एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 7 एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 7 एक साम्राज्य की राजधानी: विजयनगर पुस्तक भारतीय इतिहास के कुछ विषय भाग 2 के सवाल जवाब सत्र 2024-25 के लिए यहाँ दिए गए हैं। कक्षा 12 इतिहास पाठ 7 के अभ्यास के सभी उत्तरों को यहाँ विडियो तथा पीडीएफ के माध्यम से समझाया गया है।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 12 इतिहास अध्याय 7
कक्षा 12 इतिहास अध्याय 7 एक साम्राज्य की राजधानी विजयनगर के प्रश्नों के उत्तर
पिछली दो शताब्दियों में हम्पी के भग्नावशेषों के अध्यन में कौन-सी पद्धतियों का प्रयोग किया गया है? आपके अनुसार यह पद्धतियाँ विरूपाक्ष मंदिर के पुरोहितों द्वारा प्रदान की गई जानकारी का किस प्रकार पूरक रहीं?
विजयनगर की स्थापना 1336 ई. में हरिहर और बुक्का नामक दो भाइयों ने की थी। सत्रहवीं तथा अठारहवीं शताब्दी तक आते-आते इस विजयनगर का पूरी तरह से विनाश हो गया था। फि़र भी कृष्णा-तुंगभद्रा दोहाअ क्षेत्र के निवासियों की स्मृति में यह सजीव बना रहा। इसे हम्पी नाम से याद रखा गया। हम्पी आधुनिक कर्नाटक का प्रमुख पर्यटन स्थल है। हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन में सबसे पहले सर्वेक्षण विधि का प्रयोग किया गया। 1800 ई. में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेवा में नियुक्त एक अभियंता एवं पुरातत्वविद् कर्नल कॉलिन मैकेन्जी द्वारा हम्पी के भग्नावशेषों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया। मैकेन्जी ने इस स्थान का पहला सर्वेक्षण मानचित्र बनाया। हम्पी की खोज में अभिलेखकर्ताओं ने यहाँ अभिलेखों को इकट्ठा करना शुरू किया। 1856 ई. में अलेक्जेंडर ग्रनिला ने हम्पी के पुरातात्विक अवशेषों के पहले विस्तृत चित्र लिए। हम्पी के भग्नावशेषों के अध्ययन में विदेशी यात्रियों के वृत्तांत का भी अध्ययन किया गया।
इतिहासकारों ने इन सोत्रों का विदेशी यात्रियों के वृत्तांतों और तेलुगु, तमिल, कन्नड़ तथा संस्कृत में लिखे गए साहित्य से मिलान किया। 1876 ई. में जे. एफ़. फ्लीट ने पुरास्थल के मंदिर की दीवारों के अभिलेखों का लेखन प्रारंभ किया। विरूपाक्ष मंदिर के पुरोहितों द्वारा प्राप्त सूचनाओं की पुष्टि। मैकेन्जी द्वारा प्राप्त जानकारियाँ विरूपाक्ष मंदिर तथा पम्पा देवी के मंदिर के पुरोहितों की स्मृतियों पर आधारित थी। विरूपाक्ष पम्पा की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके सामने प्रकट हुए और उन्हें हेमकूट में आने का निमंत्रण दिया। विवाह के बंध जाने के बाद पम्पा ने विरूपाक्ष से अनुरोध किया कि उस स्थल का नामकरण उनके नाम के आधार पर किया। विरूपाक्ष ने अनुरोध मान लिया। इसके बाद से इस स्थान का नाम पम्पा हो गया। हम्पी इसका परिवर्तित स्थानीय नाम है। इतिहासकारों का मानना है कि विजयनगर के स्थान का चनु शव वहाँ विरूपाक्ष तथा पम्पा देवी के मंदिरों के अस्तित्व से प्रेरित होकर ही किया गया था। यह भी स्मरणीय है कि विजयनगर के शासक विरूपाक्ष देवता के प्रतिनिधि के रूप में शासन करने का दावा करते थे।
विजयनगर की जल आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाता था?
