एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 12
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 12 कैसे-कैसे बदले घर (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 12) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी मीडियम और अंग्रेजी में यहाँ से निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। कक्षा 4 ईवीएस पाठ 12 के लिए पीडीएफ और विडियो समाधान सीबीएसई सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित किए गए हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 12
बंटवारे के दौरान
प्रस्तुत पाठ में लेखक चेतनदास जो गाजीखान का रहने वाले थे। बंटवारे के समय पाकिस्तान से भारत आकर अपना घर बनाने और उनके घर में कैसे-कैसे बदलाव आए के बारे में बताया गया हैं। लेखक जब नौ वर्ष का था तब भारत दो हिस्सों में बँट गया। उसी दौरान देश में दंगों की आग काफ़ी फैली हुई थी। गाजीखान में भी गड़बड़ हो रही थी।
इसी के चलते चेतनदास को भी पूरे परिवार के साथ अपने घर को छोड़ दिल्ली आना पड़ा था। दिल्ली आने के बाद चेतनदास को पता चला कि हमारा देश दो हिस्सों भारत और पाकिस्तान में बँट गया हैं। चेतनदास अपने परिवार के साथ कुछ दिनों के लिए कैंप में रहे। कैंप एक बड़े से मैदान में बड़े-बड़े तंबू लगाकर बना था। चेतनदास के परिवार में उनके माता-पिता और तीन छोटे भाई-बहन थे।
घर के लिए जमीन मिलना
एक दिन उनके पिता को पता चला कि उन्हें सोहना गाँव में जमीन मिली है। अब उन्हें वहीं अपना घर बना कर रहना होगा। चेतन बहुत खुश था। माता-पिता ने मिलकर घर बनाया चेतन और उसके बहन-भाई भी कहाँ पीछे रहने वाले थे। पिता ने पास से ही जो मिट्टी खोदी थी। बच्चे परात भर-भर कर माँ को पकड़ाते।
माँ, गुड़ियाँ के साथ मिलकर उसमें भूसा मिलाया और बाबा ने घर की दीवारें बनाई थी। फ़िर बच्चे आस-पास के घरों से गोबर ले आए माँ ने उसे मिट्टी में मिलाकर जमीन पर लिपाई की, बिलकुल वैसे ही जैसे वे अपने पुराने घर में करती थीं।
माँ ने कहा कि अब इस मिट्टी में कीड़ा नहीं लगेगा। चेतन के पिता ने लकड़ी के फट्टे जोड़-जोड़ कर एक फ्रेम बनाया और उसे चारों दीवारों पर टिका दिया था। लकड़ी को दीमक न लग जाए, इसके लिए नीम और कीकर की लकड़ियों को इस फ्रेम पर बिछा दिया था। माँ ने पुरानी बोरियाँ इस पर बिछा कर मिट्टी से लेप दिया था।
घर की मरम्मत
बहुत समय बीत जाने के बाद चेतनदास के माँ-बाप ने उनसे शादी करने को कहा, तो चेतन ने सोचा कि शादी से पहले घर की थोड़ी मरम्मत करवा ली जाए। चेतन ने माँ-बाप की सलाह से मरम्मत के साथ एक कमरा और बनवा लिया अब यह कमरा लोहे और सीमेंट से बनवाया था।
कमरे की दीवारें अब कच्ची ईटों से बनवाई थीं। इसे यह फ़ायदा हुआ कि इन्हें हर हफ़्ते लीपना नहीं पड़ता था। साल में एक बार इन दीवारों को चुने से पुताई कर लेते थे। आँगन में अब छोटी-सी पक्की रसोई बन गई, जिसमें एक तरफ़ मिट्टी का चूल्हा बना और दूसरी तरफ़ बर्तन रखने की जगह बनाई गई थी।
चेतनदास की शादी
चेतनदास की शादी इसी घर में हुई उनकी पत्नी सुमन रसोई में नीचे बैठकर रोटियाँ पकाती और पूरा परिवार चटाई पर बैठकर एक साथ खाना खाता था। गाँव के लोग तब टायलेट के लिए खेतों में जाते थे। कुछ लोगों ने इसके लिए घर में ही इंतजाम किया हुआ था। चेतनदास ने भी घर में ही इंतजाम किया हुआ था। उसने पिछवाड़े में कच्ची ईंटें लगाकर एक छोटा-सा टायलेट बनवा लिया था।
चेतन दास का बढ़ता हुआ परिवार
चेतनदास के दो बेटे और एक बेटी उसी घर में पैदा हुए, समय बीतता गया। बच्चों की पढाई पूरी हो गई। सबसे पहले चेतनदास ने सबसे पहले अपनी बेटी सिम्मी की शादी पलवल में कर दी थी। जब बड़े बेटे राजू की शादी की बात चली, तो सभी को लगा कि नई दुलहन के आने से पहले पूरे घर को पक्का करा लें।
बदलते घरों का स्वरूप
तब तक पक्की ईटों का चलन आ चुका था। अब की बार पक्की ईंटों की दीवारें बनवाई। छत पर लेंटर डलवाया और फ़र्श भी मार्बल के दाने और सीमेंट से पक्का बनवाया था। टायलेट में भी मल-मूत्र को पाइप से बाहर सीवर में जोड़ दिया था। रसोईघर को पहले से बड़ा करवाया। अब राजू की बहू बैठकर मिट्टी के चूल्हे पर नहीं बल्कि खड़े होकर गैस-स्टोव पर खाना बनाती है।
चेतन की नई और पुरानी यादें
चेतनदास के छोटे बेटे मोंटू की नौकरी लगी, तो वह दिल्ली जाकर बस गया। अब उसका पूरा परिवार दिल्ली में ही रहने लगा है। चेतन और सुमन कभी राजू के पास सोहना में रहते तो कभी मोन्टू के पास दिल्ली में रहते है। दिल्ली आते हुए चेतन ने रास्ते में गुरुग्राम शहर में बहुत सारी बड़ी-बड़ी ऊँची इमारते देखी जो वहाँ पहले नहीं थी।
कुछ साल बाद राजू ने दोबारा टायलेट बनवाया। अब उसने बाथरूम में रंगीन टाइलें भी लगवाई और नहाने की जगह पर फ़िजूल पैसा खर्च कर दिया था। चेतनदास ने 70 वर्ष की उम्र तक अपने घर में होने वाले बदलाव देखे। वह आज भी यही सोचते है कि उनके पोता-पोती बड़े होकर कहाँ रहना चाहेगें और कैसा होगा उनका घर।