एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 8 निर्माण उद्योग
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 8 निर्माण उद्योग भाग 2 भारत लोग और अर्थव्यस्था के प्रश्नों के उत्तर हिंदी और अंग्रेजी में सीबीएसई 2024-25 के सिलेबस के अनुसार यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 12 भूगोल पाठ 8 के अभ्यास के सवाल जवाब के साथ-साथ अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर भी परीक्षा की तैयारी के लिए उपलब्ध हैं।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 भूगोल अध्याय 8
कक्षा 12 भूगोल अध्याय 8 निर्माण उद्योग के प्रश्न उत्तर
लोहा-इस्पात उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार है, ऐसा क्यों?
लोहा तथा इस्पात उद्योग आधारभूत उद्योगों में से एक महत्वपूर्ण उद्योग है। लोहा-इस्पात उद्योग किसी देश की अर्थव्यवस्था का आधार स्तम्भ होता है। लोहा-इस्पात उद्योग का उपयोग मशीनों, यातायात के साधन, रेल-पुल, रेलवे लाइन, अस्त्र-शस्त्र, यंत्र आदि बनाने में किया जाता है। लोहा-इस्पात उद्योग के विकास ने भारत में औद्योगिकरण के द्वार खोल दिए हैं इसलिए लोहा-इस्पात उद्योग किसी देश के औद्योगिक विकास का आधार है।
कक्षा 12 भूगोल अध्याय 8 के लिए बहुविकल्पीय प्रश्न
कौन-सा औद्योगिक अवस्थापना का एक कारण नहीं है?
मुंबई में सबसे पहला सूती वस्त्र कारखाना स्थापित किया गया, क्योंकि
हुगली औद्योगिक प्रदेश का केंद्र है:
निम्नलिखित में से कौन-सा चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है?
सूती वस्त्र उद्योग के दो सेक्टरों के नाम बताइए। वे किस प्रकार भिन्न हैं?
भारत में सूती वस्त्र उद्योग को दो सेक्टरों में बाँटा जा सकता है- संगठित सेक्टर तथा असंगठित सेक्टर। विकेंद्रित सेक्टर के अंतर्गत हथकरघों (खादी सहित) तथा विधुतकरघों में उत्पादित कपड़ा आता है। संगठित सेक्टर के उत्पादनों में तेज़ी से कमी आई है। यह 20 शताब्दी के मध्य में 81% से घटकर 2000 में सिर्फ़ लगभग 6% रह गया है। आधुनिक समय में, देश में उत्पादित सूती वस्त्र हथकरघा सेक्टर की तुलना में विकेंद्रित सेक्टर में विधुत करघों के माध्यम से अधिक उत्पादित किया जाता है।
चीनी उद्योग एक मौसमी उद्योग क्यों है?
चीनी उद्योग के लिए महत्वपूर्ण कच्चा माल गन्ना है जो कि एक विशेष मौसम में ही प्राप्त होता है। उसके पश्चात् इसकी आवक बंद हो जाती है, साथ ही चीनी उद्योग में इसका उत्पादन भी। शुष्क ऋतु में गन्ने को खेत में नहीं रखा जा सकता। सूखने पर चीनी की मात्रा कम हो जाती है इसलिए इसे काट कर तुरंत मिलों तक भेजा जाना ज़रूरी है। मिले केवल उस मौसम में कार्य करती है जब उसे काटा जाता है। गन्ने की पिराई का कार्य वर्ष भर नहीं होता सिर्फ़ 4 से 6 महीने तक ही मिल चल पाती है।
पेट्रो-रासायनिक उद्योग के लिए कच्चा माल क्या है?
पेट्रो रसायन ऐसा रसायन और यौगिक है जिन्हें मुख्यतः पेट्रोलियम पदार्थों से प्राप्त किया जाता है। पेट्रो रासायनिक उद्योग के लिए खनिज तेल अथवा अपरिष्कृत पेट्रोल के प्रक्रमण से प्राप्त विभिन्न उत्पाद अथवा वस्तुएँ कच्चे माल के रूप में उपयोग की जाती है। इस उद्योग के उत्पादों को चार वर्गों में रखा जाता है:
- पॉलीमर
- कृत्रिम रेशे
- पृष्ट संक्रियक
- इलैस्टोमर्स
स्वदेशी आंदोलन ने सूती वस्त्र उद्योग को किस प्रकार विशेष प्रोत्साहन दिया?
स्वदेशी आंदोलन ने सूती वस्त्र उद्योग को बहुत प्रोत्साहन दिया है। आंदोलन के समय विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार तथा लोगों से भारतीय वस्तुओं को उपयोग में लाने तथा सूत काटने के लिए प्रोत्साहित किया। 19वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में मुंबई तथा अहमदाबाद में पहली सूती कपड़ा मिल की स्थापना के बाद सूती वस्त्र उद्योग को प्रमुख रूप से प्रोत्साहित किया क्योंकि ब्रिटेन के बने सामानों का बहिष्कार कर बदले में भारतीय सामानों को उपयोग में लाने का आह्वान किया गया।
अठारहवीं शताब्दी के बीच में यूरोप में औद्योगिक क्रांति के फ़लस्वरूप ब्रिटेन के मानचेस्टर और लिवरपुल में सूती कपड़ों की मिलों की स्थापना होने के पस्चात कच्चे माल के रूप में कपास की भारी माँग होने लगी। भारत में ब्रिटिश शासकों ने भारत में उत्पादित कपास को इंग्लैंड भेजना शुरू कर दिया। इस प्रकार भारतीय बुनकरों को कपास या कच्चे माल की उपलब्धता न होने पर स्वदेजी सूती वस्त्र उद्योग प्रभावित होने लगा। साथ ही ब्रिटेन की मिलों में तैयार कपड़े को भारत में बेचा जाने लगा जो कि अपेक्षाकृत सस्ता होता था।
इस तरह भारतीय अर्थव्यवस्था को ब्रिटिश शासकों के माध्यम से नुकसान पहुँचाया जाने लगा। स्वदेशी आंदोलन में भारतीय लोगों को स्वदेशी वस्त्र तथा अन्य वस्तुएँ खरीदने के लिए प्रोत्साहित किया और ब्रिटेन में बने सामान का बहिष्कार किया। इससे भारतीय उद्योगों को प्रोत्साहन मिला। भारत में रेलमार्गों के विकास तथा विस्तार ने देश के दूसरे भागों में सूती वस्त्र केंद्रों के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया। दक्षिण भारत में कोयंबटूर, मदुरै तथा बेंगलौर में मिलों की स्थापना हुई। मध्यभारत में इंदौर, नागपुर, शोलापुर, बडोदरा भी सूती वस्त्र के केंद्र बन गए। उत्तर भारत में कानपुर, कोलकाता में भी मिलों की स्थापना हुई।