एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 12 औपनिवेशिक शहर

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 12 औपनिवेशिक शहर पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग 3 के सभी उत्तर सत्र 2023-24 के अनुसार संशोधित रूप में यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 12 इतिहास पाठ 12 के सवाल जवाब के लिए विद्यार्थी यहाँ दिए गए पीडीएफ तथा विडियो की मदद ले सकते हैं।

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 12

औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभाल कर क्यों रखे जाते थे?

औपनिवेशिक शहरों में रिकॉर्ड्स सँभाल रखे जाने के निम्न कारण थे:

    • औपनिवेजिक शासन बहुत सारे आंकड़े तथा जानकारियों के संग्रह पर आधारित था। किसी स्थान की भौगोलिक बनावट तथा दृश्यों को अच्छी तरह समझने के बाद उन स्थानों पर शहरीकरण, साम्राज्य विस्तार आदि करने के लिए रिकॉर्ड्स महत्वपूर्ण थे।
    • बढ़ते शहरों में जीवन की गति तथा दिशा पर नज़र रखने के लिए वे नियमित रूप से सर्वेक्षण करते थे। सांख्यिकीय आँकड़े एकत्रित करते थे और विभिन्न प्रकार की सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित करते थे।
    • जनसंख्या के आकार में होने वाली सामाजिक बढ़ोत्तरी का अध्ययन करके उसके अनुसार प्रशासनिक तौर-तरीकों, नियम-कानूनों आदि को बनाने और उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए भी रिकॉर्ड्स सँभाल कर रखे जाते थे।
    • आँकड़ों तथा जानकारियों के आधार पर शासन को सुचारू रूप से चलाने के लिए रिकॉड्स जरूरी थे।
    • इन रिकार्डों से ‘शहरों में व्यापारिक गतिविधियाँ, औद्योगिक प्रगति, साफ़-सफ़ाई तथा परिवहन, यातायात को समझने के लिए तथा आवश्यकतानुसार कार्य करने में मदद मिलती है।
    • कराधान (टैक्स व्यवस्था) की रणनीति तैयार करने में सहायता मिलती है।
    • आंशिक लोक-प्रतिनिधित्व से लैस नगर निगम जैसे संस्थानों का उद्देश्य शहरों में जल आपूर्ति, निकासी, सड़क निर्माण तथा स्वास्थ्य जैसी अतिआवश्यक सुविधाएँ उपलब्ध कराना था। दूसरी ओर नगर निगमों की गतिविधियों से नए तरह के रिकॉर्ड्स पैदा हुए जिन्हें नगर पालिका रिकॉर्ड रूम में सँभाल कर रखा जाने लगा।

औपनिवेशक संदर्भ में शहरीकरण के रूझानों को समझने के लिए जनगणना संबंधी आंकड़े किस हद तक उपयोगी होते हैं?

औपनिवेशिक संदर्भ में शहरीकरण के रूझानों को समझने के लिए जनगणना संबंधी आँकड़े बहुत हद तक उपयोगी होते हैं। औपनिवेशिक शहर पर नज़र रख के लिए नियमित रूप से लोगों की गिनती की जाती थी। 19वीं सदी के मधय तक विभिन्न क्षेत्रों में कई जगह स्थानीय स्तर पर जनगणना की जा चुकी थी। अखिल भारतीय जनगणना का पहला प्रयास 1872 में किया गया। इसके पस्चात, 1881 से दशकीय जनगणना एक नियमित व्यवस्था बन गई। भारत में शहरीकरण का अध्ययन करने के लिए जनगणना से निकले आँकड़े एक बहुमूल्य स्त्रोत हैं। ये आँकड़ें हमारे पास ऐतिहासिक परिवर्तन को मापने के लिए ठोस जानकारी उपलब्ध कराते हैं।
जनगणना संबंधी आँकड़ों के उपयोग:

