एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 8 जटायो: शौर्यम्
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 8 जटायो: शौर्यम् शेमुषी भाग एक पाठ्यपुस्तक में पाठ के अंत में दिए गए सभी प्रश्नों के हल विस्तार पूर्वक शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। विद्यार्थियों की मदद के लिए पाठ 8 का हिंदी अनुवाद भी एनसीईआरटी संस्कृत समाधान के साथ साथ दिया गया है। विद्यार्थियों को पाठ अच्छी तरह से समझ कर सभी उत्तरों को स्वयं करने का प्रयास करना चाहिए।
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 8 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 8 जटायो: शौर्यम्
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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सा तदा करुणा वाचो विलपन्ती सुदु:खिता। | तब करुण वाणी में रोती हुई, बहुत दुखी |
वनस्पतिगतं गृध्रं ददर्शायतलोचना ॥1॥ | बड़ी-बड़ी आँखों वाली (सीता) ने वृक्ष पर (स्थित) बैठे हुए गिध्र (जटायु) को देखा। |
जटायो पश्य मामार्य ह्रियमाणामनाथवत्। | हे आर्य जटायु! इस पापकर्म करने वाले राक्षस राज (रावन) के द्वारा |
अनेन राक्षसेन्द्रेणाकरुणं पापकर्मणा ॥2॥ | अनाथ की तरह हरण की जाती हुई मुझ दुखी को देखो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तं शब्दमवसुप्तस्तु जटायुरथ शुश्रुवे। | इसके बाद सोए हुए जटायु ने उस शब्द को सुना। |
निरीक्ष्य रावणं क्षिप्रं वैदेहीं च ददर्श स: ॥3॥ | तथा रावण को देखकर और शीघ्र ही वैदेही (सीता) को देखा। |
तत: पर्वतशृङ्भस्तीक्ष्णतुण्ड: खगोत्तम:। | उसके बाद (तब) पर्वत शिखर की तरह शोभा वाले |
वनस्पतिगत: श्रीमान्व्याजहार शुभां गिरम् ॥4॥ | तीखे चोंच वाले, वृक्ष पर स्थित, शोभायुक्त पक्षियों में उत्तम (जटायु) ने सुंदर वाणी में कहा। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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निवर्तय मतिं नीचां परदाराभिमर्शनात्। | पराई नारी (परस्त्री) के स्पर्शदोष से तुम अपनी नीच बुद्धि (नीच विचार) को हटा लो |
न तत्समाचरेद्धीरो यत्परोऽस्य विगर्हयेत् ॥5॥ | क्योंकि बुद्धिमान (धैर्यशाली) मनुष्य को वह आचरण नहीं करना चाहिए, जिससे कि दुसरे लोग उसकी निंदा (बुराई) करें। |
वृद्धोऽहं त्वं युवा धन्वी सरथ: कवची शरी। | मैं (तो) बुढा हूँ परंतु तुम युवक (जवान) हो, धनुषधारी हो, रथ से युक्त हो, कवचधारी हो |
न चाप्यादाय कुशली वैदेहीं मे गमिष्यसि ॥6॥ | और बाण धारण किए हो। तो भी मेरे रहते सीता को लेकर नहीं जा सकोगे। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तस्य तीक्ष्णनखाभ्यां तु चरणाभ्यां महाबल:। | उस उत्तम तथा अतीव बलशाली पक्षी (राज) ने अपने तीखे नाखूनों |
चकार बहुधा गात्रे व्रणान् पतगसत्तम: ॥7॥ | तथा पैरों से उस (रावण) के शरीर पर बहुत से घाव कर दिए। |
ततोऽस्य सशरं चापं मुक्तामणिविभूषितम्। | तब टूटे हुए धनुष वाले, रथ से विहीन |
चरणाभ्यां महातेजा बभञ्जा पतगेश्वर: ॥8॥ | मारे गए घोड़ों व सारथि वाले अत्यंत क्रोधित |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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स भग्नधन्वा विरथो हताश्वो हतसारथि:। | उसने अत्यन्त क्रोधित तलवार की मूंठ से |
तलेनाभिजघानाशु जटायुं क्रोधमूर्च्िछत: ॥9॥ | शीघ्र ही जटायु पर घातक प्रहार किया। |
जटायुस्तमतिक्रम्य तुण्डेनास्य खगाधिप:। | तब उस पक्षीराज जटायु ने शत्रुओं का नाश करने वाली अपनी चोंच से |
वामबाहून् दश तदा व्यपाहरदरिन्दम: ॥10॥ | झपटकर (आक्रमण करके) उसके (रावण के) बाई ओर की दसों भुजाओं को नष्ट कर दिया। |