एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत पाठ 3 गोदोहनम्
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 3 गोदोहनम् शेमुषी भाग एक के सभी प्रश्नों के उत्तर विस्तार से सरल भाषा में शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 9 संस्कृत के सभी समाधान सीबीएसई के साथ साथ उन राजकीय बोर्ड के लिए भी महत्वपूर्ण हैं जो एनसीईआरटी पुस्तक को पाठ्यक्रम में प्रयोग कर रहें हैं। कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 3 के प्रश्न उत्तर और हिंदी अनुवाद यहाँ से मुफ़्त में प्राप्त करें।
कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 3 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 9 संस्कृत अध्याय 3 गोदोहनम्
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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(मल्लिका मोदकानि साधयन्ती मन्दस्वरेण शिवस्तुतिं करोति) | (मल्लिका लड्डुओं को बनाती हुई धीमी आवाज़ में शिव की स्तुति करती है।) |
(तत: प्रविशति मोदकगन्धम् अनुभवन् प्रसन्नमना चन्दन: ।) | उसके बाद लड्डुओं की सुगन्ध को अनुभव करते हुए प्रसन्न मन से चन्दन प्रवेश करता है।) |
चन्दन: – अहा! सुगन्धस्तु मनोहर: (विलोक्य) अये मोदकानि रच्यन्ते? (प्रसन्न: भूत्वा) | चन्दन – वाह! सुगन्ध तो मनोहारी है (देखकर) अरे लड्डू बनाए जा रहे हैं? (प्रसन्न होकर) |
आस्वादयामि तावत्। (मोदकं ग्रहीतुमिच्छति) | तो स्वाद लेता हूँ। (लड्डू को लेना चाहता है) |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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मल्लिका – (सक्रोधम्) विरम। विरम। मा स्पृश एतानि मोदकानि। | मल्लिका – अच्छी तरह से जानती हूँ स्वामी। परन्तु ये लड्डू पूजा के लिए हैं। |
चन्दन: – किमर्थं क्रुध्यसि! तव हस्तनिर्मितानि मोदकानि दृष्ट्वा अहं जिह्वालोलुपतां नियन्त्रयितुम् अक्षम: अस्मि, किं न जानासि त्वमिदम्? | चन्दन – क्यों गुस्सा करती हो! तुम्हारे हाथों से बने लड्डुओं को देखकर मैं जीभ की लालच पर काबू रखने में असमर्थ हूँ, क्या तुम यह नहीं जानती हो? |
मल्लिका – सम्यग् जानामि नाथ! परम् एतानि मोदकानि पूजानिमित्तानि सन्ति। | मल्लिका – अच्छी तरह से जानती हूँ स्वामी। परन्तु ये लड्डू पूजा के लिए हैं। |
चन्दन: – तर्हि, शीघ्रमेव पूजनं सम्पादय। प्रसादं च देहि। | चन्दन – तो जल्दी ही पूजा करो और प्रसाद को दो |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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मल्लिका – भो:! अत्र पूजनं न भविष्यति। अहं स्वसखीभि: सह श्व: प्रात: काशीविश्वनाथमन्दिरं गमिष्यामि, तत्र गङ्स्नानं धर्मयात्राञ्च वयं करिष्याम:। | मल्लिका – अरे! यहाँ पूजा नहीं होगी। मैं अपनी सखियों के साथ कल सुबह काशीविश्वनाथ मंदिर की ओर जाऊँगी, वहाँ हम गंगा स्नान और धार्मिक यात्रा करेंगी। |
चन्दन: – सखिभि: सह! न मया सह! (विषादं नाटयति) | चन्दन – सखियों के साथ ! मेरे साथ नहीं (दुःख का अभिनय करता है) |
मल्लिका – आम्। चम्पा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिलादय: सर्वा: गच्छन्ति। | मल्लिका- – हाँ। चंपा, गौरी, माया, मोहिनी, कपिला आदि सब जाती हैं। |
अत:, मया सह तवागमनस्य औचित्यं नास्ति। | अतः मेरे साथ तुम्हारे आने का कोई औचित्य (उचित रूप) नहीं है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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वयं सप्ताहान्ते प्रत्यागमिष्याम:। | हम सप्ताह के अन्त में (तक) वापस आ जाएँगी। |
