एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 1

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 1 चलों, चलें स्कूल! (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 1) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी मीडियम में छात्र यहाँ से निशुल्क प्राप्त करें। कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 1 से सभी प्रश्नों के उत्तर सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित किए गए हैं। पाठ के विवरण के साथ साथ एनसीईआरटी समाधान का विडियो भी पढ़ने के लिए उपलब्ध है।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 1

स्कूल जाते वक्त बच्चों की दिक्कतें

कक्षा 4 ईवीएस पाठ 1 के अनुसार, असम में अधिक बारिश के कारण कभी-कभी चारों तरफ़ पानी घुटनों तक भर जाता हैं, फिर भी वहाँ बच्चें स्कूल जाना नहीं छोड़ते। एक हाथ में किताबें उठाते हैं, और दुसरे हाथ से बॉस को पकड़तें हुए वे सब बॉस और रस्सी से बने पुल को पार कर स्कूल जाते हैं।

बॉस और रस्सी से बने पुल पर नंगे पैर चलना अधिक आसान होता है, क्योंकि नंगे पैरों से अच्छी पकड़ बनी रहती है। कई जगह बारिश के पानी से कीचड़ हो जाता है, इसलिए हम कुछ ईटों और पत्थरों को बिछा के उस कीचड़ को पार कर जाते हैं।

लद्दाख में स्कूल

लद्दाख में बच्चें स्कूल पहुँचने के लिए ट्राली का उपयोग करते है। यह ट्राली बच्चों को नदी पार करने में मदद करती है। ट्राली पुली की मदद से रस्सी पर ट्राली सरकती है और नदी को पार करा देती है। नदी के दोनों किनारे पर मजबूत लोहे की रस्सी भारी पत्थर और पेड़ों से बंधी होती है, ट्राली इसी रस्सी पर चलती है।

पुली की मदद से हम भारी वज़न की चींज को आसानी से उठा लेते है। यदि हम कुँए से पानी खीचने का काम अपने हाथ से करे तो समय के साथ हमें ताकत भी अधिक लगानी पड़ती है। परंतु पुली की मदद कुँए से पानी निकालना बहुत सरल और समय की बर्बादी से बचते है।

नदियों को पार करने के तरीके

नदी-नाले को पार करने के लिए हम सीमेंट का पुल बनाते है। यह पुल ईटों, सीमेंट और लोहे के सरियों से बने होते है। पुल पर चढ़ने-उतरने के लिए सीढियाँ भी होती हैं। यह पुल बॉस और लकड़ी से बने पुल से काफ़ी मजबूत होता है।

इसे पे एक साथ बहुत से लोग एक ही समय में आ-जा सकते हैं। यह पुल कई सदियों तक अपनी सेवा देता रहता हैं। इसे ही कुछ पुलों को रेलगाड़ी के लिए बनाया गया हैं। कोलकत्ता का हावड़ा ब्रिज भारत का सबसे बड़ा पुल है। जो हुगली नदी पर बना हुआ है।

स्कूल जाने के लिए यातायात के साधन

केरल के कुछ भागों में स्कूली बच्चें लकड़ी की बनी छोटी नाव (वल्लम) में बैठकर स्कूल तक पहुँचते हैं। नदी को पार करने के लिए मोटर बोट और किश्ती, और शिकारे का उपयोग किया जा सकता हैं। राजस्थान में दिन के समय रेत खूब तपती है यहाँ दूर-दूर तक रेत-ही रेत नज़र आती है। यहाँ पर बच्चें ऊँट-गाड़ी से ही स्कूल आते-जाते है। ऊँट के पैर गद्देदार होते और वह रेत पर आसानी से चलता है, इसलिए ऊँटों को रेगिस्तान का जहाज कहा जाता हैं। कुछ मैदानी जगह पर बच्चें बैल-गाड़ी में बैठ कर हरे-भरे खेतों के बीच से धीरे-धीरे चलते हुए स्कूल पहुँचते है। तेज धुप और बारिश होने पर बच्चें छतरीयाँ खोल लेते हैं और बैल गाड़ी के मज़े लेते हुए आते हैं। बैल गाड़ी में दो लकड़ी के बड़े पहिए होते है।

स्कूल जाने के लिए भारत में दस प्रतिशत बच्चें साइकिल की सवारी का इस्तेमाल करते हैं। ये बच्चें स्कूल आने के लिए अपने घर से कम से-कम 1 से 7 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। गाँव और शहर में लडकियाँ टोली बना कर मुश्किल रास्तों को भी पार कर जाती हैं। गाँव देहात में हम जुगाड़ गाड़ीयों को चलते अधिक देखते हैं। आगे से ये मोटर बाइक की तरह दिखाई देती हैं। इसके पीछे कि ट्राली लकड़ी के फट्टों से बनी होती हैं। इसे गाँव में सवारी रिक्शा, छकड़ा गाड़ी और देशी बाइक के नाम से जाना जाता हैं। इसे अलग-अलग पुरानी गाड़ियों के भागों को जोड़ कर बनाया जाता हैं इसलिए इसका नाम ‘जुगाड़’ गाड़ी के नाम से जाना जाता हैं।

स्कूली बच्चों द्वारा कठिन रास्तों का सफ़र

घने जंगल के बीच में गाड़ी के लिए जगह नहीं होती इसी रास्ते से भी बच्चें स्कूल के लिए जाते हैं। ये जंगल इतने घने होते हैं, कि दिन में भी रात जैसा लगता है। उस सन्नाटे में कई पक्षियों और जानवरों की आवाजें सुनाई देती है। कुछ स्कूल के बच्चें उत्तर की पहाड़ी में मीलों फैली बर्फ़ पर चलकर स्कूल पहुँचते हैं। बच्चें एक-दुसरे का हाथ पकड़ कर ताजी बर्फ़ पर पैर जमाते हैं। अगर बर्फ़ जमी हुई हो तो वे फिसल भी जाते हैं।

उतराखंड के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोग यहाँ दूर-दूर तक फैले उबड़-खाबड़ पथरीले रास्ते का उपयोग करते हैं। यहाँ भी स्कूल जाने वाले बच्चें भागते हुए इन रास्तों को पार कर जाते हैं। रास्ते में घने जंगल हो, खेत हों, पहाड़ हों, या दूर-दूर तक फैली बर्फ़ हों, ये बच्चे सभी बाधाओं को पार करके स्कूल पहुँच ही जाते हैं।

प्रस्तुत पाठ में हमने बच्चों द्वारा कठिन रास्तों को पार करके स्कूल जाने के बारे में बताया हैं। इन रास्तों की मुसीबत से भी अवगत कराया है। फिर भी ये बच्चे स्कूल जाना नहीं छोड़ते हैं। भारत में ऐसे अनेकों रास्ते है जहाँ करोड़ो बच्चें रोज़ाना स्कूल जाते हैं।

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