एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 पुष्पी पादपों में लैंगिक जनन के अभ्यास के प्रश्न उत्तर हिंदी और अंग्रेजी मीडियम में सत्र 2024-25 के लिए छात्र यहाँ से निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। 12वीं कक्षा जीव विज्ञान के पाठ 1 के सभी प्रश्न उत्तर अभ्यास के सवाल जवाब सरल भाषा में दिए गए हैं।

कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 के लिए एनसीईआरटी समाधान

आप मादा युग्मकोद्भिद के एकबीजाणुज विकास से क्या समझते हैं?

गुरुबीजाणुजनन के फलस्वरूप बने गुरुबीजाणु चतुष्क में से तीन नष्ट हो जाते हैं। तथा केवल एक गुरुबीजाणु ही सक्रिय होता है जो मादा युग्मकोद्भिद का विकास करता है। गुरुबीजाणु का केन्द्रक तीन सूत्री विभाजनों द्वारा आठ केन्द्रक बनाता है। प्रत्येक ध्रुव पर चार-चार केन्द्रक व्यवस्थित हो जाते हैं। भ्रूणकोष के बीजांडद्वारी ध्रुव पर स्थित चारों केन्द्रक में से तीन केन्द्रक कोशिकाएँ अंड उपकरण बनाते हैं, जबकि निभागी सिरे के चार केन्द्रकों में से तीन केन्द्रक एन्टीपोडल कोशिकाएँ बनाते हैं। दोनों ध्रुवों से आये एक-एक केन्द्रक, केन्द्रीय कोशिका में संयोजन द्वारा ध्रुवीयकेन्द्रक बनाते हैं। चूंकि मादा युग्मकोद्भिद सिर्फ एक ही गुरुबीजाणु से विकसित होता है, अत: इसे एक बीजाणुज विकास कहते हैं।

एक स्पष्ट एवं साफ-सुथरे चित्र के द्वारा परिपक्व मादा युग्मकोदभिद के 7-कोशिकीय, 8- न्युक्लियेट (केंद्रक) प्रकृति की व्याख्या करें।
आवृतबीजी पौधों को मादा युग्मकोदभिद 7-कोशिकीय व 8-केन्द्रकीय होता है जिसके परिवर्धन के समय क्रियाशील गुरुबीजाणु, प्रथम केन्द्रीय विभाजन द्वारा दो केन्द्रक बनाता है। दोनों केन्द्रक गुरुबीजाणु के दोनों ध्रुवों (माइक्रोपाइल व निभागीय) पर पहुँच जाते हैं। द्वितीय विभाजन द्वारा दोनों सिरों पर दो-दो केन्द्रिकाएँ बन जाती हैं। तृतीय विभाजन द्वारा दोनों सिरों पर चार-चार केन्द्रक बन जाते हैं। माइक्रोपायलर शीर्ष पर चार केन्द्रकों में से तीन केन्द्रक अंड उपकरण बनाते हैं तथा चौथा केन्द्रक ऊपरी ध्रुव का चक्र बनाता है। निभागीय शीर्ष पर चार केन्द्रकों में से तीन एन्टीपोडल केन्द्रक तथा चौथा केन्द्रक निचला ध्रुव केन्द्रक का निर्माण करता है। ऊपरी तथा निचला ध्रुवीय केन्द्रक मध्य में आकर संयोजन द्वारा द्वितीयक केन्द्रक बनाते हैं। अण्ड उपकरण के तीन केन्द्रकों से मध्य वाला केन्द्रक अंड बनाता है। शेष दोनों केन्द्रक सहायक कोशिकाएँ बनाते हैं।

पुष्पों द्वारा स्व-परागण रोकने के लिए विकसित की गयी दो कार्यनीति का विवरण दें।
पुष्पों में स्व-परागण को रोकने हेतु विकसित की गयी दो कार्यनीतियाँ निम्न हैं:
स्व-बन्ध्यता: इस प्रकार की कार्यनीति में यदि किसी पुष्प के परागण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं तो वे उसे निषेचित नहीं कर पाते हैं। उदाहरण: माल्वा के एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर अंकुरित नहीं होते हैं।
भिन्न काल पक्वता: इसमें नर तथा मादा जननांग अलग-अलग समय में परिपक्व होते हैं जिससे स्व-परागण नहीं हो पाता है। उदाहरण: सैक्सीफ्रेगा कुल के सदस्य।

स्व-अयोग्यता क्या है? स्व-अयोग्यता वाली प्रजातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक क्यों नहीं पहुँच पाती है?
स्व-अयोग्यता पुष्पीय पौधों में पायी जाने वाली ऐसी प्रयुक्ति है जिसके फलस्वरूप पौधों में स्व-परागण नहीं होता है। अतः इन पौधों में सिर्फ परपरागण ही हो पाता है। स्व-अयोग्यता दो प्रकार की होती है:
विषमरूपी: इस प्रकार की स्व-अयोग्यता में एक ही जाति के पौधों के वर्तिकाग्र तथा परागकोशों की स्थिति में भिन्नता होती है अतः परागनलिका की वृद्धि वर्तिकाग्र में रुक जाती है।
समकारी: इस प्रकार की स्व-अयोग्यता विरोधी-S अलील्स द्वारा होती है। उपरोक्त कारणों के फलस्वरूप स्व-अयोग्यता वाली जातियों में स्व-परागण प्रक्रिया बीज की रचना तक नहीं पहुँच पाती है।

विपुंसन से क्या तात्पर्य है? एक पादप प्रजनक कब और क्यों इस तकनीक का प्रयोग करता है?