तावत्, गृह-व्यवस्थां, धेनो: दुग्धदोहनव्यवस्थाञ्च परिपालय। | तब तक घर की व्यवस्था और गाय के दूध को दुहने की व्यवस्था को चलाना। |
चन्दन: – अस्तु। गच्छ। | चन्दन – ठीक है। जाओ। |
सखीभि: सह धर्मयात्रया आनन्दिता च भव। | और सखियों के साथ धर्मयात्रा से आनन्दित होओ। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अहं सर्वमपि परिपालयिष्यामि। | मैं सभी को पाल लूँगा। |
शिवास्ते सन्तु पन्थान:! | तुम्हारे रास्ते शुभ हों। |
मल्लिका – मल्लिका तु धर्मयात्रायै गता। अस्तु। | तो धर्मयात्रा हेतु गई। ठीक है। |
दुग्धदोहनं कृत्वा तत: स्वप्रातराशस्य प्रबन्धं करिष्यामि। | गाय का दूध दुहकर उससे अपने नाश्ते (जलपान) का प्रबन्ध करूँगा। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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(स्त्रीवेषं धृत्वा, दुग्धपात्रहस्त: नन्दिन्या: समीपं गच्छति) | स्त्री का वेश धारण करके, दूध के हाथ में लिए नन्दिनी गाय के पास जाता है) |
उमा – मातुलानि! मातुलानि! | उमा – मामी! मामी |
चन्दन: – उमे! अहं तु मातुल:। तव मातुलानी तु गङ्स्नानार्थं काशीं गता अस्ति। | चन्दन – हे उमा! मैं तो मामा॑ हूँ। तुम्हारी मामी तो गंगा स्नान के लिए काशी गई है। |
कथय! किं ते प्रियं करवाणि? | कहो! क्या तुम्हारा भला करूँ? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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उमा – मातुल! पितामह: कथयति, मासानन्तरम् अस्मद् गृहे महोत्सव: भविष्यति। | उमा – मामा ! दादाजी कहते हैं, महीने भर बाद हमारे घर में उत्सव होगा। |
तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अपेक्ष्यते। | तब तीन सौ लीटर तक दूध चाहिए। |
एषा व्यवस्था भवद्भि: करणीया। | यह व्यवस्था आपको ही करनी है। |
चन्दन: – (प्रसन्नमनसा) त्रिशत-सेटककपरिमितं दुग्धम्! शोभनम्। | चन्दन: – (प्रसन्न मन से) तीस लीटर मात्रा (माप) में दूध! सुन्दर दूध की व्यवस्था हो जाएगी ही ऐसा दादा जी को तुम कह दो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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दुग्धव्यवस्था भविष्यति एव इति पितामहं प्रति त्वया वक्तव्यम्। | दूध की व्यवस्था हो जाएगी ही ऐसा दादा जी को तुम कह दो। |
उमा – धन्यवाद: मातुल! याम्यधुना। (सा निर्गता) | उमा – धन्यवाद मामा! अब जाती हूँ। (वह चली गई) |
चन्दन: – (प्रसन्नो भूत्वा, अङ्गु लिषु गणयन्) अहो! त्रिशत-सेटकं दुग्धम्! अनेन तु बहुधनं लप्स्ये। | चन्दन (प्रसन्न मन से) तीस लीटर मात्रा (माप) में दूध! सुन्दर दूध की व्यवस्था हो जाएगी ही ऐसा दादा जी को तुम कह दो । |
(नन्दिनीं दृष्ट्वा) भो नन्दिनि! तव कृपया तु अहं धनिक: भविष्यामि। | (नन्दिनी को देखकर) हे नन्दिनी! तुम्हारी कृपा से तो मैं धनी हो जाऊँगा। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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(प्रसन्न: स: धेनो: बहुसेवां करोति) | (प्रसन्न होकर वह गाय की बहुत सेवा करता है) |
चन्दन: – (चिन्तयति) मासान्ते एव दुग्धस्य आवश्यकता भवति। | चन्दन- (सोचता है) मास (महीने) के अन्त में ही दूध की जरूरत है। |
यदि प्रतिदिनं दोहनं करोमि तर्हि दुग्धं सुरक्षितं न तिष्ठति। | यदि हर रोज़ दुहने का काम करता हूँ तो दूध सुरक्षित नहीं रहता है। |