    • जनगणना संबंधी आँकड़ों से जनसंख्या के बारे में प्राप्त सामाजिक जानकारियों को सुगम आँकड़ों में परिवर्तन किया जा सकता है।
    • जनगणना संबंधी आँकडों से शहरों में रहने वाले लोगों की जाति, उम्र, लिंग तथा व्यवसाय आदि के बारे में जानकारी मिलती है।
    • जनगणना संबंधी आँकड़ों से श्वेत तथा अश्वेत शहरों, शहरों के निर्माण तथा उनमें निवास करने वाले लोगों का जीवन-स्तर का पता चलता है।
    • जनगणना संबंधी आँकड़ों से भयंकर बीमारियों के जनता पड़ने वाले दुष्प्रभावों आदि के विषय में भी महत्वपूर्ण जानकार उपलब्ध होती है। कई इतिहासकारों का मानना है कि ये आँकड़े भ्रामक भी हो सकते हैं इसलिए इन आँकड़ों का उपयोग करने से पहले इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि आँकड़े किसने एकत्रित किए हैं तथा उन्हें क्यों और कैसे एकत्रित किया गया।

व्हाइट और ब्लैक टाउन शब्दों का क्या महत्व था?

व्हाइट और ब्लैक टाउन शब्दों का महत्व:

    • औपनिवेशिक शहरों में गोरों अर्थात् अँग्रेजों और कालों अर्थात् भारतीयों अलग-अलग बस्तियाँ होती थीं। उस समय के लेखन में भारतीयों को ब्लैक टाउन तथा गोरों की बस्तियों को व्हाइट टाउन कहा जाता था। इन शब्दों का उपयोग नस्ल भेद को प्रदर्शित करने के लिए किया जाता था।
    • फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज व्हाइट टाउन का केंद्रक बन गया जहाँ अधिकतर यूरोपीय रहते थे। दीवारों और बुर्जों ने इसे एक ख़ास किस्म की घेरेबंदी का रूप दे दिया था। किले के अंदर रहने का फ़ैसला रंग तथा धर्म के आधार पर किया जाता था। कंपनी के लोगों को भारतीयों के साथ विवाह करने की अनुमति नहीं थी। यूरोपीय ईसाई होने के कारण डच तथा पुर्तगालियों को वहाँ रहने की इजाज़त थी। प्रशासकीय तथा न्यायिक व्यवस्था की संरचना भी गोरों के पक्ष में थी। संख्या की दृष्टि से कम होते हुए भी यूरोपीय लोग शासक थे और मद्रास का विकास शहर में रहने वाली मुट्ठीभर गोरों की आवश्यकताओं तथा सुविधाओं के हिसाब से किया जा रहा था। व्हाइट हाउस साफ़-सुथरे होते थे।
    • ब्लैक टाउन किले के बाहर विकसित हुआ। इस आबादी को भी सीधी कतारों में बसाया गया था जोकि औपनिवेशिक शहरों की विशिष्टता थीं परंतु अठारहवीं सदी के पहले दशक के बीच में उसे ढहा दिया गया जिससे किले के चारों ओर एक सुरक्षा क्षेत्र बनाया जा सके। इसके बाद उत्तर दिशा में दूर जाकर एक नया ब्लैक टाउन बसाया गया। इस बस्ती में बुनकरों, बिचौलियों तथा दुभषियों को रखा गया था जो कंपनी के व्यापार में महत्वपूर्ण स्थान रखते थे। ब्लैक टाउन अपेक्षाकृत कम साफ़ होते थे।

प्रमुख भारतीय व्यापारियों ने औपनिवेशिक शहरों में खुद को किस तरह स्थापित किया?

भारत में राजनैतिक नियंत्रण की प्राप्ति के साथ-साथ कंपनी के व्यापार में वृद्धि होने लगी तथा मद्रास, कलकत्ता, बंबई जैसे औपनिवेशिक बंदरगाह नगर तीव्र गति से नवीन आर्थिक राजधानियों के रूप में विकसित होने लगे। जल्द ही ये नगर औपनिवेशिक सत्ता तथा प्रशासन के महत्वपूर्ण केंद्र बन गए। प्रमुख भारतीय व्यापारियों तथा व्यापारी बंबई, मद्रास तथा कलकत्ता जैसे औपनिवेशिक शहरों में बस गए। अँग्रेजों के लिए एजेंट या बिचौलिए के रूप में काम किया तथा ब्लैक टाउन में पारंपरिक रूप से बने आंगन के घरों में रहते थे।
भारतीय व्यापारियों का आकर्षण इनकी ओर बढ़ने लगा तथा वे इन शहरों में स्थापित होने लगे। भारत में राजनैतिक सत्ता एवं संरक्षण ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों में आ जाने पर बिचौलिए, व्यापारी और माल की आपूर्ति करने वाले भारतीय भी इन शहरों के महत्वपूर्ण अंग बन गए। यूरोपयों से लेन- देन करने वाले भारतीय व्यापारी, कारीगर, कामगार औपनिवेशिक शहरों में बसने लगा वे किलेबंद क्षेत्र से बाहर स्थापित अपनी अलग बस्तियों में रहते थे।

