एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 2 स्वर्णकाक:
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 2 स्वर्णकाक: शेमुषी भाग एक के अभ्यास में दिए गए प्रश्नों के उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 9 संस्कृत पाठ 2 का हिंदी में अनुवाद और अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर भी विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। यहाँ दिए गए सभी समाधान नए शैक्षणिक सत्र के अनुसार संशोधित किए गए हैं ताकि विद्यार्थी नवीनतम पाठ्यक्रम के अनुसार पढाई कर सकें।
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 2 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 2 स्वर्णकाक:
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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पुरा कस्मिंश्चिद् ग्रामे एका निर्धना वृद्धा स्त्री न्यवसत्। | प्राचीन समय में किसी गाँव में एक निर्धन (ग़रीब) बुढ़िया स्त्री रहती थी। |
तस्या: च एका दुहिता विनम्रा मनोहरा चासीत्। | उसकी एक नम्र स्वभाव वाली और सुंदर बेटी थी। |
एकदा माता स्थाल्यां तण्डुलान् निक्षिप्य पुत्रीम् आदिशत्। | एक बार माँ ने थाली में चावलों को रखकर पुत्री को आज्ञा दी |
“सूर्यातपे तण्डुलान् खगेभ्यो रक्ष।” | सूर्य की गर्मी में चावलों की पक्षियों से रक्षा करो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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किञ्चित् कालादनन्तरम् एको विचित्र: काक: समुड्डीय तस्या: समीपम् अगच्छत्। | कुछ समय बाद एक विचित्र कौआ उड़कर वहाँ आया। |
नैतादृश: स्वर्णपक्षो रजतचञ्चु: स्वर्णकाकस्तया पूर्वं दृष्ट:। | उसके द्वारा ऐसा सोने के पंखों वाला और चाँदी की चोंच वाला सोने का कौआ पहले नहीं देखा गया था। |
तं तण्डुलान् खादन्तं हसन्तञ्च विलोक्य बालिका रोदितुमारब्धा। | उसको चावलों को खाते और हँसते हुए देखकर लड़की ने रोना शुरू कर दिया। |
तं निवारयन्ती सा प्रार्थयत्- “तण्डुलान् मा भक्षय। | उसको हटाती हुई उसने प्रार्थना की-चावलों को मत खाओ। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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मदीया माता अतीव निर्धना वर्तते।” | मेरी माँ बहुत गरीब है। |
स्वर्णपक्ष: काक: प्रोवाच, “मा शुच:। | सोने के पंख वाला कौआ बोला, शोक मत करो। |
सूर्योदयात्प्राग् ग्रामाद्बहि: पिप्पलवृक्षमनु त्वया आगन्तव्यम्। | सूर्योदय से पहले गाँव के बाहर पीपल के वृक्ष के पीछे तुम आना। |
अहं तुभ्यं तण्डुलमूल्यं दास्यामि।” | मैं तुम्हें चावलों का मूल्य (कीमत) दे दूँगा। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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प्रहर्षिता बालिका निद्रामपि न लेभे। | प्रसन्नता से भरी लड़की नींद भी नहीं ले पाई। |
सूर्योदयात्पूर्वमेव सा तत्रोपस्थिता। | सूर्योदय पहले ही वह (लड़की) वहाँ पहुँच गई। |
वृक्षस्योपरि विलोक्य सा च आश्चर्यचकिता सञ्जाता | वृक्ष के ऊपर देखकर वह आश्चर्यचकित हो गई। |
यत् तत्र स्वर्णमय: प्रासादो वर्तते। | वहाँ सोने का महल था। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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यदा काक: शयित्वा प्रबुद्धस्तदा तेन स्वर्णगवाक्षात्कथितं | जब कौआ सोकर उठा तब उसने सोने की खिड़की से झाँककर कहा |
“हंहो बाले! त्वमागता, तिष्ठ, अहं त्वत्कृते | बालिका! तुम आ गई, ठहरो, मैं तुम्हारे लिए |
सोपानमवतारयामि, तत्कथय स्वर्णमयं | सीढ़ी को उतारता हूँ तुम कहो तो सोने की |
रजतमयम् ताम्रमयं वा”? | चाँदी की अथवा ताँबे की, किसकी उतारूँ? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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कन्या अवदत् “अहं निर्धनमातु: दुहिता अस्मि। | कन्या बोली- निर्धन (ग़रीब) माँ की बेटी हूँ। |
ताम्रसोपानेनैव् आगमिष्यामि। | ताँबे की सीढ़ी से ही आऊँगी। |
परं स्वर्णसोपानेन सा स्वर्ण- भवनम् आरोहत। | पर वह सोने की सीढ़ी से भवन में चढ़ गई । |
चिरकालं भवने चित्रविचित्रवस्तूनि सज्जितानि दृष्ट्वा सा विस्मयं गता। | बहुत देर तक भवन में चित्रविचित्र (अनोखी) वस्तुओं को सजी हुई देखकर वह हैरान रह गई। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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श्रान्तां तां विलोक्य काक: अवदत्- | उसको थकी हुई देखकर कौआ बोला |
“पूर्वं लघुप्रातराश: क्रियताम्-वद त्वं स्वर्णस्थाल्यां | पहले थोड़ा नाश्ता करो-बोलो तुम सोने की थाली में |
