एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 6 विकास

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 6 विकास के प्रश्न उत्तर अभ्यास के सवाल जवाब हिंदी और अंग्रेजी मीडियम में शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए संशोधित रूप में विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। 12वीं कक्षा के जीव विज्ञान के पाठ 6 के सभी प्रश्नों को सरल भाषा में हल करके दिखाया गया है ताकि छात्रों को कोई असुविधा न हो।

कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 6 के लिए एनसीईआरटी समाधान

डार्विन के चयन सिद्धांत के परिप्रेक्ष्य में जीवाणुओं में देखी गई प्रतिजैविक प्रतिरोध का स्पष्टीकरण करें।

रोगजनक जीवाणुओं के विरुद्ध प्रतिजैविक अत्यन्त प्रभावी होते हैं किन्तु किसी नये प्रतिजैविक के विकास के 2 – 3 वर्ष पश्चात् नये प्रतिजैविक प्रतिरोधी, समष्टि में प्रकट हो जाते हैं। कभी-कभी एक जीवाणुवीय समष्टि में एक अथवा कुछ ऐसे जीवाणु उत्परिवर्तन युक्त होते हैं जो उन्हें प्रतिजैविक के लिए प्रतिरोधी बनाते हैं। इस प्रकार के प्रतिरोधी जीवाणु तेजी से गुणन व उत्तरजीविता करने लगते हैं। शीघ्र ही प्रतिरोधिता प्रदान करने वाले जीन दूर-दूर तक फैल जाते हैं व सम्पूर्ण जीवाणु समष्टि प्रतिरोधी बन जाते हैं। कुछ अस्पतालों में प्रतिजैविक प्रतिरोधी पनपते रहते हैं क्योंकि वहाँ प्रतिजैविकों का अत्यधिक प्रयोग होता है।

समाचार-पत्रों और लोकप्रिय वैज्ञानिक लेखों से विकास संबंधी नए जीवाश्मों और मतभेदों की जानकारी प्राप्त करें।
जीवाश्म चट्टानों से प्राप्त आदिकालीन जीवधारियों के अवशेष या चिन्ह होते हैं। जीवाश्मों के अध्ययन को जीवाश्म विज्ञान कहते हैं अर्थात् जीवाश्म विज्ञान में लाखों-करोड़ों वर्ष पूर्व के जीवधारियों के अवशेषों का अध्ययन करते हैं। जीवाश्म वैज्ञानिकों के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि किस काल में किस प्रकार के जीवधारी पृथ्वी पर उपस्थित थे। चट्टानों और पृथ्वी की पर्तो में दबे जीवाश्मों को खोदकर निकाला जाता है। इन चिन्हों या अवशेषों से जीवधारी की संरचना की परिकल्पना की जाती है।
चट्टानों की आयु ज्ञात करके जीवाश्मों की अनुमानित आयु भी ज्ञात कर ली जाती है। अतः वैज्ञानिक जीवाश्मों को जैव विकास के सशक्त प्रमाण मानते हैं। जीवाश्मों के सबसे परिचित उदहारण आर्किओप्टेरिक्स तथा डायनोसोर हैं। डायनोसोर विशालकाये सरीसृप थे। मीसोजोइक युग में इनका पृथ्वी पर साम्राज्य स्थापित था। इस युग को सरीसृपों का स्वर्ण युग कहा जाता है।
भिन्न आयु की चट्टानों से भिन्न-भिन्न प्रकार के जीवधारियों के जीवाश्म पाए गए हैं, जो कि सम्भवत: उस चट्टान के निर्माण के दौरान उनमें दब गए। वे विलुप्त जीवों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि पृथ्वी पर जीवन का स्वरूप बदलता रहा है। इथोपिया तथा तंजानिया से कुछ मानव जैसी अस्थियों के जीवाश्म प्राप्त हुए हैं। मानव पूर्वजों के जीवाश्मों से मानव विकास का इतिहास ज्ञात हुआ है।