उन्नीसवीं सदी के उतरार्द्ध में भारत में रेलवे नेटवर्क का तीव्र गति से विस्तार होने के कारण औपनिवेशिक नगर शेष भारत से जुड़ गए तथा कच्चे माल एवं श्रम के स्रोत देहाती तथा दूरवर्ती क्षेत्र भी इन बंदरगाह शहरों से जुड़ने लगे 1850 के दर्शक के बाद भारतीय व्यापारियों तथा उद्यमियों द्वारा बंबई में सूती कपड़ा मिलों की स्थापना की गई। धनी भारतीय एजेंटों तथा बिचौलियों ने बाजारों के आस-पास ब्लैक टाउन में परंपरागत शैली के आधार पर दालानी मकानों का निर्माण करवाया। उन्होंने भविष्य में पैसा लगाने और ज्यादा लाभ कमाने के उद्देश्य से शहर के अंदर बड़ी-बड़ी जमीनों को भी खरीद लिया।
इसके बाद शीघ्र ही वे पाश्चात्य जीवन-शैली का अनुसरण करने लगे। समाज में अपनी हैसियत दिखाने के लिए वे मंदिरों का भी निर्माण करवाने लगे। मध्यवर्ग का विस्तार होने लगा तथा औपनिवेशिक शहरों में शिक्षित भारतीयों का महत्व बढ़ने लगा।

औपनिवेशिक मद्रास में शहरी और ग्रामीण तत्व किस हद तक घुल-मिल गए थे?

कंपनी ने अपने व्यापारिक गतिविधियों का केंद्र सबसे पहले पश्चीमी तट पर सूरत के सुस्थापित बंदरगाह को बनाया गया। 1639 ई. में उन्होंने मद्रासपट्टम में एक व्यापारिक चौकी बनाई। इस बस्ती को स्थानीय लोग चेनापट्टनम कहते थे। सुरक्षा की दृष्टिट से उन्होंने मद्रास की किले बंदी करवाई तथा यह किला फ़ोर्ट सेंट जॉर्ज के नाम से प्रसिद्धि हुआ। 1761 ई. में फ्रांसीसियों की हार के पश्चात् मद्रास और सुरक्षित हो गया। वह एक महत्वपूर्ण व्यावसायिक शहर के रूप में विकसित होने लगा। यहाँ अंग्रेजों का वर्चस्व और भारतीय व्यापारियों की कमतर हैसियत साफ़ दिखाई देती थी। मद्रास को बहुत सारे गाँवों को मिलाकर विकसित किया गया था। यहाँ विविध समुदायों के लिए अवसरों तथा स्थानों का प्रबंध था। विभिन्न प्रकार के आर्थिक कार्य करने वाले कई समुदाय आए तथा मद्रास में ही बस गए। दुबाश ऐसे भारतीय लोग थे जो स्थानीय भाषा तथा अंग्रेजी, दोनों को बोलना जानते थे। वे एजेंट तथा व्यापारी के रूप में काम करते थे। वे भारतीय तथा गोरों के बीच मध्यस्थ का काम करते थे। तेलुगू कोमाटी समुदाय एक ताकतवर व्यावसायिक समुदाय था जिसका शहर के अनाज व्यवसाय पर नियंत्रण था। अठारहवीं सदी से गुजराती बैंकर भी यहाँ उपस्थित थे। पेरियार तथा वेन्नियार गरीब कामगार वर्ग में ज्यादा थे। आरकोट के नवाब पास ही स्थित ट्रिप्लीकेन में जा बसे थे। अनेक ब्राह्मण अपनी आजीविका वहीं से प्राप्त करते थे। सानथोम और वहाँ का बड़ा गिरजाघर रोमन कैथोलिक लोगों का केंद्र था। ये सभी बिस्तयाँ मद्रास शहर का भाग बन गई थीं।

