एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 3 जनन स्वास्थ्य
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 3 जनन स्वास्थ्य के अभ्यास के सवाल जवाब सभी प्रश्न उत्तर शैक्षणिक सत्र 2024-25 के लिए संशोधित रूप में यहाँ से निशुल्क प्राप्त किए जा सकते हैं। 12वीं कक्षा में जीव विज्ञान के पाठ 3 के समाधान सीबीएसई के साथ-साथ राजकीय बोर्ड के छात्रों के लिए भी उपयोगी हैं।
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 3 के लिए एनसीईआरटी समाधान
कक्षा 12 जीव विज्ञान अध्याय 3 जनन स्वास्थ्य के प्रश्न उत्तर
समाज में जनन स्वास्थ्य के महत्त्व के बारे में अपने विचार प्रकट कीजिए?
समाज में जनन स्वास्थ्य का अर्थ स्वस्थ जनन अंगों व उनकी सामान्य कार्यप्रणाली से है। अतः जनन स्वास्थ्य का मतलब ऐसे समाज से है जिसके व्यक्तियों के जननअंग शारीरिक व क्रियात्मक रूप से पूर्णरूपेण स्वस्थ हों। लोगों को यौन शिक्षा के द्वारा उचित जानकारी मिलती है जिससे समाज में यौन संबंधो के प्रति फैली कुरीतियाँ व भ्रांतियाँ खत्म होती हैं। जनन स्वास्थ्य के अन्तर्गत लोगों को विभिन्न प्रकार के यौन-संचारित रोगों, परिवार नियोजन के उपायों, छोटे परिवार के लाभ, सुरक्षित यौन संबंध आदि के प्रति जागरूक किया जाता है। गर्भावस्था के दौरान माता की देखभाल, प्रसवोत्तर माता व शिशु की देखभाल, शिशु के लिए स्तनपान का महत्त्व जैसे महत्त्वपूर्ण जानकारियों के आधार पर स्वस्थ व जागरूक परिवार बनेंगे। विद्यालय व शिक्षण संस्थानों में प्रदान की जाने वाली स्वास्थ्य तथा यौन शिक्षा से आने वाली पीढ़ी सुलझी विचारधारा वाली होगी जिससे हमारा समाज व देश सशक्त होगा।
जनन स्वास्थ्य के उन पहलुओं को सुझाएँ, जिन पर आज के परिदृश्य में विशेष ध्यान देने की जरूरत है?
जनन स्वास्थ्य के प्रमुख पहलू जिन पर आज के परिदृश्य में विशेष ध्यान देने की जरूरत है, इस प्रकार हैं:
सुरक्षित व संतोषजनक जननिक स्वास्थ्य।
जनता को जनन संबंधी पहलुओं के प्रति जागरूक करना।
विद्यालयों में यौन-शिक्षा प्रदान करना।
लोगों को यौन संचारित रोगों, किशोरावस्था संबंधी बदलावों व समस्याओं के बारे में जानकारी देना।
जनसंख्या विस्फोट के दुष्परिणामों से अवगत कराना।
गर्भपात, गर्भ निरोधक, आर्तव चक्र, बाँझपन संबंधी समस्याएँ।
मादा भ्रूण हत्या के लिए उल्बवेधन का दुरुपयोग आदि।
जनसंख्या विस्फोट के कौन से कारण हैं?
जनसंख्या विस्फोट: विश्व की आबादी 2 व्यक्ति प्रति सेकण्ड या 2,00,000 व्यक्ति प्रतिदिन या 60 लाख व्यक्ति प्रतिमाह या लगभग 7 करोड़ प्रतिवर्ष की दर से बढ़ रही है। आबादी में इस तीव्रगति से वृद्धि को जनसंख्या विस्फोट कहते हैं। यह मृत्युदर में कमी और जन्मदर में वांछित कमी न आने के कारण होता है।
जनसंख्या में वृद्धि एवं इसके कारण
किसी भी क्षेत्र में एक निश्चित समय में बढ़ी हुई आबादी या जनसंख्या को जनसंख्या वृद्धि कहते हैं। जनसंख्या वृद्धि के निम्नलिखित कारण हैं:
स्वास्थ्य सुविधाओं के कारण शिशु मृत्युदर (इनफैंट मोर्टलिटी रेट) एवं मातृ मृत्युदर में कमी आई है।
जनन योग्य व्यक्तियों की संख्या में वृद्धि का होना।
अच्छी स्वास्थ्य सेवाओं के कारण जीवन स्तर में सुधार होना।
अशिक्षा के कारण व्यक्तियों को परिवार नियोजन के साधनों का ज्ञान न होना और परिवार नियोजन के तरीकों को पूर्ण रूप से न अपनाया जाना।
वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति के कारण खाद्यान्नों के उत्पादन में वृद्धि।
सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों द्वारा अनेक महामारियों का समूल रूप से निवारण होना।
निम्न सामाजिक स्तर के कारण अधिकांश निर्धन व्यक्ति यह विश्वास करता है कि जितने अधिक बच्चे होंगे, वे काम करके अधिक धनोपार्जन करेंगे।
सामाजिक रीति-रिवाजों के कारण पुत्र प्राप्ति की चाह में दंपति संतान उत्पन्न करते रहते हैं।
उल्बवेधन एक घातक लिंग निर्धारण (जाँच) प्रक्रिया है, जो हमारे देश में निषेधित है? क्या यह आवश्यक होना चाहिए?
