एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 6 लौहतुला
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 6 लौहतुला शेमुषी भाग एक के प्रश्न उत्तर और पाठ का सारांश, हिंदी अनुवाद सहित विद्यार्थी यहाँ से निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। पाठ 6 को अच्छी तरह समझाने के लिए पूरे अध्याय का हिंदी में अनुवाद व्याख्या सहित दिया गया है ताकि किसी भी छात्र को कोई दिक्कत न हो। पाठ के संस्कृत हिंदी अनुवाद की मदद से कक्षा 9 के छात्र सभी प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में सरलता से बना सकते हैं।
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 6 के लिए एनसीईआरटी समाधान
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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आसीत् कस्मश्चिद् अधिष्ठाने जीर्णधनो नाम वणिक्पुत्र:। | किसी स्थान पर जीर्णधन नामक एक बनिए का पुत्र था। |
स च विभवक्षयात् देशान्तरं गन्तुमिच्छन् व्यचिन्तयत् | धन की कमी के कारण विदेश जाने की इच्छा से उसने सोचा |
यत्र देशेऽथवा स्थाने भोगा भुक्ता: स्ववीर्यत:। | जिस देश अथवा स्थान पर अपने पराक्रम से भोग भोगे जाते हैं |
तस्मिन् विभवहीनो यो वसेत् स पुरुषाधम:॥ | वहाँ धन-ऐश्वर्य से हीन रहने वाला मनुष्य नीच पुरुष होता है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तस्य च गृहे लौहघटिता पूर्वपुरुषोपार्जिता तुला आसीत्। | उसके घर पर उसके पूर्वजों द्वारा खरीदी गई लोहे से बनी हुई एक तराजू थी। |
तां च कस्यचित् श्रेष्ठिनो गृहे निक्षेपभूतां कृत्वा देशान्तरं प्रस्थित:। | उसे किसी सेठ के घर धरोहर के रूप में रखकर वह दूसरे देश को चला गया। |
तत: सुचिरं कालं देशान्तरं यथेच्छया भ्रान्त्वा पुन: स्वपुरम् | तब लंबे समय तक इच्छानुसार दूसरे देश में घूमकर वापस अपने देश |
आगत्य तं श्रेष्ठिनम् अवदत्-‘‘भो: श्रेष्ठिन्! दीयतां मे सा निक्षेपतुला।’’ | आकर उसने सेठ से कहा- “हे सेठ ! धरोहर के रूप मे रखी मेरी वह तराजू दे दो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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सोऽवदत्-‘‘भो:! नास्ति सा, त्वदीया तुला मूषकै: भक्षिता’’ इति। | उसने कहा- “अरे! वह तो नहीं है, तुम्हारी तराजू को चूहे खा गए। |
जीर्णधन: अवदत्-‘‘भो: श्रेष्ठिन्! नास्ति दोषस्ते, यदि मूषकै: भक्षिता। | जीर्णधन ने कहा- “हे सेठ! यदि उसको चूहे खा गए तो इसमें तुम्हारा दोष नहीं है। |
ईदृश: एव अयं संसार:। | यह संसार ही ऐसा है। |
न किञ्चिदत्र शाश्वतमस्ति। | यहाँ कुछ भी स्थायी नहीं है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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परमहं नद्यां स्नानार्थं गमिष्यामि। | किंतु मैं नदी पर स्नान के लिए जा रहा हूँ। |
तत् त्वम् आत्मीयं एनं शिशुं धनदेवनामानं मया सह स्नानोपकरणहस्तं प्रेषय” इति। | खैर, तुम धनदेव नामक अपने इस पुत्र को स्नान की वस्तुएँ हाथ में लेकर मेरे साथ भेज दो।” |
स श्रेष्ठी स्वपुत्रम् अवदत्-‘‘वत्स! पितृव्योऽयं तव, स्नानार्थं यास्यति, तद् अनेन साकं गच्छ’’ इति। | उस सेठ ने अपने पुत्र से कहा- “पुत्र! ये तुम्हारे चाचा हैं, स्नान के लिए जा रहे हैं, तुम इनके साथ जाओ। |
