एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत पाठ 6 सौहार्दं प्रकृते: शोभा
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 6 – षष्ठ: पाठ: सौहार्दं प्रकृते: शोभा शेमुषी भाग 2 के प्रश्न उत्तर और शब्द अर्थ शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 10 संस्कृत के समाधान और हिंदी अनुवाद सीबीएसई तथा राजकीय बोर्ड दोनों के लिए बहुत उपयोगी हैं। 10वीं कक्षा संस्कृत के पाठ 6 में हम पढ़ते हैं कि किस प्रकार हमें सभी प्राकृतिक तत्वों से तालमेल बनाकर चलना चाहिए और सबका आदर करना चाहिए।
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 6 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत षष्ठ: पाठ: सौहार्दं प्रकृते: शोभा
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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वनस्य दृश्यं समीपे एवैका नदी वहति। | (वन का दृश्य। पास में ही एक नदी बह रही है।) |
क्रुद्ध: सिंह: तं प्रहर्तुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा वृक्षमारूढ:। | क्रोधित शेर उस पर प्रहार करना चाहता है, परन्तु बन्दर कूदकर पेड़ पर चढ़ जाता है। |
तदैव अन्यस्मात् वृक्षात् अपर: वानर: सिंहस्य कर्णमाकृष्य पुन: वृक्षोपरि आरोहति। | तभी दूसरे पेड़ पर दूसरा बन्दर शेर के कान को खींचकर फिर पेड़ पर चढ़ जाता है। |
एवमेव वानरा: वारं वारं सिंहं तुदन्ति। | ऐसे बन्दर बार-बार शेर को तंग करते हैं। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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क्रुद्ध: सिंह: इतस्तत: धावति, गर्जति परं किमपि कर्तुमसमर्थ: एव तिष्ठति। | क्रोधित सिंह इधर-उधर दौड़ता है, गरजता है, परन्तु कुछ भी करने में असमर्थ (लाचार) ही रहता है। |
वानरा: हसन्ति वृक्षोपरि च विविधा: पक्षिण: अपि सिंहस्य एतादृशीं दशां दृष्ट्वा हर्षमिश्रितं कलरवं कुर्वन्ति। | बन्दर हँसते हैं और वृक्ष के ऊपर अनेक प्रकार के पक्षी भी शेर की ऐसी दशा देखकर खुशी से मिलीजुली चहचहाहट करते हैं। |
निद्राभङ्गदु:खेन वनराज: सन्नपि तुच्छजीवै: आत्मन: एतादृश्या दुरवस्थया श्रान्त: सर्वजन्तून् दृष्ट्वा पृच्छति- | नींद के टूट जाने के दुःख से जंगल का राजा होते हुए भी छोटे जीवों से अपनी ऐसी दशा से थका (शेर) सब जीवों को देखकर पूछता है- |
सिंह: – (क्रोधेन गर्जन्) भो:! अहं वनराज:, किं भयं न जायते? किमर्थं मामेवं तुदन्ति सर्वे मिलित्वा? | सिंह – (क्रोध से गरजता हुआ) अरे! मैं जंगल का राजा किसी से डरता नहीं। क्यों सभी मिलकर मुझे तंग करते हैं? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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एक: वानर: – यत: त्वं वनराज: भवितुं तु सर्वथाऽयोग्य:। | एक बन्दर – क्योंकि तुम जंगल के राजा होने के लिए पूरी तरह से अयोग्य हो। |
राजा तु रक्षक: भवति परं भवान् तु भक्षक:। | राजा तो रक्षक होता है, परन्तु आप तो भक्षक हैं |
अपि च स्वरक्षायामपि समर्थ: नासि, तर्हि कथमस्मान् रक्षिष्यसि? | और आप अपनी भी रक्षा करने में भी समर्थ नहीं हैं तो कैसे हमारी रक्षा करोगे? |
