एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 14 विभाजन को समझना

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 14 विभाजन को समझना पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग 3 के सवाल जवाब सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं। कक्षा 12 इतिहास के छात्र पाठ 14 के प्रश्नों के उत्तर यहाँ दी गई पीडीएफ तथा विडियो के माध्यम से समझ सकते हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 14

1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने क्या माँग की?

मुस्लिम लीग की स्थापना ढाका के नवाब सलीमुल्ल के नेतृत्व में 30 दिसम्बर 1906 ई. को ढाका में हुई। सलीमुल्ला खाँ मुस्लिम लीग के संस्थापक थे।
1940 के प्रस्ताव के जरिए मुस्लिम लीग ने नि. लि. माँगें की। 1940 में मुस्लिम लीग ने देश के पश्चिमी तथा पूर्वी क्षेत्रों में मुसलमानों के लिए ʻस्वतंत्र राज्योंʼ की माँग की थी।

कुछ लोगों को ऐसा क्यों लगता था कि बँटवारा बहुत अचानक हुआ?

मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान की माँग पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी। उपमहाद्वीप के मुस्लिम बहुत क्षेत्रों के लिए सीमित स्वायत्तता की माँग से विभाजन होने के मध्य बहुत ही कम समय तक रहा। 1947 में अपने मूल इलाके छोड़कर नयी जगह जाने वालों में से बहुत से लोगों को तो यही लगता था कि जैसे स्तिथि बहाल होगी, वे लौट आएंगे। कूटनीति के कुशल खिलाड़ी अँग्रेज भारत को एक शक्तिशाली नहीं बल्कि कमज़ोर तथा विखंडित देश के रूप में छोड़ना चाहते थे। अतः, वे अचानक विभाजन के लिए तैयार हो गए। इसलिए कुछ लोगों को ऐसा लगता है कि देश का विभाजन अचानक हुआ।

आम लोग विभाजन को किस तरह देखते थे?

आम लोग विभाजन के बारे में सोचते थे कि यह विभाजन स्थायी नहीं होगा अथवा शाति बहाली के बाद सभी लोग अपने मूल स्थान पर लौट आएंगे। वे सोचते थे कि पाकिस्तान के गठन का मतलब यह नही होगा कि एक देश के एक हिस्से से दूसरे हिस्से में जाने वाले लोगों को वीज़ा तथा पासपोर्ट की आवश्यकता पड़ेगी। जो लोग अपने रिश्तेदारों, मित्रों तथा जानकारों से बिछड़ जायेंगे वे हमेशा के लिए बिछड़े रहेंगे। जो लोग गंभीर नहीं थे या राष्ट्र विभाजन के गंभीर परिणामों की जाने- अनजाने अनदेखी कर रहे थे, वे यह मानने को तैयार नहीं थे कि दोनों देशों के लोग पूरी तरह से सदैव के लिए अलग हो जायेंगे। अनेक नेता अंत तक इस विभाजन का विरोध करते रहे। देश के विभाजन तथा उसके फ़लरूवरूप होने वाली हिंसा ने उन्हें झकझोर डाला था, परंतु फिर भी अनेक हिंदू- मुसलमान अपनी जान खतरे ने डालकर एक- दूसरे की जान बचाने के कोशिश करते रहे।

विभाजन के खिलाफ़ महात्मा गाँधी की दलील क्या थी?

