एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 7 मानव स्वास्थ्य तथा रोग
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 7 मानव स्वास्थ्य तथा रोग के प्रश्न उत्तर अभ्यास के सवाल जवाब हिंदी और अंग्रेजी मीडियम में शैक्षणिक सत्र 2024-25 के अनुसार संशोधित रूप में यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 12 जीव विज्ञान के पाठ 7 के प्रश्न उत्तर तथा अभ्यास के लिए अतिरिक्त प्रश्न उत्तर पाठ को समझने में बहुत सहायक हैं।
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 7 के लिए एनसीईआरटी समाधान
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 7 मानव स्वास्थ्य तथा रोग के प्रश्न उत्तर
कौन-से विभिन्न जन स्वास्थ्य उपाय हैं, जिन्हें आप संक्रामक रोगों के विरुद्ध रक्षा-उपायों के रूप में सुझायेंगे?
संक्रामक रोगों के विरुद्ध हम निम्नलिखित जन-स्वास्थ्य उपायों को सुझायेंगे:
अपशिष्ट व उत्सर्जी पदार्थों का समुचित निपटान होना।
संक्रमित व्यक्ति व उसके सामान से दूर रहना।
नालियों में कीटनाशकों का छिड़काव करना।
आवासीय स्थलों के निकट जल-ठहराव को रोकना, नालियों के गंदे पानी की समुचित निकासी होना।
संक्रामक रोगों की रोकथाम हेतु वृहद स्तर पर टीकाकरण कार्यक्रम चलाये जाना।
डी एन ए वैक्सीन के सन्दर्भ में ‘उपयुक्त जीन’ के अर्थ के बारे में अपने अध्याय से चर्चा कीजिए।
डी एन ए वैक्सीन में उपयुक्त जीन’ का अर्थ है कि इम्युनोजेनिक प्रोटीन का निर्माण इसे नियंत्रित करने वाले जीन से हुआ है। ऐसे जीन क्लोन किये जाते हैं तथा फिर वाहक के साथ समेकित करके व्यक्ति में प्रतिरक्षा उत्पन्न करने के लिए उसके शरीर में प्रवेश कराये जाते हैं।
प्रसामान्य कोशिका से कैंसर कोशिका किस प्रकार भिन्न है?
एक प्रसामान्य कोशिका में कोशिका वृद्धि व कोशिका विभेदन अत्यंत नियंत्रित व नियमित होते हैं।
प्रसामान्य कोशिका में संस्पर्श संदमन नामक गुण होता है जिसके कारण अन्य कोशिकाओं में इसका स्पर्श अनियंत्रित वृद्धि का संदमन करता है।
इसके विपरीत कैंसर कोशिका में यह गुण समाप्त हो जाता है, अत: इन कोशिकाओं में वृद्धि व विभेदन अनियंत्रित हो जाते हैं।
इसके परिणामस्वरूप कैंसर कोशिकायें निरंतर वृद्धि करके कोशिकाओं में एक पिंड, रसौली बना देती हैं।
वे कौन सी क्रियाविधि है जिससे एड्स विषाणु संक्रमित व्यक्ति के प्रतिरक्षा तंत्र का ह्रास करता है।
संक्रमित व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने के पश्चात् एड्स विषाणु वृहद् भक्षकाणु में प्रवेश करता है।
यहाँ इसका आरएनए जीनोम, विलोम ट्रांसक्रिप्टेज प्रकिण्व की मदद से, प्रतिकृतियन द्वारा विषाणुवीय डीएनए बनाता है जो कोशिका में डीएनए में प्रविष्ट होकर, संक्रमित कोशिकाओं में विषाणु कण निर्माण का निर्देशन करता है।
वृहद् भक्षकाणु विषाणु उत्पादन जारी रखते हैं व एचआईवी की उत्पादन फैक्टरी का कार्य करते हैं।
एचआईवी सहायक टी-लसीकाणु में प्रविष्ट होकर अपनी प्रतिकृति बनाता है व संतति विषाणु उत्पन्न करता है।
रक्त में उपस्थित संतति विषाणु अन्य सहायक टी-लसीकाणुओं पर आक्रमण करते हैं।
यह प्रक्रिया बार-बार दोहराई जाती है जिसके परिणामस्वरूप संक्रमित व्यक्ति के शरीर में टी -लसीकाणुओं की संख्या घटती रहती है।
रोगी ज्वर व दस्त से निरन्तर पीड़ित रहता है, वजन घटता जाता है, रोगी की प्रतिरक्षा इतनी कम हो जाती है कि वह इन प्रकार के संक्रमणों से लड़ने में असमर्थ होता है।
मैटास्टेसिस का क्या मतलब है व्याख्या कीजिये।
मैटास्टेसिस में कैंसर कोशिकाओं के अन्य ऊतकों व अंगों में स्थानांतरण से कैंसर फैलता है। परिणामस्वरूप द्वितीयक ट्यूमर का निर्माण होता है।
यह प्राथमिक ट्यूमर की अति वृद्धि के परिणामस्वरूप फैलता है।
अति वृद्धि करने वाली ट्यूमर कोशिकायें रक्त वाहिनियों में से गुजरती हैं या सीधे द्वितीयक बनाती हैं।
दूसरे उपयुक्त ऊतक या अंग पर पहुँचने के बाद, एक नया ट्यूमर बनता है।
यह बना ट्यूमर, जो द्वितीयक बना सकते हैं, घातक ट्यूमर कहलाता है।
वे कोशिकाएँ जो ट्यूमर से फैलने के योग्य होती हैं, घातक कोशिकायें होती हैं।
क्या आप ऐसा सोचते हैं कि मित्रगण किसी को ऐल्कोहल/ड्रग सेवन के लिये प्रभावित कर सकते हैं? यदि हाँ, तो व्यक्ति ऐसे प्रभावों से कैसे अपने आपको बचा सकते हैं?
