एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 8 सुदामा चरित

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 8 सुदामा चरित के प्रश्न उत्तर अभ्यास के सवाल जवाब शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। छात्र पाठ को पढ़ने के बाद प्रश्नों के उत्तर स्वयं करने की कोशिश करें और आवश्यकता पढ़ने पर यहाँ दिए गए समाधान का प्रयोग करें।

सुदामा की दीनदशा देखकर श्रीकृष्ण की क्या मनोदशा हुई? अपने शब्दों में लिखिए।

सुदामा की दीन-दशा को देखकर श्री कृष्ण अत्यधिक विचलित हो गए। उन्होंने सुदामा से कहा कि तुम इतने कष्ट में रहे और मुझे बताया भी नहीं। सुदामा के पैर धोनें के लिए श्रीकृष्ण ने जो पानी मॅंगवाया था उसको उन्होंने छुआ तक नहीं। उनकी आँखों से इतने आँसू निकल रहे थे कि उन आँसूओं से ही उन्होंने सुदामा के पैरों को धो दिया।

चोरी की बान में हौ जू प्रवीने। उपर्युक्त पंक्ति कौन, किससे कह रहा है?
उपर्युक्त पंक्ति में श्रीकृष्ण अपने मित्र सुदामा को उलाहना दे रहे हैं।

इस कथन की पृष्ठभूमि स्पष्ट कीजिए।
सुदामा की पत्नि ने उन्हे अपने मित्र को देने के लिए कुछ चावल दिए थे, मगर वे संकोच वश उसे श्रीकृष्ण को दे नहीं पा रहे थे। इसीलिए वे उसे अपनी काँख के नीचे छिपा रहे थे। इसी पर श्रीकृष्ण ने उनसे कहा कि तुम चारी करने में तो बचपन से निपुण हो इसीलिए मेरी भाभी के द्वारा दी गई भेंट मुझे नहीं दे रहे हो।

इस उपालंभ शिकायत के पीछे कौन-सी पौराणिक कथा है?
इस उपालंभ शिकायत के पीछे कथा यह है कि एक कृष्ण और सुदामा गुरुकुल के लिए लकड़ी लेने वन में गए थे। गुरुमाता ने दोनों के खाने के लिए चने दिए थे जो सुदामा के पास थे पर उन्होंने श्रीकृष्ण को नहीं दिए और अकेले ही खा गए थे।

पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सों पग धोए। पंक्ति में वर्णित भाव का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।

पंक्ति का भाव यह है कि श्रीकृष्ण सुदामा की दीन-दशा को देखकर इतने व्याकुल हो गए कि अपनी सुध-बुध ही खो बैठे और मित्र-प्रेम में बहे आँसूओं से ही उन्होंने मित्र सदामा के चरणों को धो दिया।

उच्च पद पर पहुँचकर या अधिक समृद्ध होकर व्यक्ति अपने निर्धन माता-पिता, भाई-बंधुओं से नजर फेरने लग जाता है, ऐसे लोगों के लिए सुदामा चरित कैसी चुनौती खड़ी करता है? लिखिए।
उच्च पद पर पहुँचकर अपने सगे-संबंधियों को भी न पहचानने और उनका अपमान करने वाले व्यक्तियों के लिए सुदामा चरित एक शिक्षा प्रदान करता कि हम कितने भी बड़े क्यों न हो जाएं हमें घमंड नहीं करना चाहिए और अपनों का आदर करना चाहिए।

द्वारका से खाली हाथ लौटते समय सुदामा मार्ग में क्या-क्या सोचते जा रहे थे? वह कृष्ण के व्यवहार से क्यों खीझ रहे थे? सुदामा के मन की दुविधा को अपने शब्दों में प्रकट कीजिए।

द्वारका से खाली हाथ लौटते समय उन्हें श्रीकृष्ण पर बहुत क्रोध आ रहा था कि कृष्ण ने जो आदर सत्कार दिया और रोकर मित्रता का जो अभिनय किया, वह केवल दिखावा ही था उसे मेरी गरीबी पर भी तरस नहीं आया और खाली हाथ भेज दिया। उन्हें अपने पत्नी पर भी क्रोध आ रहा था कि मेरे मना करने पर भी उसने मुझे कृष्ण के पास भेजा जो थोड़े से चावल थे वे भी कृष्ण ने ले लिए।