विभाजन के खिलाफ़ महात्मा गाँधी की दलील – गाँधी जी शुरू से ही देश के विभाजन के विरूद्ध थे। गाँधी जी अंत तक विभाजन का विरोध करते रहे। 7 सितंबर 1946 को प्रार्थना सभा में अपने भाषण में गाँधी जी ने कहा था ‘मैं फिर वह दिन देखना चाहता हूँ जब हिंदू तथा मुसलमान आपसी सलाह के बिना कोई काम नहीं करेंगे। मैं दिन-रात इसी आग में जला जा रहा हूँ कि उस दिन को जल्दी-से-जल्दी साकार करने के लिए क्या करूँ। लीग से मेरी गुज़ारिश है कि वे किसी भी भारतीय को अपना शत्रु न मानें। हिंदू और मुसलमान, दोनों एक ही मिट्टी से उपजे हैं उनका खून एक है, वे एक जैसा भोजन करते हैं, एक ही पानी पीते हैं, और एक ही जबान बोलते हैं।

इसी प्रकार 26 सितंबर 1946 ई. को गाँधी जी ने हरिजन में लिखा था, किन्तु मुझे विश्वास है कि मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान की जो माँग उठायी है, वह पूरी तरह गैर-इस्लामिक है तथा मुझे इसको पापपूर्ण कृत्य कहने में कोई संकोच नहीं है। इस्लाम मानवता की एकता और भाईचारे का समर्थक है न कि मानव परिवार की एकजुटता को तोड़ने का। जो तत्व भारत को एक-दूसरे के खून के प्यासे टुकड़ों में बाँट देना चाहते हैं, वे भारत और इस्लाम दोनों के शत्रु हैं। भले ही वे मेरी दहे के टुकडे़-टुकडे़ कर दे, किन्तु मुझसे ऐसी बात नहीं मनवा सकते, जिसे मैं गलत मानता हूँ। गाँधी जी साम्प्रदायिक पूर्वाग्रहों और भावनाओं से जूझते रहे, किन्तु बेकार। अंततः देश का विभाजन हो गया और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को उसे स्वीकार करना पड़ा। गाँधी जी ने पूरा प्रयास किया कि हिंदू मुसलमान एक-दूसरे का खून न बहाएँ बल्कि परस्पर मिल-जुलकर रहें।

विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ क्यों माना जाता है?

विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ मानने के निम्न कारण थे:

    • विभाजन को दक्षिणी एशिया के इतिहास में एक ऐतिहासिक मोड़ इसलिए माना जाता है क्योंकि उस समय पूरे विश्व में इतने बड़े स्तर पर लोगों का नाम तो विस्थापन हुआ था और न ही इतने बड़े स्तर पर किसी क्षेत्र का विभाजन हुआ था।
    • इतिहासकारों के अनुसार विभाजन के फ़लस्वरूप एक करोड़ से भी अधिक लोग अपने-अपने वतन से उजड़कर अन्य स्थानों पर जाने के लिए मजबूर हो गए।
    • वे भारत तथा पाकिस्तान के बीच रातों-रात खड़ी कर दी गई सीमा के इस पार या उस पार जाने को मजबूर हो गए और जैसे ही उन्होंने इस छाया सीमा के उस ओर पैर रखा, वे घर से बेघर हो गए।
    • पलक झपकते ही उनकी सम्पत्ति, घर, दुकानें, जमीनें, रोज़ी-रोटी के साधन सब उनके हाथों से निकल गए। जिस जमीन में उनकी जड़ें थीं, वही उनके लिए पराई हो गई।
    • लाखों लोग अपने परिवार तथा प्रियजनों से बिछड़ गए। लोगों को हिंसा का सामना भी करना पड़ा।
    • दोनों ओर के कट्टरपंथियों के मन में एक-दूसरे के प्रति सदा के लिए ज़हर भर गया। पाकिस्तान और भारत के कट्टरपंथी आज भी समय-समय पर एक-दूसरे के विरूद्ध जह़र उगलते रहते हैं।
    • विभाजन स्वयं में अतुलनीय था, इस बात में कोई संदेह नहीं है। बहुत बड़ी संख्या में निर्दोष लोग अपने घरों से बेघर हो गए।
ब्रिटिश भारत का बँटवारा क्यों किया गया?

