एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 5 वंशागति के आणविक आधार
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 5 वंशागति के आणविक आधार के प्रश्न उत्तर अभ्यास के सवाल जवाब तथा अतिरिक्त प्रश्नों के उत्तर सत्र 2024-25 के लिए विद्यार्थी यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। 12वीं कक्षा में जीव विज्ञान के पाठ 5 के प्रश्नों के हल चरण-दर-चरण समझाकर दिए गए हैं ताकि छात्रों को कोई असुविधा न हो।
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 5 के लिए एनसीईआरटी समाधान
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 5 वंशागति के आणविक आधार के प्रश्न उत्तर
स्थानान्तरण के दौरान राइबोसोम की दो मुख्य भूमिकाओं की सूची बनाइए।
स्थानान्तरण: इस प्रक्रिया में ऐमीनो अम्लों के बहुलकन से पॉलिपेप्टाइड का निर्माण होता है। ऐमीनो अम्लों के क्रम व अनुक्रम सन्देशवाहक आरएनए में पाए जाने वाले क्षारों के अनुक्रम पर निर्भर करते हैं। ऐमीनो अम्ल पेप्टाइड बंध द्वारा जुड़े रहते हैं। स्थानान्तरण प्रक्रिया पूर्ण होने पर पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला राइबोसोम से पृथक् हो जाती है।
स्थानान्तरण में राइबोसोम की भूमिका
राइबोसोम का छोटा सबयूनिट एमआरएनए के प्रथम कोडॉन (AUG) के साथ बंधित होकर समारंभ कॉम्प्लैक्स ऐमीनो अम्ल टीआरएनए बनाता है जिसकी पहचान प्रारम्भक टीआरएनए द्वारा की जाती है। ऐमीनो अम्ल टीआरएनए से जुड़कर एक जटिल रचना बनाते हैं जो आगे चलकर टीआरएनए के प्रति प्रकूट से पूरक क्षार युग्म बनाकर एमआरएनए के उचित आनुवंशिक कोडॉन से जुड़ जाती है।
राइबोसोम के बड़े सबयूनिट पर टीआरएनए अणुओं के जुड़ने के लिए दो खाँच होती हैं, इन्हें P-site या दाता स्थल और A-site या ग्राही स्थल कहते हैं। P-site (दाता-स्थल) पर पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला को धारण करने वाला टीआरएनए जुड़ता है। A-site (ग्राही स्थल) पर ऐमीनो अम्ल टीआरएनए जुड़ता है। बड़े सबयूनिट के पेप्टाइड सिन्थेटेज एन्जाइम पॉलिपेप्टाइड श्रृंखला के ऐमीनो अम्ल के -COOH तथा ऐमीनो अम्ल टीआरएनए के ऐमीनो अम्ल के – NH, के मध्य पेप्टाइड बंध बनाता है।
यदि एक द्विरज्जुक डीएनए में 20 प्रतिशत साइटोसीन है तो डीएनए में मिलने वाले एडेनीन के प्रतिशत की गणना कीजिए।
चारग्राफ के नियमानुसार द्विरज्जुक डीएनए में →A + G = T + C = 1 होता है। अर्थात
एडेनीन = थाइमीन,
ग्वानिन = साइटोसीन
चूँकि साइटोसीन की दी गई मात्रा 20% है तो ग्वानिन भी 20% होगा।
ग्वानिन + साइटोसीन = 20 + 20 = 40%
A + G = 100 – 40%
A + G = 60%
चूँकि A = G होता है; अत: एडेनीन की मात्रा = 60/2 = 30% होगी।
मानव जीनोम परियोजना को महापरियोजना क्यों कहा गया।
मानव जीनोम परियोजना एक अत्यंत व्यापक स्तर की योजना है जिसके अंतर्गत मनुष्य के जीनोम में उपस्थित समस्त जीनों की पहचान की जाती है। मानव जीनोम में 3 x 109 क्षार युग्म हैं तथा प्रति क्षार पहचानने के लिए तीन अमेरिकी डॉलर का खर्च आता है। इस प्रकार संपूर्ण योजना पर लगभग 9 मिलियन डॉलर का खर्च आएगा। ज्ञात अनुक्रमों का संग्रह करने के लिए 1000 पृष्ठों की लगभग 3300 पुस्तकों की आवश्यकता होगी, यदि प्रत्येक पृष्ठ पर 10000 शब्द लिखे जायें। इस योजना को पूरी होने में 13 वर्ष का समय अनुमानित किया गया है।
अनेक देशों के हजारों वैज्ञानिक एक साथ इस पर कार्य करते हैं तो इसकी प्रथम प्रक्रिया पूर्ण होने में 10 वर्ष का समय लगता है। इतने स्तर के आँकड़ों के संग्रह, समापन व विश्लेषण के लिए उच्च कोटि के सांख्यिकीय साधनों की आवश्यकता होगी। अतः अपने इस वृहद् स्तर के कारण यह योजना, महापरियोजना कहलाती है।
डीएनए आनुवंशिक पदार्थ है, इसे सिद्ध करने हेतु अपने प्रयोग के दौरान हर्षे व चेज ने डीएनए व प्रोटीन के बीच कैसे अंतर स्थापित किया?