एक द्विलिंगी पुष्प की कली अवस्था में, परागकोश को काटकर अलग करने की प्रक्रिया, विपुंसन कहलाती है। यह कृत्रिम परागण की एक तकनीक है तथा इसका प्रयोग पादप प्रजनक द्वारा आर्थिक महत्त्व के पौधों की अच्छी नस्ल बनाने में किया जाता है। विपुंसन द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि ऐच्छिक वर्तिकाग्र युक्त पौधे पर ही परागण हो।

सेब को आभासी फल क्यों कहते हैं? पुष्प का कौन-सा भाग फल की रचना करता है?
सेब में फल का विकास पुष्पासन से होता है। इसी कारण इसे आभासी फल कहते हैं। फल की रचना, पुष्प के निषेचित अंडाशय से होती है।

त्रि-संलयन क्या है? यह कहाँ और कैसे सम्पन्न होता है? त्रि-संलयन में सम्मिलित न्यूक्लीआई का नाम बताएँ।
परागनलिका से मुक्त दोनों नर केन्द्रकों में से एक मादा केन्द्रक से संयोजन करता है। दूसरा नर केन्द्रक भ्रूणकोष में स्थित द्वितीयक केन्द्रक (2n) से संयोजन करता है। द्वितीयक केन्द्रक में दो केन्द्रक पहले से होते हैं तथा नर केन्द्रक से संलयन के पश्चात् केन्द्रकों की संख्या तीन हो जाती है। तीन केन्द्रकों का यह संलयन, त्रिसंलयन कहलाता है। त्रिसंलयन की प्रक्रिया भ्रूणकोष में होती है तथा इसमें ध्रुवीय केन्द्रक अर्थात् द्वितीयक केन्द्रक व नर केन्द्रक सम्मिलित होते हैं।

परागकण भित्ति रचना में टेपीटम की भूमिका की व्याख्या कीजिए।

पुंकेसर के परागकोश में प्रायः चार लघुबीजाणुधानी बनती हैं। प्रत्येक लघुबीजाणुधानी चार पर्वो वाली भित्ति से आवृत होती है। बाहर से भीतर की ओर इन्हें क्रमशः बाह्य त्वचा, अंतस्थीसियम, मध्यपर्त तथा टेपीटम कहते हैं। बाह्य तीन पर्ते लघुबीजाणुधानी को संरक्षण प्रदान करती हैं और स्फुटन में सहायता करती हैं। सबसे भीतरी टेपीटम पर्त की कोशिकाएँ विकासशील परागकणों को पोषण प्रदान करती हैं।

यदि कोई व्यक्ति वृद्धि कारकों का प्रयोग करते हुए अनिषेकजनन को प्रेरित करता है तो आप प्रेरित अनिषेकजनन के लिए कौन-सा फल चुनते हैं और क्यों?
वृद्धि कारकों के प्रयोग द्वारा अनिषेकजनन हेतु हम केले का चयन करेंगे क्योंकि यह बीज रहित होता है।

एक निषेचित बीजांड में, युग्मनज प्रसुप्ति के बारे में आप क्या सोचते हैं?
निषेचन के पश्चात् बीजांड में युग्मनज का विकास होता है। बीजांड के अध्यावरण दृढ़ होकर बीजावरण बनाते हैं। बीजाण्ड के बाहरी अध्यावरण से बीजकवच तथा भीतरी अध्यावरण से अन्तः कवच बनता है। भ्रूणपोष में भोज्य पदार्थ एकत्रित होने लगते हैं। जल की मात्रा धीरे-धीरे कम हो जाती है, अतः कोमल बीजाण्ड कड़ा व शुष्क हो जाता है। धीरे-धीरे बीजाण्ड के अंदर की कार्यिकी क्रियाएँ रुक जाती हैं तथा युग्मनज से बना नया भ्रूण सुप्तावस्था में पहुँच जाता है। इसे युग्मनज प्रसुप्ति कहते हैं। बीजावरण से घिरा, एकत्रित भोजन युक्त तथा सुसुप्त भ्रूण युक्त यह रचना, बीज कहलाती है।

असंगजनन क्या है और इसका क्या महत्व हैं?

कुछ पुष्पीय पादपों जैसे कि एस्ट्रेर्सिया तथा घासों ने बिना निषेचन के ही बीज पैदा करने की प्रक्रिया विकसित कर ली, जिसे असंगजनन कहते हैं। यदि संकर किस्म के संग्रहीत बीज को बुआई करके प्राप्त किया गया है तो उसकी पादप संतति पृथक्कृत होगी और वह संकर बीज की विशिष्टता को यथावत नहीं रख पाएगा। यदि एक संकर (बीज) असंगजनन से तैयार की जाती है तो संकर संतति में कोई पृथक्करण की विशिष्टताएँ नहीं होगी। इसके बाद किसान प्रतिवर्ष फसल-दर-फसल संकर बीजों का उपयोग जारी रख सकते हैं और उसे प्रतिवर्ष संकर बीजों को खरीदने की जरुरत नहीं पड़ेगी। संकर बीज उद्योग में असंगजनन की महत्ता के कारण दुनिया भर में, विभिन्न प्रयोगशालाओं में असंगजनन की आनुवंशिकता को समझने के लिए शोध और संकर किस्मों में असंगजनित जीन्स को स्थानांतरित करने पर अध्ययन चल रहे हैं। बागवानी एवं कृषि विज्ञान में असंगजनन के बहुत सारे लाभ हैं।

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कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 1 के प्रश्न उत्तर
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