इदानीं किं करवाणि? | अब क्या करूँ? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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भवतु नाम मासान्ते एव सम्पूर्णतया दुग्धदोहनं करोमि। | ठीक है, महीने के अन्त में ही पूरी तरह से दूध को दुहने का काम करता हूँ (करूँगा) । |
(एवं क्रमेण सप्तदिनानि व्यतीतानि। सप्ताहान्ते मल्लिका प्रत्यागच्छति) | इस प्रकार क्रमानुसार सात दिन बीत गए। सप्ताह के अन्त में मल्लिका वापस आती है) |
मल्लिका – (प्रविश्य) स्वामिन्! प्रत्यागता अहम्। आस्वादय प्रसादम्। | मल्लिका – (प्रवेश करके) स्वामी! मैं वापस आ गई। प्रसाद को खाओ। |
(चन्दन: मोदकानि खादति वदति च) | (चन्दन लड्डुओं को खाता है और बोलता है।) |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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चन्दन: – मल्लिके! तव यात्रा तु सम्यक् सफला जाता? काशीविश्वनाथस्य कृपया प्रियं निवेदयामि। | चन्दन – मल्लिका! तुम्हारी यात्रा तो ठीक प्रकार से सफल हो गई? काशी विश्वनाथ की कृपा से प्रिय निवेदन करता हूँ। |
मल्लिका – (सार्श्चयम्) एवम्। धर्मयात्रातिरिक्तं प्रियतरं किम्? | मल्लिका – (आश्चर्य के साथ) ऐसा है। धर्मयात्रा के अतिरिक्त अधिक प्रिय क्या है? |
चन्दन: – ग्रामप्रमुखस्य गृहे मासान्ते महोत्सव: भविष्यति। तत्र त्रिशत-सेटकमितं दुग्धम् अस्माभि: दातव्यम् अस्ति। | चन्दन – गाँव के प्रधान के घर में महीने के अन्त में महोत्सव होगा। वहाँ तीन सौ लीटर दूध हमें देना है। |
मल्लिका – किन्तु एतावन्मात्रं दुग्धं कुत: प्राप्स्याम:? | मल्लिका – किन्तु इतनी मात्रा में दूध हमें कहाँ से मिलेगा? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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चन्दन: – विचारय मल्लिके! प्रतिदिनं दोहनं कृत्वा दुग्धं स्थापयाम: चेत् तत् सुरक्षितं न तिष्ठति। | चन्दन – सोचो मल्लिका! हर रोज दुह करके हम दूध को रखते हैं यदि वह सुरक्षित न रहे तो। |
अत एव दुग्धदोहनं न क्रियते। उत्सवदिने एव समग्रं दुग्धं धोक्ष्याव:। | इसलिए गाय का दोहन कार्य नहीं किया जा रहा है। उत्सव के दिन ही सारा दूध दुह लेंगे। |
मल्लिका – स्वामिन्! त्वं तु चतुरतम:। | मल्लिका – हे स्वामी! तुम तो बहुत चतुर हो। |
अत्युत्तम: विचार:। | बहुत सुन्दर विचार है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अधुना दुग्धदोहनं विहाय केवलं नन्दिन्या: सेवाम् एव करिष्याव:। | अब दूध दुहना छोड़कर केवल नन्दिनी की सेवा ही करेंगे। |
अनेन अधिकाधिकं दुग्धं मासान्ते प्राप्स्याव:। | इससे अधिक से अधिक दूध को महीने के अन्त में प्राप्त करेंगे। |
(द्वावेव धेनो: सेवायां निरतौ भवत: ।) | (दोनों ही गाय की सेवा में लगे होते हैं।) |
अस्मिन् क्रमे घासादिकं गुडादिकं च भोजयत:। | इसी तरह वे घास व गुड़ आदि खिलाते हैं। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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कदाचित् विषाणयो: तैलं लेपयत: तिलकं धारयत:, रात्रौ नीराजनेनापि तोषयत:) | कभी सीगों पर तेल लगाते हैं, तिलक लगाते हैं, रात में जल आदि से भी सन्तुष्ट करते हैं।) |
चन्दन: – मल्लिके! आगच्छ। | चन्दन – मल्लिका! आओ। |
कुम्भकारं प्रति चलाव:। | कुंभार के घर की ओर चलते हैं। |
