एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 हिंदी बाल रामकथा अध्याय 5 चित्रकूट में भरत
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 6 हिंदी बाल रामकथा अध्याय 5 चित्रकूट में भरत के सभी प्रश्न उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित रूप में यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 6 हिंदी में बाल रामकथा के पाठ 5 में छात्र भरत के चित्रकूट जाने के बाद के विवरण के बारे में पढेंगे।
कक्षा 6 हिंदी बाल रामकथा अध्याय 5 चित्रकूट में भरत
कक्षा 6 हिंदी बाल रामकथा अध्याय 5 चित्रकूट में भरत
भरत ने अपने सपने में क्या देखा था जो वह अपने मित्रों को बता रहे थे?
भरत ने अपने सपने में देखा कि समुद्र सूख गया। चंद्रमा धरती पर गिरे पड़े। सभी वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है, वे रथ पर बैठे हैं और रथ गधे खींच रहे हैं।
कक्षा 6 हिंदी बाल रामकथा अध्याय 5 के प्रश्न उत्तर
भरत जब ननिहाल से अयोध्या नगरी पहुँचे तो उन्होने क्या देखा?
भरत जब ननिहाल से अयोध्या नगरी पहुँचे तो उन्हें नगर समान्य नहीं लगा बल्कि बदला-बदला सा लगा। उन्होने देखा सड़कें सूनी पड़ी थी, बाग-बगीचे उदास थे। लोगों का शोर-गुल नहीं था। पक्षी भी कलरव नहीं कर रहे थे। चुप्पी ने सारी अयोध्या नगरी को ढक लिया था।
पिता के निधन का कारण सुनकर भरत ने माता कैकेयी को क्या-क्या कहा?
पिता के निधन का कारण सुनकर भरत गुस्से में आग-बबूला हो गए और चीख पड़े। उन्होने रानी कैकेयी से कहा यह तुमने क्या किया, माते ऐसा अनर्थ, घोर अपराध। अपराधिन तो तुम हो, तुम्हें वन जाना चाहिए, भाई राम को नहीं। मेरे लिए यह राज अर्थहीन है। मुझे ऐसा राज्य नहीं चाहिए।
भरत ने राजगद्दी के बारे में सभासदों से क्या कहा था?
भरत ने राजगद्दी के बारे में सभासदों के समक्ष हाथ जोड़कर कहा कि मेरी माँ ने जो किया है, उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ। मैं राम के पास जाऊँगा और उनसे प्रार्थना करूँगा कि ने राजगद्दी सँभालें। मैं तो केवल उनका दास बनकर रहूँगा।
मुनि वशिष्ठ ने भरत को राज सिंहासन के बारे में क्या मार्ग-दर्शन किया?
मुनि वशिष्ठ अयोध्या का राजसिंहासन रिक्त नहीं देखना चाहते थे। खाली सिंहासन के खतरों से वे भली-भाँति परिचित थे। राजसभा में उन्होने भरत से कहा कि वत्स, तुम राजकाज का कार्य संभालों। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है।
माता कौशल्या और भरत के बीच क्या वाद-संवाद हुआ था?
माता कौशल्या बहुत आहत थीं। भरत को देख उन्होने कहा कि पुत्र, तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई, राम अब जंगल में है और अयोध्या का राज तुम्हारा है। दुःख केवल इस बात का है कि कैकेयी ने राज लेने का निर्मम तरीका अपनाया जो अनुचित था। भरत ने माता कौशल्या से क्षमा माँगी और सफ़ाई देते हुए कहा कि मुझे माता कैकेयी के व्यवहार पर बहुत ग्लानि है। राम मेरे प्रिय अग्रज है। मैं उनका अहित सोच भी नहीं सकता। माता मैं निरपराध हूँ। माता कौशल्या ने भरत को क्षमा करते हुए गले से लगा लिया था।
भरत ने राजकाज के विषय में मुनि वशिष्ठ से क्या कहा था?
भरत ने राजकाज के विषय में मुनि वशिष्ठ से कहा कि मुनिवर, यह राज्य राम का है, वही इसके अधिकारी है। मैं यह पाप नहीं कर सकता। हम सब वन जाएँगे और राम को वापस लाएँगे।
कक्षा 6 हिंदी बाल रामकथा अध्याय 5 के महत्वपूर्ण प्रश्न
राम चित्रकूट के आश्रम में क्यों नहीं रहना चाहते थे?
