एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 12 भौगोलिक परिप्रेक्ष्य में चयनित कुछ मुद्दे एवं समस्याएँ भाग 2 भारत लोग और अर्थव्यस्था के प्रश्न उत्तर सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 12 भूगोल पाठ 12 के लिए सवाल जवाब हिंदी और अंग्रेजी माध्यम में उपलब्ध हैं ताकि छात्र इसे आसानी से समझ सकें।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 12

प्रदूषण और प्रदूषकों में क्या भेद है?

प्रदूषण: वायु, भूमि तथा जल में हानिकारक पदार्थों की उपस्थिति जो जीवों तथा पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, वह प्रदूषण कहलाती है । उदाहरण – जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनी प्रदूषण, मृदा प्रदूषण आदि।
प्रदूषक: प्रदूषक पर्यावरण को तथा जीव- जन्तुओं को नुकसान पहुँचाते हैं। प्रदूषक ऐसे पदार्थ होते हैं जिनके कारण पर्यावरण में प्रदूषण फ़ैलता है। उदाहरण – नाइट्रोजन के ऑस्साइड, कार्बन के ऑक्साइड, सल्फ़र के ऑक्साइड आदि।

कक्षा 12 भूगोल अध्याय 12 के लिए बहुविकल्पीय प्रश्न

Q1

निम्नलिखित में से सर्वाधिक नदी कौन-सी है?

[A]. ब्रह्मपुत्र
[B]. सतलुज
[C]. यमुना
[D]. गोदावरी
Q2

निम्नलिखित में से कौन-सी रोग जल जन्य है?

[A]. नेत्रश्लेष्मला शोथ
[B]. अतिसार
[C]. श्वसन संक्रमण
[D]. श्वासनली शोथ
Q3

निम्नलिखित में से कौन-सा अम्ल वर्षा का एक कारण है?

[A]. जल प्रदूषण
[B]. भूमि प्रदूषण
[C]. शोर प्रदूषण
[D]. वायु प्रदूषण
Q4

प्रतिकर्ष और अपकर्ष कारक उत्तरदायी है:

[A]. प्रवास के लिए
[B]. भू-निम्नीकरण के लिए
[C]. गंदी बस्तियाँ
[D]. वायु प्रदूषण

वायु प्रदूषण के प्रमुख स्रोत्रतों का वर्णन कीजिए।

वायु प्रदूषण वर्तमान मानवता की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक है।
वायु प्रदूषण के प्रमुख स्त्रोत: मिट्टी का तेल, कोयला, सिगरेट से निकलने वाला धुँआ आदि के जलने के दौरान निकलने वाली आम प्रदूषक गैसें कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), कार्बनडाईआक्साइड (CO₂), सल्फ़रडाइऑक्साइड (SO₂)आदि लगभग 90 प्रतिशत है। प्रदूषण के प्रमुख स्तोतो में बिजली तथा गर्मी उत्पादन, ठोस अपशिष्टों का जलना, औद्योगिक प्रक्रियाए तथा विशेष रूप से परिवहन है।

भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान से जुड़ी प्रमुख समस्याओं का उल्लेख कीजिए।

भारत में नगरीय अपशिष्ट निपटान से जुड़ी प्रमुख समस्याएँ:

    • नगरों में अभी भी सभी प्रकार के ठोस अपशिष्ट एक साथ एकत्रित किए जाते हैं जैसे कि धातु – शीशा, सब्जियों के छिलके, कागज आदि। जिससे इनको उचित ढंग से निपटाने में बाधा आती है।
    • तेज़ी से बढ़ती जनसंख्या और उसके लिए अपर्याप्त सुविधाएँ और विभिन्न स्त्रेतों द्वारा अपशिष्ट की मात्रा में वृद्धि।
    • इलेक्ट्रॉनिक सामान के कबाड़, मकानों की टूट-फ़ूट/निर्माण से उत्पन्न मलबे ने इस अपशिष्ट के निपटान की समस्या को और गंभीर बना दिया है।
    • पृथक्करण न होने तथा पर्याप्त जागरूकता के अभाव में अपशिष्ट का पुनर्चक्रण नहीं हो पाता।
मानव स्वास्थ्य पर वायु प्रदूषण के क्या प्रभाव पड़ते हैं?

