एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 4

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 4 अमृता की कहानी (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 4) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी मीडियम में विडियो के साथ सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त करें। पीडीएफ समाधान के साथ साथ कक्षा 4 ईवीएस का विडियो समाधान भी हिंदी माध्यम में यहाँ से मुफ्त प्राप्त किया जा सकता है। इसे आसान भाषा में समझकर बनाया गया है।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 4

खेजड़ली गाँव का नामकरण

प्रस्तुत पाठ में अमृता जो राजस्तान के जोधपुर के पास खेजड़ली गाँव की रहने वाली है के बारे में बताया गया हैं। उसके गाँव में खेजड़ी के बहुत से पेड़ थे इसलिए इस गाँव का नाम खेजड़ली रख दिया गया था। गाँव के सभी लोग पेड़-पोधों और जानवरों का बहुत ध्यान रखते थे।

गाँव में बकरियाँ, हिरण, खरगोश, मोर और न जाने कितने जानवर बिना किसी डर के घूमते रहते थे। गाँव के बुजुर्गो का कहना था; “अगर पेड़ हैं, तो हम हैं”। पेड़ और जानवर हमारे बिना रह सकते हैं, पर हम उनके बिना नहीं रह सकते।

बुजुर्गों द्वारा दी गई सीख

बुजुर्गों की बात को ध्यान में रखते हुए अमृता ने पेड़-पोधों को अपना दोस्त बनाया और वह रोज़ाना अपने सारे दोस्त; पेड़ों से खुशी से मिलती थी। अमृता के लिए रोज उनमें से एक पेड़ उस दिन के लिए खास होता था। वह उस पेड़ से लिपटकर उसके कान में धीरे से कहती, “दोस्त तुम बहुत सुंदर और ताकतवर हो, तुम हम सब का ध्यान रखते हो, इसके लिए धन्यवाद। मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, तुम अपनी शक्ति मुझे भी दो।” अमृता कि तरह गाँव के दुसरे बच्चों की पेड़ों से दोस्ती थी। वे सब घंटों, पेड़ों की छाया में खेलते थे।

राजा के आदमियों द्वारा पेड़ों की कटाई

काफ़ी समय बीत जाने के बाद जब अमृता बड़ी हुई तब उसने एक दिन देखा की राजा के कुछ आदमी कुल्हाड़ी लेकर पेड़ों को काटने आए हैं। उन्हें राजा ने महल के लिए लकड़ी काट कर लाने को कहा था। उन आदमियों ने जिस पेड़ को काटने के लिए चुना, अमृता उस पेड़ से लिपट गई। उन लोगों के डराने-धमकाने पर भी वह नहीं हटी।

राजा के आदमियों को पता था कि यदि उन्होंने राजा की बात नहीं मानी तो राजा उनकी जान ले लेगा। उनकी कुल्हाड़ी के वार से अमृता के पैरों से खून बहने लगा लेकिन उसने फिर भी पेड़ को नहीं छोड़ा। अमृता को देख उसके परिवार और गाँव के तीन सौ लोगो ने पेड़ों से लिपट कर अपनी जान दे दी।

राजा का आदेश

राजा को इस बात का पता चला, तो उन्हें यह बात समझ नहीं आई कि लोग पेड़ों के लिए अपनी जान भी दे सकते हैं। वे खुद वहाँ आए और स्वयं लोगो का पेड़ों के प्रति प्यार देखा। राजा पर गाँव वालों की बातों का बहुत गहरा असर पड़ा।

राजा ने आदेश दिया कि इस इलाके में कभी कोई पेड़ नहीं कटेगा और न ही कोई शिकार करेगा। आज तीन सौ साल बाद भी, यहाँ के लोग जो “बिशनोई” कहलाते हैं, पेड़ों और जानवरों की रक्षा करते हैं। रेगिस्तान में होते हुए भी यह इलाका आज भी हरा-भरा है। जानवर बिना किसी डर के इधर-उधर घूमते हैं।

जानवरों का संरक्षण

आज सरकार द्वारा राजस्तान में जानवरों के संरक्षण के लिए वन विभाग बनाए गए है। साथ ही जानवरों के शिकार पर पाबंदी लगाते हुए कड़ी सजा का प्रावधान रखा गया है। फिर भी कुछ लोग लालच के चलते इन जानवरों का शिकार करते हैं।

बारहसिंघा हिरण के सींग, काले हिरण की खाल और हाथी दांत की तस्करी के लिए कुछ लोग इन जानवरों का शिकार करते हैं। आज बहुत से जानवरों और पक्षियों की जाती कम और विलुप्त होती जा रही है।आज भारत से गिद्ध जाती विलुप्त होती जा रही है।

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