अथासौ श्रेष्ठिपुत्र: धनदेव: स्नानोपकरणमादाय प्रहृष्टमना: तेन अभ्यागतेन सह प्रस्थित:। | इस तरह वह बनिए का पुत्र धनदेव स्नान की वस्तुएँ लेकर प्रसन्न मन से उस अतिथि के साथ चला गया। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तथानुष्ठिते स वणिव् स्नात्वा तं शिशुं गिरिगुहायां प्रक्षिप्य, तद्द्वारं बृहत्शिलया पिधाय सत्त्वरं गृहमागत:। | तब वहाँ पुहँचकर और स्नान करके उस शिशु को पर्वत की गुफा में रखकर उसने गुफा के द्वार को एक बड़े पत्थर से ढक कर जल्दी से घर आ गया। |
स: श्रेष्ठी पृष्टवान्-‘‘भो:! अभ्यागत! कथ्यतां कुत्र मे शिशु: य: त्वया सह नदीं गत:’’? इति। | और उस सेठ ने पूछा- हे अतिथि! बताओ कहाँ है मेरा पुत्र, तुम्हारे साथ नदी पर गया था। |
स अवदत्-‘‘तव पुत्र: नदीतटात् श्येनेन हृत:’ इति। | वह बोला- “तुम्हारे बेटे को नदी के किनारे से बाज उठाकर ले गया है”। |
श्रेष्ठी अवदत् – ‘‘मिथ्यावादिन्! किं क्वचित् श्येनो बालं हर्तुं शक्नोति? | सेठ ने कहा- “हे झूठे! क्या कहीं बाज बालक को ले जा सकता है? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तत् समर्पय मे सुतम् अन्यथा राजकुले निवेदयिष्यामि।’’ इति। | तो मेरा पुत्र लौटा दो अन्यथा मैं राजा से शिकायत करूँगा।” |
सोऽकथयत्-‘‘भो: सत्यवादिन्! यथा श्येनो बालं न नयति, तथा मूषका अपि लौहघटितां तुलां न भक्षयन्ति। | उसने कहा- “हे सत्य बोलने वाले! जैसे बाज बालक को नहीं ले जा सकता, वैसे ही चूहे भी लोहे की बनी हुई तराजू नहीं खाते हैं। |
तदर्पय मे तुलाम्, यदि दारकेण प्रयोजनम्।’’ इति। | यदि पुत्र को पाना चाहते हो तो मेरी तराजू लौटा दो। |
एवं विवदमानौ तौ द्वावपि राजकुलं गतौ। | इस प्रकार झगड़ते हुए वे दोनों राजा के पास गए। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तत्र श्रेष्ठी तारस्वरेण अवदत्-“भो:! वञ्चितोऽहम्! वञ्चितोऽहम्! अब्रह्मण्यम्! अनेन चौरेण मम शिशु: अपहृत:’ इति। | वहाँ सेठ ने जोर से कहा- “अरे! अनुचित हो गया! मेरे पुत्र को इस चोर ने चुरा लिया” |
अथ धर्माधिकारिण: तम् अवदन् -‘‘भो:! समर्प्यतां श्रेष्ठिसुत:’’। | इसके बाद न्यायकर्त्ताओं ने उनसे कहा- “अरे! सेठ का पुत्र लोटा दो। |
सोऽवदत्-‘‘किं करोमि? | उसने कहा- “ मैं क्या करूँ? |
पश्यतो मे नदीतटात् श्येनेन शिशु: अपहृत:’’। इति। | मेरे देखते-देखते बाज बालक को नदी के तट (किनारे) से ले गया।“ |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तच्छ्रुत्वा ते अवदन्- भो: ! भवता सत्यं नाभिहितम्- किं श्यने: शिशुं हर्तुं समर्थो भवति? | यह सुनकर सब बोले- अरे! आपने सच नहीं कहा- क्या बाज बालक को ले जा सकता है? |
सोऽवदत्-भो: भो:! श्रूयतां मद्वच:- | उसने कहा- अरे, अरे! मेरी बात सुनिए- |
तुलां लौहसहस्रस्य यत्र खादन्ति मूषका:। | हे राजन्! जहाँ लोहे से बनी तराजू को चूहे खा जाते हैं। |
राजन्तत्र हरेच्छ्येनो बालकं, नात्र संशय:॥ | वहाँ बाज बालक को उठाकर ले जा सकता है. इसमें संदेह नहीं। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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ते अपृच्छन्-‘‘कथमेतत्’’। | उन्होंने कहा-“यह कैसे हो सकता है। |
तत: स श्रेष्ठी सभ्यानामग्रे आदित: सर्वं वृत्तान्तं न्यवेदयत्। | इसके बाद उस सेठ ने सभासदों के सामाने शुरू से ही सारी घटना कह दी। |
तत:, न्यायाधिकारिण: विहस्य, तौ द्वावपि सम्बोध्य तुला-शिशुप्रदानेन तोषितवन्त:। | तब हँसकर उन्होंने दोनों को समझा बुझाकर तराजू तथा बालक का आदान-प्रदान करके उन दोनों को प्रसन्न किया। |