम यहीं रहों !” |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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तत् श्रुत्वा क्रुद्ध: कूर्म: अवदत्- ‘‘किमहं मूर्ख:? उत्तरं न दास्यामि। | वह सुनकर क्रोधित कछुआ बोला- “क्या मैं मुर्ख हूँ? उत्तर नहीं दूँगा। |
किञ्चिदपि न वदिष्यामि।’’ अत: अहं यथा वदामि तथा युवां कुरुतम्। | कुछ भी नहीं बोलूँगा |” इसलिए जैसा कहता हूँ वैसा तुम दोनों करों। |
एवं काष्ठदण्डे लम्बमानं कूर्मं पौरा: अपश्यन्। पश्चाद् अधावन् अवदन् च- ‘‘हंहो! महदाश्चर्यम्। | इस प्रकार लकड़ी के डंडे पर लटके हुए कछुए को देखकर ग्वाले पीछे दोड़े और बोले- “अहा ! बहुत अचम्भा है ! |
हंसाभ्यां सह कूर्मोऽपि उड्डीयते।’’ | हंसों के साथ कछुआ भी उड़ रहा है।’’ |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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कश्चिद् वदति- ‘‘यद्ययं कूर्म: कथमपि निपतति तदा अत्रैव पक्त्वा खादिष्यामि।’’ | कोई बोला- “ यदि यह कछुआ किसी भी तरह गिरता है, तब यहीं पकाकर खाऊँगा।’’ |
अपर: अवदत्- ‘‘सरस्तीरे दग्ध्वा खादिष्यामि।’’ | दूसरा बोला- “ तालाब के किनारे पर पकाकर खाऊँगा।’’ |
अन्य: अकथयत्- ‘‘गृहं नीत्वा भक्षयिष्यामि’’ इति। | अन्य ने कहा- “ घर ले जाकर खाऊँगा।’’ |
तेषां तद् वचनं श्रुत्वा कूर्म: क्रुद्ध: जात:। | उनके उस वचन सुनकर कछुआ क्रोधित हो गया। |
संस्कृत में वाक्य | हिंदी में अनुवाद |
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मित्राभ्यां दत्तं वचनं विस्मृत्य स: अवदत्- ‘‘यूयं भस्म खादत।’’ | मित्रों को दिए गए वचन को भूलकर, वह बोला- “ तुम सब राख खाओ।’’ |
तत्क्षणमेव कूर्म: दण्डात् भूमौ पतित:। पौरै: स: मारित:। | उसी क्षण कछुआ डंडे से भूमि पर गिर गया और ग्वालों के द्वारा मार दिया गया। |
अत एवोक्तम्- | इसलिए कहा गया है- |
सुहृदां हितकामानां वाक्यं यो नाभिनन्दति। | कल्याण की इच्छा रखनेवाले मित्रों के वचन को जो प्रसन्नतापूर्वक स्वीकार नहीं करता हैं। |
स कूर्म इव दुर्बुद्धि: काष्ठाद् भ्रष्टो विनश्यति॥ | वह लकड़ी से गिरे हुए दुष्टबुद्धि कछुए के समान नष्ट होता है। |