एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 इतिहास अध्याय 8 संस्कृतियों का टकराव
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 इतिहास अध्याय 8 संस्कृतियों का टकराव पाठ्यपुस्तक विश्व इतिहास के कुछ विषय के सवाल जवाब सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 11 इतिहास पाठ 8 अभ्यास के प्रश्न उत्तर हिंदी मीडियम में यहाँ से प्राप्त करें ताकि वे लगभग 1300 से 1700 ईसवी तक के इतिहास को समझ सकें।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 11 इतिहास अध्याय 8
कक्षा 11 इतिहास अध्याय 8 संस्कृतियों का टकराव के प्रश्न उत्तर
एज़टेक और मेसोपोटामियाई लोगों की सभ्यता की तुलना कीजिए।
एज़टेक और मेसोपोटामियाई लोगों की सभ्यता की तुलना:
- एज़टेक सभ्यता का विकास बारहवीं और पंद्रहवीं शताब्दी के बीच हुआ। अतः यह सभ्यता ऐतिहासिक युग में विकसित होने वाली सभ्यता थी। मेसोपोटामिया सभ्यता का विकास कांस्यकाल में हुआ। अतः यह कांस्यकालीन सभ्यता थी।
- एज़टेक सभ्यता के लोगों को कृषि का ज्ञान तो था किंतु पशुपालन का ज्ञान नहीं था। मेसोपोटामिया के लोग कृषि तथा पशुपालन दोनों करते थे।
- एज़टेक सभ्यता में चित्रात्मक लिपि का प्रचलन था। अतः उनका इतिहास भी चित्रात्मक तरीके से ही लिखा जाता था। दूसरी ओर मेसोपोटामिया सभ्यता की लिपि को क्यूनिफ़ॉर्म अर्थात् कलाकार लिपि के नाम से जाना जाता था। लातिनि शब्दों में, ‘क्यूनियस’ तथा ‘फ़ोर्मा’ को मिलाकर ‘क्यूनिफ़ार्म’ शब्द बना है। क्यूनियस का अर्थ है- ‘आकार’ इस प्रकार से इस आशुलिपि का विकास चित्रों से हुआ। इस सभ्यता में लिपिक के कार्य को महत्त्वपूर्ण तथा सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था। एक सुसंगठित लेखन कला के कारण मेसोपोटामिया में उच्चकोटि के साहित्य का विकास संभव हुआ।
- एज़टेक सभ्यता मध्य अमेरिकी सभ्यता थी क्योंकि इसका विकास मध्य अमेरिका में ही हुआ था। जबकि मेसोपोटामियाई सभ्यता का विकास वर्तमान इराक गणराज्य के भू-भाग पर हुआ था।
- एज़टेक सभ्यता तथा मेसोपोटामिया की सभ्यता में शिक्षा को विशेष महत्त्व दिया जाता था। अतः अधिक-से-अधिक बच्चों को विद्यालय भेजने की कोशिश की जाती थी। एज़टेक सभ्यता में अभिजात वर्ग के बच्चों को जिस स्कूल में भेजा जाता था उसे ‘कालमेकाक’ कहा जाता था। इन स्कूलों में विशेष रूप से धर्माधिकार या सैन्य-अधिकारी बनने का प्रशिक्षण दिया जाता था। शेष बच्चें जिन स्कूलों में पढ़ते थे, उन्हें ‘तोपोकल्ली’ कहा जाता था। मेसोपोटामिया सभ्यता में बच्चों का शिक्षण देने का मुख्य उद्देश्य मंदिरों, व्यापारियों तथा राज्य को क्लर्क उपलब्ध करना था।
- एज़टेक निवासी कृत्रिम टापू बनाने में निपुण थे। उन्होंने सरकंडे की विशाल चटाइयाँ बुनने के बाद उन्हें मिट्टी, पत्तों आदि से ढँककर मैक्सिको झील में कृत्रिम टापुओं का निर्माण किया। ऐसे टापुओं को ‘चिनाम्पा’ के नाम से जाना जाता था। इन्हीं उपजाऊ द्वीपों के मधय नहरें बनाई गई। उन पर टेनोक्टिटलान शहर बसाया गया। इस प्रकार के शहरों का उदाहरण मेसोपोटामिया सभ्यता में नहीं मिलता। वस्तुतः मेसोपोटामिया नहरों का विकास मंदिरों के निकट हुआ था।
