एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 5 भ्रान्तो बाल:
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 5 भ्रान्तो बाल: शेमुषी भाग एक के प्रश्न उत्तर और अभ्यास के सभी सवालों का जवाब शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से निशुल्क प्राप्त करें। कक्षा 9 संस्कृत के विद्यार्थियों के लिए पाठ 5 का संस्कृत से हिंदी में अनुवाद भी दिया गया है जिसकी मदद से छात्र अध्याय के अंत में दिए गए सभी प्रश्नों के उत्तर स्वयं भी आसानी से लिख सकते हैं। पाठ के प्रश्न उत्तर, हिंदी अनुवाद और विडियो मुफ़्त में यहाँ दी गई है।
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 5 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 5 भ्रान्तो बाल:
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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भ्रान्त: कश्चन बाल: पाठशालागमनवेलायां क्रीडितुम् अगच्छत्। | कोई भ्रमित बालक पाठशाला जाने के समय खेलने के लिए चला गया। |
किन्तु तेन सह केलिभि: कालं क्षेप्तुं तदा कोऽपि न वयस्येषु उपलभ्यमान आसीत्। | किंतु उसके साथ खेल के द्वारा समय बिताने के लिए कोई भी मित्र उपलब्ध नहीं था। |
यत: ते सर्वेऽपि पूर्वदिनपाठान् स्मृत्वा विद्यालयगमनाय त्वरमाणा: अभवन्। | वे सभी पहले दिन के पाठों को याद (स्मरण) करके विद्यालय जाने की शीघ्रता से तैयारी कर रहे थे। |
तन्द्रालु: बाल: लज्जया तेषां दृष्टिपथमपि परिहरन् एकाकी किमपि उद्यानं प्राविशत्। | आलसी बालक लज्जावश उनकी दृष्टि से बचता हुआ अकेला ही उद्यान में प्रविष्ट हो गया। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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स: अचिन्तयत् – “विरमन्तु एते वराका: पुस्तकदासा:। | उसने सोचा- ये बेचारे पुस्तक के दास वहीं रुकें |
अहं तु आत्मानं विनोदयिष्यामि। | मैं तो अपना मनोरंजन करूँगा। |
सम्प्रति विद्यालयं गत्वा भूय: कु्रद्धस्य उपाध्यायस्य मुखं द्रष्टुं नैव इच्छामि। | विद्यालय जाने पर क्रुद्ध गुरु जी का मुख देखने की मेरी कोई ईच्छा नहीं है। |
एते निष्कुटवासिन: प्राणिन एव मम वयस्या: सन्तु इति। | वृक्ष के खोखलों में रहने वाले ये प्राणी (पक्षी) मेरे मित्र बन जाएँगे। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अथ स: पुष्पोद्यानं व्रजन्तं मधुकरं दृष्ट्वा तं क्रीडितुम् द्वित्रिवारम् आह्वयत्। | तब उसने उस उपवन में घूमते हुए भौरें को देखकर खेलने के लिए बुलाया। |
तथापि, स: मधकुर: अस्य बालस्य आह्वानं तिरस्कृतवान। | उस भौरें ने उस बालक की आवाजों की ओर तो ध्यान ही नहीं दिया। |
ततो भूयो भूय: हठमाचरति बाल स: मधुकर: अगायत् – “वयं हि मधुसंग्रहव्यग्रा” इति। | तब बार-बार हठ करने वाले उस बालक के प्रति उस (भौरे) ने गुनगुनाया “मैं तो पराग संचित करने में व्यस्त हूँ।” |
तदा स बाल: ‘अलं भाषणेन अनेन मिथ्यागर्वितेन कीटेन’ | तब उस बालक ने अपने मन में ‘व्यर्थ में घमंडी इस कीड़े को छोड़ो’ |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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इति विचिन्त्य अन्यत्र दत्तदृष्टि: चञ्च्वा तृणशलाकादिकम् आददानम् एकं चटकम् अपश्यत्, अवदत् च-‘‘अयि चटकपोत! | ऐसा सोचकर दूसरी ओर देखते हुए एक चिड़े (पक्षी) को चोंच से घास-तिनके आदि उठाते हुए देखा। वह (बच्चा) उस (चिड़े) से बोला |