अन्य: वानर: – किं न श्रुता त्वया पञ्चतन्त्रोक्ति: – यो न रक्षति वित्रस्तान् पीड्यमाना परै: सदा। | अन्य (दूसरा) बन्दर – क्या तुमने पञ्चतन्त्र की यह उक्ति (कथन) नहीं सुनी? – जो राजा के रूप में (राजा होते हुए) विशेष रूप से डरे हुओं को तथा दूसरों के द्वारा पीड़ित जन्तुओं की रक्षा नहीं करता है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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जन्तून् पार्थिवरूपेण स कृतान्तो न संशय:॥ | वह साक्षात् यमराज होता है यहाँ कोई सन्देह नहीं। |
काक: – आम् सत्यं कथितं त्वया- वस्तुत: वनराज: भवितुं तु अहमेव योग्य:। | कौआ – हाँ, तुमने सच कहा वास्तव में वनराज (जंगल का राजा) होने के लिए तो मैं ही योग्य हूँ। |
पिक: – (उपहसन्) कथं त्वं योग्य: वनराज: भवितुं, यत्र तत्र का-का इति कर्कशध्वनिना वातावरणमाकुलीकरोषि। | कोयल – (उपहास/मज़ाक करती हुई) कैसे तुम जंगल के राजा (वनराज) हो सकने के योग्य हो, जहाँ-तहाँ काँव-काँव की कठोर आवाज़ से वातावरण को व्याकुल करते हो। |
न रूपम्, न ध्वनिरस्ति। | तुम्हारे पास न सुन्दरता है और ना ही सुन्दर आवाज़ है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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कृष्णवर्णम् मेध्यामेध्यभक्षकं त्वां कथं वनराजं मन्यामहे वयम्? | काले रंग वाले, खाने योग्य और न खाने योग्य वस्तुओं को खाने वाले तुमको हम कैसे वनराज मानें? |
काक: – अरे! अरे! किं जल्पसि? | कौआ – अरे! अरे! क्या बड़बड़ाती हो? |
यदि अहं कृष्णवर्ण: तर्हि त्वं किं गौराङ्ग:? | यदि मैं काले रंग वाला हूँ तो तुम क्या गोरे रंग की हो? |
अपि च विस्मर्यते किं यत् मम सत्यप्रियता तु जनानां कृते उदाहरणस्वरूपा- ‘अनृतं वदसि चेत् काक: दशेत्’- इति प्रकारेण। | और भूल भी जाती हो कि मेरी सत्यप्रियता (सत्य के प्रति प्रेम) तो लोगों के लिए उदाहरण के रूप में -‘यदि झूठ बोलोगे तो कौआ काटेगा’- इस प्रकरण में है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अस्माकं परिश्रम: ऐक्यं च विश्वप्रथितम्। | हमारा परिश्रम और एकता तो संसार में फैली भी है |
अपि च काकचेष्ट: विद्यार्थी एव आदर्शच्छात्र: मन्यते। | और कौए की चेष्टा वाला छात्र ही आदर्श छात्र माना जाता है। |
पिक: – अलम् अलम् अतिविकत्थनेन। | कोयल – अधिक आत्मप्रशंसा करने (डींगें मारने) से बस करो। |
किं विस्मर्यते यत्- काक: कृष्ण: पिक: कृष्ण: को भेद: पिककाकयो:। | क्या भूल जाते हो कि कौआ काला है, कोयल काली है। कौआ और कोयल में क्या भेद है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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वसन्तसमये प्राप्ते काक: काक: पिक: पिक:॥ | वसन्त समय आने पर कौआ-कौआ होता हैं और कोयल-कोयल होती है। |
काक: – रे परभृत्! अहं यदि तव संततिं न पालयामि तर्हि कुत्र स्यु: पिका:? | कौआ – अरे दूसरों पर पलने वाली! यदि मैं तेरी सन्तान को नहीं पालूँ तो कहाँ कोयल हों? |
अत: अहम् एव करुणापर: पक्षिसम्राट् काक:। | इसलिए मैं ही दयालु पक्षियों का राजा कौआ हूँ। |
गज: – समीपत: एवागच्छन् अरे अरे संवर् सम्भाषणंशण् वन्नवेाहम् अत्रागच्छम् । | हाथी – पास से ही आते हुए अरे! अरे! सारी बात को सुनता हुआ ही मैं यहाँ आया हूँ। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अहं विशालकाय:, बलशाली, पराक्रमी च। | मैं बहुत बड़े शरीर वाला, बलवान और वीर हूँ। |
सिंह: वा स्यात् अथवा अन्य: कोऽपि, वन्यपशून् तु तुदन्तं जन्तुमहं स्वशुण्डेन पोथयित्वा मारयिष्यामि। | शेर हो अथवा दूसरा कोई भी। वन के पशुओं को तंग (परेशान) करते हुए जीव को मैं अपनी सूँड से पटक-पटककर मार डालूँगा। |
