एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 5 यात्रियों के नज़रिए

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 5 यात्रियों के नज़रिए पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग 2 के अभ्यास के उत्तर सत्र 2024-25 के लिए छात्र यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं। कक्षा 12 इतिहास पाठ 5 के सवाल जवाब हिंदी मीडियम में सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड के विद्यार्थी यहाँ से निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 5

किताब-उल-हिन्द पर लेख

किताब-उल-हिन्द:
अलबरूनी की कृति किताब- उल- हिन्द की भाषा सरल एवं स्पष्ट है। यह अरबी भाषा में लिखी गई है। यह एक विस्तृत ग्रंथ है जो धर्म और दर्शन, त्योहारों, खगोल-विज्ञान, रीति-रिवाजों, प्रथाओं, सामाजिक-जीवन, भार-तौल तथा मापन विधियों, मूर्तिकला, कानून, मापतंत्र विज्ञान आदि विषयों के आधार पर अस्सी अध्यायों में विभाजित है। अलबरूनी ने प्रत्येक अध्याय में प्रायः एक विशिष्ट सैली का प्रयोग किया है। वह प्रत्येक अध्याय को एक प्रश्न से प्रारंभ करता है। इसके बाद संस्कृतवादी परंपराओं पर आधारित वर्णन हैं और अंत में अन्य संस्कृतियों के साथ एक तुलना की गई है। आज के कुछ विद्वानों का तर्क है कि अलबरूनी का गणित की और झुकाव था इसी कारण ही उसकी पुस्तक, जो लगभग एक ज्यामितीय संरचना हैं, बहुत ही स्पष्ट बन पड़ी हैं।

इब्न-बतूता और बर्नियर ने जिन दृष्टिकोणों से भारत में अपनी यात्रियों के वृत्तांत लिखे थे, उनकी तुलना कीजिए तथा अंतर बताइए।

इब्न-बतूता ने हर उस चीज का वर्णन करने का निश्चित किया जिसने उसे अपने विशिष्ट गुण के कारण प्रभावित किया हो। दूसरी ओर बर्नियर एक अलग बुद्धिजीवी परम्परा से संबंधित था।
इब्न-बतूता ने भारत की विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों, आस्थाओं, राजनीतिक गतिविधियों के बारे में लिखा। उसे जो कुछ विचित्र लगता था, उसका वह विशेष रूप से वर्णन करता था। उदाहरण के लिए उसने नारियल तथा पान का बहुत ही रोचक ढंग से वर्णन किया है। इब्न-बतूता ने भारत की शहरी संस्कृति तथा बाज़ारों की चहल-पहल पर भी प्रकाश डाला है। इसके विपरीत बर्नियर ने भारतीय समाज की त्रुटियों को उजागर करने पर ज़ोर दिया है। वह भारत की प्रत्येक स्थिति की तुलना यूरोप और विशेषकर फ्रांस की स्थितियों से करता था। उसने यही दिखाने का प्रयास किया कि विकास की दृष्टि से भारत यूरोप की तुलना में पिछड़ा हुआ है।

बर्नियर के वृत्तांत से उभरने वाले शहरी केंद्रों के चित्र पर चर्चा कीजिए।

बर्नियर मुगलकालीन शहरों को शिविर नगर कहता है, जिससे उसका आशय उन नगरों से था जो अपने अस्तित्व और बने रहने के लिए राजकीय शिविर पर निर्भर थे। उसका विश्वास था कि ये राजकीय दरबार के आगमन के साथ अस्तित्व में आते थे और इसके कहीं और चले जाने के बाद तेजी से पतनोन्मुख हो जाते थे। 17वीं शताब्दी में लगभग 15 प्रतिशत जनसंख्या नगरों में रहती थी। यह अनुपात उस समय की पश्चिमी यूरोप की नगरी जनसंख्या के अनुपात से अधिक था। फि़र भी बर्नियर मुगलकालीन शहरों को शिविर नगर कहता है। अहमदाबाद जैसे शहरी केंद्रों में सभी महाजनों का सामूहिक प्रतिनिधित्व व्यापारिक समुदाय के मुखिया द्वारा होता था जिसे नगर सेठ कहा जाता था।

