एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 4 सूक्तिमौक्तिकम्
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 4 सूक्तिमौक्तिकम् शेमुषी भाग एक के सभी प्रश्नों के उत्तर और हिंदी मीडियम अनुवाद सत्र 2025-26 के लिए विद्यार्थी यहाँ से निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। कक्षा 9 संस्कृत शेमुषी पाठ 4 का हिंदी अनुवाद भी समाधान के साथ ही दिया गया है ताकि पाठ को समझने में कोई परेशानी न हो। पाठ 4 के शब्द अर्थ, रिक्त स्थान और अन्य प्रश्नों के लिए हल भी विस्तार से दिए गए हैं।
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 4 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 4 सूक्तिमौक्तिकम्
| संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद | 
|---|---|
| नैतिकशिक्षाणां प्रदायकरूपेण विन्यस्तोवर्तते। | नीति-ग्रंथों की दृष्टि से संस्कृत साहित्य काफी समृद्ध है। | 
| अस्मिन् पाठे विविधग्रन्थेभ्य: नानानैतिकशिक्षाप्रदानिपद्यानि सं गृहीतानि सन्ति। | इन ग्रंथों में सरल और सारगर्भित भाषा में नैतिक शिक्षाएँ दी गई हैं। | 
| अत्र सदाचरणस्य महिमा, प्रियवाण्या: आवश्यकता, | इसमें सत्य आचरण की महिमा, मधुर वाणी की आवश्यकता, | 
| परोपकारिणां स्वभाव:, गुणार्जनस्य प्रेरणा, मित्रताया: स्वरूपम्, श्रेष्ठसङ्गते: प्रशंसा | परोपकारी स्वभाव, गुणों का अर्जन, मित्र का क्या स्वरूप होता है, अच्छे लोगों का साथ | 
| संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद | 
|---|---|
| तथा च सत्सङ्गते: प्रभाव: इत्यादीनां विषयाणां निरूपणम् अस्ति। | और सत्संग का प्रभाव इत्यादि विषयों का निरूपण किया गया है। | 
| संस्कृतसाहित्ये नीतिग्रन्थानां समृद्धा परम्परा दृश्यते। | संस्कृत साहित्य में नीतिग्रंथों की समृद्ध परंपरा दिखाई देती है। | 
| तत्र प्रतिपादितशिक्षाणाम् अनुपालनं कृत्वा वयं स्व जीवनसफली कर्तुं शक्नुम:। | इन सबकी शिक्षा तथा इनका पालन करके अपने जीवन को सफल सकते हैं । | 
| संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद | 
|---|---|
| वृत्तं यत्नेन संरक्षेद् वित्तमेति च याति च। | हमें अपने आचरण की प्रयत्नपूर्वक रक्षा करनी चाहिए, क्योंकि धन तो आता है और चला जाता है। | 
| श्रूयतां धर्मसर्वस्वं श्रुत्वा चैवावधार्यताम्। | धर्म के तत्व को सुनो और सुनकर उसको ग्रहण करो, उसका पालन करो। | 
| आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत्॥2॥ | अपने से प्रतिकूल व्यवहार का आचरण दूसरों के प्रति कभी नहीं करना चाहिए। | 
| – | विदुरनीति: अर्थात् जो व्यवहार आपको अपने लिए पसंद नहीं है, वैसा आचरण दूसरों के साथ नहीं करना चाहिए। | 
| संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद | 
|---|---|
| प्रियवाक्यप्रदानेन सर्वे तुष्यन्ति जन्तव:। | प्रिय वचन बोलने से सब प्राणी प्रसन्न होते हैं | 
| तस्मात् तदेव वक्तव्यं वचने का दरिद्रता॥3॥ | हमें हमेशा मीठा ही बोलना चाहिए। मीठे बोल बोलने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए। | 
| पिबन्ति नद्य: स्वयमेव नाम्भ: | नदियाँ अपना पानी स्वयं नहीं पीतीं। | 
| स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षा:। | पेड़ अपने फल स्वयं नहीं खाते | 
| संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद | 
|---|---|
| नादन्ति सस्यं खलु वारिवाहा: | निश्चित ही बादल अनाज (फसल) को नहीं खाते | 
| परोपकाराय सतां विभूतय:॥4॥ | इसी प्रकार) सज्जनों (श्रेष्ट लोगों) की धन सम्म्पतियाँ दूसरों के लिए होती हैं। | 
| गुणेष्वेव हि कर्तव्य: प्रयत्न: पुरुषै: सदा। | मनुष्य को सदा गुणों को ही प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। | 
| गुणयुक्तो दरिद्रोऽपि नेश्वरैरगुणै: सम:॥5॥ | गरीब होता हुआ भी वह गुणवान व्यक्ति ऐश्वर्यशाली गुनहिन के समान नहीं हो सकता (अर्थात वह उससे कहीं अधिक श्रेष्ट होता है।) | 
| संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद | 
|---|---|
| आरम्भगुर्वी क्षयिणी क्रमेण | आरंभ में लंबी फिर धीरे-धीरे छोटी होने वाली | 
| लघ्वी पुरा वृद्धिमती च पश्चात्। | फिर धीरे-धीरे बढ़ने वाली पूर्वाहन तथा | 
| दिनस्य पूर्वार्द्धपरार्द्धभिन्ना | अपराहन काल की छाया की तरह | 
| छायेव मैत्री खलसज्जनानाम्॥6॥ | दुष्टों और सज्जनों की मित्रता अलग-अलग होती हैं। | 
| संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद | 
|---|---|
| यत्रापि कुत्रापि गता भवेयु- | पृथ्वी को सुशोभित करने वाले | 
| र्हंसा महीमण्डलमण्डनाय। | हंस भूमण्डल में (इस पृथ्वी पर) जहाँ कहीं (सर्वत्र) भी प्रवेश करने में समर्थ हैं | 
| हानिस्तु तेषां हि सरोवराणां | हानि तो उन सरोवरों की ही | 
| येषां मरालै: सह विप्रयोग:॥7॥ | जिनका हंसों से वियोग (अलग होना) हो जाता है। | 
| संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद | 
|---|---|
| गुणा गुणज्ञेषु गुणा भवन्ति | गुणवान लोगों में रहने के कारण ही गुणों को सगुण कहा जाता है। | 
| ते निर्गुणं प्राप्य भवन्ति दोषा:। | गुणहीन को प्राप्त करके वे दुर्गुण (दोष) बन जाते हैं। | 
| आस्वाद्यतोया: प्रवहन्ति नद्य: | जिस प्रकार नदियाँ स्वादयुक्त जलवाली होती हैं | 
| समुद्रमासाद्य भवन्त्यपेया:॥8॥ | परंतु समुद्र को प्राप्त करके न पीने योग्य अर्थात् (कुस्वादु या नमकीन) हो जाती हैं। | 










