एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 1 ईंटें मनके तथा अस्थियाँ
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग 1 के उत्तर सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 12 इतिहास पाठ 1 के लिए छात्र यहाँ दिए गए प्रश्न उत्तर के माध्यम से अभ्यास के सभी सवाल जवाब प्राप्त कर सकते हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 1
कक्षा 12 इतिहास अध्याय 1 ईंटें, मनके तथा अस्थियाँ के प्रश्न उत्तर
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री की सूची बनाइए।
हड़प्पा सभ्यता के शहरों में लोगों को उपलब्ध भोजन सामग्री इस प्रकार है:
- अनाज जैसे – गेहूँ, चना, जौ, तिल, चावल, कपास, बाजरा, सरसों , खरबूज, मटर
- पेड़-पौधो के उत्पाद
- मछली व माँस
- दूध व घी
मोहनजोदड़ो की कुछ विशिष्टताओं का वर्णन कीजिए।
मोहनजोदड़ों की विशिष्टताएँ:
- मोहनजोदड़ों 1922 में राखलदास बनर्जी द्वारा उत्खनित किया।
- यह एक नियोजित शहर था।
- सबसे आकषर्क यहाँ का विशाल स्नानागार है। स्नानागार में बिटुमिनस का लपे है तथा इसका धर्मानुष्ठानिक महत्व रहा होगा।
- मोहनजोदड़ो एक विशाल शहर था। शहर के पश्चिम में एक दुर्ग तथा पूर्व में नीचे एक नगर बसा हुआ था।
- नगर में प्रवेज के लिए परकोटे अर्थात् बड़े-बड़े प्रवेश द्वार थे। यहाँ से कई चीजों के प्रमाण मिले हैं- सभाभवन, पुरोहित आवास मिला है।
- सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
- कूबड़युक्त बैल की आकृति की मुहर प्राप्त हुई है।
- दुर्ग में कई ऐसे भवन थे जिनका उपयोग विशेष सार्वजनिक उद्देश्यों के लिए किया गया था। मोहनजोदड़ो नगर में नालियों का निर्माण भी बहुत नियोजित ढंग से किया गया था।
- हाथी दाँत के तराजू का पड़ला मिला है।
- मेंसोपोटामिया की बेलनाकार मुहरें प्राप्त हुई है।
- सूती कपड़े का साक्ष्य।
- एक स्तपू टीला मिला है। इसका निर्माण बाद के कुषाण शासकों ने करवाया था।
- मोहनजोदड़ों का नागरिक प्रबंध कुशल हाथों में था। सुनियोजित नगर, जल-निकासी की उत्तम व्यवस्था, माप-तौल के एकरूप मानक, सांस्कृतिक विकास, विकसित व्यापार, अच्छी सड़कें आदि के प्रबल प्रमाण मिले हैं।
चर्चा कीजिए कि पुरातत्वविद किस प्रकार अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं।
पुरातत्वविदों के लिए प्राचीन वस्तुएँ ही हड़प्पा सभ्यता के पुनर्निर्माण में सहायक रही हैं। एक समान लिपि इत्यादि के आधार पर ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि हड़प्पा में शासन वर्ग मौजूद था। पुरातत्वविदों ने उन्हीं पुरावस्तुओं के आधार पर मानव जाति के क्रमिक विकास को चिन्हित किया है। उनका वर्गीकरण धातु, मिट्टी, पत्थर तथा हड्डियों आदि में किया गया है। पुरातत्वविद निम्नलिखित तरीकों से अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं:
- मोहनजोदड़ो से मेसोपोटामिया की बेलनाकार मुहरें प्राप्त हुई हैं।
- व्यवस्थित नगर नियोजन का साक्ष्य मिला है।
- लोथल निर्मित सीप की वस्तुएँ हाथी दाँत की वस्तुएँ, अनाज में गेहूँ, जौ आदि के साक्ष्य मिले हैं।
- कूबड़युक्त बैल की पूजा का साक्ष्य मिला है।
- दो मुख्य प्रकार की चक्कियाँ मिली है।
- पुरातत्वविद सामाजिक तथा आर्थिक भिन्नताओं को जानने के लिए कई विधि का प्रयोग करते थे इन्हीं विधियों में से एक शवधानों का अध्ययन है तथा दूसरा विलासिता की वस्तुएँ हैं।
- चन्हुदड़ों से मनका बनाने का कारखाना, सीप के आभूषण बनाने का कारखाना, जले हुए कपास का प्रमाण मिला है।
- कालीबंगा से अग्निपूजा का साक्ष्य, युग्मिक शवाधान, मिट्टी की काली चूड़िया आदि के प्रमाण मिले हैं।
- लोथल में ईंट से निर्मित बंदरगाह मिला है।
- सिंचाई के नहर का साक्ष्य, कुएं का साक्ष्य मिला है।
- मैहरगढ से कृषि का प्रथम साक्ष्य तथा कपास का प्रमाण मिला है।
उपरोक्त प्रमाणों तथा वर्णनों के आधाार पर पुरातत्वविद अतीत का पुनर्निर्माण करते हैं।
पुरातात्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता किस प्रकार लगाते हैं? वे कौन सी भिन्नताओं पर धयान देते हैं?
