एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 7 खनिज तथा ऊर्जा संसाधन भाग 2 भारत लोग और अर्थव्यस्था के प्रश्न उत्तरों को सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित रूप में यहाँ से मुफ्त प्राप्त करें। कक्षा 12 भूगोल पाठ 7 के सभी सवाल जवाब अभ्यास के अतिरिक्त महत्वपूर्ण प्रश्न हिंदी और अंग्रेजी में यहाँ दिए गए हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 7

भारत में अभ्रक के वितरण का विवरण दें।

भारत में अभ्रक मुख्यत आंध्रप्रदेश, राजस्थान, झारखंड तथा तेलंगाना में पाया जाता है। इसके बाद तमिलनाडु, मध्यप्रदेश तथा पं. बंगाल आते है। झारखंड में उच्च गुणवत्ता वाला अभ्रक निचले हज़ारीबाग पठार की 150 कि.मी. लंबी तथा 22 कि.मी. चौड़ी पट्टी में पाया जाता है। आंध्रप्रदेश में, नेल्लोर ज़िले में सर्वोत्तम प्रकार के अभ्रक का उत्पादन किया जाता है। राजस्थान में अभ्रग की पट्टी लगभग 320 कि. मी. लंबाई में जयपुर से भीलवाड़ा एवं उदयपुर के आसपास विस्तृत है। कर्नाटक के मैसूर तथा हासन ज़िले, तमिलनाडु के कोयम्बटूर, मदुरई, तिरूचिरापल्ली व कन्याकुमारी ज़िले, महाराष्ट्र के रत्नागिरी और पश्चिम बंगाल के पुरूलिया तथा बाँकुरा ज़िलों में भी अभ्रक के निक्षेप पाए जाते हैं।

कक्षा 12 भूगोल अध्याय 7 के लिए बहुविकल्पीय प्रश्न

Q1

निम्नलिखित में से किस राज्य में प्रमुख तेल क्षेत्र स्थित है?

[A]. असम
[B]. बिहार
[C]. राजस्थान
[D]. तमिलनाडु
Q2

निम्नलिखित में से किस स्थान पर पहला परमाणु ऊर्जा स्टेशन स्थापित किया गया था?

[A]. कलपक्कम
[B]. नरोरा
[C]. राणाप्रताप सागर
[D]. तारापुर
Q3

निम्नलिखित में कौन-सा खनिज भूरा हीरा के नाम से जाना जाता है?

[A]. लौह
[B]. लिगनाइट
[C]. मैंगनीज़
[D]. अभ्रक
Q4

निम्नलिखित में कौन-सा ऊर्जा का अनवीकरणीय स्रोत्र है?

[A]. जल
[B]. सौर
[C]. ताप
[D]. पवन

नाभिकीय ऊर्जा क्या है? भारत के प्रमुख नाभिकीय ऊर्जा केंद्रों के नाम लिखें।

नाभिकीय ऊर्जा: नाभिकीय अभिक्रियाओं के फ़लस्वरूप प्राप्त ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा या परमाणु ऊर्जा कहलाती है। नाभिकीय ऊर्जा दो प्रकार की नाभिकीय अभिक्रियाओं से प्राप्त हो सकती है – नाभिकीय संलयन तथा नाभिकीय विखंडन।
नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले महत्वपूर्ण खनिज यूरेनियम तथा थोरियम है। यूरेनियम निक्षेप धारवाड़ ‘शैलों में पाए जाते हैं। भौगोलिक रूप से यूरेनियम अयस्क सिंहभम ताँबा पट्टी के साथ अनेक स्थानों पर मिलते हैं। यह राजस्थान के उदयपुर, अलवर, झुंझुनू जिलों, मध्यप्रदेश के दुर्ग जिले, महाराष्ट्र के भंढारा ज़िले और हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले में भी पाया जाता है। थोरियम मुख्यतः केरल के तटीय क्षेत्र की पुलिन बीच की बालू में मोनाजाइट व इल्मेनाइट से प्राप्त किया जाता है। विश्व के सबसे समृद्ध मोनाजाइट निक्षेप केरल के पालाक्काड एवं कोलाम ज़िलों, आंध्रप्रदेश के विशाखापट्नम और ओडिशा में महानदी के नदी डेल्टा में पाए जाते हैं।

परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना 1948 में की गई थी तथा इस दिशा में प्रगति 1954 में ट्रांबे परमाणु ऊर्जा संस्थान की स्थापना के पस्चात हुई जिसे बाद में, 1967 में भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र के रूप में पुनः नामित किया गया। महत्वपूर्ण नाभिकीय ऊर्जा परियोजनाएँ- कलपक्कम (तमिलनाडु), तारापुर (महाराष्ट्र), कोटा के पास रावतभाटा (राजस्थान), काकरापाड़ा (गुजरात), कैगा (कर्नाटक), नरोरा (उत्तरप्रदेश) है।

अलौह धातुओं के नाम बताएँ। उनके स्थानिक वितरण की विवेचना करें।

अलौह धातु: ऐसी धातु, जिसमें लोहे की मात्रा नहीं पाई जाती है उन धातुओं को अलौह धातुएँ कहते हैं।
अलौह धातुओं के नाम: बाक्साइट, एल्युमिनियम, सीसा, जस्ता, ताँबा, टिन, सोना, चाँदी, पारा, कोबाल्ट, कैडमियम आदि।
स्थानिक विवरण:

    • बाक्साइट: बॉक्साइट एक अयस्क है जिसका प्रयोग एल्युमिनियम के विनिर्माण में किया जाता है। ओडिशा बॉक्साइट का सबसे बड़ा उत्पादक है। कालाहांडी और संभलपुर अग्रणी उत्पादक है। दो अन्य क्षेत्र जो अपने उत्पादन को बढ़ा रहे हैं- बोलनगीर और कोरापुट। झारखंड में लोहरडागा जिले की पैटलैंडस में इसके समृद्ध निक्षेप हैं। गुजरात, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र तथा मध्यप्रदेश अन्य प्रमुख उत्पादक राज्य है।
    • ताँबा: बिजली की मोटरें, ट्रांसफ़ार्मर और जेनरेटर्स आदि बनाने व विधुत उद्योग के लिए ताँबा एक अपरिहार्य धातु है। ताँबा निक्षेप मुख्यतः झारखंड के सिंहभूमि जिले में, मध्यप्रदेश के बालाघाट और राजस्थान के झुंझुनु तथा अलवर जिलों में पाए जाते हैं। ताँबा के गौण उत्पादक आंध्रप्रदेश के गुंटूर जिले का अग्निगुंडाला, तमिलनाडु का दक्षिण आरकाट जिला, कर्नाटक के चित्रदुर्ग और हासन जिला है।
ऊर्जा के अपारंपरिक स्त्रोत कौन-से हैं?

ऊर्जा के अपारंपरिक स्त्रोत: प्रकृति में पर्याप्त मात्र में उपलब्ध संसाधन ऊर्जा के अपारंपरिक स्त्रोत कहलाते हैं। इनका पुनः उपयोग किया जा सकता है। इन्हें नवीकरणीय ऊर्जा स्त्रोत भी कहा जाता है।
कोयला, प्राकृतिक गैस, नाभिकीय ऊर्जा तथा पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधन के स्त्रोत समाप्य कच्चे माल का प्रयोग करते हैं। सतत पोषणीय ऊर्जा के स्त्रोत के ही नवीकरण योग्य स्त्रोत हैं। जैसे- पवन, सौर, जल, भूतापीय ऊर्जा, बायोमास। यह ऊर्जा स्त्रोत अधिक समान रूप से वितरित और पर्यावरण अनुकूल है।
 सौर ऊर्जा: फ़ोटोवोल्टाइक सेलों में विपाशित सूर्य की किरणों को ऊर्जा में बदला जा सकता है जिसे सौर ऊर्जा के नाम से जाना जाता है। सौर ऊर्जा को काम में लाने के लिए जिन दो प्रक्रमों को बहुत ही प्रभावी माना जाता है वे हैं फ़ोटोवोल्टाइक तथा सौर- तापीय प्रौद्योगिकी। सौर ऊर्जा कोयला अथवा तेल आधारित संयंत्रों की अपेक्षा 7% अधिक तथा नाभिकीय ऊर्जा से 10% अधिक प्रभावी है।