मानुषस्य मम मित्रं भविष्यसि। | अरे चिड़िया! तुम मुझ मनुष्य के मित्र बनोगे? |
एहि क्रीडाव:। | आओ खेलते हैं। |
एतत् शुष्कं तृणं त्यज स्वादून् भक्ष्यकवलान् ते दास्यामि’’ इति। | इस सूखे तिनके को छोड़ो। मैं तुम्हें स्वादिष्ट खाद्य वस्तुओं के ग्रास दूँगा। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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स तु “मया वटद्रुमस्य शाखायां नीडं कार्यम्” इत्युक्त्वा स्वकर्मव्यग्र: अभवत्। | मुझे बरगद के पेड़ की शाखा (टहनी) पर घोंसला बनाना है, अतः मैं काम से जा रहा हूँ”-ऐसा कहकर वह अपने काम में व्यस्त हो गया। |
तदा खिन्नो बालक: एते पक्षिणो मानुषेषु नोपगच्छन्ति। | तब दुखी बालक ने कहा- ये पक्षी मनुष्यों के पास नहीं आते। |
तद् अन्वेषयामि अपरं मानुषोचितम् विनोदयितारम् इति विचिन्त्य पलायमानं कमपि श्वानम् अवलोकयत्। | अतः मैं मनुष्यों के योग्य किसी अन्य मनोरंजन करने वाले को ढूँढ़ता हूँ- ऐसा सोचकर भागते हुए किसी कुत्ते को देखा। |
प्रीतो बाल: तम् इत्थं समबोधयत् ख्ररे मानुषाणां मित्र! किं पर्यटसि अस्मिन् निदाघदिवसे? | प्रसन्न हुए उस बालक ने कहा-हे मनुष्यों के मित्र! इतनी गर्मी के दिन में व्यर्थ क्यों घूम रहे हो? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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इदं प्रच्छायशीतलं तरुमूलम् आश्रयस्व। | इस घनी और शीतल छाया वाले पेड़ का आश्रय लो। |
अहमपि क्रीडासहायं त्वामेवानुरूपं पश्यामीति। | भी खेल में तुम्हें ही उचित सहयोगी समझता हूँ। |
कुक्कुर: प्रत्यवदत्- यो मां पुत्रप्रीत्या पोषयति स्वामिनो गृहे तस्य। | कुत्ते ने कहा- जो अपने पुत्र के समान मेरा पोषण करता है, |
रक्षानियोगकरणान्न मया भ्रष्टव्यमीषदपि॥ इति। | उस स्वामी के घर की रक्षा के कार्य में लगे होने से मुझे थोड़ा सा भी नहीं हटना चाहिए। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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सर्वै: एवं निषिद्ध: स बालो भग्नमनोरथ: सन्- | सबके द्वारा इस प्रकार मना कर दिए जाने पर टूटे मनोरथ (इच्छा) वाला वह बालक सोचने लगा। |
‘कथमस्मिन् जगति प्रत्येकं स्व-स्वकार्ये निमग्नो भवति। | इस संसार में प्रत्येक प्राणी अपने-अपने कर्तव्य में व्यस्त हैं। |
न कोऽपि अहमिव वृथा कालक्षेपं सहते। | कोई भी मेरी तरह समय नष्ट नहीं कर रहा है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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नम एतेभ्य: यै: मे तन्द्रालुतायां कुत्सा समापादिता। | इन सबको प्रणाम, जिन्होंने आलस्य के प्रति मेरी घृणा-भावना उत्पन्न कर दी। |
अथ स्वोचितम् अहमपि करोमि इति विचार्य त्वरितं पाठशालाम् अगच्छत्। | अतः मैं भी अपना उचित कार्य करता हूँ-ऐसा सोचकर वह शीघ्र पाठशाला चला गया। |
तत: प्रभृति स विद्याव्यसनी भूत्वा महतीं वैदुषीं प्रथां सम्पदं च अलभत। | तब से वह विद्याध्ययन के प्रति इच्छायुक्त होकर विद्वता, कीर्ति तथा धन को प्राप्त किया। |