उल्बवेधन एक ऐसी तकनीक है जिसके अंतर्गत माता के गर्भ में से एम्नियोटिक द्रव का कुछ भाग सीरिंज द्वारा बाहर निकाला जाता है। इस द्रव में फीट्स की कोशिकाएँ होती हैं जिसके गुणसूत्रों का विश्लेषण करके भ्रूण की लिंग जाँच, आनुवांशिक संरचना, आनुवांशिक विकार व उपापचयी विकारों का पता लगाया जा सकता है। अत: इस जाँच प्रक्रिया का प्रमुख उद्देश्य होने वाली संतान में किसी भी संभावित विकलांगता अथवा विकार का पता लगाना है जिससे माता को गर्भपात कराने का आधार मिल सके।
किंतु आजकल इस तकनीक का दुरुपयोग भ्रूण लिंग ज्ञात करके, मादा भ्रूण हत्या के लिए हो रहा है। इसके फलस्वरूप हमारे देश का लिंगानुपात असंतुलित होता जा रहा है। मादा भ्रूण के सामान्य होने पर भी गर्भपात कर दिया जाता है क्योंकि अभी भी हमारे समाज में पुत्र जन्म को प्राथमिकता दी जाती है। ऐसा गर्भपात एक बच्चे की हत्या के समतुल्य है, अतः उल्बवेधन पर कानूनी प्रतिबंध लगाना अति आवश्यक है।
जनन ग्रंथि को हटाना गर्भ निरोधकों का विकल्प नहीं माना जा सकता है? क्यों?
गर्भ निरोधक के अन्तर्गत वे सभी युक्तियाँ आती हैं जिनके द्वारा अवांछनीय गर्भ को रोका जा सकता है। गर्भ निरोधक पूर्ण रूप से ऐच्छिक व उत्क्रमणीय होते हैं, व्यक्ति अपनी इच्छानुसार इनका प्रयोग बन्द करके, गर्भधारण कर सकता है। इसके विपरीत जनन ग्रंथि को हटाने पर शुक्राणु व अंडाणुओं का निर्माण स्थायी रूप से खत्म हो जाता है अर्थात् ये उत्क्रमणीय नहीं होते हैं। एक बार जनन ग्रन्थि के हटाने पर पुनः गर्भधारण करना असंभव होता है।
किसी व्यक्ति को यौन संचारित रोगों के संपर्क में आने से बचने के लिए कौन-से उपाय अपनाने चाहिए?