किमन्य: कोऽप्यस्ति एतादृश: पराक्रमी। | क्या कोई दूसरा ऐसा वीर है। |
अत: अहमेव योग्य: वनराजपदाय। | इसलिए मैं ही वनराज (जंगल के राजा) के पद के लिए योग्य हूँ। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद हिन्दी अनुवाद |
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वानर: – अरे! अरे! एवं वा (शीघ्रमेव गजस्यापि पुच्छं विधूय वृक्षोपरि आरोहति।) | बन्दर – अरे! अरे! अथवा ऐसे (जल्दी से ही हाथी के भी पूँछ को मरोड़कर पेड़ के ऊपर चढ़ जाता है।) |
(गज: तं वृक्षमेव स्वशुण्डेन आलोडयितुमिच्छति परं वानरस्तु कूर्दित्वा अन्यं वृक्षमारोहति। | हाथी उस पेड़ को ही अपनी सूँड से हिलाना चाहता है परन्तु बन्दर कूदकर दूसरे वृक्ष पर चढ़ जाता है। |
एवं गजं वृक्षात् वृक्षं प्रति धावन्तं दृष्ट्वा सिंह: अपि हसति वदति च।) | इस प्रकार हाथी को एक वृक्ष से दूसरे वृक्ष की ओर दौड़ते हुए देखकर शेर भी हँसता है और कहता है।) |
सिंह: – भो: गज! मामप्येवमेवातुदन् एते वानरा:। | सिंह – हे हाथी! मुझको भी इन बन्दरों ने ऐसे ही तंग किया था। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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वानर: – एतस्मादेव तु कथयामि यदहमेव योग्य: वनराजपदाय येन विशालकायं पराक्रमिणं, भयंकरं चापि सिहं गजं वा पराजेतुं समर्था अस्माकं जाति:। | बन्दर – इसीलिए तो कहता हूँ कि मैं ही वनराज (जंगल के राजा) के पद हेतु योग्य हूँ, जिससे हमारी जाति बड़े शरीर वाले, वीर और भयानक शेर अथवा हाथी को भी पराजित (हराने) करने में समर्थ है। |
अत: वन्यजन्तूनां रक्षायै वयमेव क्षमा:। | अत: जंगल के जीवों की रक्षा के लिए हम ही योग्य (समर्थ) हैं। |
(एतत्सवर्ं श्रुत्वा नदीमध्यस्थित: एक: बक:) | (यह सब सुनकर नदी के बीच से बगुला) |
बक: – अरे! अरे! मां विहाय कथमन्य: कोऽपि राजा भवितुमर्हति। | बगुला – अरे! अरे! मुझको छोड़कर कैसे दूसरा कोई भी राजा हो सकता है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अहं तु शीतले जले बहुकालपर्यन्तम् अविचल: ध्यानमग्न: स्थितप्रज्ञ इव स्थित्वा सर्वेषां रक्षाया: उपायान् चिन्तयिष्यामि, योजनां निर्मीय च स्वसभायां विविधपदमलंकुर्वाणै: जन्तुभिश्च मिलित्वा रक्षोपायान् क्रियान्वितान् कारयिष्यामि, | मैं तो ठंडे जल में बहुत समय तक स्थिर, ध्यान में मग्न योगी की तरह ठहरकर (स्थिति होकर) सबकी रक्षा के उपायों को सोचूँगा और योजना बनाकर अपनी सभा में अनेक पदों को सुशोभित करने वाले जीवों से मिलकर रक्षा के उपायों को कार्यान्वित (साकार रूप में) कराऊँगा। |
अत: अहमेव वनराजपदप्राप्तये योग्य:। | इसलिए मैं ही जंगल के राजा के पद की प्राप्ति के लिए योग्य हूँ। |
मयूर: – (वृक्षोपरित:-अट्टहासपूर्वकम्) विरम विरम आत्मश्लाघाया: किं न जानासि यत्- यदि न स्यान्नरपति: सम्यङ्नेता । | मोर – (वृक्ष के ऊपर से-अट्टहासपूर्वक) अपनी प्रशंसा करने से रुको रुको, नहीं जानते हो कि – जो नेता अच्छा राजा नहीं होते |
तत: प्रजा अकर्णधारा जलधौ विप्लवेतेह नौरिव॥ | (उसकी) प्रजा कान तक के जल वाले समुद्र में डूबने वाली नौका की तरह इस संसार में डूब जाती है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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मोर- को न जानाति तव ध्यानावस्थाम्। | मोर – तुम्हारी ध्यान की अवस्था (स्थिति) वो कौन नहीं जानता है। |