हर्षे व चेज ने डीएनए को आनुवंशिक पदार्थ सिद्ध करने हेतु P32 व P32 आइसोटॉप्स युक्त माध्यम, में ई० कोलाई जीवाणु का संवर्द्धन कराया। कुछ समय वृद्धि करने के पश्चात् जीवाणु को जीवाणुभोजी द्वारा संक्रमित कराया गया। संक्रमण के पश्चात् देखा गया कि जीवाणुभोजी का प्रोटीन आवरण S35 रेडियोधर्मी युक्त हो गया था जबकि इसके डीएनए में सल्फर नहीं होता। इसके विपरीत जीवाणुभोजी का डीएनए P32 रेडियोधर्मी आइसोटॉप्स की उपस्थिति दिखा रहा था, क्योंकि डीएनए में फॉस्फोरस होता है। प्रोटीन आवरण में P32 अनुपस्थित था। P32 रेडियोधर्मी युक्त जीवाणुभोजी द्वारा ऐसे जीवाणु को संक्रमित कराया गया जिसमें रेडियोधर्मी तत्त्व नहीं थे। संक्रमण के पश्चात् देखा गया कि समस्त जीवाणु रेडियोधर्मी हो गये थे। अधिकांश रेडियोधर्मी आइसोटॉप्स जीवाणुभोजी की अगली पीढ़ी में भी स्थानांतरित हो गये थे।
रेडियोधर्मी तत्त्व रहित जीवाणुओं में S32 युक्त जीवाणुभोजी द्वारा संक्रमण कराने पर तथा जीवाणुभोजी पृथक् करने पर देखा गया कि जीवाणुओं में रेडियोधर्मी तत्त्व मौजूद नहीं थे बल्कि ये जीवाणुभोजी के प्रोटीन आवरण में ही रह गये थे। उपरोक्त प्रयोग सिद्ध करता है कि जीवाणुभोजी का डीएनए ही वह पदार्थ है जो नये जीवाणुभोजी उत्पन्न करता है व संक्रमण में भाग लेता है। यह सिद्ध हो गया कि डीएनए आनुवंशिक पदार्थ है, प्रोटीन नहीं। इसके अतिरिक्त डीएनए फॉस्फोरस युक्त होता है जबकि प्रोटीन में फॉस्फोरस नहीं होता है। डीएनए सल्फर रहित होता है, जबकि प्रोटीन, सल्फर युक्त होता है।
डी एन ए अंगुलिछापी क्या है। इसके उपयोगिता पर प्रकाश डालिए।
डी एन ए अंगुलिछापी: डी एन ए अंगुलिछापी तकनीक को सर्वप्रथम एलेक जेफ्रे ने इंग्लैण्ड में विकसित किया था। इसकी सहायता से विभिन्न व्यक्तियों अथवा जीवधारियों के मूल आनुवंशिक पदार्थ (डी एन ए) में भिन्नताओं को देखा जा सकता है। जैसा कि ज्ञात है कि जीवधारी की प्रजाति के सभी सदस्यों के डीएनए प्रारूप भिन्न होते हैं। यही कारण है कि समरूपी जुड़वाँ को छोड़कर किसी भी व्यक्ति का फिंगर प्रिन्ट एक-दूसरे से मेल नहीं करता। प्रत्येक जीवधारी की सभी कोशिकाओं में एक जैसा डीएनए पाया जाता है। डीएनए के कारण एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से भिन्न होता है। डीएनए के फिंगर प्रिन्टिग द्वारा डीएनए में स्थित उन क्षेत्रों की पहचान की जाती है जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में किसी भी मात्रा में भिन्नता दर्शाते हैं।
डीएनए के इन्हीं क्षेत्रों के कारण शरीर में विभिन्नताएँ उत्पन्न होती हैं। इन विभिन्नता दर्शाने वाले सैटेलाइट डीएनए को प्रोब (परीक्षण करने वाली सलाई) की भाँति प्रयोग करते हैं। इसमें काफी बहुरूपता होती है। एक्स-रे फिल्म पर पट्टिकाओं के क्रम के रूप में प्राप्त करके उनकी स्थिति, विशिष्टता और पहचान कर सकते हैं। किसी एक व्यक्ति के डीएनए के क्रम पट्टियों के रूप में अनिवार्य रूप से विशिष्ट होते हैं। समरूप जुड़वाँ के डीएनए पूर्णरूपेण समरूप हो सकते हैं।
इन पट्टियों का परिचित्र इलेक्ट्रोफोरेसिस तथा एक रेडियोऐक्टिव पदार्थ की सहायता से प्राप्त किया जाता है। विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में क्षारों की मात्रा विलोमानुपाती ढंग से दूरियाँ तय करती है जो कि बैण्ड्स या पट्टिकाओं के रूप में दृष्टिगोचर होती है।