ब्रिटिश भारत के बँटवारे के निम्न कारण थे:

    1. अँग्रेज लगातार मुस्लिम नेताओं के मन में सांप्रदायिकता का जहर भरते रहते थे। उन्होंने भारत के राष्ट्रीय स्वतंत्रता के आंदोलन से भी मुस्लिम नेताओं को दूर रखने के बहुत प्रयास किए। उनके इन सब बुरे कार्यों के कारण मुस्लिम नेताओं में अपने लिए एक मुस्लिम धर्म पर आधारित राष्ट्र की माँग उत्पन्न होने लगी। जिसके फ़लस्वरूप पाकिस्तान का गठन हुआ।
    2. अँग्रेजों ने प्रारंभ से ही फ़ूट डालो और राज करो की नीति अपनाई। इस नीति का प्रयोग वे हिंदू- मुस्लिम एकता को तोड़ने के लिए करते थे। उदाहरण- 1905 में बंगाल विभाजन, 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना तथा साम्प्रदायिक चुनाव प्रणाली।
    3. मुस्लिम लीग का साम्प्रदायिक दृष्टिकोण हिंदू-मुस्लिम में मतभेद का कारण बना। लीग ने द्विवाद के सिद्धांत का प्रचार किया तथा मुस्लिम जनसामान्य को यह विश्वास दिलाया कि अल्पसंख्यक मुसलमानों को बहुसंख्यक हिंदुओं से भारी खतरा है।
    4. 1946 ई. के चुनावों के बाद लीग ने पाकिस्तान की स्थापना के लिए प्रबल आंदोलन प्रारंभ कर दिया था। 16 अगस्त 1946 को लीग ने प्रत्यक्ष कार्यवाही दिवस मनाया जिसके फ़लस्वरूप बंगाल, बिहार, पंजाब में भयानक हिंदू-मुस्लिम दंगे हुए।
    5. मुस्लिम लीग द्वारा पाकिस्तान के निर्माण के लिए प्रत्यक्ष कार्यवाही प्रारम्भ कर दिए जाने के कारण सम्पूर्ण देश में हिंसा की ज्वाला उठने लगी। लार्ड माउंटबेटन ने पं. जवाहरलाल नेहरू तथा सरदार वल्लभभाई पटैल को विश्वास दिलाया कि मुस्लिम लीग के बिना शेष भारत का शक्तिशाली तथा संगठित बनाना ज्याद सही होगा। काँग्रेस ने गृहयुद्ध से बचने के लिए पाकिस्तान के निर्माण को स्वीकार किया।
    6. इस प्रकार उपरोक्त कारणों से देश का विभाजन अपरिहार्य बन गया।
बँटवारे के सवाल पर कांग्रेस की सोच कैसे बदली?

बँटवारे के सवाल पर काँग्रेस की सोच परिवर्तित होने के निम्नलिखित कारण थे:

    • कांग्रेस मुस्लिम लीग को उसकी राष्ट्र विभाजन की माँग छोड़ने के लिए उसे राजी करने में असफ़ल रही।
    • कुछ कांग्रेसी नेताओं के मन में सत्ता के प्रति अधिक लालच था। वे चाहते थे कि चाहे देश का विभाजन हो परंतु अँग्रेज्र चले जाएँ और उन्हें तुरंत सत्ता मिल जाए।
    • भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस शुरू से ही विभाजन का विरोध करती रही परंतु अंत में परिस्थितियों से मजबूर होकर उसे अपनी सोच बदलनी पड़ी तथा विभाजन के लिए तैयार होना पड़ा।
    • मुस्लिम लीग ने अधिक मुस्लिम आबादी वाले क्षेत्रों को पाकिस्तान के लिए माँगकर कुछ कांग्रेसियों के दिमाग में यह विचार उत्पन्न कर दिया कि शायद कुछ समय बाद गाँधी जी देश की एकता को फि़र स्थापित करने में सफ़ल हो जायेंगे लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
    • मुस्लिम लीग की अन्य बहुत सी कार्यवाहियों ने काँग्रेस की सोच को बदल डाला। 1946 के चुनाव में जिन क्षेत्रों में मुस्लिम आबादी बहुत थी वहाँ मुस्लिम सभा का बहिष्कार करना, अंतरिम सरकार में शामिल न करना तथा जिन्ना के दोहरे राष्ट्र सिद्धांत पर बार-बार जोर देना कांग्रेस की मानसिकता पर राष्ट्र विभाजन समर्थक निर्णय बनाने में सहायक रही।
बँटवारे के समय औरतों के क्या अनुभव रहे?