    1. पवन ऊर्जा: पवन ऊर्जा पूर्णरूप से प्रदुषण मुक्त तथा ऊर्जा का असमाप्य स्त्रोत है। पवन की गतिज ऊर्जा को टरबाइन के माध्यम से विधुत ऊर्जा में परिवर्तित किया जाता है।
    2. नाभिकीय ऊर्जा: नाभिकीय अभिक्रियाओं के फ़लस्वरूप प्राप्त ऊर्जा नाभिकीय ऊर्जा या परमाणु ऊर्जा कहलाती है। नाभिकीय ऊर्जा दो प्रकार की नाभिकीय अभिक्रियाओं से प्राप्त हो सकती है- नाभिकीय संलयन तथा नाभिकीय विखंडन। नाभिकीय ऊर्जा के उत्पादन में प्रयुक्त होने वाले महत्वपूर्ण खनिज यूरेनियम तथा थोरियम है।
    3. जैव ऊर्जा: जैव ऊर्जा उस ऊर्जा को कहा जाता है जिसे जैविक उत्पादों से प्राप्त किया जाता है जिसमें कृषि अवशेष, नगरपालिका औद्योगिक और अन्य अपशिष्ट सम्मिलित होते हैं।
    4. भूतापीय ऊर्जा: जब पृथ्वी के गर्भ से मैग्मा निकलता है तो अत्यधिक ऊष्मा निर्मुक्त होती है। इस ताप ऊर्जा को सफ़लतापूर्वक काम में लाया जा सकता है तथा इसे विधुत ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।
भारत के पेट्रोलियम संसाधनों पर विस्तृत टिप्पणी लिखें।

पेट्रोलियम ऊर्जा का एक गैर नवीकरणीय संसाधन है। कच्चा पेट्रोलियम द्रव तथा गैसीय अवस्था के हाइड्रोकार्बन से युक्त होता है और इसकी रासायनिक संरचना, रंगों तथा विशिष्ट घनत्व में भिन्नता पाई जाती है। यह मोटर-वाहनों, रेलवे और वायुयानों के अंतर- दहन ईंधन के लिए ऊर्जा का एक अनिवार्य स्त्रोत है। इसके अनेक सह-उत्पाद पेट्रो-रसायन उद्योगों, जैसे कि उर्वरक, कृत्रिम रेशे, कृत्रिम रबर, वैसलीन, स्नेहकों, साबुन, मोम, दवाइयाँ तथा अन्य सौंदर्य समाग्री में प्रक्रमित किए जाते हैं। पेट्रोलियम मुख्यतः टर्शियरी काल की अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। ये चट्टानें भारत के लगभग 40 प्रतिशत भागों में पाई जाती है।

भारत के पेट्रोलियम संसाधन के वितरण:

    1. असम और अन्य पूर्वोत्तर राज्यों में ब्रह्मपुत्र घाटी का प्रदेश पेट्रोलियम संसाधनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। आज़ादी तक असम का डिगबोई क्षेत्र पेट्रोलियम का एकमात्र प्रमुख उत्पादक क्षेत्र था।
    2. अपिष्कृत पेट्रोलियम टर्शियरी काल की अवसादी चट्टानों में पाया जाता है। व्यवस्थित ढंग से तेल अनवेषण तथा उत्पादन 1956 में तेल तथा प्राकृतिक गैस आयोग की स्थापना के पस्चात शुरू हुआ।
    3. हाल ही के वर्षों में देश के दूरतम पश्चिमी तथा तटों पर तेल निक्षेप पाए गए हैं।
    4. असम के नाहरकटिया और मोरन क्षेत्र भी पेट्रोलियम के महत्वपूर्ण उत्पादक हैं।
    5. गुजरात में प्रमुख तेल क्षेत्र अंकलेश्वर. कालोल, नवागाम, कोसांबा, लुनेज़, मेहसाणा हैं।
    6. मुंबई हाई, जो मुंबई नगर से 160 कि.मी. दूर अपतटीय क्षेत्र में पड़ता है, को 1973 में खोजा गया था तथा वहाँ 1976 में उत्पादन शुरू हो गया।
    7. तेल व प्राकृतिक गैस को पूर्वी तट पर कृष्णा- गोदावरी और कावेरी के बेसिनों में अन्वेषणात्मक कूपों में पाया गया है।
    8. कूपों से निकाला गया तेल अपरिष्कृत और अनेक अशुद्धियों से परिपूर्ण होता है। इसे सीधे प्रयोग में नहीं लाया जा सकता। इसे शोधित किए जाने की आवश्यकता होती है। भारत में दो प्रकार के तेल शोधन कारखाने हैं: क्षेत्र आधारित तथा बाज़ार आधाारित।
      डिगबोई तेल शोधन कारखाना क्षेत्र आधारित एंव बरौनी बाज़ार आधारित तेल शोधन कारखाने के उदाहरण हैं।
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