एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत पाठ 2 बुद्धिर्बलवती सदा
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 2 – द्वितीय: पाठ: बुद्धिर्बलवती सदा शेमुषी भाग 2 के प्रश्न उत्तर हिंदी अनुवाद सीबीएसई सत्र 2024-25 के अनुसार यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 10 संस्कृत पाठ 2 में हम पढ़ते हैं कि किस प्रकार सुबुद्धि से बड़ी बड़ी समस्याओं को भी हल किया जा सकता है जैसे बुद्धिमती ने अपने विवेक से शेर को भगा दिया था। पाठ को अच्छी तरह से समझने के लिए, विद्यार्थी पाठ का हिंदी अनुवाद प्रयोग कर सकते हैं।
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 2 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत द्वितीय: पाठ: बुद्धिर्बलवती सदा
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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अस्ति देउलाख्यो ग्राम:। | देउल नाम का गाँव था। |
तत्र राजसिंह: नाम राजपुत्र: वसति स्म। | वहाँ राजसिंह नाम का राजपुत्र रहता था। |
एकदा केनापि आवश्यककार्येण तस्य भार्या बुद्धिमती पुत्रद्वयोपेता पितुर्गृहं प्रति चलिता। | एक बार किसी जरूरी काम से उसकी पत्नी बुद्धिमती दोनों पुत्रों के साथ पिता के घर की तरफ चली गई। |
मार्गे गहनकानने सा एकं व्याघ्रं ददर्श। | रास्ते में घने जंगल में उसने एक बाघ को देखा। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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सा व्याघ्रमागच्छन्तं दृष्ट्वा धाष्ट्र्यात् पुत्रौ चपेटया प्रहृत्य जगाद“कथमेकैकशो व्याघ्रभक्षणाय कलहं कुरुथ:? | बाघ को आता हुआ देखकर उसने धृष्टता से दोनों पुत्रों को एक-एक थप्पड़ मार कर कहा- “एक ही बाघ को खाने के लिए तुम दोनों क्यों झगड़ा कर रहे हो? |
अयमेकस्तावद्विभज्य भुज्यताम्। | इस एक (बाघ) को ही बाँटकर खा लो। |
पश्चाद् अन्यो द्वितीय: कश्चिल्लक्ष्यते।” | बाद में अन्य दूसरा कोई ढूँढ़ा जाएगा।” |
इति श्रुत्वा व्याघ्रमारी काचिदियमिति मत्वा व्याघ्रो भयाकुलचित्तो नष्ट:। | यह सुनकर यह कोई व्याघ्र (बाघ को) मारने वाला है। ऐसा समझकर वह बाघ डर से व्याकुल होकर वहाँ से भाग गया। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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निजबुद्ध्या विमुक्ता सा भयाद् व्याघ्रस्य भामिनी। | वह स्त्री अपनी बुद्धि द्वारा व्याघ्र (बाघ) से छूट (बच) गई। |
अन्योऽपि बुद्धिमाँल्लोके मुच्यते महतो भयात्॥ | अन्य बुद्धिमान भी (इसी तरह) अपनी बुद्धि के बल से महान भय से छुटकारा पा जाते हैं। |
भयाकुलं व्याघ्रं दृष्ट्वा कश्चित् धूर्त:शृगाल: हसन्नाह “भवान् कुत: भयात् पलायित:?” | डर से व्याकुल बाघ को देखकर कोई धूर्त सियार हँसते हुए बोला-“आप कहाँ से डरकर भाग रहे हो?” |