विजयनगर की भौगोलिक स्थिति के विषय में सबसे आश्चर्यजनक तथ्य तुंगभद्रा नदी द्वारा यहाँ निर्मित एक प्राकृतिक कुंड है। यह नदी उत्तर-पूर्व दिशा में बहती है। यहाँ के भूदृश्य ग्रेनाइट की पहाड़ियों से भरा हुआ है। यह शहर के चारों ओर करधनी बनाती हुई दिखती है। इन पहाड़ियों से बहुत-सी जल धाराएँ आकर नदी में मिलती हैं। लगभग सभी धाराओं के साथ-साथ बाँध बनाकर भिन्न-भिन्न आकारों के हौज बनाए गए थे। यह प्रायद्वीप के सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक था इसलिए पानी के संचयन और इसे शहर तक ले जाने के व्यापक प्रबंध करना जरूरी था। इनमें से ही एक महत्वपूर्ण हौज पंद्रहवीं शताब्दी के आरंभिक वर्षों में हुआ जिसे आज कमलपुरम् जलाशय कहा जाता है। इस हौज़ के पानी से खेतों को ही नहीं सींचा जाता था बल्कि इसे एक नहर के द्वारा राजकीय केंद्र तक भी ले जाया गया था। नहर में तुंगभद्रा पर बने बाँध से पानी लाया जाता था और इसे धार्मिक केंद्र से शहरी केंद्र को अलग करने वाली घाटी को सिंचित करने में प्रयोग किया जाता था।
शहर के किलेबंद क्षेत्र में कृषि को रखने के आपके विचार में क्या फ़ायदे और नुकसान थे?
सुदृढ़ किलेबंदी विजयनगर साम्राज्य की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। अब्दुल रज्जाक के विवरण से किलेबंद कृषि क्षेत्रों के बारे में पता चलता है। शहर के किलेबंद क्षेत्र में कृषि को रखने के फायदे भी थे और नुकसान भी।
शहर के किलेबंद क्षेत्र में कृषि को रखने के फ़ायदे:
- खेतों के किलेबंद क्षेत्र में होने की वजह से प्रतिपक्ष की खाद्यान्न आपूर्ति संकट में पड़ जाती थी। जिससे घेराबंदी को लंबे समय तक खींचना कठिन हो जाता था और उसे मजबूर होकर घेराबंदी को हटाना पड़ता था।
- घेराबंदी का मुख्य उद्देज्य प्रतिपक्ष को खाद्य सामग्री से वंचित कर देना था ताकि वे मजबूर होकर आत्मसमर्पण करने के लिए तैयार हो जाएं।
- किलेबंद क्षेत्र में कृषि क्षेत्र को रखने से एक फ़ायदा यह भी था कि अनाज की कमी नहीं होती थी।
- घेराबंदी के दीर्घावधि तक चलते रहने से भी लोगों के भुखमरी से बचाया जा सकता था तथा बचा हुआ अनाज अन्न भंडारों में रख दिया जाता था।
शहर के किलेबंद क्षेत्र में कृषि को रखने के नुकसान:
- घेराबंदी की परिस्थिति में कृषि के लिए बीज, खाद, यंत्र, उर्वरक आदि को प्राप्त करना मुश्किल हो जाता था।
- किलेबंद क्षेत्र में कृषि क्षेत्र के फ़लस्वरूप घेराबंदी की स्थिति में बाहर रहने वाले किसानों के लिए खेतों में काम करना कठिन हो जाता था।
- किलेबंद क्षेत्र में कृषि की व्यवस्था अत्यधिक महँगी थी।
आपके विचार में महानवमी डिब्बा से संबद्ध अनुष्ठानों का क्या महत्व था?
