एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग 2 के उत्तर 2024-25 के सिलेबस के अनुसार यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 12 इतिहास पाठ 6 के लिए विद्यार्थी यहाँ दिए गए पीडीएफ और विडियो की मदद लेकर प्रश्नों के हल समझ सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 6
कक्षा 12 इतिहास अध्याय 6 भक्ति-सूफी परंपराएँ के प्रश्नों के उत्तर
उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए कि संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकार क्या अर्थ निकालते हैं?
संप्रदाय के समन्वय से इतिहासकार यह अर्थ निकालते हैं कि अलग-अलग पूजा प्रणालियों का एक-दूसरे के प्रति सम्मान व सहिष्णुता की भावना। पौराणिक ग्रंथों का संकलन, रचना तथा संरक्षण से ब्राह्मणीय विचारधारा के प्रचार की थी। इतिहासकारों का विचार है कि पूरे महाद्वीप में धार्मिक विचारधाराएँ एक-दूसरे के साथ संवाद की ही परिणाम है। समन्वय की इस प्रक्रिया का सबसे अच्छा उदाहरण आधुनिक उड़ीसा में स्थित ‘पुरी’ में मिलता है। बारहवीं शताब्दी तक आते-आते यहाँ के प्रमुख देवता जगन्नाथ को विष्णु का रूप मान लिया गया था।
इतिहासकारों के अनुसार यहाँ दो प्रक्रियाएँ चल रही थी। पहली परंपरा के ग्रंथ सरल संस्कृत छंदों में थे जो वैदिक विद्या से विहीन स्त्रियों और शुद्रों द्वारा भी ग्राह्य थे। दूसरी परंपरा शुद्र, स्त्रियों व अन्य सामाजिक वर्गों के बीच स्थानीय स्तर पर विकसित हुई विश्वास प्रणालियों पर आधारित थी। समन्वय के ऐसे उदाहरण देवी संप्रदायों में भी मिलते हैं। देवी की पूजा तथा उपासना अधिकतर सिंदूर से पोते गए पत्थर के रूप में ही की जाती थी। इन स्थानीय देवियों को पौराणिक परंपरा के अंतर प्रमुख देवताओं की पत्नी के रूप में मान्यता दी गई – कभी शिव की पत्नी पार्वती के रूप में प्रकट हुई।
किस हद तक उपमहाद्वीप में पाई जाने वाली मस्जिदों का स्थापत्य स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक आदर्शों का सम्मिश्रण है?
एक ही समाज में रहते हुए हिंदू-मुसलमान एक-दूसरे के रीति-रिवाजों तथा सांस्कृतिक परंपराओं की ओर ध्यान आकर्षित करने लगते हैं। भारत में इस्लाम के उदय के साथ ही भारतीय उपमहाद्वीप में नई स्थापत्य कला देखने को मिलती है। इन स्थापत्य कला जैसे – ईमारतों, मस्जिदों को देखने से यह जानकारी मिलती है कि इनका निर्माण स्थानीय परिपाटी और सार्वभौमिक इस्लाम स्थापत्य कला से जुड़े आदर्शों का सम्मिश्रण था। उदाहरण:
- बांग्लादेश (भारतीय उपमहाद्वीप का हिस्सा) में बनाई गई 17वीं शताब्दी के प्रारंभ की अतिया नामक मस्जिद ईंटों की बनी है। इसके छत के तीनों उलटे कटोरे के आकार जैसी बहुत सारी भारतीय और अन्य देशों में निर्मित मस्जिदों के नमूने से मिलती हैं।
- खोजा इस्माइली समुदाय के लोगों द्वारा कुरान के विचारों को बताने के लिए देशी साहित्यिक विधा का सहारा लिया गया था।
- केरल (मालाबार तट) में निवास करने वाले मुस्लिम व्यापारियों ने स्थानीय मलयालम भाषा को अपनाने के साथ-साथ मातृकुलीयता जैसे स्थानीय आचारों को भी अपनाया था।
बेशरिया और बारिया सफ़ूी परंपरा के बीच एकरूपता और अंतर, दोनों को स्पष्ट कीजिए।
बे शरिया और बा शरिया सफ़ूी परंपरा के बीच एकरूपता
बे शरिया तथा बा शरिया दोनों ही इस्लाम धर्म से संबंधित थे।
बे शरिया तथा बा शरिया दोनों ही इबादत पर अधिक बल देते थे।
दोनों के अनुसार – सर्वोच्च शक्ति केवल एक है – ʻअल्लाहʼ
बे शरिया और बा शरिया सफ़ूी परंपरा में अंतर
बे शरिया इस्लामी कानून (शरिया) का पालन नहीं करते थे। इसके विपरीत बा शरिया इस्लामी कानून (शरिया) का पालन करते थे।
बे शरिया सफ़ूी संत ख़ानकाह (आश्रम) का अपमान (तिरस्कार) करके फ़कीर की जिंदगी व्यतीत करते थे। इसके विपरीत बा शरिया सफ़ूी संत ख़ानकाहों में रहते थे। ख़ानकाहों में पीर अपने शिष्यों (मुरीदों) के साथ रहता था।
चर्चा कीजिए कि अलवार, नयनार और वीरशैवों ने किस प्रकार जाति प्रथा की आलोचना प्रस्तुत की?