पुरातात्वविद हड़प्पाई समाज में सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं का पता निम्न प्रकार से लगाते हैं:
सामाजिक-आर्थिक भिन्नताओं को पहचानने का एक उत्तम साधन पुरावस्तुओं का अध्ययन है।
वाधानों में मृतकों को दफ़नाते समय उनके साथ विभिन्न प्रकार की वस्तुएँ रखी जाती थी। ये वस्तुएँ बहुमूल्य तथा साधारण दोनों ही हो सकती हैं। बहुमूल्य वस्तुएँ मृतक की मज़बूत आर्थिक स्थिति को व्यक्त करती है तथा साधारण वस्तुएँ उनकी सामान्य आर्थिक स्थिति की ओर संकेत करती है।
विलासिता की वस्तुएँ तथा उपयोगी वस्तुएँ ये वस्तुओं को दो वर्गों में विभाजित करती है। पत्थर , मिट्टी ये सामान्य पदार्थ आसानी से उपलब्ध हो जाते थे। मृदभांड, चक्कियाँ आदि भी इसी में शामिल हैं।
पुरातात्वविद उन वस्तुओं को कीमती मानते हैं जो महँगी हो या दुर्लभ हो। जैसे कि फ़यॉन्स के छोटे पात्र कीमती थे क्योंकि इन्हें बनाना कठिन था। जिन बस्तियों में ऐसी कीमती वस्तुएँ मिली हैं, वहाँ के समाजों का स्तर अधिक ऊँचा रहा होगा।
पुरातत्वविद निम्नलिखित भिन्नताओं पर भी ध्यान देते थे:
मनोरंजन के साधन
धार्मिक परंपरा तथा रीतिरिवाजों में भिन्नता
शारीरिक बनावट
खान-पान, विभिन्न लोगों की आर्थिक स्थिति तथा भिन्न व्यवसाय आदि।
क्या आप इस तथ्य से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर योजना की ओर संकेत करती है? अपने उत्तर के कारण बताइए।
हम इस कथन से सहमत हैं कि हड़प्पा सभ्यता के शहरों की जल निकास प्रणाली, नगर योजना की ओर संकेत करती है। इसके कारण कुछ इस प्रकार हैं:
- नालों का निर्माण हड़प्पा सभ्यता की सबसे अनोखी विशिष्टता है।
- सड़कें और गलियाँ सीधी होती थीं और एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
- शहरों की बनावट को देखने से ऐसा लगता है कि पहले नियोजित ढगं से नालियों को बनाया गया तथा साथ-साथ में गलियों का भी निर्माण हुआ।
- घरों में पक्की ईंटों से बनी छोटी नालियाँ होती थीं जो स्नानागारों तथा शौचालयों से जुड़ी होती थीं।
- नालियाँ पकी ईंटो से बनी थी तथा ढकी होती थीं।
- मल जल निकासी के मुख्य नालों पर थोड़ी-थोड़ी दूर पर आयताकार हौदियाँ बनी होती थीं। घरों में कचरा नालियों में नहीं बल्कि घरों के बाहर रखे तथा ढके हुए कूड़ेदानों में डाला जाता था।
- जल निकासी प्रणाली बड़े शहरों में ही बल्कि छोटे शहरों में उपस्थित थीं।
- लोथल में निवास स्थानों का निर्माण कच्ची ईंटों से किया गया था परंतु नालियाँ पकी ईंटों से बनाई गई थीं।
हड़प्पा सभ्यता में मनके बनाने के लिए प्रयुक्त पदार्थों की सूची बनाइए। कोई भी एक प्रकार का मनका बनाने की प्रक्रिया का वर्णन कीजिए।
मनकों के निर्माण में प्रयुक्त पदार्थों की विविधता उल्लेखनीय है: कार्नीलियन (सुंदर लाल रंग का), जैस्पर, स्फ़टिक, क्वार्टज तथा सेलखड़ी जैसे पत्थर, ताँबा, काँसा तथा सोने जैसी धातुएँ तथा शंख, फ़यॉन्स और पकी मिट्टी, सभी का प्रयोग मनके बनाने में होता था। कुछ मनके दो या उससे अधिक पत्थरों को आपस में जोड़कर बनाए जाते थे और कुछ सोने के टोपे वाले पत्थर होते थे। इनके कई आकार होते थे जैसे- चक्राकार, बेलनाकार, गोलाकार, ढोलाकार तथा खंडित। मनके बनाने की तकनीकों में प्रयुक्त पदार्थ के अनुसार भिन्नताएँ थीं। सेलखड़ी जो एक बहुत मुलायम पत्थर है, पर आसानी से कार्य हो जाता था।
कुछ मनके सेलखड़ी चूर्ण के लेप को साँचे में ढाल कर तैयार किए जाते थे। इससे ठोस पत्थरों से बनने वाले केवल ज्यामितीय आकारों के विपरीत कई विविध आकारों के मनके बनाए जा सकते थे। सेलखड़ी के सूक्ष्म मनके कैसे बनाए जाते थे, यह प्राचीन तकनीकों का अध्ययन करने वाले पुरातात्वविदों के लिए एक पहेली बना हुआ है। कार्नीलियन का लाल रंग, पीले रंग के कच्चे माल तथा उत्पादन के विभिन्न चरणों में मनकों को आग में पका कर प्राप्त किया जाता था। पत्थर के पिंडों को पहले आकारों में तोड़ा जाता था। फि़र बारीकी से शल्क निकाल कर इन्हें अंतिम रूप प्रदान किया जाता था। घिसाई, पॉलिश और इनमें छेद करने के साथ ही यह प्रक्रिया पूरी होती थी। चन्हुदड़ों, लोथल और हाल ही में धोलावीरा से छेद करने के उपकरण मिले हैं।