दुग्धार्थं पात्रप्रबन्धोऽपि करणीय:। (द्वावेव निर्गतौ) | दूध के लिए बर्तन का प्रबन्ध भी करना है। (दोनों ही निकलते हैं) |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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कुम्भकार: -(घटरचनायां लीन: गायति) | कुंभार – (घड़े बनाने में व्यस्त है और गाता हैं) |
ज्ञात्वाऽपि जीविकाहेतो: रचयामि घटानहम्। | मैं जानकर भी जीविका (जीवन के लिए साधन) के कारण ही इन घड़ों को बनाता हूँ। |
जीवनं भङु्गरं सर्वं यथायं मृत्तिकाघट:॥ | सारा जीवन टूटकर नष्ट होने योग्य हैं जैसे यह मिटटी का घड़ा टूटकर समाप्त होने योग्य है। |
चन्दन: – नमस्करोमि तात! पञ्चदश घटान् इच्छामि। किं दास्यसि? | चन्दन – हे तात! नमस्कार करता हूँ। पन्द्रह घड़े चाहता हूँ। कैसे दोगे? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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देवेश – कथं न? विक्रयणाय एव एते। गृहाण घटान्। पञ्चाशदुत्तरैकशतं रूप्यकाणि च देहि। | देवेश – क्यों नहीं? बेचने के लिए ही है ये घड़ों को ले लो और पाँच सौ रुपये दे दो। |
चन्दन: – साधु। परं मूल्यं तु दुग्धं विक्रीय एव दातुं शक्यते। | चन्दन – ठीक है। परन्तु मूल्य (दाम) तो दूध को बेचकर ही दिया जा सकता है। |
देवेश: – क्षम्यतां पुत्र! मूल्यं विना तु एकमपि घटं न दास्यामि। | देवेश – हे पुत्र क्षमा करो! बिना मूल्य (दान) के एक भी घड़ा नहीं दूंगा। |
मल्लिका – (स्वाभूषणं दातुमिच्छति) तात! यदि अधुनैव मूल्यम् आवश्यकं तर्हि, गृहाण एतत् आभूषणम्। | मल्लिका – (अपने आभूषणों को देना चाहती है) हे तात! यदि अभी कीमत देना आवश्यक (जरुरी) है तो यह जेवर ले लो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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देवेश: – पुत्रिके! नाहं पापकर्म करोमि। कथमपि नेच्छामि त्वाम् आभूषणविहीनां कर्तुम्। | देवेश – बेटी मैं पाप का काम नहीं करता हूँ। तुम्हें आभूषण विहीन कभी भी नहीं करना चाहता हूँ |
नयतु यथाभिलषितं घटान्। दुग्धं विक्रीय एव घटमूल्यम् ददातु। | इच्छानुसार घड़ों को ले जाओ। दूध को बेचकर ही बड़ों की कीमत दे देना। |
उभौ – धन्योऽसि तात! धन्योऽसि। | दोनों – तात! आप धन्य हो। धन्य हो |
(मासानन्तरं सन्ध्याकाल: । एकत्र रिक्ता: नूतनघटा: सन्ति। दुग्धक्रेतार: अन्ये च ग्रामवासिन: अपरत्र आसीना:) | महीने भर बाद का सायंकाल। इकट्ठे ही खाली नये घड़े हैं। दूध खरीदने वाले और दूसरे गाँववासी दूसरी ओर खड़े हैं।) |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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चन्दन: – (धेनुं प्रणम्य, मङ्गलाचरणं विधाय, मल्लिकाम् आह्वयति) मल्लिके! सत्वरम् आगच्छ। | चन्दन – (गाय को प्रणाम करके, मंगलाचरण (पूजा) करके, मल्लिका को बुलाता है) हे मल्लिका! जल्दी आओ। |
मल्लिका – आयामि नाथ! दोहनम् आरभस्व तावत्। | मल्लिका – आती हूँ स्वामी! तब तक दुहना शुरू करो। |
चन्दन: – (यदा धेनो: समीपं गत्वा दोग्धुम् इच्छति, तदा धेनु: पृष्ठपादेन प्रहरति। | चन्दन – (जब गाय के पास जाकर दुहना चाहता है, तब गाय पिछले पैर से मारती है |
चन्दनश्च पात्रेण सह पतति) नन्दिनि! दुग्धं देहि। | चन्दन बर्तन के साथ गिरता है) हे नन्दिनी! दूध दो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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किं जातं ते? (पुन: प्रयासं करोति) | तुम्हें क्या हो गया? (फिर से कोशिश करता है) |
(नन्दिनी च पुन: पुन: पादप्रहारेण ताडयित्वा चन्दनं रक्तरञ्ज्तिं करोति) | (और नन्दिनी बार-बार पैर की चोट से मारकर चन्दन को लहुलुहान कर देती है) |