डीएनए अंगुलिछापी विभिन्न ऊतकों (खून, बाल पुटक, त्वचा, अस्थि, लार, शुक्राणु आदि) से प्राप्त किए जा सकते हैं। डीएनए अंगुलिछापी का उपयोग अपराध मामलों जैसे- खूनी, बलात्कारी को पहचानने के लिए, पितृत्व के झगड़ों में पारिवारिक संबंधो को ज्ञात करने आदि में किया जाता है।
डीएनए द्विकुंडली की कौन-सी विशेषता वाटसन व क्रिक को डीएनए प्रतिकृति के सेमी -कंजर्वेटिव रूप को कल्पित करने में सहयोग किया; इसकी व्याख्या कीजिए।
वाटसन व क्रिक ने डीएनए का द्विकुंडली मॉडल दिया था। इस मॉडल की मुख्य विशेषता पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाओं के बीच युग्मन का होना था। पॉलीन्यूक्लिओटाइड श्रृंखलाओं में क्षार युग्मन ही एक ऐसी विशेषता थी जिसने वाटसन व क्रिक को डीएनए प्रतिकृति के सेमी-कंजर्वेटिव रूप को कल्पित करने में सहयोग किया था। क्षार-युग्मन के इसी गुण के आधार पर श्रृंखलाएँ एक-दूसरे की पूरक बनती हैं अर्थात् एक डीएनए रज्जुक में क्षार अनुक्रम पता होने पर दूसरे रज्जुक के क्षार युग्मन को ज्ञात किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त डीएनए का प्रत्येक रज्जुक, नये डीएनए रज्जुक के संश्लेषण हेतु साँचे का कार्य करता है। इस साँचे से बना द्विकुंडलित डीएनए अपने जनक डीएनए के समरूप होता है। डीएनए प्रतिकृतिकरण की सेमी-कंजर्वेटिव पद्धति में डीएनए के दोनों रज्जुक पृथक् होकर नये रज्जुक के संश्लेषण हेतु साँचे के समान कार्य करते हैं। डीएनए प्रतिकृति में एक जनक रज्जुक व एक नया रज्जुक होता है।
निम्न का संक्षिप्त वर्णन कीजिए: (क) अनुलेखन (ख) बहुरूपता (ग) स्थानांतरण (घ) जैव सूचना विज्ञान
(क) अनुलेखन: डीएनए के रज्जुक में कूट के रूप में निहित आनुवंशिक सूचनाओं का एमआरएनए में प्रतिलिपिकरण, अनुलेखन कहलाता है। इस प्रक्रिया के लिए आरएनए पालीमरेज़ नामक एंजाइम सहायक होता है। सर्वप्रथम डीएनए के न्यूक्लिओटाइड्स बनते हैं। तत्पश्चात् डीएनए रज्जुक अलग होकर साँचे के समान कार्य करने लगते हैं जिसके अनुसार नयी श्रृंखला में क्षारक क्रम व्यवस्थित होते हैं व H-बंधों द्वारा आपस में जुड़ जाते हैं।
(ख) बहुरूपता: जीन जनसंख्या में आनुवंशिक उत्परिवर्तनों का, उच्च आवृत्ति में होना, बहुरूपता कहलाता है। ऐसे उत्परिवर्तन डीएनए अनुक्रमों के परिवर्तित होने के कारण उत्पन्न होते हैं तथा पीढ़ी-दर-पीढ़ी वंशागत होकर एकत्रित होते हैं तथा बहुरूपता का कारण बनते हैं। बहुरूपता अनेक प्रकार की होती है तथा इसमें एक ही न्यूक्लिओटाइड में अथवा वृहद स्तर पर परिवर्तन होते हैं।
(ग) स्थानांतरण: एमआरएनए न्यूक्लिओटाइड की श्रृंखलाओं का अमीनो अम्ल की | पॉलीपेप्टाइड श्रृंखलाओं में परिवर्तित होना, स्थानान्तरण कहलाता है। यह प्रक्रिया राइबोसोम पर प्रोटीन संश्लेषण के दौरान होती है। इसमें सर्वप्रथम एंजाइम व ATP द्वारा अमीनो अम्ल का सक्रियकरण होता है। सक्रिय अमीनो अम्ल टीआरएनए पर स्थानांतरित होते हैं वे संश्लेषण प्रारंभ हो जाता है। तत्पश्चात् पॉलीपेप्टाइड अनुक्रम निर्धारित होते हैं। टीआरएनए अणुओं के मध्य उपस्थित पेप्टाइड स्थल द्वारा पेप्टाइड बंध निर्मित होते हैं।
(घ) जैव सूचना विज्ञान: जीव विज्ञान का वह क्षेत्र जिसके अंतर्गत जीवों के जीनोम संबंधी आँकड़ों का संग्रह, विश्लेषण किया जाता है, जैव सूचना विज्ञान कहलाता है। इसमें मानव जीनोम के मानचित्र बनाये जाते हैं व डीएनए के अनुक्रमों को पंक्तिबद्ध किया जाता है। इसका उपयोग कृषि सुधार, ऊर्जा उत्पादन, पर्यावरण सुधार, स्वास्थ्य सुरक्षा आदि में किया जाता है।