एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 9 पर्यावरणम्
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 9 पर्यावरणम् शेमुषी भाग एक के सभी प्रश्न उत्तर सीबीएसई और राजकीय बोर्ड सत्र 2024-25 के अनुसार यहाँ निशुल्क दिए गए हैं। पाठ 9 के सभी पर्श्नों को सरल भाषा में समझा कर बताया गया है ताकि किसी भी छात्र को इसे समझने में कोई परेशानी न हो। पाठ के शब्द अर्थ और व्याख्या को सरल रूप में समझने के लिए यहाँ दिए गए हिंदी अनुवाद से भी मुफ़्त में मदद ली जा सकती है।
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 9 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 9 पर्यावरणम्
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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प्रकृति: समेषां प्राणिनां संरक्षणाय यतते। | प्रकृति सब प्राणियों की रक्षा के लिए प्रयत्न करती है। |
इयं सर्वान् पुष्णाति विविधै: प्रकारै:, सुखसाधनै: च तर्पयति। | यह विभिन्न प्रकार से सबको पुष्ट करती है तथा सुख-साधनों से तृप्त करती है। |
पृथिवी, जलम्, तेज:, वायु:, आकाश: च अस्या: प्रमुखाणि तत्त्वानि। | पृथ्वी, जल, तेज़, वायु और आकाश ये इसके प्रमुख तत्व हैं। |
तान्येव मिलित्वा पृथक्तया वाऽस्माकं पर्यावरणं रचयन्ति। | ये ही मिलकर या अलग-अलग हमारे पर्यावरण को बनाते हैं। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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आव्रियते परित: समन्तात् लोक: अनेन इति पर्यावरणम्। | संसार जिसके द्वारा सब ओर से आच्छादित किया जाता है, वह ‘पर्यावरण’ कहलाता है। |
यथा अजातश्शिशु: मातृगर्भे सुरक्षित: तिष्ठति तथैव मानव: पर्यावरणकुक्षौ। | जिस प्रकार अजन्मा (जिसने जन्म नहीं लिया है) शिशु अपनी माता के गर्भ में सुरक्षित रहता है |
परिष्कृतं प्रदूषणरहितं च पर्यावरणम् अस्मभ्यं सांसारिकं जीवनसुखं, सद्विचारं, सत्यसङ्कल्पं माङ्गलिकसामग्रीञ्च प्रददाति। | उसी प्रकार मनुष्य पर्यावरण की कोख में (सुरक्षित रहता है)। परिष्कृत (शुद्ध) तथा प्रदूषण से रहित पर्यावरण हमें सांसारिक जीवन-सुख, अच्छे विचार, अच्छे संकल्प तथा मांगलिक सामग्री देता है। |
प्रकृतिकोपै: आतङि्कतो जन: किं कर्तुं प्रभवति? | प्रकृति के क्रोधों से व्याकुल मनुष्य क्या कर सकता है? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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जलप्लावनै:, अग्निभयै:, भूकम्पै:, वात्याचक्रै:, उल्कापातादिभिश्च सन्तप्तस्य मानवस्य क्व मङ्गलम्? | बाढ़, अग्निभय, भूकंपों, आँधी-तूफानों तथा उल्का आदि के गिरने से संतप्त (दुखी) मानव का कहाँ कल्याण है? अर्थात् कहीं नहीं। |
अत एव अस्माभि: प्रकृति: रक्षणीया। | इसलिए हमें प्रकृति की रक्षा करनी चाहिए। |
तेन च पर्यावरणं रक्षितं भविष्यति। | उससे पर्यावरण अपने-आप सुरक्षित हो जाएगा। |
प्राचीनकाले लोकमङ्गलाशंसिन ऋषयो वने निवसन्ति स्म। | प्राचीनकाल में जनता का कल्याण चाहने वाले ऋषि वन में ही रहते थे |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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यतो हि वने सुरक्षितं पर्यावरणमुपलभ्यते स्म। | क्योंकि वन में ही सुरक्षित पर्यावरण प्राप्त होता था। |
तत्र विविधा विहगा: कलकूजनै:श्रोत्ररसायनं ददति। | अनेक प्रकार के पक्षी अपने मधुर कूजन से वहाँ कानों को अमृत प्रदान करते हैं। |
सरितो गिरिनिर्झराश्च अमृतस्वादु निर्मलं जलं प्रयच्छन्ति। | नदियाँ तथा पर्वतीय झरने अमृत के समान स्वादिष्ट और पवित्र जल देते हैं। |
