एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 7 कबीर की साखियाँ

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 7 कबीर की साखियाँ के प्रश्न उत्तर भावार्थ तथा अभ्यास के प्रश्न उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। आठवीं कक्षा के विद्यार्थी हिंदी के पाठ 7 में कबीर के दोहों तथा उनके भावार्थ को समझने के लिए यहाँ उपलब्ध प्रश्न उत्तर का प्रयोग कर सकते हैं।

कबीरदासजी यह क्यों कह रहे हैं कि अगर तुम्हें कोई गाली देता है तो उसको पलट के गाली मत दो।
कबीरदासजी कहते हैं कि अगर तुम्हें कोई गाली देता है और आपने भी उसको पलट के गाली दे दी तो दोनों तरफ से गालियों का सिलसिला शुरू हो जायेगा। यह बढ़ता ही जायेगा और इसका परिणाम मानसिक एवं शारीरिक हानि हो सकती है। दूसरी ओर अगर आपने पलट कर गाली नहीं दी तो दूसरे के द्वारा दी गई वह एक गाली वहीं रुक जायेगी और विवाद आगे नहीं बढ़ेगा।

‘तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं।‘ उक्त उदाहरण से कबीर क्या कहना चाहते हैं? स्पष्ट कीजिए।

इस पद में कबीरदासजी तलवार और म्यान की तुलना मनुष्य की आत्मा और शरीर से करते हैं। लोग शरीर की शुद्धि और सुन्दरता पर ज्यादा ध्यान देते हैं लेकिन उसके अन्दर की आत्मा को न जानते हैं और न ही उसकी शुद्धता का ध्यान रखते हैं। इसलिए कबीरजी ने कहा, ‘तलवार का महत्त्व होता है म्यान का नहीं।‘ शाब्दिक रूप से कबीरदासजी यह कहना चाहते हैं कि जिस प्रकार तलवार काटने का काम करती है उसकी म्यान नहीं। ठीक उसी प्रकार हमारे अन्दर की आत्मा यदि शुद्ध है तो हम ठीक हैं। यदि केवल शरीर को ही म्यान की तरह सुन्दर बना लें और तलवार बिना धार वाली और आत्मा शुद्ध न हो तो सब कुछ बेकार है।

“या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।“
“ऐसी बानी बोलिए, मन का आपा खोय।‘‘
इन दोनों पंक्तियों में ‘आपा’ को छोड़ देने या खो देने की बात की गई है। ‘आपा’ किस अर्थ में प्रयुक्त हुआ है? क्या ‘आपा’ स्वार्थ के निकट का अर्थ देता है या घमंड का?
उत्तर:
आपा हर रूप में घमंड का ही अर्थ देता उसके मिट जाने से आदमी दयावान बन जाता है और मीठी बोली बोलने लगता है।

पाठ की तीसरी साखी-जिसकी एक पंक्ति है ‘मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं’ के द्वारा कबीर क्या कहना चाहते हैं?

इस साखी के द्वारा कबीर यह कहना चाहते हैं कि केवल माला फेरने से कुछ नहीं होता मन का भी स्थिर होना जरूरी है। चंचल मन से भक्ति पूर्ण नहीं होती ईश्वर की प्राप्ति भी नहीं होती। शाब्दिक रूप से इस पद का अर्थ है लोग दिखावे के लिए हाथ में माला लेकर घुमाते रहते हैं लेकिन मन में अनाप-शनाप विचार चलाते रहते हैं। इससे कोई लाभ होने वाला नहीं।

कबीर के दोहों को साखी क्यों कहा जाता है? ज्ञात कीजिए।
कबीर के दोहे समाज के व्यवहार के लिए साक्ष्य रूप में हैं यह साक्ष्य ही आगे चलकर साखी के रूप में परिवर्तित हो गया इसलिए उन्हें साखी कहा जाता है।

कबीर घास की निंदा करने से क्यों मना करते हैं। पढ़े हुए दोहे के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

कबीर घास की निंदा करने से इसलिए मना करते हैं क्योंकि जिस प्रकार पैरों में पड़ा तिनका कभी भी उड़कर हमारी आँखों में गिरकर हमें पीड़ा पहुँचा सकता है। ठीक उसी प्रकार किसी छोटे व्यक्ति की भी निंदा नहीं करनी चाहिए, नहीं तो वह कभी भी हमारा अपमान कर सकता है।