मित्रगण किसी को ऐल्कोहल/ड्रग लेने के लिये प्रभावित कर सकते हैं। युवा प्रायः ऐसे मित्रों के चंगुल में फंस जाते हैं जो मादक द्रव्यों के आदी हो चुके होते हैं। ऐसे मित्र युवाओं को धीरे-धीरे मादक पदार्थों के सेवन की लत लगा देते हैं तथा युवा इन पदार्थों के चंगुल में बुरी तरह फंस जाते हैं। स्वयं को इस प्रकार के प्रभाव से बचाने के लिये निम्नलिखित उपाय किये जा सकते हैं:
प्रथम माता-पिता व अध्यापकों का विशेष उत्तरदायित्व है। ऐसा लालन-पालन जिसमें पालन-पोषण का स्तर ऊँचा हो व सुसंगत अनुशासन हो।
ऐसे मित्रों के चंगुल में आने पर तुरंत अपने माता-पिता व समकक्षियों से मदद व उचित मार्गदर्शन लें।
समस्याओं व प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करने, निराशाओं व असफलताओं को जीवन का एक हिस्सा समझकर स्वीकार करने की शिक्षा व परामर्श लेना इस प्रकार के प्रभाव से बचने में सहायक होता है।
क्षमता से अधिक कार्य करने के दबाव से बचें।
ऐल्कोहल/ड्रग के द्वारा होने वाले कुप्रयोग के हानिकारक प्रभावों की सूची बनाएँ।
ऐल्कोहल/ड्रग के द्वारा होने वाले कुप्रयोग के हानिकारक प्रभाव निम्नलिखित हैं:
अत्यधिक मात्रा में लेने पर इन पदार्थों से श्वसन निष्क्रियता, हृदय- घात, कोमा व मृत्यु भी हो सकती है।
मादक पदार्थों के व्यसनी पैसे न मिलने पर चोरी का सहारा ले सकते हैं। अत: परिवार/समाज के लिये मानसिक व आर्थिक कष्ट हो सकता है।
ऐल्कोहल के चिरकारी प्रयोग से तंत्रिका तंत्र व यकृत को क्षति पहुँचती है।
रक्त शिरा में इंजेक्शन द्वारा ड्रग्स लेने पर एड्स व यकृत शोथ-बी जैसे गम्भीर संक्रमण की सम्भावना बढ़ जाती है।
गर्भावस्था के दौरान मादक पदार्थों का प्रतिकूल प्रभाव भ्रूण पर पड़ता है।
अंधाधुंध व्यवहार, बर्बरता व हिंसा का बढ़ना।
महिलाओं में उपापचयी स्टेराइड के सेवन से पुरुष; जैसे- लक्षण, आक्रामकता, भावनात्मकता स्थिति में उतार-चढ़ाव, अवसाद, असामान्य आर्तवचक्र, मुंह व शरीर पर बालों की अतिरिक्त वृद्धि, आवाज का भारी होना आदि दुष्प्रभाव देखे जा सकते हैं।
पुरुषों में मुहाँसे, आक्रामकता का बढ़ना, अवसाद, वृषणों के आकार का घटना, शुक्राणु उत्पादन की कमी, समय से पूर्व गंजापन आदि लक्षण ड्रग्स सेवन के कुप्रभाव हैं।
आपके विचार से किशोरों को ऐल्कोहॉल या ड्रग के सेवन के लिये क्या प्रेरित करता है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
जिज्ञासा, जोखिम उठाने व उत्तेजना के प्रति आकर्षण व प्रयोग करने की इच्छा प्रमुख कारण है जो नवयुवकों को ऐल्कोहॉल/ड्रग्स के लिये अभिप्रेरित करते हैं।
इन पदार्थों के प्रयोग को फायदे के रूप में देखना भी एक अन्य कारण है।
शिक्षा के क्षेत्र या परीक्षा में आगे रहने के दबाव से उत्पन्न तनाव भी नवयुवकों को मादक पदार्थों की ओर खींच सकता है।
युवकों में यह भी प्रचलन है कि धूम्रपान, ऐल्कोहॉल, ड्रग्स आदि का प्रयोग व्यक्ति की प्रगति का सूचक है।
सामाजिक एकाकीपन, कामवासना में वृद्धि का अनुभव, जीवन के प्रति नीरसता, मानसिक क्षमता में वृद्धि की मिथ्या धारणा, क्षणिक स्वर्गिक आनंद की अभिलाषा व कुसंगति का प्रभाव नवयुवकों को इन पदार्थों के प्रति आकर्षित करता है।
इसको नजरअंदाज करने के लिये रोकथाम व नियन्त्रण संबंधी उपाय कारगर हो सकते हैं।
पढ़ाई, खेल-कूद, संगीत, योग के साथ-साथ अन्य स्वास्थ्य गतिविधियों में ऊर्जा लगानी चाहिए।
युवाओं के व्यसनी होने पर योग्य मनोवैज्ञानिक की सहायता ली जानी चाहिए।