एनसीईआरटी समाधान कक्षा 3 ईवीएस अध्याय 2

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 3 ईवीएस अध्याय 2 पौधों की परी (कक्षा 3 पर्यावरण पाठ 2) हिंदी मीडियम में प्रश्न उत्तर सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से निशुल्क प्राप्त करें। पूरे पाठ के प्रश्नों तथा कठिन शब्दों को विडियो और पीडीएफ के माध्यम से समझाया गया है। छात्र विडियो देखकर तथा पीडीएफ को पढ़कर कक्षा 3 में पर्यावरण अध्ययन के पाठ 2 को आसानी से समझ सकते हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 3 ईवीएस अध्याय 2

दीदी, बच्चे और नया खेल

प्रस्तुत पाठ में कुछ बच्चे बड़ी दीदी के साथ रविवार के दिन बगीचे में गए। वहाँ सबने छुपम-छुपाई और अन्ताक्षरी खेली सबको बड़ा मज़ा आया। फिर दीदी ने सब बच्चों को बुला कर नया खेल सिखाने की बात कही। कुछ बच्चे इस खेल के बारे में जानते थे। यह खेल उन बच्चो ने पिछले कैंप में खेला था। जिसका नाम “पौधों की परि” था।

इसमें एक बच्चें को “पौधों की परी” बनना होता है। सभी बच्चो को “पौधों की परी” का हुक्म मानना पड़ता है। ‘पौधों की परी’ जिस चीज का नाम लेगी सभी को उसे छूना या पकड़ना होता है। दीदी ने कहा मैं बनूंगी ‘पौधों की परी”।

बच्चों की पसंद के पेड़-पौधे

अम्मू , शबनम, दयाराम और माइकल सभी बच्चे ‘पौधों की परी’ के हुक्म का इंतजार कर रहे थे। तभी दीदी ने कहा किसी भी पौधे को छू लो। इतना सुनते ही सब पौधों को छूने भागे। अम्मू ने क्यारी में लगे गेंदे के पौधों को छू लिया। शबनम ने चमेली की बेल को छू लिया। दयाराम ने नीम के पेड़ को पकड़ कर खड़ा हो गया और माइकल ने मेहँदी की झाड़ी को छू लिया था।

खेल का अगला पड़ाव

दीदी बोली वाह सबने अलग-अलग पौधों को पकड़ा है। तभी शबनम ने कहा दीदी आप भी तो छोटे पौधों पर बैठी हो। खेल फिर शुरू हुआ। अब ऐसे पेड़ को छुओ जिनका तना मोटा या पतला हो। बच्चे फिर भागे अपने-अपने पेड़ों को छूने।

माइकल को खेल रोचक लगा और अब वह ‘पौधों की रानी’ बनने को तैयार था क्योंकि वह सब बच्चों पर अपना हुक्म जो चला सकता था। दीदी बोली चलो बन जाओ। माइकल बोला सब बच्चें मुझे कुछ पत्ते लाकर दो। तभी दीदी बोली लेकिन ध्यान रहे तोडकर नहीं लाने हैं। सभी बच्चें पेड़ के नीचे पड़े पत्ते उठा लाए।

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घर वापस जाने का समय

पत्तों को देखने से सभी बच्चें हैरान थे। कुछ पत्ते गोल थे, कुछ लंबे, और कुछ तिकोने आकार के थे। पत्तों के रंग, किनारे और उनकी बनावट अलग-अलग थी। किसी पत्ते के किनारे सीधे थे और किसी के आरी के आकार के थे। अम्मू और शबनम बोली अब मैं बनूंगी “पौधों की परी” तभी दीदी ने कहा अब घर जाने का समय हो गया है। तुम दोनों अगले रविवार को बनना। रास्ते में आते हुए दीदी ने सभी को पत्ते की कविता सुनाई।

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