एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 7 सिकतासेतु:
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 7 सिकतासेतु: शेमुषी भाग एक के अभ्यास के सभी प्रश्नों के उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 में निशुल्क प्रयोग के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 9 संस्कृत के विद्यार्थी यहाँ दिए गए प्रश्नों के उत्तर तथा पाठ 7 के हिंदी अनुवाद की मदद से पूरे पाठ के सार को अच्छी तरह समझ सकते हैं और परीक्षा की तैयारी कर सकते हैं। कक्षा 9 संस्कृत के समाधान तिवारी अकादमी ऐप पर भी मुफ़्त उपलब्ध हैं।
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 7 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 7 सिकतासेतु:
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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(तत: प्रविशति तपस्यारत: तपोदत्त:) | (इसके बाद तपस्या करता हुआ तपोदत्त प्रवेश करता है) |
तपोदत्त: – अहमस्मि तपोदत्त:। | तपोदत्त – मैं तपोदत्त हूँ। |
बाल्ये पितृचरणै: क्लेश्यमानोऽपि विद्यां नाऽधीतवानस्मि। | बचपन में पूज्य पिताजी के द्वारा क्लेश किए जाने पर भी मैने विद्या नहीं पढ़ी। |
तस्मात् सर्वै: कुटुम्बिभि: मित्रै: ज्ञातिजनैश्च गर्हितोऽभवम्। | इसीलिए परिवार के सब सदस्यों, मित्रों और सम्बन्धियों के द्वारा मेरा अपमान किया गया। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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(ऊर्ध्वं नि: श्वस्य) | (ऊपर की ओर साँस छोड़कर) |
हा विधे! किम् इदं मया कृतम्? कीदृशी दुर्बुद्धि: आसीत् तदा। | हे प्रभो! मैंने यह क्या किया? उस समय मेरी कैसी दुष्ट बुद्धि हो गई थी। |
एतदपि न चिन्तितं यत्- परिधानैरलङ्रैर्भूषितोऽपि न शोभते। | मैने यह भी नहीं सोचा कि वस्त्रों तथा आभूषणों से सुशोभित |
नरो निर्मणिभोगीव सभायां यदि वा गृहे॥1॥ | किन्तु विद्याहीन मनुष्य घर पर या सभा में उसी प्रकार सुशोभित नहीं होता है जिस प्रकार मणि से रहित साँप |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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(किञ्चिद् विमृश्य) | (कुछ सोचकर) |
भवतु, किम् एतेन? | अच्छा, इससे क्या? |
दिवसे मार्गभ्रान्त: सन्ध्यां यावद् यदि गृहमुपैति तदपि वरम्। | दिन में रास्ता भूला हुआ मनुष्य यदि शाम तक घर आ जाए तो भी ठीक है। |
नाऽसौ भ्रान्तो मन्यते। | तब वह भूला हुआ नहीं माना जाता। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अतोऽहम् इदानीं तपश्चर्यया विद्यामवाप्तुं प्रवृत्तोऽस्मि। | अब मैं तपस्या के द्वारा विद्या प्राप्ति में लग जाता हूँ। |
(जलोच्छलनध्वनि: श्रूयते) | (पानी के उछलने की आवाज़ सुनी जाती है) |
अये कुतोऽयं कल्लोलोच्छलनध्वनि:? | तपोदत्त – अरे! यह लहरों के उछलने की आवाज़ कहाँ से आ रही है? |
महामत्स्यो मकरो वा भवेत्। | शायद बड़ी मछली या मगरमच्छ हो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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पश्यामि तावत्। | चलो मैं देखता हूँ। |
(पुरुषमेकं सिकताभि: सेतुनिर्माण-प्रयासं कुर्वाणं दृष्ट्वा सहासम्) | (एक पुरुष को रेत से पुल बनाने का प्रयास करते हुए देखकर हँसते हुए) |
हन्त! नास्त्यभावो जगति मूर्खाणाम्! | हाय ! इस संसार में मूर्खों की कमी नहीं है। |
तीव्रप्रवाहायां नद्यां मूढोऽयं सिकताभि: सेतुं निर्मातुं प्रयतते! | तेज़ प्रवाह (बहाव) वाली नदी में यह मूर्ख रेत से पुल बनाने का प्रयत्न कर रहा है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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(साट्टहासं पार्श्वमुपेत्य) | (जोर-जोर से हँसकर पास जाकर) |
भो महाशय! किमिदं विधीयते! अलमलं तव श्रमेण। | हे महाशय! यह क्या कर रहे हो आप? बस-बस मेहनत मत करो। |
पश्य, रामो बबन्ध यं सेतुं शिलाभिर्मकरालये। | देखो- श्रीराम ने समुद्र पर जिस पुल को शिलाओं से बनाया था, |