इब्न बतूता द्वारा दास प्रथा के संबंध में दिए गए साक्ष्यों का विवेचन कीजिए।

इब्न-बतूता के विवरण से प्रतीत होता है कि दासों में काफ़ी विभेद था। दासों को सामान्यतः घरेलू श्रम के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था, और इब्न-बतूता ने इनकी सेवाओं को, पालकी या डोले में पुरूषों और महिलाओं को ले जाने में विशेष रूप से अपरिहार्य पाया। इब्न-बतूता बताता है कि सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक ने नसीरूद्दीन नामक एक धर्मोप्रदेशक के प्रवचन से प्रसन्न होकर उसे एक लाख टके (मुद्रा) तथा दो सौ दास दिए थे। जब इब्न-बतूता मुल्तान पहुँचा तो उसने गवर्नर को किशमिश तथा बादाम के साथ एक दास और घोड़ा भेंट के रूप में दिया था। जब वह सिंध पहुँचा तो उसने भी सुल्तान मुहम्मद बिन तुगलक का भेंट में देने के लिए घोड़े, ऊँट तथा दास खरीदे थे। इब्न-बतूता के अनुसार, बाज़ारों में दास किसी भी अन्य वस्तु की तरह खुलेआम बेचे जाते थे। सुल्तान अपने अमीरों पर नज़र रखने के लिए दासियों को नियुक्त करता था।

सती प्रथा के कौन से तत्वों ने बर्नियर का ध्यान अपनी ओर खींचा?

सभी समकालीन यूरोपीय यात्रियों तथा लेखकों के लिए, महिलाओं से किया जाने वाला बर्ताव, अक्सर पश्चिमी तथा पूर्वी समाजों के बीच भिन्नता का एक महत्वपूर्ण संकेतक माना जाता था। इसलिए यह आश्चर्यजनक बात नहीं है कि बर्नियर ने सती प्रथा को विस्तृत विवरण के लिए चुना। उसने लिखा कि हालाँकि कुछ महिलाएँ प्रसन्नता से मृत्यु को गले लगा लेती थीं, अन्य को मरने के लिए बाध्य किया जाता था।
सती प्रथा मध्यकालीन हिंदू समाज में व्याप्त कुप्रथाओं में सर्वाधिक घृणित प्रथा थी। बर्नियर सती प्रथा का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि “लाहौर में मैंने एक बहुत ही सुंदर अल्पव्यस्क विधवा जिसकी आयु मेरे विचार में बारह वर्ष से अधिक नहीं थी, की बलि होते देखी। उस भयानक नर्क की ओर जाते हुए वह असहाय छोटी बच्ची जीवित से अधिक मृत प्रतीत हो रही थी, उसके मस्तिष्क की व्यथा का वर्णन नहीं किया जा सकता, वह काँपते हुए बुरी तरह से रो रही थी, लेकिन तीन-चार ब्राह्मण, एक बूढ़ी औरत, जिसने उसे अपनी आस्तीन के नीचे दबाया हुआ था, की सहायता से उस अनिच्छुक पीड़िता को घातक स्थल की ओर ले गए। उसे लकड़ियों पर बैठाया, उसके हाथ-पाँव बाँध दिए ताकि वह भाग न जाए और इस स्थिति में उस मासूम प्राणी को जिंदा जला दिया गया। मैं अपनी भावनाओं को दबाने में असमर्थ था…’’ इस वर्णन से स्पष्ट होता है कि सती प्रथा के अंतर्गत होने वाली महिलाओं की अल्पव्यस्कता, अनीच्छा तथा व्यथा आदि जैसे तत्वों ने बर्नियर का ध्यान आकर्षित किया था।

जाति व्यवस्था के संबंध में अल-बिरूनी की व्याख्या पर चर्चा कीजिए।

अलबरूनी जाति व्यवस्था का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि हर वह वस्तु जो अपवित्र हो जाती है, अपनी पवित्रता की मूल स्थिति को पुनः प्राप्त करने का प्रयास करती है और सफ़ल होती है। सूर्य हवा को स्वच्छ करता है और समुद्र में नमक पानी को गंदा होने से बचाता है। अल-बरूनी जोर देकर कहता है कि यदि ऐसा नहीं होता तो पृथ्वी पर जीवन असंभव होता।
उसके अनुसार जाति व्यवस्था में सन्निहित अपवित्रता प्रकृति के नियमों के विरूद्ध थी। अलबरूनी वर्ण व्यवस्था का इस प्रकार उल्लेख करता हैः- सबसे ऊँची जाति ब्राह्मणों की है जिनके विषय में हिंदुओं के ग्रंथ हमें बताते हैं कि वे ब्रह्मा के सिर से उत्पन्न हुए थे और क्योंकि ब्रह्म, प्रकृति नामक शक्ति का ही दूसरा नाम है, और सिर …शरीर का सबसे ऊपरी भाग है, इसलिए ब्राह्मण पूरी प्रजाति के सबसे चुनिंदा भाग है। इसी कारण से हिंदू उन्हें मानव जाति में सबसे उत्तम मानते हैं।
अगली जाति क्षत्रियों की है जिनका सृजन ऐसा कहा जाता है, ब्रह्मा के कंधों और हाथों से हुआ था। उनका दर्जा ब्राह्मणों से अधिक नीचे नहीं है। उसके बाद वैश्य आते हैं जिसका उद्भव ब्रह्मा की जंघाओं से हुआ था। शुद्र जिनका सृजन उनके चरणों से हुआ था। जाति व्यवस्था के विषय में अलबरूनी का विवरण उसके नियामक संस्कृत ग्रथों के अध्ययन से पूरी तरह से गहनता से प्रभावित था। इन ग्रंथों में ब्राह्मणों के दृष्टिकोण से जाति व्यवस्था को संचालित करने वाले नियमों का प्रतिपादन किया गया था।

