एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 5 भूसंसाधन तथा कृषि
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 5 भूसंसाधन तथा कृषि भाग 2 भारत लोग और अर्थव्यस्था के हल हिंदी और अंग्रेजी में सत्र 2024-25 के लिए संशोधित रूप में यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 12 भूगोल पाठ 5 के सभी प्रश्न उत्तर अभ्यास के सवाल जवाब की गाइड यहाँ से डाउनलोड कीजिए।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 5
कक्षा 12 भूगोल अध्याय 5 भूसंसाधन तथा कृषि के प्रश्न उत्तर
बंजर भूमि तथा कृषि योग्य व्यर्थ भूमि में अंतर स्पष्ट करें।
बंजर भूमि: वह भूमि जो प्रचलित प्रौद्योगिकी की सहायता से कृषि योग्य नहीं बनाई जा सकती। जैसे- बंजर पहाड़ी भू-भाग, मरूस्थल, खड्ड आदि को कृषि अयोग्य व्यर्थ-भूमि में वर्गीकृत किया गया है।
कृषि योग्य व्यर्थ भूमि: वह भूमि जो पिछले पाँच वर्षों तक या अधिक समय तक परती या कृषि रहित है, इस संवर्ग में शामिल की जाती है। भूमि उद्धार तकनीक द्वारा इसे सुधार कर कृषि योग्य बनाया जा सकता है।
कक्षा 12 भूगोल अध्याय 5 के लिए बहुविकल्पीय प्रश्न
निम्न में से कौन-सा भू-उपयोग संवर्ग नहीं है?
पिछले 40 वर्षों में वनों का अनुपात बढ़ने का निम्न में से कौन-सा कारण है?
निम्न में से कौन-सा सिंचित क्षेत्रों में भू-निम्नीकरण का का मुख्य प्रकार है?
निम्न में से कौन से देशों में गेहूँ व चावल की अधिक उत्पादकता की किस्में विकसित की गई थी?
निवल बोया गया क्षेत्र तथा सकल बोया गया क्षेत्र में अंतर बताएँ।
निवल बोया गया क्षेत्र: वह भूमि जिस पर फ़सलें उगाई तथा काटी जाती हैं, वह निवल बोया गया क्षेत्र कहलाता है।
सकल बोया गया क्षेत्र: जोते तथा बोये गए क्षेत्र में शुद्ध बुआई क्षेत्र और शुद्ध क्षेत्र का वह भाग सम्मिलित किया जाता है जिसका उपयोग एक से अधिक बार किया गया हो।
भारत जैसे देश में गहन कृषि नीति अपनाने की आवश्यकता क्यों है?
भारत एक कृषि प्रधान देश माना जाता है। भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण खाद्यान्न आपूर्ति करना एक बड़ी समस्या रही है। इसी कारण भारत को गहन कृषि नीति अपनाने की आवश्यकता है। भूमि बचत प्रौद्योगिकी विकसित करना आज बहुत आवश्यक है जिसमें प्रति इकाई भूमि में फ़सलों की उत्पादकता बढ़ाने पर जोर दिया जाता है। इसके साथ ही गहन भू-उपयोग से एक वर्ष में अधिकतम फ़सलें उगाई जाती है।
भारत में भू-संसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ कौन-सी है? उनका निदान कैसे किया जाए।
भूमि संसाधन के कई भौतिक रूप हैं जैसे- पवर्त, पहाड़ियाँ, मैदान, निम्न भूमि तथा घाटियाँ आदि। इस पर उष्ण, नम, शुष्क शीत जैसी विभिन्न जलवायु मिलती है। भारत में भू-संसाधनों की विभिन्न प्रकार की पर्यावरणीय समस्याएँ:
- भूमि संसाधनो का निम्नीकरण सिंचाई तथा कृषि विकास की दोषपूर्ण नीतियों से उत्पन्न हुई समस्याओं में से एक समस्या है। इससे मृदा उर्वरता क्षीण हो सकती है।
- रासायनिक उर्वरकों, कीटनाशकों, रसायनों के अधिक प्रयोग से मृदा परिच्छेदिका में विषैले तत्वों का सांद्रण बढ़ा है।
- वे क्षेत्र जहाँ हवाएँ तेज गति से चलती है, वहाँ भूमि की ऊपरी परत पवनों के साथ ही बह जाती है जिससे मृदा में उत्पन्न खनिज जैसे – कैल्शियम, पोटेशियम, इत्यादि की कमी से भूमि कृषि योग्य नहीं रह जाती।
- किसानों द्वारा फ़सलों की ज्यादा सिंचाई से भूमि में जलभराव हो जाता है। अधिक जलवाली भूमि से मृदा अपघटन होता है जिससे भूमि योग्य नहीं रहती।
- लवणीकरण की समस्या के कारण भूमि उत्पादन के लिए योग्य नहीं रहती।
- सिंचित क्षेत्रों में कृषि भूमि का एक वृहद् भाग जलाक्रांतता तथा मृदा क्षरता के कारण बंजर हो चुका है।
- निदान: उपरोक्त सभी समस्याओं का निराकरण सही प्रौद्योगिकी तथा तकनीक विकसित करके कर सकते हैं। इसके साथ पर्यावरणीय समस्या को उत्पन्न करने वाली गतिविधियों को भी नियंत्रित किया जाना बहुत आवश्यक है।
शुष्क कृषि तथा आर्द्र कृषि में क्या अंतर है?
शुष्क कृषि तथा आर्द्र कृषि में अंतर:
शुष्क कृषि
- शुष्क कृषि की फ़सल के लिए सिंचाई की कम जरूरत पड़ती है।
- यह कृषि भारत के उन शुष्क भू-भागों में की जाती है जहाँ वार्षिक वर्षा 75 सेमी से कम होती है।
- इस कृषि में दालें, तिलहन तथा कपास मुख्य फ़सल है।
- इसे आवरणहीन भूमि कहते हैं।
आर्द्र कृषि
- आर्द्र कृषि की फ़सल को अत्यधिक सिंचाई की जरूरत होती है।
- इसमें 75 सेमी अधिक वर्षा वाले क्षेत्र आते हैं।
- इस पद्धति में चावल मुख्य फ़सल है।
- इसे वर्षापोषित कृषि कहते हैं।