एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 10 वाङ्‌मन:प्राणस्वरूपम्‌

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 10 वाङ्‌मन:प्राणस्वरूपम्‌ शेमुषी भाग एक के सभी प्रश्न उत्तर अभ्यास के सभी प्रश्नों के हल सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 9 संस्कृत के ये समाधान उन सभी राजकीय बोर्ड के लिए भी लाभदायक हैं जो एनसीईआरटी की पुस्तकें पाठ्यक्रम में सम्मिलित कर चुके हैं। पूरे पाठ को अच्छी तरह से समझने के लिए विद्यार्थी दिए गए पाठ के हिंदी अनुवाद की भी मदद ले सकते हैं।

कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 10 के लिए एनसीईआरटी समाधान

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संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
श्वेतकेतु: – भगवन्‌! श्वेतकेतुरहं वन्दे।श्वेतकेतु – हे भगवन्! मैं श्वेतकेतु (आपको) प्रणाम करता हूँ।
आरुणि: – वत्स! चिरञ्जीव।आरुणि – हे पुत्र! दीर्घायु हो।
श्वेतकेतु: – भगवन्‌! किञ्चित्प्रष्टुमिच्छामि।श्वेतकेतु – हे भगवन्! मैं कुछ पूछना चाहता हूँ?
आरुणि: – वत्स! किमद्य त्वया प्रष्टव्यमस्ति?आरुणि – हे पुत्र! आज तुम क्या पूछना चाहते हो?
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
श्वेतकेतु: – भगवन्‌! ज्ञातुम्‌ इच्छामि यत्‌ किमिदं मन:?श्वेतकेतु – हे भगवन् ! मैं पूछना चाहता हूँ कि यह मन क्या है?
आरुणि: – वत्स! अशितस्यान्नस्य योऽणिष्ठ: तन्मन:।आरुणि – हे पुत्र! पूर्णतः पचाए गए अन्न का सबसे छोटा भाग मन होता है।
श्वेतकेतु: – कश्च प्राण:?श्वेतकेतु – और प्राण क्या है?
आरुणि: – पीतानाम्‌ अपां योऽणिष्ठ: स प्राण:।आरुणि – पिए गए तरल द्रव्यों का सबसे छोटा भाग प्राण होता है।
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
श्वेतकेतु: – भगवन्‌! का इयं वाव्‌?श्वेतकेतु – हे भगवन्! वाणी क्या है?
आरुणि: – वत्स! अशितस्य तेजसो योऽणिष्ठ: सा वाक्‌। आरुणि – हे पुत्र! ग्रहण की गई ऊर्जा का जो सबसे छोटा भाग है, वह वाणी है।
सौम्य! मन: अन्नमयं, प्राण: आपोमय:, वाव्‌ च तेजोमयी भवति इत्यप्यवधार्यम्‌।हे सौम्य! मन अन्नमय, प्राण जलमय तथा वाणी तेजोमयी होती है-यह भी समझ लेना चाहिए।
श्वेतकेतु: – भगवन्‌! भूय एव मां विज्ञापयतु।श्वेतकेतु – हे भगवन्! आप मुझे पुनः समझाइए।
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
आरुणि: – सौम्य! सावधानं शृणु। मथ्यमानस्य दध्न: योऽणिमा, स उध्वर्ं समुदीषति, तत्सर्पि: भवति।आरुणि – हे सौम्य! ध्यान से सुनो। मथे जाते हुए दही की अणिमा (मलाई) ऊपर तैरने लगती है, उसका घी बन जाता है।
श्वेतकेतु: – भगवन्‌! भवता घृतोत्पत्तिरहस्यम्‌ व्याख्यातम्‌। भूयोऽपि श्रोतुमिच्छामि।श्वेतकेतु – हे भगवन्! आपने तो घी की उत्पत्ति का रहस्य समझा दिया, मैं और भी सुनना चाहता हूँ।
आरुणि: – एवमेव सौम्य! अश्यमानस्य अन्नस्य योऽणिमा, स उध्वर्ं समुदीषति।आरुणि – सौम्य! इसी तरह खाए जाते हुए अन्न की अणिमा (मलाई) ऊपर उठती है।
तन्मनो भवति। वह मन बन जाती है।
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
अवगतं न वा?समझ गए या नहीं?
श्वेतकेतु: – सम्यगवगतं भगवन्‌!श्वेतकेतु – अच्छी तरह समझ गया भगवन्।
आरुणि: – वत्स! पीयमानानाम्‌ अपां योऽणिमा स उध्वर्ं समुदीषति स एव प्राणो भवति।आरुणि – हे पुत्र! पिए जाते हुए जल की अणिमा प्राण बन जाती है।
श्वेतकेतु: – भगवन्‌! वाचमपि विज्ञापयतु।श्वेतकेतु – हे भगवन्! वाणी के बारे में भी समझाए।
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
आरुणि: – सौम्य! अश्यमानस्य तेजसो योऽणिमा, स उध्वर्ं समुदीषति। सा खलु वाग्भवति। आरुणि – हे सौम्य! शरीर द्वारा ग्रहण किए गए तेज (ऊर्जा) की अणिमा वाणी बन जाती है।
वत्स! उपदेशान्ते भूयोऽपि त्वां विज्ञापयितुमिच्छामि यत्‌ अन्नमयं भवति मन:, आपोमयो भवति प्राण: तेजोमयी च भवति वागिति। हे पुत्र! उपदेश के अंत में मैं तुम्हें पुनः यही समझाना चाहता हूँ कि अन्न का सारतत्व मन, जल का प्राण तथा तेज का वाणी है।
किञ्च यादृशमन्नादिकं गृह्णाति मानवस्तादृशमेव तस्य चित्तादिकं भवतीति मदुपदेशसार:।इसके अतिरिक्त अधिक क्या मेरे उपदेश का सार यही है कि मनुष्य जैसा अन्न ग्रहण करता है उसका मन, बुद्धि और अहंकार (चित्त) वैसा ही बन जाता है।
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
वत्स! एतत्सर्वं हृदयेन अवधारय।हे पुत्र! इस सबको हृदय में धारण कर लो। ( अच्छी प्रकार से समझ लो )
श्वेतकेतु: – यदाज्ञापयति भगवन्‌। एष प्रणमामि।श्वेतकेतु – जैसी आपकी आज्ञा भगवन्! मैं आपको प्रणाम करता हूँ।
आरुणि: – वत्स! चिरञ्जीव। तेजस्वि नौ अधीतम्‌ अस्तु (आवयो: अधीतम्‌ तेजस्वि अस्तु)।आरुणि – हे पुत्र! दीर्घायु हो, तुम्हारा अध्ययन तेजस्विता से युक्त हो। (हम दोनों की पढ़ाई तेजयुक्त हो)।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 10
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 10 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 9 संस्कृत पाठ 10
कक्षा 9 संस्कृत पाठ 10 के प्रश्नों के उत्तर
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 10
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 10 हिंदी में अनुवाद
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 10 हिंदी में
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