मानव विकास के विभिन्न घटकों का पता करें (संकेत- मस्तिष्क साइज और कार्य, कंकाल संरचना, भोजन में पसंदगी आदि)।
लगभग 16 मिलियन वर्ष पूर्व ड्रायोपिथिकस तथा रामापिथिकस प्राइमेट्स विद्यमान थे। इनके शरीर पर भरपूर बाल थे तथा ये गोरिल्ला एवं चिम्पैंजी जैसे चलते थे। इनमें ड्रायोपिथिकस वनमानुष जैसे और रामापिथिकस मनुष्यों जैसे थे। इथोपिया तथा तंजानिया में अनेक मानवी विशेषताओं को प्रदर्शित करते जीवाश्म प्राप्त हुए। इससे यह स्पष्ट होता है कि 3-4 मिलियन वर्ष पूर्व मानव जैसे वानर गण (प्राइमेट्स) पूर्वी अफ्रीका में विचरण करते थे। ये लगभग 4 फुट लम्बे थे और सीधे खड़े होकर चलते थे। लगभग 2 मिलियन वर्ष पूर्व ऑस्ट्रेलोपिथेसिन अर्थात् आदि मानव सम्भवतः पूर्वी अफ्रीका के घास स्थलों में विचरण करता था। होमो हैबिलिस को प्रथम मानव जैसे प्राणी के रूप में जाना जाता है। होमो इरेक्टस के जीवाश्म लगभग 1.5 मिलियन वर्ष पूर्व के हैं। इसके अंतर्गत जावा मानव, पेकिंग मानव, एटलांटिक मानव आते हैं। प्लीस्टोसीन युग के अंतिम काल में होमो सेपियन्स (वास्तविक मानव) ने होमो इरेक्टस का स्थान ले लिया। इसके अंतर्गत मुख्य रूप से निएण्डरथल मानव, क्रोमैगनॉन मानव एवं वर्तमान मानव आते हैं।

मानव विकास के विभिन्न घटक: विकास के अंतर्गत उपार्जित निम्नलिखित विशिष्ट घटकों (लक्षणों) के कारण मानव का विकास हुआ।
1. द्विपाद चलन: मानव पिछली टाँगों की सहायता से चलता है। अग्रपाद (भुजाएँ) अन्य कार्यों के उपयोग में आती हैं। पश्चपाद लम्बे और मजबूत होते हैं।
2. सीधी मुद्रा: इसके लिए निम्नलिखित परिवर्तन हुए हैं:
टाँगें लम्बी होती हैं। धड़ छोटा और वक्ष चौड़ा होता है।
कशेरुक दण्ड में लम्बर कशेरुकाओं की संख्या 4-5 होती है। त्रिक कशेरुकाएँ समेकित होती हैं।
कशेरुक दण्ड में कटि आधान होता है।
श्रोणि मेखला चिलमचीनुमा होती है।
खोपड़ी कशेरुक दण्ड पर सीधी-सधी होती है महारन्ध्र नीचे की ओर होता है।
3. चेहरा: मानव का चेहरा उभर कर सीधा रहता है। इसे ऑर्थोग्नेथस कहते हैं। मानव में भौंह के उभार हल्के होते हैं।
4. दाँत: सर्वाहारी होने के कारण अविशिष्टीकृत होते हैं। इनकी संख्या 32 होती है। मानव पहले शाकाहारी था, बाद में सर्वाहारी हो गया।
5. वस्तुओं को पकड़ने की क्षमता: मानव के हाथ वस्तुओं को पकड़ने के लिए रूपांतरित हो गए हैं। अँगूठा: सम्मुख हो जाने के कारण वस्तुओं को पकड़ने व उठाने की क्षमता का विकास हुआ।
6. मस्तिष्क व कपाल क्षमता:– प्रमस्तिष्क तथा अनुमस्तिष्क सुविकसित होता है। कपाल क्षमता लगभग 1450 cc होती है। शरीर के भार वे मस्तिष्क के भार का अनुपात सबसे अधिक होता है। मस्तिष्क के विकास होने के कारण मानव का बौद्धिक विकास चरम सीमा पर पहुँच गया है। इसमें अक्षरबद्ध वाणी, भावनाओं की अभिव्यक्ति, चिन्तन, नियोजन एवं तर्क संगतता की पूर्ण क्षमता होती है।
7. द्विनेत्री दृष्टि: द्विपादगमन के फलस्वरूप इसमें द्विनेत्री तथा त्रिविमदर्शी दृष्टि पायी जाती है।
8. जनन क्षमता में कमी, शरीर पर बालों की कमी, घ्राण शक्ति में कमी, श्रवण शक्ति में कमी आदि अन्य विकासीय लक्षण हैं।

इंटरनेट (अंतरजाल तंत्र) या लोकप्रिय विज्ञान लेखों से पता करें कि क्या मानवेत्तर किसी प्राणी में आत्म संचेतना थी।

प्रकृति उपयुक्तता को चुनती है। तथाकथित उपयुक्तता प्राणी की विशिष्टताओं पर आधारित होती है जो वंशानुगत होती है। अत: चयनित होने तथा विकास हेतु निश्चित ही एक आनुवंशिक आधार होना चाहिए। इसका तात्पर्य है कि वे जीवधारी (प्राणी) प्रतिकूल वातावरण में जीवित रहने से बेहतर अनुकूलित होते हैं। अनुकूलन क्षमता वंशानुगत होती है। अनुकूलन के लिए प्राणियों की आत्म संचेतना महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करती है। अनुकूलनशीलता एवं प्राकृतिक चयन को अन्तिम परिणाम उपयुक्तता है। जीववैज्ञानिकों के अनुसार अनेक प्राणियों में मानवेत्तर आत्म संचेतना पायी जाती है।