- एज़टेक सभ्यता वालों के पंचांग के अनुसार एक वर्ष में 260 दिन होते थे। उनका पंचांग धार्मिक समारोहों से जुड़ा था। मेसोपोटामिया वाला ने चंद्रमा पर एक पंचांग का निर्माण किया। उसमें 30-30 दिनों के 12 महीने होते थे।
- एज़टेक सभ्यता के तहत श्रेणीबद्ध समाज की संरचना थी। अभिजात वर्ग की समाज में महत्वपूर्ण भूमिका थी। अभिजात वर्ग में पुरोहित, उच्च कुलों में उत्पन्न लोग, वे लोग भी सम्मिलित थे जिन्हें बाद में प्रतिष्ठा दी गई थी। प्रश्तैनी अभिजात संख्या की दृष्टि से बहुत कम थे, जो सरकार, सेना और धार्मिक में ऊँचे- ऊँचे पदों पर आसीन थे। ये अपने वर्ग में से किसी एक को नेता के रूप में चुनाव करते थे। चयनित व्यक्ति आजीवन शासक के पद पर बना रहता था। समाज में पुरोहितों, योद्धाओं तथा अभिजात वर्ग के लोगों को अत्यधिक सम्मान की नज़र से देखा जाता था। जबकि मेसोपोटामिया समाज भी श्रेणीबद्ध था। इसमें भी उच्च तथा संभ्रांत वर्ग के लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका थी।
ऐसे कौन-से कारण थे जिनसे 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौचालन को सहायता मिली?
पंद्रहवीं ‘शताब्दी में शुरू की गई यूरोपीय समुद्री यात्राओं ने एक महासागर को दूसरे महासागर से जोड़ने के लिए सुमद्री मार्ग खोल दिए। 1380 ई. में दिशासूचक यंत्र का निर्माण हो चुका था। इस दिशासूचक यंत्र के द्वारा यूरोपवासियों ने नए- नए क्षेत्रों की ठीक-ठीक जानकारी मिली। इसके अलावा यात्रा के साहित्य तथा विश्व वृत्तांत वे भूगोल पर लिखी पुस्तकों ने 15वीं शताब्दी में अमरीका महाक्षेप के बारे में यूरोपवासियों के दिलों में रूचि उत्पन्न कर दी। स्पेन तथा पुर्तगाल के शासक इन नए क्षेत्रों की खोजों के लिए धन देने को तैयार थे तथा ऐसा करने के लिए उनके धार्मिक, आर्थिक तथा राजनीतिक उद्देश्य भी थे। अतः 15वीं शताब्दी में यूरोपीय नौ-संचालन को सहायता देने वाले निम्न लिखित कारण थे:
- संसार के कुछ देशों के निवासी अपनी ख्याति तथा प्रसिद्धि दुनिया के लोगों के सामने रखना चाहते थे और ऐसा करने के लिए वे अनेक समुद्री यात्रओं पर निकल पड़े।
- यूरोप के ईसाई ज़्यादा-से- ज़्यादा लोगों को अपने धर्म के परिवर्तन के लिए दूर-दूर के देशों की यात्राएँ करने को तैयार थे। धर्मयुद्धों के कारण एशिया के साथ व्यापार में बढ़ोत्तरी हुई। ऐसा समझा जाता था कि व्यापार के समानांतर यूरोपीय लोगों का इन देशों में राजनीतिक नियंत्रण स्थापित हो जाएगा और वे इन गर्म जलवायु वाले क्षेत्रों में अपनी बस्तियाँ स्थापित कर लेंगे इस तरह बाहरी दुनिया के लोगों को ईसाई बनाने की संभावने ने भी यूरोप के धर्मपरायण ईसाइयों को यूरोपीय नौसंचालन कार्यों की ओर उन्मुख किया।
- यूरोप महाद्वीप के बहुत से लोग जैसे पुर्तगाल तथा स्पेन के निवासी तथा उनके शासक दूसरे देशों से सोना तथा चाँदी प्राप्त करके विश्व के सबसे अमीर लोग बनना चाहते थे। क्योंकि प्लेग तथा युद्धों के कारण जनसंख्या में अत्यधिक कमी आई तथा व्यापार में मंदी आ गई थी।
किन कारणों से स्पेन और पुर्तगाल ने पंद्रहवीं शताब्दी में सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस किया?