‘स्थितप्रज्ञ’ इति व्याजेन वराकान् मीनान् छलेन अधिगृह्य क्रूरतया भक्षयसि। | योगी के बहाने से बेचारी मछलियों को छलपूर्वक पकड़कर निर्दयता से खा जाते हो। |
धिक् त्वाम्। तव कारणात् तु सवर्ं पक्षिकुलमवेावमानितं जातम। | तुम्हें धिक्कार है। तुम्हारे कारण से तो सारा पक्षिकुल (पक्षियों का संसार) ही अपमानित हो गया है। |
वानर: – (सगर्वम्) अत एव कथयामि यत् अहमेव योग्य: वनराजपदाय। | बन्दर – (गर्व के साथ) इसलिए कहता हूँ कि मैं ही वनराज (वन के राजा के) पद के लिए योग्य हूँ। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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शीघ्रमेव मम राज्याभिषेकाय तत्परा: भवन्तु सर्वे वन्यजीवा:। | सभी वन के जीव शीघ्र ही मेरे राज्याभिषेक के लिए तैयार हों। |
मयूर: – अरे वानर! तूष्णीं भव। कथं त्वं योग्य: वनराजपदाय? | मोर- अरे बन्दर! चुप हो जा। तू जंगल के राजा के पद के लिए कैसे योग्य है? |
पश्यतु पश्यतु मम शिरसि राजमुकुटमिव शिखां स्थापयता विधात्रा एवाहं पक्षिराज: कृत:, | देखो-देखो मेरे सिर पर राजमुकुट की तरह चोटी को स्थापित करने वाले परमात्मा ने ही मुझे पक्षीराज बनाया है |
अत: वने निवसन्तं मां वनराजरूपेणापि द्रष्टुं सज्जा: भवन्तु अधुना। | इसलिए वन में निवास करने वाले (निवास करते हुए) मुझको जंगल के राजा के रूप में भी देखने के लिए (आप सब) तैयार हों। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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यत: कथं काऽप्यन्य: विधातु: निणर्यम् अन्यथाकर्तुं क्षम:। | इस समय क्योंकि कैसे कोई भी दूसरा परमात्मा की व्यवस्था (निर्णय) को व्यर्थ करने में समर्थ है। |
काक: – (सव्यङ्ग्यम्) अरे अहिभुक्। नृत्यातिरिक्तं का तव विशेषता यत् त्वां वनराजपदाय योग्यं मन्यामहे वयम्। | कौआ – (व्यंग्य के साथ) अरे साँप खाने वाले! नाचने के अलावा तुम्हारी क्या विशेषता है कि तुमको वनराज के पद के लिए हम योग्य मान लें। |
मयूर: – यत: मम नृत्यं तु प्रकृते: आराधना। | मोर – क्योंकि मेरा नृत्य (नाच) तो प्रकृति की पूजा है। |
पश्य! पश्य! मम पिच्छानामपूर्वं सौंदर्यम् (पिच्छानुद्घाट्य नृत्यमुद्रायां स्थित: सन्) न कोऽपि त्रैलोक्ये मत्सदृश: सुन्दर:। | देखो! देखो! मेरे पंखों (पूँछ) की अनोखी सुन्दरता (पंखों को खोलकर नाच/नृत्य की मुद्रा/स्थिति में खड़ा होता हुआ) कोई भी तीनों लोकों में मेरी तरह सुन्दर नहीं है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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वन्यजन्तूनामुपरि आक्रमणं कर्तारं तु अहं स्वसौन्दर्येण नृत्येन च आकर्षितं कृत्वा वनात् बहिष्करिष्यामि। | जंगल के जीवों पर आक्रमण करने वाले को मैं अपनी सुन्दरता और नृत्य से आकर्षित करके जंगल से बाहर कर दूँगा। |
अत: अहमेव योग्य: वनराजपदाय। | इसलिए मैं ही वन के राजा के पद के लिए योग्य हूँ। |
(एतस्मिन्नेव काले व्याघ्रचित्रकौ अपि नदीजलं पातुमागतौ एतं विवादंशृणुत: वदत: च) | (इसी समय बाघ और चीता भी नदी के जल को पीने के लिए आ गए, इस विवाद को सुनते और बोलते हैं) |
