एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत पाठ 5 सदाचार
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत अध्याय 5 सदाचार – पञ्चम: पाठ: सदाचार: अभ्यास के प्रश्न उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए संशोधित किया गया है। कक्षा 7 संस्कृत पाठ 5 के प्रत्येक वाक्य का हिंदी अनुवाद भी नीचे दिए गए हैं ताकि पूरे पाठ को आसानी से समझा जा सके। सातवीं कक्षा संस्कृत पाठ 5 को अच्छी तरह से समझने के लिए दी गए पीडीएफ तथा विडियो की मदद ले सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 7 संस्कृत पञ्चम: पाठ: सदाचार:
कक्षा 7 संस्कृत अध्याय 5 सदाचार का हिंदी अनुवाद
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|
आलस्यं हि मनुष्याणां शरीरस्थो महान् रिपु:। | मनुष्य शरीर का सबसे बड़ा शत्रु आलस्य है। |
नास्त्युद्यमसमो बन्धु: कृत्वा यं नावसीदति ॥1॥ | परिश्रम के समान कोई मित्र नहीं है क्योंकि परिश्रम करने वाला कभी दुखी नहीं रहता। |
श्व: कार्यमद्य कुर्वीत पूर्वाह्णे चापराह्णिकम्। | कल का काम आज कर लेना चाहिए और दोपहर का काम पूर्वाहन में । |
नहि प्रतीक्षते मृत्यु: कृतमस्य न वा कृतम् ॥2॥ | मृत्यु प्रतीक्षा (इन्तज़ार) नहीं करती, इसका काम हो गया या नहीं हुआ अर्थात् इसने काम पूरा कर लिया या नहीं। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|
सत्यं ब्रूयात् प्रियं ब्रूयात् न ब्रूयात् सत्यमप्रियम् । | सच बोलना चाहिए, प्रिय बोलना चाहिए, अप्रिय सच नहीं बोलना चाहिए और प्रिय झूठ नहीं हिए। |
प्रियं च नानृतं ब्रूयात् एष धर्म: सनातन: ॥3॥ | यही शाश्वत (सदा से चला आ रहा) धर्म (आचार) है। |
सर्वदा व्यवहारे स्यात् औदार्यं सत्यता तथा । | व्यवहार में हमेशा (सदैव) उदारता, सच्चाई, सरलता होनी चाहिए । |
ऋजुता मृदुता चापि कौटिल्यं न कदाचन ॥4॥ | मधुरता हो (होनी चाहिए), (व्यवहार में) कभी भी टेढ़ापन नहीं हो (होना चाहिए)। |
संस्कृत वाक्य | हिंदी अनुवाद |
---|---|
श्रेष्ठं जनं गुरुं चापि मातरं पितरं तथा। | सज्जन, गुरुजन और माता-पिता की |
मनसा कर्मणा वाचा सेवेत सततं सदा ॥5॥ | हमेशा मन से, कर्म से और वाणी से निरन्तर सेवा करनी चाहिए। |
मित्रेण कलहं कृत्वा न कदापि सुखी जन:। | मित्र के साथ झगड़ा करके मनुष्य कभी सुखी नहीं रहता है। |
इति ज्ञात्वा प्रयासेन तदेव परिवर्जयेत् ॥6॥ | यह जानकर प्रयत्न उसे (झगड़े को) ही छोड़ देना चाहिए। |