स्पेन तथा पुर्तगाल ने पंद्रहवीं शताब्दी में सबसे पहले अटलांटिक महासागर के पार जाने का साहस निम्नलिखित कारणों से किया:
- पंद्रहवीं शताब्दी के अंत तक स्पेन ने यूरोप की सर्वाधिक महान सामुद्रिक शक्ति होने का गौरव प्राप्त कर लिया था। अतः सोने-चाँदी के रूप में अपार धन-संपत्ति प्राप्त करने के औचित्य से उसमें बढ़-चढक़र अटलांटिक पारगमन यात्राओं में भाग लिया।
- स्पेन तथा पुर्तगाल की भौगोलिक स्थिति ने उन्हें अटलांटिक पारगमन की प्रेरणा दी। इन देशों का अटलांटिक महासागर पर स्थित होना उनके लिए अटलांटिक पारगमन का आरंभिक मुख्य कारण था।
- नाविक हेनरी के नाम से पुर्तगाली शासक प्रिंस हेनरी वस्तुतः प्रसिद्ध थे। उन्होंने नए-नए स्थानों की खोज के लिए नाविकों को जलमार्गों द्वारा प्रोत्साहित किया। उसने पश्चिमी अफ्रीकी देशों की यात्रा की और 1415 ई. में सिरश पर हमला किया। उसके बाद पुर्तगालियों ने अनेक अभियान आयोजित करके अफ्रीका के बोजाडोर अंतरीप में अपना व्यापार केंद्र स्थापित किया। इसके अलावा उन्होंने नाविकों के प्रशिक्षण के लिए एक प्रशिक्षण स्कूल की भी स्थापना की। इसके कारण 1487 ई. में पुर्तगाली नाविक कोविल्हम ने भारत के मालाबार तट पर पहुँचने में सफ़लता प्राप्त की।
- पुर्तगाल ने एक स्वतंत्र राज्य बनने के बाद मछुवाही एवं नौकायन के क्षेत्र में विशेष प्रवीणता प्राप्त कर ली। पुर्तगाली मछुआरे तथा नाविक अत्यधिक साहसी थे तथा उनकी सामुद्रिक यात्राओं में विशेष अभिरूचि भी थी।
- पोप के आशीर्वाद ने भी स्पेन तथा पुर्तगाल को अटलांटिक पारगमन यात्रओं की प्रेरणा दी। इसका कारण यह था कि इस दौरान जर्मनी तथा इंग्लैंड जैसे देश प्रोटेस्टेंट धर्म को अपनाकर पोप के विरोधी बन चुके थे। अतः पोप का आशीर्वाद स्पेन तथा पुर्तगाल के साथ था।
कौन सी नयी खाद्य वस्तुएँ दक्षिणी अमरीका से बाकी दुनिया में भेजी जाती थीं?