भोजनं करिष्यसि किं वा रजतस्थाल्याम् उत ताम्रस्थाल्याम्”? | भोजन करोगी या चाँदी की थाली में या ताँबे की थाली में? |
बालिका अवदत्- ताम्रस्थाल्याम् | लड़की बोली-ताँबे की थाली में |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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एव अहं निर्धना भोजनं करिष्यामि | ही मैं ग़रीब भोजन करूंगी (खाना खाऊँगी)। |
तदा सा आश्चर्यचकिता सञ्जाता | तब वह कन्या और आश्चर्यचकित हो गई |
यदा स्वर्णकाकेन स्वर्णस्थाल्यां भोजनं परिवेषितम् | जब सोने के कौवे ने सोने की थाली में (उसे) भोजन परोसा। |
न एतादृशम् स्वादु भोजनमद्यावधि बालिका खादितवती। | ऐसा स्वादिष्ट भोजन आज तक उस लड़की ने नहीं खाया था। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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काकोऽवदत्- बालिके! अहमिच्छामि यत् त्वम् सर्वदा अत्रैव तिष्ठ परं तव माता तु एकाकिनी वर्तते। | कौआ बोला- हे बालिका (लड़की)! मैं चाहता हूँ कि तुम हमेशा यहीं रहो परंतु तुम्हारी माँ अकेली है। |
अत: त्वं शीघ्रमेव स्वगृहं गच्छ। | तुम जल्दी ही अपने घर को जाओ। |
इत्युक्त्वा काक: कक्षाभ्यन्तरात् तिस्र: मञ्जूषा: निस्सार्य तां प्रत्यवदत्- “बालिके! | ऐसा कहकर कौए ने कमरे के अंदर से तीन बक्से निकालकर उसको कहा- हे कन्या! |
यथेच्छं गृहाण मञ्जूषामेकाम्। | अपनी इच्छा से एक संदूक ले लो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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लघुतमां मञ्जूषां प्रगृह्य बालिकया कथितम् इयत् एव मदीयतण्डुलानां मूल्यम्। | सबसे छोटी संदूक को लेकर लड़की ने कहा- यही मेरे चावलों की कीमत है। |
गृहमागत्य तया मञ्जूषा समुद्घाटिता, तस्यां महार्हाणि हीरकाणि विलोक्य सा प्रहर्षिता तद्दिनाद्धनिका च सञ्जाता। | घर आकर उसने संदूक को खोला, उसमें बहुत कीमती (मूल्यवान) हीरों को देखकर वह बहुत खुश हुई और उसी दिन से वह धनी हो गई। |
तस्मिन्नेव ग्रामे एका अपरा लुब्धा वृद्धा न्यवसत्। | उसी गाँव में एक दूसरी लालची बुढ़िया स्त्री रहती थी। |
तस्या अपि एका पुत्री आसीत्। | उसकी भी एक बेटी थी। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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ईर्ष्यया सा तस्य स्वर्णकाकस्य रहस्यम् ज्ञातवती। | ईर्ष्या से उसने उस सोने के कौए का रहस्य जान लिया। |
सूर्यातपे तण्डुलान् निक्षिप्य तयापि स्वसुता रक्षार्थं नियुक्ता। | सूर्य की धूप में चावलों को रखकर (फैलाकर) उसने भी अपनी बेटी को उसकी रक्षा के लिए बिठा (नियुक्त कर दिया। |
तथैव स्वर्णपक्ष: काक: तण्डुलान् भक्षयन् तामपि तत्रैवाकारयत्। | वैसे ही सोने के पंख वाले कौए ने चावलों को खाते हुए उसको (लड़की को) भी वहीं बुलाया। |
प्रातस्तत्र गत्वा सा काकं निर्भर्त्सयन्ती प्रावोचत्- | सुबह वहाँ जाकर वह कौए को बुरा-भला कहती हुई बोली |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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भो नीचकाक! अहमागता, मह्यं तण्डुलमूल्यं प्रयच्छ। | हे नीच कौए! मैं आ गई हूँ, मुझे चावलों का मूल्य दो। |
काकोऽब्रवीत्-“अहं त्वत्कृते सोपानम् अवतारयामि। | कौआ बोला- मैं तुम्हारे लिए सीढ़ी उतारता हूँ। |
तत्कथय स्वर्णमयं रजतमयं ताम्रमयं वा।” | तो कहो सोने से बनी हुई, चाँदी से बनी हुई अथवा ताँबे से बनी हुई। |
गर्वितया बालिकया प्रोक्तम्-“स्वर्णमयेन सोपानेन अहम् आगच्छामि।” | घमंडी लड़की बोली- सोने से बनी हुई सीढ़ी से मैं आती हूँ |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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परं स्वर्णकाकस्तत्कृते ताम्रमयं सोपानमेव प्रायच्छत्। | परंतु सोने के कौए ने उसे ताँबे से बनी हुई सीढ़ी ही दी। |
स्वर्णकाकस्तां भोजनमपि ताम्रभाजने एव अकारयत्। | सोने के कौए ने उसे भोजन भी ताँबे के बर्तन में कराया। |
प्रतिनिवृत्तिकाले स्वर्णकाकेन कक्षाभ्यन्तरात् तिस्र: मञ्जूषा: तत्पुर: समुत्क्षिप्ता:। | वापस होते समय सोने के कौए ने कमरे के अंदर से तीन पेटियाँ (संदूकें) उसके सामने रख दीं। |
लोभाविष्टा सा बृहत्तमां मञ्जूषां गृहीतवती। | लालची लड़की ने सबसे बड़ी पेटी ले ली। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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गृहमागत्य सा तर्षिता यावद् मञ्जूषामुद्घाटयति | घर आकर व्याकुल वह जब संदूक खोलती है |
तावत् तस्यां भीषण: कृष्णसर्पो विलोकित:। | तो उसमें अचानक काला साँप देखा। |
लुब्धया बालिकया लोभस्य फलं प्राप्तम्। | लालची लड़की ने लालच का फल पाया। |
तदनन्तरं सा लोभं पर्यत्यजत्। | उसके बाद उसने लालच छोड़ दी। |