अनुकूलनी विकिरण को एक उदाहरण का वर्णन करें।

अनुकूलनी विकिरण
एक विशेष भू-भौगोलिक क्षेत्र में विभिन्न प्रजातियों के विकास का प्रक्रम एक बिंदु से प्रारम्भ होकर अन्य भू-भौगोलिक क्षेत्रों तक प्रसारित होने को अनुकूलनी विकिरण कहते हैं। जैसे-ऑस्ट्रेलियाई मार्क्सपियल (शिशुधानी प्राणी) विकिरण।
अधिकांश मार्क्सपियल एकसमान पूर्वज से विकसित हुए। सभी मार्क्सपियल ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में विकसित हुए हैं। जब एक से अधिक अनुकूली विकिरण एक अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्र में (विभिन्न आवासों में) प्रकट होते हैं तो इसे अभिसारी विकास कहते हैं।

क्या हम मानव विकास को अनुकूलनी विकिरण कह सकते हैं?
नहीं, मानव विकास को अनुकूलनी विकिरण नहीं कह सकते क्योंकि होमो सेपियन्स की जनक जातियाँ प्रगामी विकास द्वारा एच हेबिलस, एच इरेक्टस (वंशज) से विकसित हुईं।

इंटरनेट (अंतरजाल तंत्र) संसाधनों का उपयोग करते हुए आज के 10 जानवरों और उनके विलुप्त जोड़ीदारों की सूची बनाएँ (दोनों के नाम दें)।
आधुनिक एवं विलुप्त जोड़ीदार प्राणी:
क्र० स० आधुनिक प्राणी जोड़ीदार विलुप्त प्राणी
1. मेंढक सदृशय आधुनिक उभयचर सीलोकैंथ
2. आधुनिक सरीसृप सेमोरिया
3. आधुनिक पक्षी आर्किओप्टेरिक्स
4. होमो सैपिएंस क्रोमैगनोन मानव
5. घोड़ा इओहिप्पस
6. कंगारू प्रोटोथीरिया स्तनी
7. उड़न गिलहरी उड़न फैलेंजेर
8. शिशुधानी चूहा चूहा
9. चींटीखोर नम्बैट
10. लीमर धब्बेदार कस्कस

विभिन्न संसाधनों जैसे-विद्यालय का पुस्तकालय या इंटरनेट (अंतरजाल तंत्र) तथा अध्यापक से चर्चा के बाद किसी जानवर जैसे कि घोड़े के विकासीय चरणों को खोजें।

घोड़े का उद्भव लगभग 60 करोड़ वर्ष पहले, पूर्वी उत्तरी अमेरिका में इओसीन युग में हुआ था। इसके विकास की विभिन्न अवस्थाएँ निम्नलिखित हैं:
इओहिप्पस: इसका उद्भव इओसीन युग में हुआ था। इस युग का घोड़ा, लोमड़ी जैसा व 30 सेमी ऊँचा था। इसका सिर व गर्दन अत्यन्त छोटे थे। यह पत्तियाँ, घास आदि खाता था। इसका अग्रपाद चार क्रियात्मक अंगुली युक्त था किंतु पश्चपाद में सिर्फ तीन अंगुलियाँ थीं।

मीसोहिप्पस: यह ओलिगोसीन युग का घोड़ा था। इसका आकार भेड़ जैसा था व इसके अग्र तथा पश्चपाद तीन-तीन अंगुली युक्त थे। मध्य वाली अंगुली अपेक्षाकृत ज्यादा बड़ी थी जो संभवत: शरीर का बोझ वहन करती थी।
मेरीचिप्पस: यह मायोसिन युग का घोड़ा था। यह वर्तमान के टट्टू जितना ऊँचा था व दोनों टाँगें तीन-तीन अंगुलियाँ युक्त थीं। इनकी सिर्फ मध्य वाली अंगुली ही पृथ्वी तक पहुँच पाती थी व यह तेज दौड़ सकता था।
प्लायोहिप्पस: यह प्लायोसिन युग का घोड़ा था। यह एक अंगुली वाला घोड़ा था।
इक्वस: यह प्लास्टोसिन युग का घोड़ा है। इसकी ऊँचाई 1.50 मीटर थी।

कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 6 विकास
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 6
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 6 के प्रश्न उत्तर
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