वृक्षा लताश्च फलानि पुष्पाणि इन्धनकाष्ठानि च बाहुल्येन समुपहरन्ति। | पेड़ तथा लताएँ फल, फूल तथा इंधन की लकड़ी बहुत मात्रा में देते हैं। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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शीतलमन्दसुगन्धवनपवना औषधकल्पं प्राणवायुं वितरन्ति। | वन की शीतल (ठंडी), मंद तथा सुगंधित वायु औषध के समान प्राण-वायु बाँटते हैं। |
परन्तु स्वार्थान्धो मानव: तदेव पर्यावरणम् अद्य नाशयति। | किंतु स्वार्थ में अंधा हुआ मनुष्य उसी पर्यावरण को आज नष्ट कर रहा है। |
स्वल्पलाभाय जना बहुमूल्यानि वस्तूनि नाशयन्ति। | थोड़े से लाभ के लिए लोग बहुमूल्य वस्तुओं को नष्ट कर रहे हैं। |
जना: यन्त्रागाराणां विषाक्तं जलं नद्यां निपातयन्ति। | कारखानों का विषैला जल नदियों में गिराया जा रहा है |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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तेन मत्स्यादीनां जलचराणां च क्षणेनैव नाशो भवति। | जिससे मछली आदि जलचरों का क्षणभर में ही नाश हो जाता है। |
नदीजलमपि तत्सर्वथाऽपेयं जायते। | नदियों का पानी भी सर्वथा (हर प्रकार से) न पीने योग्य (अपेय) हो जाता है। |
मानवा: व्यापारवर्धनाय वनवृक्षान् निर्विवेकं छिन्दन्ति। | वन के पेड़ व्यापार बढ़ाने के लिए अंधाधुंध काटे जाते हैं |
तस्मात् अवृष्टि: प्रवर्धते, वनपशवश्च शरणरहिता ग्रामेषु उपद्रवं विदधति। | जिससे अवृष्टि (वर्षा न होना) में वृद्धि होती है तथा वन के पशु असहाय (बिना सहायता के) होकर गाँवों में उपद्रव उत्पन्न करते हैं। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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शुद्धवायुरपि वृक्षकर्तनात् सङ्कटापन्नो जायते। | पेड़ों के कट जाने से शुद्ध वायु भी दुर्लभ हो गई है। |
एवं हि स्वार्थान्धमानवै: विकृतिम् उपगता प्रकृति: एव सर्वेषां विनाशकर्त्री भवति। | इस प्रकार स्वार्थ में अंधे मनुष्यों के द्वारा विकारयुक्त प्रकृति ही उनकी विनाशिनी हो गई है। |
विकृतिमुपगते पर्यावरणे विविधा: रोगा: भीषणसमस्याश्च सम्भवन्ति। | पर्यावरण में विकार आ जाने से विभिन्न रोग तथा भयंकर समस्याएँ उत्पन्न हो रही हैं। |
तत्सर्वमिदानीं चिन्तनीयं प्रतिभाति। | इसलिए अब सब कुछ चिंतायुक्त प्रतीत हो रहा है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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धर्मो रक्षति रक्षित: इत्यार्षवचनम्। | ‘रक्षा किया गया धर्म रक्षा करता है’- ये ऋषियों के वचन हैं। |
पर्यावरणरक्षणमपि धर्मस्यैवाङ्गमिति ऋषय: प्रतिपादितवन्त:। | पर्यावरण की रक्षा करना भी धर्म का ही अंग है-ऐसा ऋषियों ने प्रतिपादित किया है। |
अत एव वापीकूपतडागादिनिर्माणं देवायतन-विश्रामगृहादिस्थापनञ्च धर्मसिद्धे: स्रोतो रूपेण अङ्गीकृतम्। | इसीलिए बावड़ी, कुएँ, तालाब आदि बनवाना, मंदिर, विश्रामगृह आदि की स्थापना धर्मसिद्धि के साधन के रूप में ही माने गए हैं। |
कुक्कुर-सूकर-सर्प-नकुलादि-स्थलचरा:, मत्स्य-कच्छप-मकरप्रभृतय: जलचराश्च अपि रक्षणीया:, यत: ते स्थलमलानाम् अपनोदिन: जलमलानाम् अपहारिणश्च। | कुत्ते, सूअर, साँप, नेवले आदि स्थलचरों तथा मछली, कछुए, मगरमच्छ आदि जलचरों की भी रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि ये पृथ्वी तथा जल की मलिनता को दूर करने वाले हैं। |
प्रकृतिरक्षया एव लोकरक्षा सम्भवति इत्यत्र नास्ति संशय:। | प्रकृति की रक्षा से ही संसार की रक्षा हो सकती है। इसमें संदेह नहीं है। |