अलवार तथा नयनार संतों की रचनाओं को वेद जितना प्रमुख बताया गया है। वीर शैव कर्नाटक से संबंधित थे। वे बासवन्ना के अनुयायी थे। उन्होंने जाति समुदायों के दूषित होने की ब्राह्मणीय अवधारणा का विरोध किया। अलवार और नयनार तमिलनाडु के भक्ति संत थे। कई इतिहासकारों का मानना है कि अलवार, नयनार संतों ने जाति-प्रथा और ब्राह्मणों के प्रभुत्व के विरोध में भी आवाज़ उठाई। अलवार संतों के मुख्य काव्य संकलन नलयिरादिव्यप्रबन्धाम् का वर्णन तमिल वेद के रूप में किया जाता था। उन्होंने पुनर्जन्म के सिद्धांत को अस्वीकार किया। ब्राह्मण धर्मशास्त्रों के आचारों जैसे – विधवा पुनर्विवाह, वयस्क विवाह को अस्वीकार किया। इन आचारों को वीरशैवों ने मान्यता दी।
कबीर अथवा बाबा गुरू नानक के मुख्य उपदेशों का वर्णन कीजिए। इन उपदेशों का किस तरह संप्रेषण हुआ।
कबीर के मुख्य उपदेश
- कबीर ने अंधविश्वासों का घोर विरोध किया।
- कबीर ने भक्ति भावना का पूर्ण समर्थन किया।
- कबीर ने निर्गुण विचारधारा का समर्थन किया। उन्होंने मूर्ति पूजा का खंडन किया।
- उनके अनुसार परमात्मा एक है और वही सत्य है। कबीर के अनुसार भक्ति के माध्यम से ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। कभी-कभी बीज लेखन की भाषा का प्रयोग भी किया है। कबीर ने अपने विचारों तथा उपदेशों को काव्य की भाषा में अभिव्यक्त किया जिसे सरलता से समझा जा सकता था।
बाबा गुरूनानक के मुख्य उपदेश
- गुरूनानक देव जी का जन्म पंजाब के ननकाना गाँव में हुआ। उनका जन्म एक व्यापारी परिवार में हुआ।
- गुरूनानकदवे जी निर्गुण भक्ति का प्रचार किया।
- गुरूनानक देव ने ही इक ओंकार का नारा दिया और कहा था कि सबका पिता एक ही है इसलिए सभी से प्रेम करना चाहिए।
- ईमानदारी से मेहनत कर उदरपूर्ति करनी चाहिए। सदैव प्रसन्न रहना चाहिए।
- गुरूनानक देव ने अपने विचारों तथा उपदेशों को पंजाबी भाषा में अभिव्यक्त किया। वे शब्द अलग-अलग रागों में गाते थे तथा उनका सेवक मरदाना रबाब बजाकर उनका सहयोग करता था।
सफ़ूी मत के मुख्य धार्मिक विश्वासों और आचारों की व्याख्या कीजिए।
सफ़ूी मत के मुख्य धार्मिक विश्वासों और आचारों की व्याख्या इस प्रकार है:
- सफ़ूी मत के अनुसार ईश्वर अथवा अल्लाह के अस्तित्व पर ध्यान केंद्रित करके उसके नाम का जाप करने के द्वारा उसकी अराधना करना शामिल है।
- सूफि़यों ने कुरान की व्याख्या अपने निजी अनुभवों के आधार पर की तथा 11वीं शताब्दी तक पहुँचते-पहुँचते सफ़ूीवाद एक पूर्ण विकसित आंदोलन था।
- सफ़ूी मतानुसार आत्मा शरीर में कैद है। उनके अनुसार परमात्मा की बिना कृपा के आत्मा का मिलन ईज्वर से नहीं हो सकता।
- सफ़ूी संत सभी जीवों में मानव को श्रेष्ट मानते थे।