व्याघ्र:- गच्छ, गच्छ जम्बुक! त्वमपि कञ्चिद् गूढप्रदेशम्। यतो व्याघ्रमारीति या शास्त्रे श्रूयते तयाहं हन्तुमारब्ध: परं गृहीतकरजीवितो नष्ट: शीघ्रं तदग्रत:। | बाघ- “जाओ, जाओ सियार! तुम भी किसी गुप्त प्रदेश में छिप जाओ, क्योंकि हमने जिस व्याघमारी के संबंध में बातें शास्त्रों में सुनी हैं उसी ने मुझे मारने का प्रयास किया, परन्तु अपने प्राण हथेली पर रखकर मैं उसके आगे से भाग गया।’ |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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शृगाल:- व्याघ्र! त्वया महत्कौतुकम् आवेदितं यन्मानुषादपि बिभेषि? | सियार- “बाघ! तुमने बहुत आश्चर्यजनक बात बताई कि तुम मनुष्यों से भी डरते हो?” |
व्याघ्र:- प्रत्यक्षमेव मया सात्मपुत्रावेकैकशो मामत्तुं कलहायमानौ चपेटया प्रहरन्ती दृष्टा। | बाघ-“मेरे सामने ही (उसके) दोनों पुत्र मुझे अकेले-अकेले खाने के लिए झगड़ा कर रहे थे और उसने दोनों को एक-एक चाँटा मारती हुई देखी गई। |
जम्बुक:- स्वामिन्! यत्रास्ते सा धूर्ता तत्र गम्यताम्। व्याघ्र! तव पुन: तत्र गतस्य सा सम्मुखमपीक्षते यदि, तर्हि त्वया अहं हन्तव्य: इति। | सियार- स्वामी, जहाँ वह धूर्त औरत है वहाँ चलिए। हे बाघ! फिर वहाँ जाने पर वह सामने यदि स्थित रहती है तो तुम्हारे द्वारा मार दिए जाने योग्य हूँ। |
व्याघ्र:-शृगाल! यदि त्वं मां मुक्त्वा यासि तदा वेलाप्यवेला स्यात्। | बाघ-सियार! यदि तुम मुझे छोड़कर भाग जाओगे तो समय कुसमय में बदल जाएगा। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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जम्बुक:- यदि एवं तर्हि मां निजगले बद्ध्वा चल सत्वरम्। | सियार-यदि ऐसा है तो मुझे अपने गले से बाँधकर जल्दी चलो। |
स व्याघ्र: तथा कृत्वा काननं ययौ। | वह बाघ वैसा ही करके जंगल की तरफ चल दिया। |
शृगालेन सहितं पुनरायान्तं व्याघ्रं दूरात् दृष्ट्वा बुद्धिमती चिन्तितवती-जम्बुककृतोत्साहाद् व्याघ्रात् कथं मुच्यताम्? | सियार के साथ बाघ को फिर से आते हुए दूर से देखकर बुद्धिमती ने सोचा- ‘सियार के द्वारा उत्साहित बाघ से कैसे छूटकारा पाया जाए? |
परं प्रत्युत्पन्नमति: सा जम्बकु माक्षिपन्त्यङल्गया तजर्यन्त्युवाच रे रे धूर्त त्वया दत्तं मह्यं व्याघ्रत्रयं पुरा। | परन्तु जल्दी से सोचने वाली उस स्त्री ने सियार को धमकाते हुए कहा- ‘अरे धूर्त! तूने मुझे पहले तीन बाघ दिए थे। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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विश्वास्याद्यैकमानीय कथं यासि वदाधुना॥ | आज विश्वास दिलाकर भी तू एक को ही लेकर क्यों आया अब बता!” |
इत्युक्त्वा धाविता तूर्णं व्याघ्रमारी भयङ्करा। | ऐसा कहकर वह भय उत्पन्न करने वाली, व्याघ्र को मारने वाली जल्दी से दौड़ गई |
व्याघ्रोऽपि सहसा नष्ट: गलबद्धशृगालक:॥ | अचानक व्याघ्र भी गले में बंधे हुए शृगाल को लेकर भागने लगा। |
एवं प्रकारेण बुद्धिमती व्याघ्रजाद् भयात् पुनरपि मुक्ताऽभवत्। | इस प्रकार से बुद्धिमती बाघ के भय से फिर से मुक्त हो गई। |
अत एव उच्यते- बुद्धिर्बलवती तन्वि सर्वकार्येषु सर्वदा॥ | इसीलिए कहा जाता है “हमेशा हर कामों में बुद्धि ही बलवान होती है।” |