एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत पाठ 4 जननी तुल्यवत्सला

एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 4 – चतुर्थ: पाठ: जननी तुल्यवत्सला शेमुषी भाग 2 के सभी प्रश्न उत्तर और रिक्त स्थान सीबीएसई सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त किए जा सकते हैं। 10वीं संस्कृत पाठ 4 का हिंदी अनुवाद तथा पाठ के अंत में दिए गए अभ्यास के प्रश्न उत्तर विद्यार्थियों के लिए सरल भाषा में प्रस्तुत किए गए हैं ताकि सभी विद्यार्थी इसे आसानी से समझकर परीक्षा में अच्छे अंक ला सकें।

कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 4 के लिए एनसीईआरटी समाधान

सीबीएसई समाधान ऐप

iconicon
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
कश्चित्‌ कृषक: बलीवर्दाभ्यां क्षेत्रकर्षणं कुर्वन्नासीत्‌।कोई किसान बैलों से खेत जोत रहा था।
तयो: बलीवर्दयो: एक: शरीरेण दुर्बल: जवेन गन्तुमशक्तश्चासीत्‌।उन बैलों में एक (बैल) शरीर से कमज़ोर और तेज़ी से चलने में असमर्थ (अशक्त) था।
अत: कृषक: तं दुर्बलं वृषभं तोदनेन नुदन्‌ अवर्तत। अतः किसान उस दुबले बैल को कष्ट देते हुए (ज़बरदस्ती) हाँकने लगा।
स: ऋषभ: हलमूढ्‌वा गन्तुमशक्त: क्षेत्रे पपात। वह बैल हल को उठाकर चलने में असमर्थ होकर खेत में गिर पड़ा।
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
क्रुद्ध: कृषीवल: तमुत्थापयितुं बहुवारम्‌ यत्नमकरोत्‌। क्रोधित किसान ने उसको उठाने के लिए बहुत बार प्रयत्न कि
तथापि वृष: नोत्थित:।तो भी बैल नहीं उठा।
भूमौ पतितं स्वपुत्रं दृष्ट्‌वा सर्वधेनूनां मातु: सुरभे: नेत्राभ्यामश्रूणि आविरासन्‌। भूमि पर गिरे हुए अपने पुत्र को देखकर सब गायों की माता सुरभि की आँखों से आँसू आने लगे।
सुरभेरिमामवस्थां दृष्ट्‌वा सुराधिप: तामपृच्छत्‌-“अयि शुभे! किमेवं रोदिषि? उच्यताम्‌” इति। सुरभि की इस दशा को देखकर देवताओं के राजा (इन्द्र) ने उससे पूछा- “अरी शुभ लक्षणों वाली! क्यों इस तरह रो रही हो? बोलो”।
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
सा च विनिपातो न व: कश्चिद्‌ दृश्यते त्रिदशाधिप!।हे कौशिक! तीनों दशाओं के स्वामी इन्द्र! कोई उसका सहायक नहीं दिखाई देता।
अहं तु पुत्रं शोचामि, तेन रोदिमि कौशिक!॥मैं तो पुत्र की चिन्ता करती हूँ, अतः रो रही हूँ।
“भो वासव! पुत्रस्य दैन्यं दृष्ट्‌वा अहं रोदिमि। हे इन्द्र! पुत्र की दीनता को देखकर मैं रो रही हूँ।
स: दीन इति जानन्नपि कृषक: तं बहुधा पीडयति। वह लाचार है। यह जानते हुए भी किसान उसे अकसर (अनेक बार) पीड़ा देता (पीटता) है।
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
स: कृच्छ्रेण भारमुद्वहति। वह कठिनाई से भार (बोझ) उठाता है।
इतरमिव धुरं वोढुं स: न शक्नोति। सरे की तरह जुए को वह उठाने (ढोने) में समर्थ नहीं है।
एतत्‌ भवान्‌ पश्यति न?” इति प्रत्यवोचत्‌।यह आप देख रहे हैं न? ऐसा उत्तर दिया।