अमेरिका की खोज के फ़लस्वरूप हासिल होने वाले सोने-चाँदी के असीम भंडार ने औद्योगिकीकरण तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार को बहुत बढ़ावा दिया। फ्रांस, बेल्जियम, हॉलैंड तथा इंग्लैंड जैसे देशों में संयुक्त पूँजी कंपनियों की स्थापना की। साथ-साथ व्यापक स्तर पर संयुक्त व्यापारिक अभियानों का आयोजन किया। उपनिवेशवाद की स्थापना भी तथा दक्षिणी अमरीका में उत्पन्न होने वाली खाद्य वस्तुओं, जैसे- आलू, गन्ना, ककाओ तथा तम्बाकू आदि से यूरोपवासियों का ज्ञान कराया। विशेष रूप से यूरोपवासियों का परिचय आलू और लाल मिर्च से हुआ तथा सभी वस्तुएँ अमरीका दुनिया में भेजी जाने लगीं।
गुलाम के रूप में पकड़कर ब्राजील ले जाए गए सत्रहवर्षीय अफ्री़की लडके की यात्रा का वर्णन करें।
पेड्रो अल्वारिस कैब्राल एक दिलेर नाविक था। पेड्रो अल्वारिस कैब्राल एक दिलेर नाविक था। उसने 1500 ई. में एक विशाल जहाज़ी बेड़े के साथ भारत की ओर प्रस्थान किया। परंतु पश्चिमी अफ्रीका का एक बड़ा चक्कर लगाकर वह ब्राजील के समुद्र तट पर जा पहुँचा। पुर्तगालियों को ब्राजील से सोना मिलने की कोई उम्मीद नहीं थी, वे वहाँ की इमारती लकड़ी के द्वारा पर्याप्त धन कमा सकते थे। इसमें कोई शक नहीं कि ब्राजील की इमारती लकड़ी की यूरोप में अत्यधिक माँग थी। इसके व्यापार को लेकर पुर्तगाली तथा फ्रांसीसी व्यापारी बार-बार संघर्ष में उलझते रहते थे।
लेकिन अंत में विजय पुर्तगालियों को मिली। पुर्तगाल के राजा ने 1534 ई. में ब्राजील के तट को 14 अनुवांशिक कप्तानियों में विभाजित कर दिया तथा उनके स्वामित्व के अधिकार को वहाँ स्थायी रूप से रहने के इच्छुक पुर्तगालियों को सौंप दिया। इसके साथ ही उन्हें स्थानीय लोगों को गुलाम बनाने का अधिकार भी प्रदान कर दिया। इन गुलामों में एक सत्रवर्षीय लड़का भी सम्मिलित था। उसके हाथ बाँधकर उसे अन्य गुलामों के साथ पशुओं के समाज जहाज़ पर लाद दिया गया। उस सत्रवर्षीय गुलाम लड़के की भी बोली लगाई गई। यह सच है कि सभी लोग उस जवान लड़के को खरीदना चाहते थे। इसका कारण यह था कि वह स्वस्थ था तथा हट्टा-कट्टा था। अन्य की अपेक्षा अधिक कार्य कर सकता था।
अंत में सबसे ऊँची बोली लगाकर एक व्यक्ति ने उसे लादकर ब्राजील भेज दिया। ब्राजील में उस गुलाम लड़के को कठोर से कठोर कार्य में लगाया जाता था। कभी वृ़क्षों को काटने को, कभी उसे जहाज में लकड़ी लादने के काम में लगा दिया जात था तो कभी उससे खेती का कार्य करवाया जाता था। इसमें कोई संदेह नहीं कि उससे पशुओं जैसा जीवन व्यतीत करने के लिए विवश था। उसे न तो आत्मसम्मानपूर्वक जीने का अधिकार था तथा न ही आराम से जीवन व्यतीत करने का यहाँ तक कि वह अपने नारकीय जीवन से छुटकारा भी पाना चाहता था, लेकिन वह भागने में असमर्थ था। वह जानता था कि उसके एक साथी को भागने की कोशिश करने पर अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा था। वह बुद्धिमान था। केवल भाग्य उसके साथ नहीं था। अंत में उसने अपनी परिस्थितियों से समझौता कर लिया तथा आजीवन अपने स्वामी का एक सेवक बने रहने का निर्णय लिया।