हा! हतोऽस्मि। (चीत्कारं कुर्वन् पतति) (सर्वे आर्श्चयेण चन्दनम् अन्योन्यं च पश्यन्ति) | हाय! मैं मार दिया गया। (चीखते हुए गिरता है) (सभी आश्चर्य से चन्दन और एक-दूसरे को देखते हैं) |
मल्लिका – (चीत्कारं श्रुत्वा, झटिति प्रविश्य) नाथ! किं जातम्? | मल्लिका – (चीख को सुनकर, जल्दी प्रवेश करके) स्वामी! क्या हुआ? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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कथं त्वं रक्तरञ्ज्ति:? | कैसे तुम लहुलुहान हो गए? |
चन्दन: – धेनु: दोग्धुम् अनुमतिम् एव न ददाति। दोहनप्रक्रियाम् आरभमाणम् एव ताडयति माम्। | चन्दन – गाय दूध दुहने की अनुमति ही नहीं दे रही है। दुहने का काम शुरू करते ही मुझे मारती है। |
(मल्लिका धेनुं स्नेहेन वात्सल्येन च आकार्य दोग्धुं प्रयतते। किन्तु, धेनु: दुग्धहीना एव इति अवगच्छति।) | मल्लिका गाय को प्यार और पुचकार से बुलाकर दुहने की कोशिश करती है किन्तु गाय तो दुधविहीन है यह समझ जाती है।) |
मल्लिका – (चन्दनं प्रति) नाथ! अत्यनुचितं कृतम् आवाभ्याम् यत्, मासपर्यन्तं धेनो: दोहनं न कृतम्। | मल्लिका – (चन्दन की ओर) हे स्वामी! हम दोनों ने बहुत अनुचित किया कि महीने भर तक गाय का दोहन नहीं किया। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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सा पीडा अनुभवति। | वह पीड़ा (दर्द) को अनुभव कर रही है। |
अत एव ताडयति। | इसलिए मारती है। |
चन्दन: – देवि! मयापि ज्ञातं यत्, अस्माभि: सर्वथा अनुचितमेव कृतं यत्, पूर्णमासपर्यन्तं दोहनं न कृतम्। | चन्दन – हे देवी! मुझे भी लगा कि हमने पूरी तरह से अनुचित ही किया कि पूरे महीने तक दोहन नहीं किया। |
अत एव, इयं दुग्धहीना जाता। | इसीलिए दूध सूख गया। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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सत्यमेव उक्तम्- कार्यमद्यतनीयं यत् तदद्यैव विधीयताम्। | सत्य ही कहा गया है-आज का जो काम है, उसे आज ही करना चाहिए। |
विपरीता गतिर्यस्य स कष्टं लभते ध्रुवम्॥ | जिसकी गति (काम करने का तरीका) उल्टी होती है, वह निश्चय ही कष्ट पाता है। |
मल्लिका – आम् भर्त:! सत्यमेव। | मल्लिका – हाँ स्वामी! सच ही। |
मयापि पठितं यत्- सुविचार्य विधातव्यं कार्यं कल्याणकाव्म्णिा। | मैंने भी पढ़ा है यत्-कल्याण चाहने वाले मनुष्य के द्वारा अच्छी तरह से सोच-विचार है कर काम को करना चाहिए। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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य: करोत्यविचार्यैतत् स विषीदति मानव:॥ | जो व्यक्ति बिना विचार किए काम करता है, वह दुखी होता है। किन्तु प्रत्यक्ष रूप से आज ही यह अनुभव किया। |
सर्वे, – दिनस्य कार्यं तस्मिन्नेव दिने कर्तव्यम्। | सभी- – हमें दिन का काम उसी दिन ही करना चाहिए। |
यः एवं न करोति सः कष्टं लभते ध्रुवम्। | जो ऐसा नहीं करता है वह निश्चित कष्ट को अनुभव करता है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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(सर्वे मिलित्वा गायन्ति) | (सभी मिलकर गाते हैं) |
आदानस्य प्रदानस्य कर्तव्यस्य च कर्मणः। | लेने के, देने के और कहने योग्य (अन्य) कर्म के, |
क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्॥ | शीघ्र न किए जाने पर समय उसका रस (आनन्द) पी जाता। |