क्या आपको लगता है कि समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन-शैली की सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न बतूता का वृत्तांत सहायक है ? अपने उत्तर के कारण दीजिए।

हम इस बात से सहमत है कि समकालीन शहरी केंद्रों में जीवन- शैली सही जानकारी प्राप्त करने में इब्न-बतूता का वृत्तांत सहायक है। इब्न-बतूता के अनुसार उपमहाद्वीप के नगरों में इच्छा शक्ति, साधनों तथा कौशल वाले लोगों के लिए भरपूर अवसर थे। ये नगर घनी आबादी वाले थे। परंतु कुछ नगर युद्धों तथा अभियानों के कारण नष्ट भी हो चुके थे। इब्न-बतूता दिल्ली को भारत में सबसे बड़ा शहर बताता है जिसकी जनसंख्या बहुत अधिक थी। दौलताबाद (महाराष्ट्र) भी कुछ कम नहीं था। यह आकार में दिल्ली को चुनौति देता था। अधिकांश शहरों में भीड़-भाड़ वाली सड़कें तथा रंगीन बाजार थे जो अलग-अलग प्रकार की वस्तुओं से भरे रहते थे।
इब्न-बतूता के अनुसार भारतीय कृषि के इतना अधिक उत्पादन होने का कारण मिट्टी का उपजाऊपन था। अतः किसानों के लिए वर्ष में दो फ़सलें उगाना आसान था। उपमहाद्वीप व्यापार तथा वाणिज्य के एशियाई तंत्रों से भली-भाँति जुड़ा हुआ है। भारतीय माल की मध्य तथा दक्षिण-पूर्व एशिया में बहुत माँग थी। इससे व्यापारियों को बहुत लाभ होता है। इब्न-बतूता ने स्वयं बड़े पैमाने पर यात्राएँ की, पवित्र पूजा स्थलों को देखा। उसने शहरी केंद्रों की उस विश्वासवादी संस्कृति का गहन अध्ययन किया जहाँ अरबी, फ़ारसी, तुर्की तथा अन्य भाषायें बोलने वाले लोग विचारों, सूचनाओं का आदान-प्रदान करते थे। इब्न-बतूता के अनुसार शहरी केंद्रों का व्यापार विकसित था।

चर्चा कीजिए कि बर्नियर का वृत्तांत किस सीमा तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है?

बर्नियर का वृत्तांत बहुत हद तक इतिहासकारों को समकालीन ग्रामीण समाज को पुनर्निर्मित करने में सक्षम करता है। बर्नियर ने समकालीन ग्रामीण समाज पर प्रकाश डालते हुए बताया है कि यहाँ की भूमि रेतीली और बंजर है और यहाँ की खेती अच्छी नहीं है। इन इलाकों की आबादी भी कम है। लालची स्वामियों की माँगों को पूरा कर पाने में असमर्थ निर्धन ग्रामीणों को न केवल जीवन निर्वाह के साधनों से वंचित कर दिया जाता है बल्कि उन्हें अपने बच्चों से भी हाथ धोना पड़ता है।

उसके बच्चों को दास बना लिया जाता है। कृषि योग्य सभी क्षेत्रों में खेती नहीं होती है क्योंकि श्रमिकों का अभाव है। गवर्नरों द्वारा किए गए बुरे व्यवहार के कारण कई श्रमिक मर जाते हैं। बर्नियर का कहना है कि मुगल साम्राज्य में सम्राट संपूर्ण भूमि का स्वामि था और इसको अपने अमीरों के बीच बाँटता था। उसके अनुसार भूमि पर निजी स्वामित्व न रहने के कारण किसान अपने बच्चों को भूमि नहीं दे सकते थे। इसका विवरण विश्वसनीय नहीं है क्योंकि राज्य केवल राजस्व या लगान वसूल करता था। भूमि पर उसका अधिकार नहीं था। बर्नियर बड़े विश्वास से कहता है, भारत में मध्य की स्थिति के लोग नहीं हैं।

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