बोलचाल की क्षेत्रीय विशेषताओं के कारण शब्दों के उच्चारण में परिवर्तन होता है जैसे वाणी शब्द बानी बन जाता है। मन से मनवा, मनुवा आदि हो जाता है। उच्चारण के परिवर्तन से वर्तनी भी बदल जाती है। नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं उनका वह रूप लिखिए जिससे आपका परिचय हो।
ग्यान, जीभि, पाऊँ, तलि, आँखि, बरी।
उत्तर:
शब्द परिचित शब्द
ग्यान ज्ञान
जीभि जीभ
पाऊँ पाँव
तलि तल
आँखि आँख
बरी बरी

मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेने वाले दोष होते हैं। यह भावार्थ किस दोहे से व्यक्त होता है?

मनुष्य के व्यवहार में ही दूसरों को विरोधी बना लेने वाले दोष होते हैं। यह भावार्थ निम्न दोहे से व्यक्त होता है:
जग में बैरी कोई नहीं, जो मन सीतल होय।
या आपा को डारि दे, दया करै सब कोय।।

जाति न पूछो साध की, पूछ लीजिए ज्ञान। इस पंक्ति का आशय अपने शब्दों में लिखिए।
इस पद में कबीरदासजी कहते हैं कि साधु की कभी भी जाति नहीं पूछनी चाहिए क्योंकि जिसने वैराग्य को धारण कर लिया वह जाति के बंधन से स्वतः ऊपर उठ जाता है। वह सर्व समाज का हो जाता है। अगर वैराग्य सच्चा है तो वह ज्ञानी भी होता है। अतः साधु की पहचान उसके ज्ञान से करनी चाहिए।

आपके विचार में आपा और आत्मविश्वास में तथा आपा और उत्साह में क्या कोई अंतर हो सकता है? स्पष्ट करें।

आपा और आत्मविश्वास में मूल अंतर यह है कि ‘आपा’ को व्यक्त करता है जबकि आत्मविश्वास मनुष्य को आत्मबल प्रदान करता है।दूसरी ओर आपा और उत्साह का अंतर यह है कि अहंकार के वशीभूत मनुष्य की एक धारणा रहती है कि यह कार्य मैंने किया या यह कार्य केवल मैं कर सकता हूँ। मैं नहीं होता तो यह कार्य नहीं हो सकता था। उत्साह एक सच्चे मन से कार्य के प्रति लग्न को दिखता है। उत्साही मनुष्य हमेशा सफलता प्राप्त करता है और दूसरे लोग भी उसका सहयोग एवं उत्साहवर्धन करते हैं।

सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एक समान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। पाठ में आई कबीर की किस साखी से उपर्युक्त पंक्तियों के भाव मिलते हैं, एक समान होने के लिए आवश्यक क्या है? लिखिए।
उत्तर:
सभी मनुष्य एक ही प्रकार से देखते-सुनते हैं पर एक समान विचार नहीं रखते। सभी अपनी-अपनी मनोवृत्तियों के अनुसार कार्य करते हैं। यह विचार कबीरदासजी की निम्न साखी से प्रकट होते हैं।
आवत गारी एक है, उलटत होइ अनेक।
कह कबीर नहिं उलटिए, वही एक की एक।।
एक समान होने के लिए सबके विचार और भाव मिलने चाहिए।

कबीरदास को एक समाज सुधारक के रूप में कैसे देखते हैं?
कबीरदासजी ने उस समय समाज में व्याप्त बुराइयों पर कठोर आघात किया। उन्होंने अपनी रचनाओं में समाज में व्याप्त अंधविश्वास, जाति-पाति जैसी कुरीतियों पर प्रहार किया। उन्होंने समानरूप से हिन्दुओं और मुसलामानों की सामजिक और धार्मिक बुराइयों के खिलाफ बोला।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 7 कबीर की साखियाँ
कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 7 कबीर की साखियाँ
कक्षा 8 हिंदी वसंत अध्याय 7 के प्रश्न उत्तर