व्याघ्रचित्रकौ – अरे किं वनराजपदाय सुपात्रं चीयते? | बाघ और चीता-अरे क्या वन के राजा के पद के लिए अच्छे पात्र (प्रत्याशी) को चुना जा रहा है? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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एतदर्थ तु आवामेव योग्यौ यस्य कस्यापि चयनं कुवर्न्तु सवर्स म्मत्या। | इसके लिए तो हम दोनों ही योग्य हैं। जिस किसी का भी सबकी सहमति से कर लें। |
सिंह: – तूष्णीं भव भो:। युवामपि मत्सदृशौ भक्षकौ न तु रक्षकौ। | सिंह- अरे चुप हो जाओ। तुम दोनों भी मुझ जैसे ही भक्षक हो रक्षक तो नहीं। |
एते वन्यजीवा: भक्षकं रक्षकपदयोग्यं न मन्यन्ते अत एव विचारविमर्श: प्रचलति। | यहाँ वन के जीव भक्षक को रक्षक के पद के योग्य नहीं मानते हैं इसलिए बात चल रही है। |
बक: – सर्वथा सम्यगुक्तम् सिंहमहोदयेन। | बगुला – शेर महोदय ने पूरी तरह से ठीक ही कहा है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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वस्तुत: एव सिंहेन बहुकालपर्यन्तं शासनं कृतम् परमधुना तु कोऽपि पक्षी एव राजेति निश्चेतव्यम् अत्र तु संशीतिलेशस्यापि अवकाश: एव नास्ति। | वास्तव में शेर ने ही बहुत समय तक राज्य किया है परन्तु अब तो कोई पक्षी ही राजा बने ऐसा निश्चय करना चाहिए यहाँ तो संशय (सन्देह) का थोड़ा सा भी स्थान नहीं है। |
सर्वे पक्षिण: – (उच्चै:)- आम् आम्- कश्चित् खग: एव वनराज: भविष्यति इति। | सभी पक्षी- (जोर से) – हाँ हाँ-कोई पक्षी ही जंगल का राजा होगा। |
(परं कश्चिदपि खग: आत्मानं विना नान्यं कमपि अस्मै पदाय योग्यं चिन्तयन्ति तर्हि कथं निर्णय: भवेत् तदा तै: सर्वै: गहननिद्रायां निश्चिन्तं स्वपन्तम् उलूकं वीक्ष्य विचारितम् यदेष: आत्मश्लाघाहीन: पदनिर्लिप्त: उलूक एवास्माकं राजा भविष्यति। परस्परमादिशन्ति च तदानीयन्तां नृपाभिषेकसम्बन्धिन: सम्भारा: इति।) | (परंतु कोई भी पक्षी अपने अलावा दूसरे किसी को भी इस पद के लिए योग्य नहीं सोचता तो कैसे निर्णय हो। तब उन सभी ने गहरी नींद में निश्चिन्त सोते हुए उल्लू को देखकर सोचा कि यह आत्मप्रशंसा से रहित, पद के लालच से मुक्त उल्लू ही हमारा राजा होगा और आपस में आदेश करते हैं तो राजा के अभिषेक के लिए सामान लाए जाएँ।) |
सर्वे पक्षिण: सज्जायै गन्तुमिच्छन्ति तर्हि सहसा एव- | सभी पक्षी तैयारी के लिए जाना चाहते हैं तभी अचानक ही … |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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काक: – (अट्टहासपूर्णेन-स्वेरण)-सर्वथा अयुक्तमेतत् यन्मयूर- हंस- कोकिल- चक्रवाक-शुक-सारसादिषु पक्षिप्रधानेषु विद्यमानेषु दिवान्धस्यास्य करालवक्त्रस्याभिषकेाथर्ं सर्वे सज्जा:। | कौआ – (अट्टहास से युक्त स्वर से) यह पूरी तरह से अनुचित है कि मोर-हंस-कोयल-चकवा-तोता – सारस आदि प्रमुख पक्षियों के विद्यमान होने (रहने) पर दिन के अंधे इस भयानक मुख वाले के अभिषेक (राजा बनाने) के लिए सब तैयार हैं। |
पूर्ण दिनं यावत् निदा्र यमाण: एष: कथमस्मान् रक्षिष्यति। | पूरे दिन तक (भर) सोता हुआ यह कैसे हमारी रक्षा करेगा। |
वस्तुतस्तु- स्वभावरौद्रमत्युग्रं क्रूरमप्रियवादिनम्। उलूकं नृपतिं कृत्वा का नु सिद्धिर्भविष्यति॥ | वास्तव में तो- भयानक स्वभाव वाले, बहुत क्रोधी, निर्दयी और अप्रिय बोलने वाले उल्लू को राजा बनाकर निश्चित रूप से क्या सफलता या लाभ होगा? |