अतः अनेक ग्रामों को मिला लिए जाने के कारण मद्रास दूर-दूर तक फ़ैला शहर बन गया। जैसे-जैसे अंग्रेजों की सत्ता मजबूत होती गई यूरोपीय निवासी किसे से बाहर जाने लगे। गार्डन हाउसेज़ सबसे पहले माउंट रोड और पूनामाली रोड, इन दो सड़कों पर बनने शुरू हुए। ये किले से छावनी तक जाने वाली सड़कें थीं। इस दौरान संपन्न भारतीय भी अँग्रेजों की तरह रहने लगे। फ़लस्वरूप मद्रास के आस-पास स्थित गाँवों की जगह बहुत सारे नए उपशहरी इलाकों ने ले ली। गरीब लोग अपने काम की जगह से पास पड़ने वाले गाँवों में बस गए। मद्रास के बढ़ते शहरीकरण का परिणाम यह था कि इन गाँवों के बीच वाले इलाके शहर के अंदर आ गए। इस तरह मद्रास एक अर्धग्रामीण सा शहर दिखने लगा।

अठारहवीं सदी में शहरी केंद्रों का रूपांतरण किस तरह हुआ?

मुगल साम्राज्य के पतन के बाद पुराने नगरों का अस्तित्व समाप्त हो गया तथा क्षेत्रीय शक्तियों का विकास होने के कारण नये नगर बनने लगे। इनमें लखनऊ, हैदराबाद, पूना, नागपुर तथा सेरिंगपट्टनम, तंजौर तथा बड़ौदा आदि उल्लेखनीय है। अठारहवीं सदी में शहरी केन्द्रों का रूपांतरण बड़ी तेजी के साथ हुआ। अठारहवीं शताब्दी में स्थल आधारित साम्राज्यों का स्थान जलमार्ग आधारित यूरोपीय साम्राज्यों ने ले लिया। भारत में पूँजीवाद तथा वाणिज्यवाद को बढ़ावा मिलने लगा। व्यापारिक गतिविधियों के केंद्र होने के साथ-साथ प्रशासनिक कार्यकलापों के भी केंद्र थे। अनेक व्यापारिक गतिविधियों के साथ इन शहरों का विस्तार हुआ। आसपास के गाँवों में अनेक मजदूर, कारीगर, छोटे-बड़े व्यापारी, सौदागर, बुनकर, रंगरेज, धातुकर्म करने वाले लोग रहने लगे। इन शहरों में ईसाई मिजनरियाँ बहुत सक्रिय था। स्थापत्य में पत्थरों के साथ ईंट, लकड़ी, प्लास्टर आदि का प्रयोग किया गया। छोटे गाँव कस्बे तथा कस्बे छोटे-बड़े शहर बन गए। अकाल के दौरान प्रभावित लोग कस्बों तथा शहरों में एकत्रित हो जाते थे, लेकिन जब कस्बों पर हमले होते थे तो कस्बों के लोग ग्रामीण क्षेत्रों में शरण लने के लिए चले जाते थे। व्यापारी तथा फ़ेरी वाले लोग कस्बों से गाँव में जाकर कृषि उत्पाद तथा कुछ कुटीर एवं छोटे पैमाने के उद्योग-धांधाों में तैयार माल बिक्री के लिए शहरों तथा कस्बों में लाते थे। दक्षिण भारत में मदुरई, काँचीपुरम् प्रमुख धार्मिक केंद्र थे। अठारहवीं शताब्दी में शहरी जीवन में अनेक बदलाव आए।

राजनीतिक तथा व्यापारिक पुनर्गठन के साथ पुराने नगर जैसे-आगरा, दिल्ली, लाहौर पतनोन्मुख हुए तो नए शहर मद्रास (चेन्नई), कोलकत्ता (कोलकाता), शिक्षा, व्यापार, प्रशासन वाणिज्य आदि के महत्वपूर्ण केंद्र बन गए।
विभिन्न समुदायों, जातियों, वर्गों व्यवसायों के लोग यहाँ रहने लगे। नयी क्षेत्रीय ताकतों के विकास से क्षेत्रीय राजधानी जैसे- अवध की राजधानी लखनऊ, दक्षिण के अनेक राज्यों की राजधानियाँ, जैसे-पूना, तंजौर, श्रीरंगपट्टनम, बडौदा आदि के बढ़ते महत्व दिखाई दिए। जो शहर व्यापार तंत्रों से जुड़े थे उनमें परिवर्तन दिखने लगे। देखते ही देखते 1800 तक जनसंख्या की दृष्टि से औपनिवेशिक शहर देश के सबसे बड़े शहर बन गए।

औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान कौन से थे? उनके क्या उद्देश्य थे?

