एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 21
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 21 खाना-खिलाना (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 21) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी माध्यम में सीबीएसई और राजकीय बोर्ड के विद्यार्थी यहाँ से मुफ्त में डाउनलोड कर सकते हैं। कक्षा 4 ईवीएस के पाठ 21 के सभी प्रश्नों के उत्तर, रिक्त स्थानों को भरना और मिलान आदि प्रकार के प्रश्नों के उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित किए गए हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 21
लंगर में सेवा
प्रस्तुत पाठ में कुछ बच्चे गुरूद्वारे गए। वहाँ उन्होंने देखा कि बहुत सारे लोगों के लिए लंगर तैयार किया जा रहा था। औरों को देखकर वे भी लंगर में अपनी तरफ़ से सेवा करना चाहते थे।
गुरद्वारे जाने की ख़ुशी
दिव्या और स्वास्तिक अपने दोस्त गुरनूर के घर मिलने आते हैं। वे दोनों कल ही अपने बोडिंग स्कूल से आए थे। गुरनूर अपने दोस्तों को देख बहुत खुश होती है। दिव्या, गुरनूर से पूछती है कि तुम्हारे मामी-पापा कहाँ हैं। उनसे तो मिलवा दें। गुरनूर ने बताया कि वे तो गुरद्वारे गए हैं। हम भी वहीं जा रहे हैं। यह सुनकर दिव्या ख़ुशी से बोली चलो हम भी चलते हैं। गुरनूर ने पूछा क्या तुम दोनों को हॉस्टल में रहना अच्छा लगता है।
कैसे रह लेते हो मामी-पापा के बिना। तब स्वास्तिक और दिव्या ने बताया कि मामी-पापा की याद तो आती है लेकिन हॉस्टल में भी बड़े मज़े आते हैं। भले ही कभी-कभी हमें खाना पसंद नहीं मिलता पर सभी बच्चों के साथ एक साथ बैठकर खाना खाने का मज़ा ही कुछ और ही होता है। हाँस्टल में जब भी किसी के घर से खाने की कोई चीज़ आती है तो सभी बच्चे उसके कमरे में पहुँच जाते हैं। और चीज़ मिनटों में ख़त्म हो जाती है। यह सुनकर सब हँसने लगे।
बोर्डिंग स्कूल के नियम
बोर्डिग स्कूल में बच्चो को हॉस्टल में ही रहना पड़ता है। सभी बच्चे समय के अनुसार ही उठते, खाते और सोते हैं। हॉस्टल में ही उनका खाना बनता है। बच्चे अपना काम स्वयं करते हैं। केवल छुट्टियों में ही बच्चों को अपने माँ-बाप के साथ रहने दिया जाता है।
गुरद्वारे की परंपरा और कार्य
सभी बच्चे बातें करते हुए गुरुद्वारे पहुँचे। वहाँ सभी ने सबसे पहले अपने सिर ढँके। वे गुरुद्वारे के रसोईघर में गए। रसोईघर बहुत बड़ा था। वहाँ कई काम हो रहे थे। खाना बड़े-बड़े बर्तनों में पक रहा था। तभी स्वास्तिक को गुरनूर के पापा दिखाई दिए। गुरनूर के पापा मनजीत सिंह बच्चों से बहुत प्यार से मिले और पूछा तुम सब यहाँ क्या कर रहे हो।
गुरद्वारे का प्रसाद
उस समय मनजीत सिंह कड़ाह (हलवा) बना रहे थे। तभी उन्हें गुरनूर की मामी दिखाई दी। वे सब मुस्कराते हुए उनके पास गए। दिव्या ने पूछा आंटी आप क्या कर रही है। वे तंदूर से रोटी सेक रही थी। वहाँ पर दाल, आलू-गोभी और हलवे का प्रसाद तैयार हो रहा था।
सामान की व्यवस्था
स्वास्तिक ने हैरानी से पूछा, इतने सारे लोगों के लिए खाना पकाने का समान कौन लाता है। एक औरत ने बताया कि सभी मिल-जुल कर मदद करते हैं। कोई सामान देता है तो कोई पैसे देता है। सभी बच्चों को लंगर की सेवा में बहुत मज़ा आया।
कब रोटी, चावल, हलवा दाल और सब्जी तैयार हो गई पता भी नहीं चला था। अरदास के बाद सभी को कड़ाह प्रसाद दिया जाने लगा। अंत में खाना-खिलाने वाले लोगों ने भी मिलकर एक साथ खाया और वहाँ की सफ़ाई करके बर्तन भी साफ़ किए।