अनुमान कीजिए यदि आपका कोई अभिन्न मित्र आपसे बहुत वर्षों बाद मिलने आए तो आप को कैसा अनुभव होगा?
कोई अभिन्न मित्र यदि मुझसे कई वर्षों बाद मिलने आए तो मुझे उस खुशी और आनन्द का अनुभव होगा जिसका वर्णन शब्दों में नहीं किया जा सकता।

अपने गाँव लौटकर जब सुदामा अपनी झोंपड़ी नहीं खोज पाए तब उनके मन में क्या-क्या विचार आए? कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

द्वारका से लौटकर जब वे अपने गाँव पहुँचे तो वे चकरा गए। उन्हें भ्रम हुआ कि कहीं वे फिर से द्वारका तो नहीं आ गए और सभी लोगों से अपनी झोंपड़ी के बारे में पूछते घूम रहे थे।

कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।
विपति कसौटी जे कसे तेई साँचे मीत।।
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है। इस दोहे से सुदामा चरित की समानता किस प्रकार दिखती है? लिखिए।
उत्तर:
इस दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र की पहचान बताई है उनके अनुसार विपत्ति में खरा उतरने वाला मित्र ही सच्चा मित्र होता है। वरना धन होने पर तो बहुत सारे मित्र तैयार हो जाते हैं। इस दृष्टि से श्रीकृष्ण और सुदामा की मित्रता सर्वोपरि है।

निर्धनता के बाद मिलने वाली संपन्नता का चित्रण कविता की अंतिम पंक्तियों में वर्णित है। उसे अपने शब्दों में लिखिए।

निर्धनता के बाद श्रीकृष्ण से अपार संपत्ति मिलने के बाद उनकी स्थिति ही बदल गई। कहाँ पैरों में पहनने के लिए चप्पल तक नहीं थी वहीं जमीन पर अब पैर नहीं पड़ रहे थे। टूटी झोंपडी़ के स्थान पर सोने के महले थे। कहाँ जमीन पर सोते थे अब सोने के लिए मखमल के गद्दे थे। अब उनको उस पर भी नींद नहीं आ रही थी। पकवान भी अच्छे नहीं लग रहे थे।

द्रुपद और द्रोणाचार्य भी सहपाठी थे, इनकी मित्रता और शत्रुता की कथा महाभारत से खोजकर सुदामा के कथानक से तुलना कीजिए।
द्रुपद और द्रोणाचार्य भी गुरुकुल में सहपाठी थे और उन्होंने अपने निर्धन मित्र द्रोण से राजा बनने पर अपनी आधी गाएं देने का वचन दिया था, मगर राजा बनने पर वे ये सब भूल गए और उनका अपमान भी किया। वहीं दूसरी ओर श्रीकृष्ण अपने मित्र की दयनीय दशा को देखकर अत्यंत दुखी हुए। श्रीकृष्ण ने सुदामा की सहायता करके उसकी जिन्दगी ही बदल दी थी।

“पानी परात को हाथ छुयो नहिं, नैनन के जल सो पग धोए”
ऊपर लिखी गई पंक्ति को ध्यान से पढि़ए। इसमें बात को बहुत अधिक बढ़ा-चढ़ाकर चित्रित किया गया है। जब किसी बात को इतना बढ़ा-चढ़ाकर प्रस्तुत किया जाता है तो वहाँ पर अतिशयोक्ति अलंकार होता है। आप भी कविता में से एक अतिशयोक्ति अलंकार का उदाहरण छाँटिए।
उत्तर:
निम्न पंक्ति में अतिश्योक्ति अलंकार है:
कै वह टूटी-सी छानी हती, कहँ कंचन के अब धाम सुहावत।
यहाँ सुदामा के कृष्ण से मिलन के पूर्व के घर जो एक टूटी-फूटी झोपडी थी तथा मिलन के बाद के स्वर्ण महल का वर्णन है। महल स्वर्ण से निर्मित नहीं होते हैं। इसलिए कह सकते हैं कि अतिश्योक्ति अलंकार का प्रयोग किया गया है।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 8 सुदामा चरित
कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 8 सुदामा चरित
कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 8 के प्रश्न उत्तर