बँटवारे के समय औरतों के अनुभव:

    • कई विद्वानों ने उस हिंसक काल में औरतों के भयानक अनुभवों के बारे में लिखा है। उनके साथ बलात्कार हुए, उनको अग़वा किया गया, बार-बार बेचा-खरीदा गया, अनजान हालात में अजनबियों के साथ एक नयी जिंदगी बसाने के लिए मजबूर किया गया।
    • औरतों ने जो कुछ भुगता था उसके गहरे सदमे के बावजूद बदले हुए हालात में कुछ औरतों ने अपने नए पारिवारिक बंधन विकसित किए। परंतु भारत तथा पाकिस्तान की सरकारों ने इंसानी संबंधों की जटिलता के बारे में कोई संवेदनशील रवैया नहीं अपनाया।
    • इस प्रकार की बहुत सारी औरतों को जबरदस्ती घर बिठा ली गई मानते हुए उन्हें उनके नए परिवारों से छीनकर पुनः पुराने परिवारों या स्थानों पर भेज दिया गया।
    • जिन औरतों के संबंध में फ़ैसले लिए जा रहे थे उनसे इस बार भी सलाह नहीं ली गई। अपनी जिंदगी के बारे में फ़ैसला लेने के उनके अधिकार को एक बार फि़र नज़रअंदाज़ कर दिया।
    • एक अंदाज़े के मुताबिक इस मुहिम में कुल मिलाकर लगभग 30,000 औरतों को, बरामद किया गया।
    • इज्ज़त का विचार मर्दानगी की एक ख़ास अवधारणा पर आधारित था जिसमें मर्दानगी जन (औरत) तथा जमीन पर मालिकाने से तय होती है।
    • कई बार जब पुरूषों को यह भय होता था कि उनकी औरतों-बीवी, बेटी, बहन को नापाक कर सकता है तो वे औरतों को ही मार डालते थे।
    • उर्वशी बुटालिया ने अपनी पुस्तक दि अदर साइड ऑफ़ साइलेंस में रावलपिंडी जिले के थुआ खालसा गाँव के एक ऐसे ही दर्दनाक हादसे का जिक्र किया है। बताते हैं कि तक्सीम के समय सिखों के इस गाँव की 90 औरतों ने ʻदुश्मनोंʼ के हाथों में पड़ने की बजाय ʻअपनी मर्जी सेʼ कुएँ में कूदकर अपनी जान दे दी थी। इस गाँव से आए शरणार्थी दिल्ली के एक गुरूद्वारे में आज भी इस घटना पर कार्यक्रम आयोजित करते हैं।
    • वे इन मौतों को आत्महत्या नहीं बल्कि शहादत का दर्जा देते हैं। उनको लगता है कि उस समय पुरूषों ने औरतों के फ़ैसले को बहादुरी से स्वीकार किया। परंतु कई दफ़े तो उन्होंने औरतों को अपनी जान देने के लिए उकसाया भी।
    • हर साल 13 मार्च को जब उनकी शहादत पर कार्यक्रम आयोजित किया जाता है तो इस घटना को मर्दों, औरतों तथा बच्चों की सभा में विस्तार से सुनाया जाता है।
    • औरतों को अपनी बहनों के बलिदान और बहादुरी को अपने दिलों में संजोने तथा खुद को भी उसी साँचे में ढालने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
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कक्षा 12 इतिहास अध्याय 14 विभाजन को समझना
कक्षा 12 इतिहास अध्याय 14
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 14 के प्रश्न उत्तर