यौन संचारित रोग यौन संबंधो के द्वारा संचारित व अति संक्रामक होते हैं। इन रोगों से बचने के लिए निम्न उपाय अपनाने चाहिए:
सहवास के दौरान कंडोम का प्रयोग करें।
समलैंगिकता से दूर रहें।
परगामी व्यक्ति से यौन संबंध न बनायें।
वेश्यावृत्ति से दूर रहें।
किसी भी प्रकार की यौन समस्या होने पर कुशल चिकित्सक से परामर्श लें।
अनजान व्यक्ति से यौन संबंध न बनाये।
क्या गर्भनिरोधकों का उपयोग न्यायोचित है? कारण बताएँ।
विश्व की बढ़ती जनसंख्या को रोकने के लिए विभिन्न प्रकार के गर्भनिरोधकों का प्रयोग किया जाता है। कंडोम जैसे गर्भ निरोधक से न सिर्फ सगर्भता से बचा जा सकता है बल्कि यह अनेक यौन संचारित रोगों व संक्रमणों से भी बचाव करता है। गर्भनिरोधक के प्रयोग द्वारा किसी भी प्रकार के अवांछनीय परिणाम से बचा जा सकता है या उसे रोका जा सकता है। विश्व के अधिकांश दंपति गर्भनिरोधक का इस्तेमाल करते हैं। गर्भनिरोधकों के इन सभी महत्त्वों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इनका उपयोग न्यायोचित है।
क्या आप मानते हैं कि पिछले 50 वर्षों के दौरान हमारे देश के जनन स्वास्थ्य में सुधार हुआ है? यदि हाँ, तो इस प्रकार के सुधार वाले कुछ क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
पिछले 50 वर्षों के दौरान निश्चित ही हमारे देश के जनन स्वास्थ्य में सुधार हुआ है। इस प्रकार के सुधार वाले कुछ क्षेत्र निम्न हैं:
शिशु व मातृ मृत्यु दर घटी है।
यौन संचारित रोगों की शीघ्र पहचान व उनका समुचित उपचार।
बंध्य दंपतियों को विभिन्न तकनीकियों द्वारा संतान लाभ।
बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएँ व जीवन स्तर।
विभिन्न प्रकार के गर्भ निरोधकों की खोज व उपलब्धता।
चिकित्सीय सहायता युक्त सुरक्षित प्रसव।
लघु परिवारों के लिए प्राथमिकता।
यौन संबंधी मुद्दों पर बढ़ती हुई जागरूकता।
बढ़ती जनसंख्या के नियन्त्रण हेतु प्रयासरत सरकार व आम जनता।
बंध्य दंपतियों को संतान पाने हेतु सहायता देने वाली कुछ विधियाँ बताइए।
बंध्य दंपतियों को संतान प्राप्ति हेतु सहायता देने के लिए निम्न विधियाँ हैं:
परखनली शिशु: इसके अन्तर्गत शुक्राणु व अंडाणुओं को इन विट्रो निषेचन कराया जाता है। तत्पश्चात् भ्रूण को सामान्य स्त्री के गर्भाशय में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। स्त्री के गर्भ में गर्भकाल की अवधि पूर्ण होने पर सामान्य रूप से शिशु का जन्म होता है।
युग्मक अन्तः फैलोपियन स्थानान्तरण: इस विधि का प्रयोग उन महिलाओं पर किया जाता है, जो लम्बे समय से बंध्य हैं। इसके अन्तर्गत लेप्रोस्कोप की सहायता से फैलोपियन नलिका के एम्पुला में शुक्राणु व अंडाणुओं का निषेचन कराया जाता है।
अन्तःकोशिकाद्रव्यीय शुक्राणु बेधन: इसके अन्तर्गत शुक्राणुओं को प्रयोगशाला में संबंधित माध्यम में रखकर प्रत्यक्ष ही अण्डाणु में बेध दिया जाता है। तत्पश्चात् भ्रूण या युग्मनज को स्त्री के गर्भाशय में स्थापित कर दिया जाता है।
कृत्रिम गर्भाधान: इसका प्रयोग उन पुरुषों पर किया जाता है। जिनमें शुक्राणुओं की कमी होती है। इस विधि मे पुरुष के वीर्य को एकत्रित करके स्त्री की योनि में स्थापित कर दिया जाता है।
इसके अतिरिक्त निसंतान दम्पति, अनाथ व आश्रयहीन बच्चों को कानूनी रूप से गोद ले सकते हैं।
क्या विद्यालयों में यौन शिक्षा आवश्यक है? यदि हाँ तो क्यों?
विद्यालयों में यौन शिक्षा अति आवश्यक है क्योंकि इससे छात्रों को किशोरावस्था संबंधी परिवर्तनों व समस्याओं के निदान की सही जानकारी मिलेगी। यौन शिक्षा से उन्हें यौन संबंध के प्रति भ्रांतियाँ व मिथ्य धारणाओं को खत्म करने में सहायता मिलेगी; इसके साथ-साथ उन्हें सुरक्षित यौन संबंध, गर्भ निरोधकों का प्रयोग, यौन संचारित रोगों, उनसे बचाव व निदान की जानकारी प्राप्त होगी। इसके परिणामस्वरूप आने वाली पीढ़ी भावनात्मक व मानसिक रूप से समृद्ध होगी।