कक्षा 6 हिंदी व्याकरण अध्याय 31 कहानी लेखन

कक्षा 6 हिंदी व्याकरण अध्याय 31 कहानी लेखन तथा अभ्यास के लिए कहानियों के उदाहरण सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड के छात्रों के लिए यहाँ सत्र 2024-25 की परीक्षा के लिए निशुल्क उपलब्ध हैं। कहानी लेखन को विस्तार से समझने के लिए कक्षा 6 के विद्यार्थी हिंदी व्याकरण में पाठ 31 की अभ्यास पुस्तिका का प्रयोग करके इसे सरल बना सकते हैं।

कहानी लेखन

प्रायः छोटे बच्चों को कहानियाँ सुनने में बड़ी रुचि होती है। कहानी सुनते समय वे इतने मस्त हो जाते हैं कि वे खाना-पीना भी भूल जाते हैं। कहानी मनोरंजन का साधन तो है ही, साथ ही यह अनुभव आधारित शिक्षा एवं नैतिकता संबंधी ज्ञान प्राप्त करने का महत्त्वपूर्ण साधान भी है। कुछ लोग इस कला में बड़े परिपक्व होते हैं। वे इस प्रकार से कहानी कहते हैं कि सुनने वाले के मन पर उसका सीधा प्रभाव पड़ता है और वह दृश्य-दर-दृश्य कल्पनाओं में खोता चला जाता है।
कहानी-लेखन में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
1. कहानी का आरंभ सरल एवं सहज भाषा में होना चाहिए, जो सरलता से बोधागम्य हो।
2. कहानी की भाषा सरल, सजीव एवं रोचक होनी चाहिए जिससे सुनने वाला उसमें बँधाकर रह जाए।
3. कहानी सही घटनाक्रम में कही या लिखी जानी चाहिए।
4. कहानी उद्देश्यपूर्ण एवं शिक्षाप्रद होनी चाहिए।
5. कहानी कहते या लिखते समय फ़ालतू के विवरण से बचना चाहिए, ताकि भटकाव पैदा न हो।
इन सब बातों का धयान रखने पर कहानी की सजीवता एवं रोचकता बनी रहेगी।

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सबकी सहायता करो – कहानी

एक बहुत पुराना वृक्ष था, जो नदी के किनारे स्थित था। वह इतना विशाल था कि उसकी शाखाएँ नदी के ऊपर छाई थीं। उस वृक्ष पर एक मधुमक्खी रहती थी जिसने वृक्ष पर ही अपना निवास स्थान बना रखा था। उसका जीवन बड़े आनंद से व्यतीत हो रहा था। एक दिन वह वृक्ष से गिर पड़ी तथा पानी में बहती हुई जा रही थी। उसने किनारे पर आने के लिए बहुत प्रयास किया परंतु वह किनारे पर नहीं आ पा रही थी। पानी का बहाव बहुत तेज था इसलिए वह उसमें बहती जा रही थी।

कुछ दूरी पर एक कबूतर भी उसी वृक्ष पर रहता था। उसने देखा कि मधुमक्खी पानी में बहती जा रही है। तब उसे एक उपाय सूझा। उसने वृक्ष से एक पत्ता तोड़कर नदी में गिरा दिया जिसकी सहायता से मधुमक्खी सुरक्षित स्थान पर पहुँच गई।
मधुमक्खी ने कबूतर को उसकी जान बचाने के लिए धन्यवाद दिया और इस प्रकार उन दोनों में दोस्ती हो गई। एक दिन एक शिकारी जंगल में शिकार की खोज में भटक रहा था। उसने उस कबूतर को देखा और उसे मारने के लिए निशाना लगाया। मधुमक्खी ने उस शिकारी को कबूतर का निशाना लगाते देखा तो उसे काट लिया। जिससे शिकारी का निशाना चूक गया और कबूतर की जान बच गई। इस प्रकार मधुमक्खी ने दोस्ती निभाते हुए अपने दोस्त की जान बचाई। कबूतर ने मधुमक्खी का धान्यवाद किया और फि़र दोनों दोस्त मजे से रहने लगे।
शिक्षा- हमें सबकी सहायता करने का प्रयत्न करना चाहिए। संकट के समय मित्र की सहायता अवश्य करनी चाहिए।

दानवीर शिवि – कहानी

बात बहुत पुरानी है। शिवि नाम का एक दयालु राजा था। वह बड़ा न्यायप्रिय था। उसकी दानवीरता की प्रसिद्धि दूर-दूर तक फ़ैली थी। उसके दयालुतापूर्ण कार्यों से राज्य की प्रजा उससे बड़ी प्रसन्न रहती थी। उसका यश तीनों लोकों में फ़ैलने लगा कि देवता भी उससे ईर्ष्या करने लगे।
देवताओं ने इस विषय पर चर्चा करने के लिए एक सभा बुलाई। सभा में राजा शिवि की बढ़ती लोकप्रियता पर सभी देवता बड़े चिंतित थे। उन्होंने निर्णय लिया कि राजा शिवि की परीक्षा ली जाए। इस काम के लिए इंद्र देव तथा अग्नि देव को नियुक्त किया गया। इंद्र देव ने बाज का रूप तथा अग्नि देव ने कबूतर का रूप धाारण कर लिया।

अब दोनों देवता बचने और पकड़ने का खेल खेलते हुए शिवि के दरबार में आ घुसे। योजनानुसार कबूतर राजा शिवि की गोद में आ बैठा। राजा शिवि गोद में आए कबूतर को प्यार से हाथ फ़ेरने लगे। तभी बाज ने राजा से कहा- हे राजन! यह कबूतर मेरा शिकार है। आप इसे छोड़ दें ताकि मैं अपनी भूख शांत कर सकूँ।
राजा शिवि बोला- यह कबूतर मेरी शरण में आया है। इसकी रक्षा करना मेरा धर्म है। इसके बदले में आप कोई और माँस ले लें।

बाज बोला- मैं ताजा माँस खाता हूँ। आप कोई माँस देंगे तो भी वह आपकी प्रजा का ही माँस होगा क्या अपनी प्रजा को मारना अधर्म नहीं होगा?
राजा शिवि बोले- मैं आपको कबूतर के भार जितना माँस अपने शरीर से काटकर दे दूँगा। उससे तुम अपनी भूख शांत कर लो।
बाज शिवि के शरीर का माँस लेने के लिए मान गया। तराजू मँगवाया गया। एक पलड़े में कबूतर को बिठाया गया और दूसरे पलड़े में राजा शिवि अपने शरीर का माँस काटकर रखने लगे। राजा जैसे-जैसे अपना माँस रखते जाते वैसे-वैसे कबूतर का भार बढ़ता जाता। अंत में राजा शिवि को तराजू में बैठना पड़ा। जैसे ही दानवीर शिवि तराजू में बैठे, देवता राजा शिवि की जय-जयकार करने लगे। बाज और कबूतर भी अपने वास्तविक रूप में आ गए। वे राजा पर फ़ूलों की वर्षा करने लगे।
शिक्षा- शरण में आए दीन-दुखियों की रक्षा करनी चाहिए।

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