कक्षा 6 इतिहास अध्याय 9 एनसीईआरटी समाधान – नए साम्राज्य और राज्य

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प्रशस्ति शब्द से क्या तात्पर्य है?

प्रशस्ति एक संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ ‘प्रशंसा’ होता है। प्राचीन काल में दरबारी कवियों द्वारा राजाओं की प्रशंसा में लिखने और गाने की परम्परा थी और उस समय अनेक काव्य और गद्य लिखे गए। इन लेखों को प्रशस्ति नाम दिया गया है। समुद्रगुप्त के बारे में हमें इलाहाबाद में अशोक स्तंभ पर खुदे एक लंबे अभिलेख से पता चलता है। इसकी रचना समुद्रगुप्त के दरबार में कवि व मंत्री रहे हरिषेण द्वारा एक काव्य के रूप में की गई थी। यह एक विशेष किस्म का अभिलेख है, जिसे प्रशस्ति कहते हैं। प्रशस्तियाँ लिखने का प्रचलन पहले भी था। पिछले अध्याय में गौतमी-पुत्र श्री सातकर्णी की प्रशस्ति के बारे में पढ़ा। परन्तु गुप्तकाल में इनका महत्त्व और बढ़ गया।

वंशावलियां

अधिकांश प्रशस्तियां शासकों के पूर्वजों की भी बात करती हैं। यह प्रशस्ति भी समुद्रगुप्त के प्रपितामह, पितामह यानि परदादा, दादा, पिता और माँ के बारे में बात कर रहा है। उनकी मां लिच्छवि गण की कुमार देवी थीं। और पिता चंद्रगुप्त महाराजाधिराज की उपाधि धारणकरने वाले गुप्त वंश के पहले शासक थे। उन्होंने एक महान उपाधि ली। समुद्रगुप्त ने भी यह उपाधि धारण की थी। इनके दादा और परदादा का उल्लेख केवल महाराजा के रूप में किया गया है। यही भावना है यह पता चला है कि इस राजवंश का महत्व धीरे-धीरे बढ़ता गया।

हर्षवर्धन और हर्षचरित

लगभग 1400 साल पहले धार में हर्षवर्धन ने शासन किया था। जिस प्रकार गुप्त वंश के शासकों को अभिलेखों और सिक्कों से जाना जाता है, उसी प्रकार कुछ अन्य शासकों को उनकी आत्मकथाओं से भी जाना जाता है। उन राजाओं में से एक थे हर्षवर्धन, उनके दरबारी कवि बाणभट्ट ने उनकी जीवनी हर्षचरित संस्कृत में लिखी है। इसमें हर्षवर्धन की वंशावली देते हुए उनके राजा बनने तक का वर्णन मिलता है। चीनी तीर्थयात्री जुआन त्सांग, हर्ष के दरबार में लंबे समय तक रहा। उन्होंने वहां जो देखा, उसका विस्तृत विवरण अपने यात्रा वृत्तांत में लिखा है।

दक्षिण भारत में राज करने वाले प्रसिद्ध राजवंशों के बारे में वर्णन कीजिये।

इस काल में पल्लव और चालुक्य दक्षिण भारत के सबसे महत्वपूर्ण राजवंश थे। पल्लवों का राज्य उनकी राजधानी काँचीपुरम के आस-पास के क्षेत्रों से लेकर कावेरी नदी के डेल्टा तक फैला था, जबकि चालुक्यों का राज्य कृष्णा और तुंगभद्रा नदियों के बीच स्थित था। चालुक्यों की राजधानी ऐहोल थी। यह एक प्रमुख व्यापारिक केंद्र था। धीरे-धीरे यह एक धार्मिक केंद्र भी बन गया जहाँ कई मंदिर थे। पल्लव और चालुक्य एक-दूसरे की सीमाओं का अतिक्रमण करते थे। मुख्य रूप से राजधानियों को निशाना बनाया जाता था जो समृद्ध शहर थे। पुलकेशिन द्वितीय सबसे प्रसिद्ध चालुक्य राजा थे। आपसी लड़ाई से दोनों वंश दुर्बल होते गए। पल्लवों और चालुक्यों को अन्तत: राष्ट्रकूट तथा चोलवंशों ने समाप्त कर दिया।

उस समय में आम लोग उनकी भाषा और व्यवहार

जनसाधारण के जीवन की थोड़ी बहुत झलक हमें नाटकों तथा कुछ अन्य स्रोतों से मिलती है। इसके कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं। कालिदास अपने नाटकों में राज-दरबार के जीवन के चित्रण के लिए प्रसिद्ध है। इन नाटकों में एक रोचक बात यह है कि राजा और अधिकांश ब्राह्मणों को संस्कृत बोलते हुए दिखाया गया है जबकि अन्य लोग तथा महिलाएँ प्राकृत बोलते हुए दिखाए गए हैं। उनका सबसे प्रसिद्ध नाटक अभिज्ञान-शाकुन्तलम्‌ दुष्यंत नामक एक राजा और शकुन्तला नाम की एक युवती की प्रेम कहानी है। इस नाटक में एक गरीब मछुआरे के साथ राजकर्मचारियों के दुर्व्यवहार की बात कही गई है।

दक्षिण के राज्यों के अभिलेखों में सभाओं का क्या कार्य करती थी?

पल्लवों राजाओं के अभिलेखों में कई स्थानीय सभाओं की चर्चा है। इनमें से एक था ब्राह्मण भूस्वामियों का संगठन जिसे सभा कहते थे। ये सभाएँ उप-समितियों के ज़रिए सिंचाई, खेतीबाड़ी से जुड़े विभिन्न काम जैसे- सड़क निर्माण, स्थानीय मंदिरों की देखरेख आदि का कार्य करती थीं। जिन इलाकों के भूस्वामी ब्राह्मण नहीं थे वहाँ उर नामक ग्राम सभा के होने की बात कही गई है। नगरम व्यापारियों के एक संगठन का नाम था। संभवत: इन सभाओं पर धनी तथा शक्तिशाली भूस्वामियों और व्यापारियों का नियंत्रण था। इनमें से बहुत-सी स्थानीय सभाएँ शताब्दियों तक काम करती रहीं।

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