मानव स्वास्थ पर वायु प्रदूषण के प्रभाव

    1. वायु प्रदूषण के संपर्क में तीव्र (अल्पकालिक) तथा दीर्घकालिक दोनों प्रभाव मानव स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
    2. यदि वायु में अशुद्धि है या उसमें प्रदूषक तत्वों का समावेश है तो वह ‘वास द्वारा शरीर में पहुँचकर विभिन्न प्रकार से प्रभावित करती है तथा अनेक रोगों का कारण बन जाती है।
    3. वायु प्रदूषण का सबसे अधिक प्रभाव मनुष्य के श्वसन तंत्र पर पड़ता है क्योंकि श्वास के साथ ग्रहण की गई वायु रक्त प्लाज्मा में घुलती नहीं अपितु हीमोग्लाबिन के साथ मिश्रित होकर सम्पूर्ण शरीर में भ्रमण करती रहती है।
    4. वायु में प्रदूषण वाली कणिकाएँ आदि आकार में कुछ बड़ी होती है तो वे नासिका द्वार पर रूक जाती है। परंतु अतिसूक्ष्म कणिकाएँ फ़फ़ेड़ों तक पहुंच जाती है तथा शरीर के विभिन्न भागों तक पहुँचकर रोग का कारण बन जाती है।
    5. श्वास रोगों के अतिरिक्त वायु में सल्फ़रडाईऑक्साइड और नाइट्रोजन डाईऑक्साइड की अधिकता से कैंसर, मधुमेंह, हृदय रोग आदि हो जाते है।
भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय सुझाइए।

कृषि योग्य भूमि पर दबाव का कारण केवल सीमित उपलब्धता ही नहीं, वरन् इसकी गुणवत्ता में कमी भी इसका कारण है। मृदा अपरदन, लवणता (जलाक्रांतता) और भू-क्षारता से भू-निम्नीकरण होता है। भू-निम्नीकरण का अभिप्राय स्थायी या अस्थायी तौर पर भूमि की उत्पादकता की कमी है। सभी निम्नकोटि भूमियाँ व्यर्थ भूमि नहीं है, लेकिन अनियंत्रित प्रक्रियाएँ इसे व्यर्थ भूमि में परिवर्तित कर देती है। भूनिम्नीकरण दो प्रक्रियाओं द्वारा तीव्रता से होता है। ये प्रक्रियाएँ प्राकृतिक और मानवजनित है। भारतीय दूर-संवेदन संस्थान ने व्यर्थ भूमि को दूर-संवेदन तकनीक की सहायता से सीमांकित किया है तथा इन प्रक्रियाओं के आधार पर इनको वर्गीकृत किया जा सकता है। जैसे- प्राकृतिक खड्ड, मरूस्थलीय या तटीय रेतीली भूमि, बंजर चट्टानी क्षेत्र, तीव्र ढाल वाली भूमि तथा हिमानी क्षेत्र। ये मुख्यतः प्राकृतिक कारकों द्वारा घटित हुई है। प्राकृतिक और मानवजनित प्रक्रियाओं से निम्नकोटि भूमियों में जलाक्रांत तथा दलदली क्षेत्र, लवणता तथा क्षारता से प्रभावित भूमियाँ, झाड़ी सहित एवं झाड़ियों रहित भूमियाँ आदि शामिल हैं।

भू-निम्नीकरण को कम करने के उपाय

    • नगरीय तथा औद्योगिक अपशिष्ट जल को साफ़ करके सिंचाई के लिए प्रयोग किया जा सकता है तथा अपशिष्ट जल से होने वाले प्रदूषण को कम किया जा सकता है।
    • किसानों को रासायनिक पदार्थों का प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण देकर भूमि के प्रदूषण को बहुत हद तक कम किया जा सकता है। उदाहरण: डी. डी. टी. और अन्य हानिकारक तत्वों पर तुरंत प्रतिबंध लगा देना चाहिए। कई देशों में ऐसा किया भी जा चुका है।
    • प्लास्टिक की थैलियों की जगह पर कागज की थैलियों का प्रयोग किया जाना चाहिए। प्लास्टिक की थैलियों पर प्रभावी रूप से तुरंत प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।
    • जलाक्रांत भूमि एवं दलदली भूमि को कुशल प्रबंधन से उपजाऊ बनाया जा सकता है।
    • कुछ भूमि जो मानवीय क्रियाओं के फ़लस्वरूप कृषियोग्य नहीं रह गयी है उसको नई प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल से पुनः कृषियोग्य बनाया जा सकता है।
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