“भद्रे! नूनम्‌। सहस्राधिकेषु पुत्रेषु सत्स्वपि तव अस्मिन्नेव एतादृशं वात्सल्यं कथम्‌?”“हे प्रिये! निश्चित ही। हजारों अधिक पुत्रों के रहने (होने) पर भी तुम्हारा ऐसा प्रेम इसमें क्यों है?”
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
इति इन्द्रेण पृष्टा सुरभि: प्रत्यवोचत्‌ – यदि पुत्रसहस्रं मे वात्सल्यं सर्वत्र सममेव मे।ऐसा इन्द्र के द्वारा पूछे जाने पर सुरभि बोली- हे इन्द्र देव! जबकि मेरे हजारों पुत्र मेरे लिए सब जगह समान ही हैं
दीने च तनये देव, प्रकृत्याडइयाधिका कृपा “बहून्यपत्यानि मे सन्तीति सत्यम्‌। तो भी कमजोर पुत्र के प्रति मेरी अधिक कृपा (प्रेम) है।
तथाप्यहमेतस्मिन्‌ पुत्रे विशिष्य आत्मवेदनामनुभवामि। “मेरी बहुत सन्तानें हैं, यह सच है। तो भी मैं इस पुत्र में विशेष अपनत्व को अनुभव करती हूँ।
यतो हि अयमन्येभ्यो दुर्बल:। क्योंकि निश्चय से यह दूसरों से दुबला (निर्बल) है।
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
सर्वेष्वपत्येषु जननी तुल्यवत्सला एव। सभी संतानों में माँ समान प्रेम वाली ही होती है।
तथापि दुर्बले सुते मातु: अभ्यधिका कृपा सहजैव” इति। तो भी निर्बल पुत्र में माँ की अधिक कृपा सामान्य ही है।”
सुरभिवचनं श्रुत्वा भृशं विस्मितस्याखण्डलस्यापि हृदयमद्रवत्‌। सुरभि के वचन को सुनकर बहुत हैरान देवराज इन्द्र का भी हृदय पिघल गया।
स च तामेवमसान्त्वयत्‌-” गच्छ वत्से! सवर्ं भद्रं जायते ।”और उन्होंने उसे इस तरह सांत्वना दी– “हे पुत्री! जाओ। सब कुछ ठीक हो जाए। “
संस्कृत वाक्यहिन्दी अनुवाद
अचिरादेव चण्डवातेन मेघरवैश्च सह प्रवर्ष: समजायत। शीघ्र ही तेज़ हवाओं और बादलों की गर्जना के साथ वर्षा होने लगी।
लोकानां पश्यताम्‌ एव सर्वत्र जलोपप्लव: सञ्जात:। देखते ही सब जगह जल भराव हो गया।
कृषक: हर्षातिरेकेण कर्षणविमुख: सन्‌ वृषभौ नीत्वा गृहमगात्‌।किसान अधिक प्रसन्नता से खेत जोतने से विमुख होकर बैलों को लेकर घर आ गया।
अपत्येषु च सर्वेषु जननी तुल्यवत्सला।और सभी बच्चों में माता समान प्रेम भाव (रखने) वाली होती है।
पुत्रे दीने तु सा माता कृपार्द्रहृदया भवेत्‌॥परन्तु पुत्र के दीन (दु:खी) होने पर वही माता उस पुत्र के प्रति कृपा से उदार हृदय वाली हो जाती है।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत पाठ 4 जननी तुल्यवत्सला के प्रश्न उत्तर
कक्षा 10 संस्कृत पाठ 4 जननी तुल्यवत्सला
कक्षा 10 संस्कृत पाठ 4
कक्षा 10 संस्कृत पाठ 4 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 4 के प्रश्न उत्तर
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 4 हिंदी में अनुवाद
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 4 हिंदी अनुवाद
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 4 हिंदी में
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 4 हिंदी में ट्रांसलेशन