जब राम गंगा को पार करके चित्रकूट पहुँचे तो वहाँ उन्हें महर्षि भरद्वाज का आश्रम मिला था। यह आश्रम गंगा-जमुना के संगम पर था। लेकिन राम बिना किसी की मदद से वनवासी का जीवन भोगना चाहते थे। उनकी वजह से महर्षि को कोई असुविधा न हो इसलिए राम ने अपना निवास पर्णकुटी में बनाया था।
सेना को देखकर निषादराज गुह को किस प्रकार के संदेह ने घेर लिया था?
सेना को देखकर निषादराज गुह को भरत पर कुछ संदेह होने लगा था। उन्हें लगा कि कहीं राजमद में आकर भरत, राम पर आक्रमण करने तो नहीं जा रहे हैं।
सेना को आते देख वन में किस प्रकार की खलबली मच गई थी?
सेना के चलने से आसमान धूल से अट गया था। सेना के चलने से वन में जानवर इधर-उधर भागने लगे थे। पक्षियों ने अपना बसेरा छोड़ दिया था। छोटी वनस्पतियाँ सेना के पाँव तले कुचल दी गई थी। बड़े वृक्ष थरथरा उठे थे। सभी जानवर सेना के कोलाहल से डरे हुए थे।
भरत की विराट सेना को देख लक्ष्मण ने राम को क्या कहा था?
भरत की विराट सेना को देख लक्ष्मण ने राम को कहा कि भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं, लगता है वे हमें मार डालना चाहते हैं, ताकि वह एकछ्त्र राज कर सकें।
राम ने लक्ष्मण को भरत के प्रति कैसे आश्वस्त किया?
भरत की सेना को देख लक्ष्मण आश्वस्त नहीं थे। वे सेना पर आक्रमण करना चाहते थे। राम ने उन्हें रोकते हुए कहा कि वीर पुरुष धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। कुछ समय प्रतीक्षा करो। इस प्रकार का उतावलापन उचित नहीं।
महर्षि वशिष्ठ के सामने राम ने अयोध्या न लौटने पर किन-किन तर्कों का सहारा लिया?
मुनि वशिष्ठ और भरत के अयोध्या लौटने के आग्रह को राम दृढ़ता के साथ अस्वीकार करते रहे। राम ने उन्हें तर्क देते हुए में कहा कि चाहे चंद्रमा अपनी चमक छोड़ दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय अपनी शीतलता छोड़ दे, चाहे समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए, परंतु मैं पिता की आज्ञा से विरत नहीं हो सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ और उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए।
राम के अयोध्या वापस न लौटने पर भरत ने राम से क्या माँगा था?
राम किसी भी तरह लौटने को तैयार नहीं हुए। भरत के चेहरे पर निराशा के भाव थे। वे विफल हो गए थे। तब भरत ने राम से कहा कि आप नहीं लौटेंगे तो मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँगा। आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। मैं चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाऊँगा। तब राम ने भरत की यह आग्रह स्वीकार कर उसे अपनी चरण-पादुका दे दी।
राम की चरण-पादुकाओं को लेकर भरत ने क्या किया?
राम की चरण-पादुकाओं को भरत ने माथे पर लगाते हुए कहा कि चौदह वर्ष तक अयोध्या पर इन चरण-पादुकाओं का शासन रहेगा। भरत ने चरण-पादुकाओं को एक सुसज्जित हाथी पर रखा दिया और प्रतिहारी उस पर चँवर डुलाते रहे। अयोध्या पहुँचकर भरत ने पादुका-पूजन किया और कहा कि ये पादुकाएँ राम की धरोहर हैं, मैं इनकी रक्षा करूँगा और इसकी गरिमा को आँच नहीं आने दूँगा।
भरत ने चौदह वर्ष का समय किस रूप में बिताया था?
भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। तपस्वी के वस्त्र पहने और नंदिग्राम चले गए। जाते समय एक बात कहते गए कि मेरी अब केवल एक इच्छा है। इन पादुकाओं को उन चरणों में देखूँ, जहाँ इन्हें होना चाहिए। मैं केवल चौदह वर्ष तक राम के लौटने की प्रतीक्षा करूँगा।