एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 7
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 7 खिड़की से (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 7) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी और अंग्रेजी मीडियम में सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से मुफ्त प्राप्त करें। कक्षा 4 ईवीएस के ये समाधान पीडीएफ और विडियो के रूप में दिए गए हैं जो विषय-विशेषज्ञों द्वारा सरल रूप में तैयार किया गया है।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 7
ट्रेन की खिड़की से बाहर का नज़ारा
ओमना कल रात बहुत जल्दी सो गई थी। ट्रेन के बाहर बहुत अँधेरा था। ओमना को खिड़की से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था। सुबह ट्रेन जब मडगाँव पहुँची तब ओमना की आंखे खुली। अप्पा ने बताया कि अब हम गोवा राज्य में हैं। सबने नीचे उतर कर चाय पी और अपनी पानी की बोतलें भी भर ली। सुबह के 7 बजकर 30 मिनट पर गाड़ी मडगाँव थी।
ट्रेन फिर चल पड़ी, बाहर का नज़ारा देखने लायक था। चारों तरफ हरियाली थी। मैदानों की लाल मिट्टी में उगे छोटे-छोटे पौधे और पेड़ों से ढँकी पहाड़ियाँ बहुत ही सुंदर लग रही थीं। खिड़की से बाहर कभी-कभी छोटे तालाब दिखाई पड़ते कभी दूर पहाड़ियों के बीच पानी दिखाई देता था। ओमना अपनी डायरी में सब लिख रही थी। ओमना को अंदाजा नहीं हो रहा था कि वहाँ नदी है या समुद्र पर हवा ठंडी थी। अहमदाबाद की तरह गर्म नहीं थी।
तभी ओमना ने देखा कि ट्रेन एक रेलवे फाटक से गुजरी रही है। फाटक के दोनों तरफ़ बसों, कारों, ट्रकों, साइकिल, स्कूटर, रिक्शा, बैलगाड़ी और तांगे में बैठे लोग ट्रेन के गुजरने का इंतजार कर रहे थे। कुछ लोगों ने अपनी गाड़ियों के इंजन तक बंद नहीं किए थे। फाटक पर धुआ दिखाई देने के साथ गाड़ियों का शोर साफ़ सुनाई दे रहा था। कुछ लोग बंद रेलवे फाटक को नीचे से झुक-कर खतरनाक ढंग से पार कर रहे थे। यह नजारा वास्तव में बहुत खतरनाक था।
ट्रेन के डिब्बे की गिनती में गड़बड़
कभी-कभी ओमना की ट्रेन दूसरी ट्रेन के बिलकुल पास से गुज़रती थी। उन्नी और ओमना के कई बार डिब्बे गिनने पर कभी भी उनकी गिनती मेल नहीं खाती थी और हमेशा ही गड़बड़ होती थी। फिर ओमना खिड़की के पास आँखे बंद किए बैठी थी कि अचानक ट्रेन के चलने की आवाज़ बदल गई। ओमना ने आँखें खोल कर देखा तो ट्रेन लोहे से बने पुल को पार कर रही थी।
खिड़की से नीचे झाँका तो वह डर गई, क्योंकि यह पुल नदी के ऊपर था। पटरी के नीचे जमीन तो थी ही नहीं पानी-ही-पानी था। ओमना को नदी में कुछ नावें दिखाई दे रही थीं और किनारे पर कुछ मछुआरे थे। ओमना ने उन्हें हाथ हिलाकर इशारा किया पर वह यह नहीं जान पाई के किसी ने उसे देखा या नहीं।
पुलों पर अन्य वाहनों की आवाजाही
ट्रेन के पुल के साथ दुसरे वाहनों के लिए एक ओर पुल भी बना हुआ था। वह इस पुल से अलग तरह से बना हुआ था। लेकिन ओमना को अपने पुल के ऊपर से जाने में ज्यादा मज़ा आ रहा था। ओमना के पिछले कुछ घंटे बहुत ही मज़े से गुजरे, नाश्ता करने के बाद ओमना अपने ऊपर के बर्थ पर लेट कर कॉमिक पढ़ने लगी।
बाहर बहुत तेज धुप खिली थी लेकिन अचानक बिलकुल अँधेरा हो गया। ओमना को थोड़ी ठंड भी लगने लगी और वह बहुत डर गई थी। कुछ देर बाद ट्रेन के अंदर की बत्तियाँ जल उठीं लेकिन बाहर बिलकुल घुप्प अँधेरा था। फिर किसी ने बताया की हम सुरंग से गुजर रहे थे। पहाड़ को काट कर ये सुरंग बनाई गई थी। ओमना को ऐसा लग रहा था, जैसे यह सुरंग कभी ख़त्म ही नहीं होगी।
कुछ देर बाद अचानक अँधेरा ख़त्म हुआ और पहले की तरह भरपूर रोशनी और हरियाली दिखाई देने लगी थी। अप्पा ने बताया की हम पहाड़ के दूसरी तरफ़ पहुँच गए थे। तब से अब तक ट्रेन चार छोटी सुरंगों से गुजर चुकी थी। ओमना अब सुरंगों के बारे में जान चुकी थी। अब उसे डर की जगह मज़ा आने लगा था।
लोगों का पहनावा
दोपहर तक ओमना की ट्रेन उदिपी स्टेशन पहुँच गई थी। वहाँ उन्होंने गरमागरम इडली-वडा खरीदा और खाया। उन्होंने केले भी ख़रीदे ये बहुत छोटे-छोटे थे पर बहुत स्वादिष्ट थे। ट्रेन के चलते ही फिर खिड़की के बहार का नजारा बदल गया था।
अब ओमना को हरे-भरे खेत और बहुत सारे नारियल के पेड़ दिखाई दे रहे थे। अम्मा ने बताया कि यहाँ चावल की खेती होती है। ओमना को सब कुछ अलग दिखाई दे रहा था। यहाँ के गाँव, यहाँ के घर और यहाँ के लोगों का पहनावा भी अहमदाबाद के लोगों से अलग था। ज्यादातर लोग सफ़ेद या क्रीम रंग की सूती धोती और साड़ियाँ पहने हुए थे।
कोज़ीकोड से आगे का सफ़र
शाम छह बजे पर ट्रेन कोज़ीकोड पहुँची, सुनील का परिवार वहाँ उतर गया ओमना ने एक-दुसरे का पता ले लिया और अहमदाबाद में मिलने की योजना भी बनाई थी। अब रात हो चुकी थी, तीन घंटे बाद ओमना को कोट्टायम स्टेशन पर उतरना था इसलिए उन्होंने अपना सामान संभालना शुरू कर दिया था।
आज रात को वे वलियम्मा (बड़ी मौसी) के घर जाएँगे। वहाँ से सुबह बस में बैठकर अम्मूमा (नानी) के गाँव के लिए रवाना हो जाएँगे। वे सभी बहुत थक गए थे। आज ट्रेन में ओमना का दूसरा दिन ख़त्म होने को था। ओमना ने मन में कहा “बाप रे, कितना लंबा सफ़र तय किया पर मजा भी बहुत आया।” अब ओमना ने डायरी में लिखना बंद कर दिया और कहा अब नानी के घर पहुँच कर ही डायरी लिखेगी।