एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 22

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 22 दुनिया मेरे घर में (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 22) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी मीडियम में सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से संशोधित रूप में प्राप्त करें। कक्षा 4 पर्यावरण अध्ययन के पाठ 22 को विडियो के माध्यम से भी विस्तार से समझाया गया है। अतः, जिन छात्रों को पीडीएफ समाधान की मदद से समझने में कोई दिक्कत हो वे विडियो समाधान की मदद लेकर आसानी से समझ सकते हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 22

पसंद अलग-अलग

प्रस्तुत पाठ में दुनिया और समाज में होने वाले गति-विधि और सामाजिक बुराइयों से अवगत कराया गया है। जिसकी शुरुआत घर से ही होती है। मैरीटा के घर में अकसर टी.वी. पर देखने वाले प्रोग्राम के लिए बहस होती रहती है। बड़े से लेकर छोटे तक की पसंद अलग-अलग है। जिससे घर में नोक-झोंक का माहौल बना ही रहता है।

मैरीटा का घर एक दुनिया का रूप धारण कर लेता है। जहाँ हर कोई अपनी इच्छा अनुसार जीवन व्यतित करना चाहता है। बच्चे घर की चीज़ों के लिए अकसर लड़ते रहते हैं। फिर माँ-बाप उन्हें समझा-बुझा कर शांत करा देते हैं। वे उन्हें मिलजुल कर रहने और आपसी प्रेम बनाए रखने की सलाह देते हैं।

परिवार का व्यवहार

शाम के सात बजते ही प्रतिभा अपनी सहेली के घर से निकली क्योंकि उसे अपने घर जल्दी पहुँचना था। रास्ते में उसके भाई संदीप और संजय दोस्तों के साथ खेलने में लगे हुए थे। उन्हें घर पहुँचने की जल्दी नहीं है क्योंकि उन्हें घर में कोई रोकता-टोकता नहीं है। प्रतिभा को इस बात पर अपने परिवार का व्यवहार अच्छा नहीं लगता। उसके लिए नियम अलग और उसके भाइयों के लिए नियम अलग क्यों हैं।

नियम एक समान

हमारा समाज एक पुरुष प्रधान समाज रहा है। जिस कारण जो छूट लड़कों को दी जाती है वह छूट हम लड़कियों को नहीं देते। हमारे समाज में आज भी लड़कियों को केवल घर के कामों के लिए तैयार किया जाता है। जोकि एक सामाजिक बुराई है। हमें नियम एक समान ही रखने चाहिए। लेकिन हमें लड़कीयों ओर औरतों की सुरक्षा का भी ध्यान रखना चाहिए। लेकिन आज के माहौल को देखते हुए कुछ नियम हमें उन पर लागू करने पड़ते हैं। जैसे टाइम से जाना और टाइम से घर आना आदि।

औरतों की भूमिका

यदि हम समाज में लड़कियों को लड़कों के अधिकार देगें तो हमें अनेकों सामाजिक बुराइयों का सामना करना पड़ेगा। अनेकों काम बिगड़ जाएगें। घर को चलाने में जो भूमिका एक औरत दिखा सकती है। वह आदमी कभी नहीं कर सकता। पूरी दुनिया का स्वरूप ही बदल जाएगा।

ईमानदारी का सबक

पीलू की मम्मी ने जब कुल्फी वाले को सही हिसाब समझाया और उसे पांच कुल्फ़ी की जगह सात कुल्फी के पैसे दिए। उस दिन बच्चों ने पीलू की मम्मी से ईमानदारी का सबक सिखा था जिसे वे शायद ही कभी भुला सकेंगे। बच्चे हमेशा बड़ों से ही सीखते हैं और आने वाले समय में उन्हीं के पद-चिन्हों पर चलते हैं। यदि पीलू की मम्मी कुल्फी वाले को कम पैसे देकर वहाँ से चली जाती तो बच्चो को भी बेईमानी करने का प्रोत्साहन मिलता। जो समाज और बच्चों के भविष्य में एक नासूर बन कर चुबता रहता। बुराई को हमेशा अच्छाई से ख़त्म किया जाता है।

दादी की सोच

अक्षय की दादी-माँ उससे बहुत लगाव करती हैं। अक्षय की दादी उसके दोस्त अनिल को भी पसंद करती हैं। वे अक्षय को हमेशा एक ही बात समझाती हैं कि उसे कभी भी अपने दोस्त के घर खाना नहीं है और तो और पानी भी नहीं पीना है। दादी कहती हैं कि अनिल के परिवार वाले उनके परिवार से बहुत अलग हैं।

रीति-रिवाजों से घिरे हुए

यहाँ पर अक्षय की दादी के विचार पुराने रीति-रिवाज से घिरे हुए लगते हैं। पहले समय में हमारा समाज काफ़ी कुरीतियों का शिकार बना रहा। जहाँ ऊँच-नीच, जातिवाद और भेद-भाव आदि हमारे समाज को घेरे हुए थी। लेकिन अब समय बदल गया है। समाज में सभी को एक समान अधिकार प्राप्त है। हमें बच्चों में अच्छे संस्कार डालने की जरुरत है जिससे वे इन सभी सामाजिक बुराइयों से बचे रहे। हमें बच्चों को साफ़-सफाई पर ध्यान देने की बात पर जोर देना चाहिए जिससे उन्हें स्वस्थ रहने और समाज में मिलजुल कर रहने की सीख मिले।

तरक्की के पथ पर

धोंडू को पूरा यकीन था कि उसके नए काम से परिवार को फ़ायदा अवश्य होगा। इसलिए उसने आटे की चक्की लगाने का फैसला किया था। उसने इस काम के लिए अपने बाबा को भी मना लिया था। उसके बड़े काका उसकी बात को सुनने को तैयार नहीं थे।

हमें बच्चों द्वारा चुने काम का सम्मान करना चाहिए यदि वह काम किसी को नुकसान न दे रहा हो और तरक्की के पथ पर हो। आज सभी को अपने काम और जीवन में कुछ करने के समान अवसर प्रदान किए गए है। धोंडू का फैसला तरक्की के पथ पर चलने का है। जिसे उसके काका और समाज को समझना चाहिए। हमें उसकी हिम्मत का आदर-सत्कार करना चाहिए।

भरोसे के काबिल

सभी का स्पर्श एक जैसा नहीं होता। यदि हमें किसी से डर लगता है तो उसका स्पर्श हमें बिल्कुल अच्छा नहीं लगेगा। लेकिन यदि हम किसी को अच्छे से जानते हैं। हम उसे प्रेम भाव से मिलते है और वह हमारे भरोसे के काबिल हो तो हमें उसे छूना अच्छा लगता है। जब मीना के मामा रितु का हाथ पकड़ते थे तब रितु को अच्छा नहीं लगता था। लेकिन रितु को मीना का हाथ पकड़ना अच्छा लगता था। क्योंकि रितु का विश्वास मीना पर उसके मामा से अधिक था।

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