औपनिवेशिक शहर में सामने आने वाले नए तरह के सार्वजनिक स्थान तथा उनके उद्देश्य:

    1. औपनिवेशिक शहर जैसे मद्रास, मुंबई तथा कलकत्ता में फ़ैक्ट्रियाँ स्थापित की गई तथा जहाँ व्यापारिक गतिविधियाँ, सामान का लेन-देन तथा गोदामों में उन्हें रखा जाता था। इन फ़ैक्ट्रियों में कंपनी के कर्मचारी व अधिकारी भी रहते थे।
    2. 1853 के पश्चात इन शहरो में रेलवे स्टेशन, रेलवे कॉलोनी तथा रेलवे लाइन के वर्कशाप बिठाए गए।
    3. उन्नीसवीं शताब्दी के मध्य में औपनिवेशिक शहरों को 2 हिस्सों में बाँट दिया गया। इन्हें क्रमशः सिविल लाइन या श्वेत लोगों का क्षेत्र तथा अश्वेत टाउन कहा गया।
    4. मद्रास, मुंबई तथा कोलकाता को बंदरगाहों के रूप में उपयोग किया गया। यहाँ जहाजों को लादने तथा उनसे उतारने का काम होता था।
    5. शहरों के नक्शे बनवाए गए, आँकड़े एकत्रित किए गए, सरकारी रिपोर्ट प्रकाशित की गई। ये सभी दस्तावेज प्रशासनिक दफ्तरों में होते थे।
    6. भूमिगत पाइप द्वारा जल आपूर्ति की व्यवस्था करने के साथ-साथ पक्की नालियाँ भी निर्मित की गई।
    7. नए शहरों में बसें, टाउन हाल, घोड़ागाड़ी, सिनेमा, सार्वजनिक पार्क विभिन्न क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले विभिन्न सेवक, शिक्षक, कर्मचारी तथा शिक्षा से जुड़ी संस्थाएँ जैसे स्कूल, कॉलेज, लाइब्रेरी आदि उपलब्ध थे।
उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ कौन सी थीं?

उन्नीसवीं सदी में नगर-नियोजन को प्रभावित करने वाली चिंताएँ निम्नलिखित थी:

    • मजदूर वर्ग के लोग शहर के विभिन्न इलाकों में कच्ची झोपड़ियाँ बनाकर रहते थे। ये अपने यूरोपीय तथा भारतीय स्वामियों के लिए खाना बनाने, पालकी ढोने, गाड़ी ढोने, चौकीदार तथा भारवाहक तथा निर्माण कार्यों और गोदी मजदूर के रूपमें कार्य करते थे।
    • औपनिवेशिक शासन शहरों के रख-रखाव, सुधाार तथा अन्य कार्यों को लागू करने के लिए काफ़ी धन की जरूरत थी। अतः एक लाटरी कमेटी का गठन किया गया।
    • नगर को समुद्र के निकट बसाना उन्नीसवीं शताब्दी के नगर-नियोजन की एक बहुत बड़ी चिंता थी। औपनिवेशिक सरकार नगरों को समुद्र के निकट विकसित करना चाहती थी। जिससे यूरोपीयों के व्यापारिक उद्देश्यों की पूर्ति अच्छी तरह से की जा सके।
    • नगर नियोजन की एक चिंता सुरक्षा भी थी। वास्तव में 1857 ई. के विद्रोह ने भारत में औपनिवेशिक अधिकारियों को इतना अधिक आतंकित कर दिया था कि उन्हें सदैव विद्रोह की आशंका बनी रहती थी।
    • शहरों के मानचित्र तैयार करवाना नगर-नियोजन की एक बड़ी समस्या थी।
    • वे स्थापत्य शैलियाँ कौन सी होंगी जिनके आधार पर भवन तथा इमारतें बनावायी जाएंगी ? यह भी एक समस्या का विषय था।
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