एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 17
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 17 नंदिता मुंबई में (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 17) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी मीडियम तथा अंग्रेजी में बच्चों की मदद के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 4 ईवीएस पाठ 17 के प्रश्नों को सीबीएसई सिलेबस 2024-25 के अनुसार संशोधित किया गया है। पीडीएफ और विडियो दोनों प्रकार के प्रारूपों में समाधान दिए गए हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 17
नंदिता की माँ का इलाज
प्रस्तुत पाठ में नंदिता जो गाँव से शहर अपने मामा के घर अपनी माँ के इलाज कराने के लिए आई थी और उसने अपने गाँव और शहर में क्या अंतर देखा। इन सब बातों के बारे बताया गया है। नंदिता को मुंबई आए एक महीना हो गया था। तभी से उसकी माँ अस्पताल में भर्ती है। नंदिता माँ का इलाज कराने के लिए अपने गाँव से मुंबई आई थी।
आज भी उसे वह दिन याद है। जब वह मुंबई स्टेशन पर ट्रेन से उतरी थी। बहुत भीड़ थी और डर के मारे नंदिता ने माँ का हाथ पकड़ लिया कि वह भीड़ में खो न जाएँ। वह सोच ही रही थी कि इतनी भीड़ में मामा कैसे दिखाई देंगे। तभी पीछे से उसे मामा की आवाज़ सुनाई दी ‘नंदिता! नंदिता!’ उसने मुड़ के देखा तो उसके मामा ही थे।
मामा के घर का रास्ता
स्टेशन से मामा के घर तक भीड़ बनी रही। संकरी गली के दोनों तरफ़ साथ-साथ सटी हुई झुग्गियाँ थी। मामा के घर में पहुँचने पर नंदिता ने देखा। यहाँ एक कमरे में मामा, मामी, उनकी दो बेटियाँ और एक बेटा रहता है। अब उसे भी यही रहना पड़ेगा। वहीं बैठना, वहीं सोना, वहीं पकाना और वहीं नहाना था। नंदिता के गाँव में भी एक ही कमरा था लेकिन रसोईघर और नहाने की जगह अलग-अलग थी। बाहर आँगन भी था।
नंदिता की मुंबई में पहली सुबह
मुंबई में नंदिता अपनी मामी और छोटी बहन सीमा के साथ सुबह चार बजे उठकर नल पर पानी भरने जाती थी। पानी के लिए वहाँ आए दिन झगड़े होते रहते थे। अगर पानी भरने देर से पहुँचे तो समझो दिन भर पानी भरा नहीं जाएगा। नंदिता के गाँव में भी नल नहीं था। उसे गाँव के तालाब से पानी लाना होता था जिसके लिए उसे बीस मिनट लगते थे।
गर्मियों में कभी-कभी तालाब का पानी सूख जाता था। उसे नदी से पानी लाना पड़ता पर पानी के लिए वहाँ झगड़े नहीं होते थे। मामा की गली के कोने पर ही सरकारी टायलेट बना था। गली के सभी लोग वहीं जाते थे। वहाँ गंदगी और बदबू से नंदिता को पहले बहुत मितली आती थी। अकसर वहाँ पानी भी नहीं होता था। पानी अपने साथ ही ले जाना पड़ता था। गाँव में तो सब खेतों की तरफ़ जाते थे। लेकिन आदमी और औरतों की जगह अलग-अलग थी।
अस्पताल का रास्ता
नंदिता रोज माँ से मिलने बस से अस्पताल जाती थी। शुरू में तो उसे भीड़ को देख बस में चढ़ने की हिम्मत ही नहीं होती थी और न ही उसे आदत थी। अब उसे समझ में आ गया था कि कैसे लाइन में लगना है। कितने का टिकट लेना है और कहाँ उतरना है। बस्ती से कुछ दूरी पर ही एक ऊँची बिल्डिंग थी।
बिल्डिंग के सात घरों में मामी सफाई और बर्तन धोने का काम करती थी। एक दिन नंदिता भी मामी के साथ वहाँ गई थी। इतने ऊँचे घर को देख नंदिता ने सोचा उसे कितनी सारी सीढियाँ चढ़नी पड़ेगीं लेकिन वहाँ तो लिफ्ट लगी हुई थी। कितने सारे लोग उसमें घुस गए। बटन दबाया और झट से ऊपर पहुँच गए। पहले तो नंदिता को बहुत डर लगा था।
नंदिता मामी के साथ
मामी सबसे पहले बारहवीं मंज़िल पर ले गई। जो बबलू का घर था। वह घर बहुत बड़ा था। बैठक, खाने का कमरा, सोने का कमरा सब अलग था। रसोई भी अलग बनी हुई थी। वहाँ टायलेट भी घर के अंदर बहुत सुंदर बना था। मामी को घर में काम करने में काफ़ी समय लगा लेकिन खास परेशानी नहीं हुई क्योंकि रसोईघर में ही नल लगा हुआ था।
पानी झर-झर बह रहा था। बबलू के घर में बड़ी-बड़ी काँच की खिड़कियाँ थीं। मामी ने उसे खिड़की से नीचे देखने को कहा। वहाँ से देखने पर उसे मामा की बस्ती साफ़ नज़र आ रही थी लेकिन पता नहीं चल रहा था कि मामा का घर कौन सा है। ऊपर से नीचे सब कुछ खिलौने की तरह छोटा-छोटा दिखाई दे रहा था। इतना ऊँचा होने के कारण नंदिता को नीचे देखने में डर भी लग रहा था।
मामा के साथ मुंबई की सैर
नंदिता के मामा ने उसे मुंबई घुमाने ले जाने के बारे में कहा था। बस्ती के बच्चे भी आपस में मुंबई की चौपाटी की बातें करते रहते थे। सुना है वहाँ बड़े-बड़े फ़िल्म स्टार भी आते हैं। नंदिता भी उन्हें देखना चाहती थी। कुछ दिनों से मामा बहुत परेशानी में थे। इसलिए नंदिता ने उन्हें मुंबई घुमाने को भी नहीं कहा क्योंकि पिछले हफ़्ते कुछ लोग बस्ती खाली करने का नोटिस दे गए थे।
अब यहाँ बड़ा होटल बनेगा। मामा ने बताया कि पिछले दस सालों में उन्हें तीसरी बार नोटिस मिला था। जो लोग यहाँ बस्ती में रह रहे थे उन्हें अपना घर बनाने के लिए कोई दूसरी जगह दी जा रही थी। वह शहर से बहुत दूर थी। समझो शहर का दूसरा कोना था। वहाँ पीने का पानी, बिजली, आने-जाने की बस मिलेगी भी क्या किसी को कुछ पता नहीं था।
मामा इतनी दूर से काम पर कैसे आँएगे, कितना टाइम लगेगा, कितना पैसा लगेगा और मामी को वहाँ काम मिलेगा भी या नहीं मिलेगा। सब इसी सोच में डूबे हुए थे। नंदिता भी सोच रही थी कि अगर मामा नई जगह चले गए तो माँ से मिलने कैसे अस्पताल जा सकेगी। माँ तो अभी पूरी तरह से ठीक भी नहीं हुई थी।