एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 27
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 27 कोशिश हुई कामयाब (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 27) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी मीडियम और अंगेजी में छात्र यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। कक्षा 4 ईवीएस के पाठ 27 के प्रश्नों के उत्तर सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित किए गए हैं। छात्र इस पठन सामग्री को पीडीएफ और विडियो के रूप में यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 27
स्कूल जाने का सपना
प्रस्तुत पाठ में चुसकीट नामक लड़की जो कई सालों से स्कूल जाने का सपना पूरा होने का इंतज़ार कर रही थी। आज पहली बार स्कूल जा रही है। आज उसकी उम्र 10 वर्ष है। उसके स्कूल जाने की बाधाएँ आज ख़त्म हुई और स्कूल जाने की कोशिश कामयाब हुई है।
पैरों की लाचारी
चुसकीट, लद्दाख के सिकटपो पुल गाँव की रहने वाली एक लड़की है। उसके जन्म के समय से ही उसकी टाँगें खराब थी। वह बिना किसी के मदद के कोई काम नहीं कर सकती थी। स्कूल चुसकिट के घर से बहुत ज़्यादा दूर नहीं है। वहाँ पहुँचने के लिए बड़ी सड़क से होकर, झील के साथ-साथ चलते जाओ और पोपलर के पेड़ के पास से झील पार कर थोड़ी सी चढ़ाई करने पर स्कूल जाया जाता है। चुसकिट अपने पैरों की लाचारी के कारण यह रास्ता तय नहीं कर सकती थी।
कुर्सी से मिली ख़ुशी
चुसकिट पूरा-पूरा दिन खिड़की के पास बैठी ड्राइंग बनाती रहती थी। उसकी माँ (आमा-ले) उसकी पेंटिंग की बहुत तारीफ़ करती है। इससे चुसकिट बहुत ख़ुश हो जाती थी। एक दिन उसके पिता (आबा-ले) उसके लिए पहियों वाली कुर्सी ले आए। चुसकिट ने जल्दी ही अपनी कुर्सी को आगे-पीछे घुमाना सिख लिया था। चुसकिट की ख़ुशी का कोई ठिकाना न था। अब उसे अपने पिताजी की मदद हर जगह उठाकर ले जाने में नहीं पड़ती थी। जब मन करता वह कुर्सी पर बैठकर घर और आँगन में घूम सकती थी।
उबड़-खाबड़ रास्ता
आँगन में बैठकर चुसकिट हर सुबह बच्चों को देखती थी। बच्चे हसते-खेलते हुए स्कूल जाते थे। उन्हें देखकर उसका मन भी स्कूल जाने को करता था। एक दिन अब्दुल उसके घर पर चिट्ठी पहुँचाने आया। उसने चुसकिट से पूछा कि तुम स्कूल क्यों नहीं आती हो।
चुसकिट ने उदास होकर जवाब दिया कि उसके पिता रोज़-रोज़ उठाकर स्कूल नहीं ले जा सकते हैं। मैं कुर्सी चलाकर भी उबड-खाबड़ रस्ता पार नहीं कर सकती। अब्दुल ने फिर पूछा कि क्या तुम स्कूल जाना चाहती हो। चुसकिट का मन उछल पड़ा और बोली क्यों नहीं, मैं भी सब बच्चों की तरह पढ़ना और खेलना चाहती हूँ।
परेशानी को आसानी में बदलना
यह सुनकर चुसकिट की दादी ने उसी समय टोक दिया और बोली कि चुसकिट सपने देखना छोड़ दो। तुम जानती हो कि यह मुमकिन नहीं है। अब्दुल ने एक विचार बनाया और वह हैडमास्टर साहब और सब अध्यापकों के पीछे पड़ गया। उसने सब से अपनी बात मनवा ली। अब उन सब का एक ही काम था कि चुसकिट की परेशानी को आसानी में बदलना है। उन्होंने मिलकर उसका तरीका ढूँढ लिया जिससे चुसकिट अपनी पहियों वाली कुर्सी को स्कूल के रस्ते पर चला सके। इसके लिए उबड़-खाबड़ रास्ते को समतल करना था।
जिंदगी का सबसे ख़ास दिन
बच्चों की एक टोली उसके घर के सामने वाली उबड़-खाबड़ ज़मीन को ठीक करने में लग गई। दूसरी टोली नदी के पास वाली ज़मीन को ठीक करने में लग गई। परंतु अभी एक समस्या और थी। चुसकिट नदी कैसे पार करेगी। इसके लिए बड़े बच्चों ने अध्यापकों की मदद ली।
उन्होंने लकड़ी की फट्ठीयों से नदी पर पुलिया बनाई। सभी बच्चों ने हँसते-खेलते, ख़ुशी-ख़ुशी यह काम किया। वे सभी चाहते थे कि चुसकिट जल्दी ही स्कूल जाए। यह देख चुसकिट के माँ-बाप भी कहाँ पीछे रहने वाले थे। उन्हीने सभी को गरमा-गरम चाय पिलाई और बिस्कुट खिलाए। वहीँ बैठी चुसकिट की मेमे-ले (दादी) यह देखकर उनकी आँखों में ख़ुशी के आँसू निकल आए।
शाम होते-होते सारा काम हो गया था। सभी बच्चे बहुत खुश थे लेकिन चुसकिट सबसे ज़्यादा खुश थी। स्कूल जाने का सपना अब पूरा होने वाला था। इसी ख़ुशी में उसे पूरी रात नींद भी नहीं आई। अगला दिन उसकी जिंदगी का सबसे ख़ास दिन था।