विदधद् बालुकाभिस्तं यासि त्वमतिरामताम्॥2॥ | उस पुल को (इस प्रकार) रेत से बनाते हुए तुम उनके पुरुषार्थ का अतिक्रमण कर रहे हो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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चिन्तय तावत्। सिकताभि: क्वचित्सेतु: कर्तुं युज्यते? | जरा सोचो! कहीं रेत से पुल बनाया जा सकता है? |
पुरुष: – भोस्तपस्विन्! कथं माम् अवरोधं करोषि। | पुरुष – हे तपस्विन्! तुम मुझे क्यों रोकते हो? |
प्रयत्नेन किं न सिद्धं भवति? | प्रयत्न करने से क्या सिद्ध नहीं होता? |
कावश्यकता शिलानाम्? | शिलाओं की क्या आवश्यकता? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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सिकताभिरेव सेतुं करिष्यामि स्वसंकल्पदृढतया। | मैं रेत से ही पुल बनाने के लिए संकल्पबद्ध हूँ। |
तपोदत्त: – आश्चर्यम्! किम् सिकताभिरेव सेतुं करिष्यसि? | तपोदत्त – आश्चर्य है! रेत से ही पुल बनाओगे? |
सिकता: जलप्रवाहे स्थास्यन्ति किम्? भवता चिन्तितं न वा? | क्या तुमने यह सोचा है कि रेत पानी के बहाव पर कैसे ठहर पाएगी? |
पुरुष: – (सोत्प्रासम्) चिन्तितं चिन्तितम्। | पुरुष – (उसकी बात का खण्डन करते हुए) सोचा है, सोचा है |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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सम्यक् चिन्तितम्। | अच्छी प्रकार सोचा है। |
नाहं सोपानसहायतया अधि- रोढुं विश्वसिमि। | मैं सीढ़ियों के मार्ग से (परम्परागत तरीके से) अटारी पर चढ़ने में विश्वास नहीं करता। |
समुत्प्लुत्यैव गन्तुं क्षमोऽस्मि। | मुझमें छलाँग मारकर जाने की क्षमता है। |
तपोदत्त: – (सव्यङ्ग्यम्) | तपोदत्त (व्यंग्यपूर्वक) |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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साधु साधु! आञ्जनेयमप्यतिक्रामसि! | शाबाश, शाबाश! तुम तो अञ्जनिपुत्र हनुमान का भी अतिक्रमण कर रहे हो। |
पुरुष: – (सविमर्शम्) कोऽत्र सन्देह:? | पुरुष – (सोच-विचार कर) |
किञ्च, विना लिप्यक्षरज्ञानं तपोभिरेव केवलम्। | और क्या? इसमें क्या सन्देह है। लिपि तथा अक्षर-ज्ञान के बिना जिस प्रकार केवल तपस्या से |
यदि विद्या वशे स्युस्ते, सेतुरेष तथा मम॥3॥ | विद्या तुम्हारे वश में हो जाएगी, उसी प्रकार मेरा यह पुल भी। (केवल रेत से बन जाएगा) |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तपोदत्त: – (सवैलक्ष्यम् आत्मगतम्) अये! मामेवोद्दिश्य भद्रपुरुषोऽयम् अधिक्षिपति! नूनं सत्यमत्र पश्यामि। | तपोदत्त – (लज्जापूर्वक अपने मन में) अरे! यह सज्जन मुझे ही लक्ष्य करके आक्षेप लगा रहा है। |
नूनं सत्यमत्र पश्यामि। | निश्चय ही यहाँ मैं सच्चाई देख रहा हूँ। |
अक्षरज्ञानं विनैव वैदुष्यमवाप्तुम् अभिलषामि! तदियं भगवत्या: शारदाया अवमानना। | मैं बिना अक्षर ज्ञान के ही विद्वता प्राप्त करना चाहता हूँ। यह तो देवी सरस्वती का अपमान है। |
गुरुगृहं गत्वैव विद्याभ्यासो मया करणीय:। | मुझे गुरुकुल जाकर ही विद्या का अध्ययन करना चाहिए। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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पुरुषार्थैरेव लक्ष्यं प्राप्यते। (प्रकाशम्) | पुरुषार्थ (मेहनत) से ही लक्ष्य की प्राप्ति सम्भव है। |
भो नरोत्तम! नाऽहं जाने यत् कोऽस्ति भवान्। | हे श्रेष्ठ पुरुष! मैं नहीं जानता कि आप कौन हैं? |
परन्तु भवदि्भ: उन्मीलितं मे नयनयुगलम्। | किन्तु आपने मेरे नेत्र खोल दिए। |
तपोमात्रेण विद्यामवाप्तुं प्रयतमान: अहमपि सिकताभिरेव सेतुनिर्माणप्रयासं करोमि। | तपस्या मात्र से हो विद्या को प्राप्त करने का प्रयत्न करता हुआ मैं भी रेत से ही पुल बनाने का प्रयास कर रहा था, |
तदिदानीं विद्याध्ययनाय गुरुकुलमेव गच्छामि। (सप्रणामं गच्छति) | तो अब मैं विद्या प्राप्त करने के लिए गुरुकुल जाता हूँ। (प्रणाम करता हुआ चला जाता है) |