(तत: प्रविशति प्रकृतिमाता) | (उसके बाद प्रकृतिमाता प्रवेश करती है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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प्रकृतिमाता – (सस्नहेम्) भो: भो: प्राणिन:। यूयम् सर्वे एव मे सन्तति:। | (प्रेम के साथ) अरे-अरे जीवो। तुम सब ही मेरी सन्तानें हो। |
कथं मिथ: कलहं कुरूथ। | क्यों आपस में झगड़ते हो। |
वस्तुत: सर्वे वन्यजीविन: अन्योन्याश्रिता:। | वास्तव में सभी वन्यजीव (जन प्राणीगण) एक-दूसरे पर आश्रित हैं। |
सदैव स्मरत- ददाति प्रतिगृह्णाति, गुह्यमाख्याति पृच्छति। | सदैव याद रखो जो देता है. लेता है, गुप्त बातें बताता है अर्थात् सावधान करता है, पूछता है |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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भुङ्क्ते भोजयते चैव षड्-विधं प्रीतिलक्षणम्॥ | खाता है और (खाने के लिए) जोड़ता है। छह प्रकार के प्रेम के लक्षण (मित्र के लक्षण) हैं। |
(सर्वे प्राणिन: समवेतस्वरेण) | (सभी प्राणी एक स्वर से) |
मात:! कथयति तु भवती सर्वथा सम्यक् परं वयं भवतीं न जानीम:। | हे माता! आप तो पूरी तरह से ठीक कहती हैं परन्तु हम तो आपको नहीं जानते हैं। |
भवत्या: परिचय: क:? | आपका क्या परिचय है? |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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प्रकृतिमाता – अहं प्रकृति: युष्माकं सर्वेषां जननी? | प्रकृतिमाता – मैं प्रकृति तुम सबकी माँ हूँ। |
यूयं सर्वे एव मे प्रिया:। | तुम सभी मेरे प्रिय हो। |
सर्वेषामेव मत्कृते महत्त्वं विद्यते यथासमयम् न तावत् कलहेन समयं वृथा यापयन्तु अपि तु मिलित्वा एव मोदध्वं जीवनं च रसमयं कुरुध्वम्। | सभी का ही उचित समय पर मेरे लिए महत्व जो जहां से समय को व्यर्थ न बिताओ बल्कि मिलकर ही प्रसन्न होवो और जीवन को रस से युक्त (खुशी से युक्त) करो |
तद्यथा कथितम्- प्रजासुखे सुखं राज्ञ:, प्रजानां च हिते हितम्। | जैसा कहा गया है- राजा का प्रजा के सुख में ही सुख और प्रजा के हित में (ही) अपना हित होता है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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नात्मप्रियं हितं राज्ञ:, प्रजानां तु प्रियं हितम्॥ | राजा का अपना हित प्रिय नहीं होता है। प्रजाओं का हित ही तो उसे प्रिय होता है। |
अपि च- अगाधजलसञ्चारी न गर्वं याति रोहित:। | और भी अथाह (अनन्त) जल में घूमने वाली रोहू नामक मछली कभी भी अपनी कुशलता पर गर्व घमंड नहीं करती है। |
अङ्गुष्ठोदकमात्रेण शफरी फुर्फुरायते॥ | परन्तु अँगूठे मात्र अर्थात् थोड़े से जल में घूमने वाली छोटी सहरी मछली अधिक फुदकती है। |
अत: भवन्त: सर्वेऽपि शफरीवत् एकैकस्य गुणस्य चर्चा विहाय, मिलित्वा प्रकृतिसौन्दर्याय वनरक्षायै च प्रयतन्ताम्। | अतः आप सभी छोटी सहरी मछली की तरह एक-एक गुण की चर्चा को छोड़कर प्रकृति की सुन्दरता और वन की रक्षा के लिए मिलकर प्रयत्न करो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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सर्वे प्रकृतिमातरं प्रणमन्ति मिलित्वा दृढसंकल्पपूर्वकं च गायन्ति- | सभी जीव-जन्तु प्रकृति माता को प्रणाम करते हैं और मिलकर मजबूत संकल्प के साथ गाते हैं- |
प्राणिनां जायते हानि: परस्परविवादत:। | आपस के विवाद (लड़ाई-झगड़े) से सभी जीवों की हानि/नुकसान होती है। |
अन्योन्यसहयोगेन लाभस्तेषां प्रजायते॥ | परन्तु एक-दूसरे (परस्पर) के सहयोग से उनका लाभ होता है। |