एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास भाग 2 भारत लोग और अर्थव्यस्था के प्रश्न उत्तर वर्ष 2024-25 के पाठ्यक्रम के लिए यहाँ से प्राप्त करें। कक्षा 12 भूगोल पाठ 9 के सवाल जवाब सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड दोनों के लिए ही बहुत उपयोगी हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 9
कक्षा 12 भूगोल अध्याय 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास के उत्तर
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के सामाजिक लाभ क्या है?
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के सामाजिक लाभ:
- इस योजना के अंतर्गत परिवहन और संचार, कृषि तथा इससे संबंधित क्रियाओं और सामाजिक तथा सामुदायिक सेवाओं के विकास को सबसे अधिक प्राथमिकता दी गई।
- इस क्षेत्र में जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना का सबसे महत्वपूर्ण योगदान विद्यालयों, जन स्वास्थ्य सुविधाओं, पेयजल, संचार तथा विधुत के रूप में अवसंरचना विकास है।
- होली तथा खणी क्षेत्रों में रावी नदी के साथ बसे गाँव अवसंरचना विकास से सर्वाधिक लाभान्चित हुए हैं।
- जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना लागू होने से हुए सामाजिक लाभों में साक्षरता दर में तेज़ी से वृद्धि, लिंग अनुपात में सुधाार तथा बाल-विवाह में कमी सम्मिलित है। इस क्षेत्र में स्त्री साक्षरता दर 1971 में 1.88% से बढ़कर 2011 में 65% हो गई।
कक्षा 12 भूगोल अध्याय 9 के लिए बहुविकल्पीय प्रश्न
प्रदेशीय नियोजन का संबंध है:
आई.टी.डी.पी. निम्नलिखित में से किस संदर्भ में वर्णित है?
इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास के लिए इनमें से कौन-सा सबसे महत्वपूर्ण कारक है?
सतत पोषणीय विकास की संकल्पना को परिभाषित करें।
सतत पोषणीय विकास: यह आर्थिक विकास की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण में बिना किसी हानि के वर्तमान और भविष्य पीढ़ियों दोनों के जीवन की गुणवत्ता बनाए रखना है।
सामान्यतः विकास शब्द से अभिप्राय समाज विशेष की स्थिति तथा उसके द्वारा अनुभव किए गए परिवर्तन की प्रक्रिया से होता है। विकास की संकल्पना गतिक है तथा इस संकल्पना का प्रादुर्भाव 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ है। सतत पोषणीय विकास एक ऐसा विकास है जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना होता है।
इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र का सिंचाई पर क्या सकारात्मक प्रभाव पड़ा?
इंदिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र का सिंचाई पर निम्नलिखित सकारात्मक प्रभाव पड़ा:
- सघन सिंचाई से आरंभ में कृषि तथा पशुधन उत्पादकता में अत्यधिक वृद्धि हुई।
- इस क्षेत्र में सफ़लतापूर्वक फ़सलें उगाने के लिए मृदा नमी सबसे महत्वपूर्ण सीमाकारी कारक रहा है। परंतु नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र के विस्तार से बोये गये क्षेत्र में विस्तार हुआ है तथा फ़सलों की सघनता में बढ़ोत्तरी हुई है।
- यहाँ की पारंपरिक फ़सलों, बाजरा, चना, ज्वार का स्थान कपास, गेहूँ, चावल तथा मूँगफ़ली ने ले लिया है।
- यह सघन सिंचाई का परिणाम है।
सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखें। यह कार्यक्रम देश में शुष्क भूमि कृषि विकास में कैसे सहायक है?
सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम: सूखा संभावित क्षेत्र कार्यक्रम (D.P.A.P) का उद्देश्य समग्र आर्थिक विकास को बढ़ावा देना तथा कार्यक्रम क्षेत्रों में रहने वाले संसाधन गरीब तथा वंचित वर्गों की सामाजिक- आर्थिक स्थितियों में सुधार करना है। चौथी पंचवर्षीय योजना में सूखा संभावी क्षेत्र कार्यक्रम तथा कृषि जलवायु नियोजन कार्यक्रम की शुरूआत हुई। इसका उद्देश्य सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों को रोज़गार उपलब्ध करवाना तथा सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था। पाँचवी पंचवर्षीय योजना में इसके कार्यक्षेत्र को और विस्तृत किया गया। इसमें सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, चरागाह विकास, वनीकरण तथा आधाारभूत ग्रामीण अवसंरचना जैसे: बाजार, विधुत, सड़कों, ऋण सुविधाओं तथा सेवाओं पर बल दिया गया। पिछड़े क्षेत्रों के विकास की राष्ट्रीय समिति ने इस कार्यक्रम के क्रियान्वयन की समीक्षा की जिसमें यह पाया गया कि सूखा संभावित क्षेत्रों में वैकल्पिक रोजगार अवसर पैदा करने की आवश्यकता है। इन क्षेत्रों का विकास करने की अन्य रणनीतियों में सूक्ष्म-स्तर पर समन्वित जल-संभर विकास कार्यक्रम अपनाना चाहिए।
इन क्षेत्रें के विकास की रणनीति में जल, मिट्टी, पौधौ, मानव और पशु जनसंख्या के मध्य पारिस्थितिकीय संतुलन, पुनः स्थापन पर मुख्य रूप से ध्यान दिया जाना चाहिए। 1967 ई. में योजना आयोग ने देश में 67 जिलों की पहचान पूर्ण या आंशिक सूखा संभावी जिलों के रूप में की है। 1972 ई. में सिंचाई आयोग ने 30% सिंचित क्षेत्र का मापदडं लेकर सूखा संभावी क्षेत्रों का परिसीमन किया है। इसके अंतर्गत राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, आंध्रप्रदेश के रायलसीमा और तेलंगाना पठार, कर्नाटक पठार व तमिलनाडु की उच्च भूमि तथा आंतरिक भाग के शुष्क तथा अर्ध-शुष्क भागों में फ़ैले हुए हैं। पंजाब, हरियाणा तथा उत्तरी राजस्थान के सूखा प्रभावित क्षेत्र सिंचाई के प्रसार के कारण सूखे से बच जाते हैं।
इंदिरा गाँधाी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने के लिए उपाय सुझाएँ।
इंदिरा गाँधी नहर, जिसे पूर्व में राजस्थान नहर के नाम से जाना जाता था, भारत में सबसे बड़े नहर तंत्रों में से एक है। 1948 में कँवर सेन द्वारा संकल्पित यह नहर परियोजना 31 मार्च, 1958 को शुरू हुई। यह नहर पंजाब में हरिके बाँध से निकलती है तथा राजस्थान के थार मरूस्थल (मरूस्थली) पाकिस्तान सीमा के समानांतर 40 कि.मी. की औसत दूरी पर बहती है। सतलुज तथा व्यास नदी के जल को पंजाब के हरिके नामक बाँध पर रोककर यह नहर निकाली गई है जिससे राजस्थान के थार मरूस्थल की 19.63 लाख हेक्टेयर कृषियोग्य कमान क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा प्रदान कर रही है। इस नहर तंत्र की कुल लंबाई 9060 कि.मी. है। इस नहर का निर्माण कार्य दो चरणों में पूर्ण किया है। चरण-1 के कमान क्षेत्र में सिंचाई की शुरूआत 1960 के दशक में जबकि चरण-2 में सिंचाई 1980 के दशक के बीच में आरंभ हुई थी।
इन नहरों के कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने वाले प्रस्तावित 7 उपायों में से 5 उपाय पारिस्थितिकीय संतुलन को पुनः स्थापित करने पर बल देते हैं, जैसे: जल प्रबंधन नीति का कठोरता से कार्यान्वयन करना ताकि फ़सल रक्षण सिंचाई तथा चरागाह विकास की व्यवस्था की जा सके। इस क्षेत्र में जल सघन फ़सलों को नहीं बोया जाना चाहिए बल्कि बागाती कृषि में खट्टे फ़लों की खेती करनी चाहिए। कमान क्षेत्र में नहर के जल का समान वितरण होना चाहिए एवं मार्ग में बहते जल की क्षति को कम करने के उपाय किए जाने चाहिए, जैसेः नालों को पक्का करना, भूमि विकास और समतलन तथा बाड़बंदी पद्धति लागू करनी चाहिए। जलाक्रांत तथा लवणता से प्रभावित भूमि का पुनरूद्धार किया जाना चाहिए। वनीकरण, वृक्षों की रक्षण मेखला का विकास और चरागाह विकास के अलावा पारितंत्र विकास पर बल देना चाहिए।