- परमात्मा के साथ एकत्व प्राप्त करना सफ़ूी का चरम लक्ष्य है।
- सफ़ूी मत के अनुसार अपने अच्छे कर्मों के माध्यम से ही उच्च स्थान प्राप्त कर सकता है।
- सभी मनुष्यों को भोग-विलास से दूर रहना चाहिए तथा सादा जीवन व्यतीत करना चाहिए।
- सूफियों ने अपने आपको जंजीर अथवा सिलसिलों में संगठित किया। हर सिलसिले पर नियंत्रण पीर तथा शेख का होता था।
- सफ़ूी मानवतावाद में विश्वास रखते थे।
क्यों और किस तरह शासकों ने नयनार और सफ़ूी संतों से अपने संबंध बनाने का प्रयास किया?
शासकों ने नयनार तथा सफ़ूी संतों को अनेक प्रकार से संरक्षण दिया है। चिदम्बरम्, तंजावुर तथा गंगैकोडा चोलापुरम् के शिव मंदिर चोल सम्राटों के सहयोग से बनाए गए थे। अपने राजस्व के पद को दैवीय स्वरूप प्रदान करने के लिए चोल शासकों ने नयनार संतो के साथ संबंध बनाने पर बल दिया था दिया बौर ने उनका समर्थन प्राप्त किया। चोल शासकों ने तमिल भाषा के सैव भजनों का गायन मंदिरों में प्रचलित किया। चोल शासकों ने पत्थर तथा धातु से बनी मूर्तियाँ स्थापित करवाई। जब दिल्ली सल्तनत की स्थापना हुई तो उलेमा द्वारा शरिया लागू किए जाने की माँग को ठुकरा दिया गया था। सुल्तान जानते थे कि उनकी अधिकांश प्रजा गैर-इस्लामी है। ऐसे समय में सुल्तानों ने सफ़ूी संतों का सहारा लिया जो अपनी आध्यात्मिक सत्ता को अल्लाह के रूप में मानते थे। शासक वर्ग इन संतों की लोकप्रियता तथा विद्वता के कारण उनको समर्थन हासिल करना चाहते थे।
उदाहरण सहित विश्लेषण कीजिए कि क्यों भक्ति और सफ़ूी चिंतकों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया?
भक्ति और सफ़ूी चिंतकों ने अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया। वे अपने विचारों को और उपदेशों को लोगों तक अपनी भाषाओं में पहुँचाना चाहते थे। वे जनसामान्य तक अपने विचारों का पहुँचाने के लिए स्थानीय भाषा का प्रयोग करते थे। विभिन्न भाषाओं में अपने विचारों को अभिव्यक्त करने के कारण उनकी रचनाओं को वेदों के समान महत्वपूर्ण स्थान मिला। उत्तरभारत में भक्ति आंदोलन के प्रमुख विचारकों ने अपने विचारों को प्रकट करने के लिए विभिन्न भाषाओं का प्रयोग किया और विशेषकर अपने विचारों को जनसामान्य की भाषा में ही प्रकट किया। जैसे कि कबीर ने अपने पदों में ब्रज, अवधी, हिंदी तथा स्थानीय बोलियों के बहुत से शब्दों का प्रयोग किया है। ‘कबीर बीजक’ वाराणसी तथा उत्तरप्रदेश के स्थानों से संबंधित है और ‘कबीर ग्रंथावली’ राजस्थान से संबंधित है। पवित्र ग्रंथ गुरूग्रंथ साहिब में विभिन्न भाषाओं एवं बोलियों का प्रयोग किया गया है। वे किसी भी भाषा-विशेष को पवित्र नहीं मानते थे। वे सामान्यतः जनसामान्य को शांति प्रदान करना चाहते थे।