महानवमी डिब्बा एक विशालकाय मंच है। इस मंच के आधार पर कुछ बहुत सुंदर चित्र मिले हैं। इस मंच पर बड़े-बड़े मेलों का आयोजन किया जाता था। मुख्य रूप से हिंदू त्यौहारों पर इन मेलों का आयोजन किया जाता था। इस दौरान धार्मिक अनुष्ठानों का आयोजन किया जाता था। जिनमें मूर्तियों की पूजा की जाती थी, जानवरों की बलि दी जाती थी तथा राज्य के अश्व की पूजा की जाती थी। महानवमी डिब्बा को दशहरा डिब्बा भी कहा जाता है। यहाँ विजयनगर के राजा दशहरा का त्यौहार मानते हैं। महानवमी डिब्बा घोड़ों, हाथियों और सैनिकों की नक्काशियों से सजा है। त्यौहार के अंतिम दिन राजा सेनाओं का निरीक्षण करता था।
शाही केंद्र शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किए गए हैं, क्या वे उस भाग का सही वर्णन करते हैं?
- पुरातत्वविदों को विजय नगर की खुदाई के दौरान विभिन्न प्रकार के अवशेष मिले। शहर के केंद्र में 52 बड़े भव्य तथा अन्य स्थानों की तुलना में अधिक सुरक्षात्मक ढंग से बनाए गए थे। इनकी बनावट को देखकर यह प्रतीत होता है कि किसी स्थल से विजयनगर साम्राज्य के प्रशासन के बारे में पता चलता है। इसलिए पुरातत्वविदों ने इसे शाही या राजकीय केंद्र कहा है।
- सुदृढ़ तथा विशाल किलेबंदी विजयनगर की एक महत्वपूर्ण विशेषता थी। इस शहर में पहली किलेबंदी के माध्यम से शहर को ही नहीं बल्कि खेती के कार्य में प्रयोग किए जाने वाले आस-पास का क्षेत्रों को भी घेरा जाता था। दूसरी किलेबंदी को नगरीय केंद्र के आंतरिक भाग के चारों ओर किया गया था। तीसरी किलेबंदी शाही केंद्र के चारों ओर की गई थी।
- शाही केंद्र शब्द का प्रयोग शहर के एक विशेष भाग के लिए किया गया है। इसमें लगभग 30 महलनुमा संरचनाएँ थी।
- शाही केंद्र में राम मंदिर जैसा दर्शनीय भव्य स्थल है। जिसके बारे में कहा जाता है। कि यह मंदि केवल शाही परिवार के सदस्यों के लिए था।
- विजयनगर शहर सात दुर्गों की दीवारों के अंदर था।
- उपरोक्त विवरण को देखने से यह पता चलता है कि यह शाही केंद्र था। अर्थात् शाही केंद्र शब्द शहर के जिस भाग के लिए प्रयोग किया गया है वह उचित है।
कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में क्या बताता है?
कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों के विषय में निम्न जानकारी प्रदान करता है:
- कमल महल और हाथियों के अस्तबल जैसे भवनों का स्थापत्य हमें उनके बनवाने वाले शासकों की नीतियों के बारे में पता चलता है।
- कमल महल शाही केंद्र का भव्य भवन है। ऐसा अनुमान लगाया जा सकता है कि यह भवन राजा अपने सलाहकारों से मिलने के लिए प्रयोग करता था तथा राजघराने के लोगों के द्वारा भी यह महल प्रयोग में लाया जाता था।
- इन महलों से धर्म की ओर झुकाव का भी पता चलता है। इनमें मंदिरों की आंतरिक दीवारों से रामायण से लिए कुछ दृश्य भी शामिल है।
- शहर के आक्रमण के बाद विजयनगर की कई संरचना नष्ट हो गई थीं। परंतु फि़र भी महलनुमा संरचनाओं के निर्माण की परंपरा को जारी रखा।
- हाथियों का अस्तबल जिसमें हाथियों को रखा जाता था। इन संरचनाओं को देखने से यह पता चलता है कि विजयनगर में स्थापत्य कला ने काफ़ी प्रगति की।
- इमारतों को देखने से यह भी पता लगता है कि शहर में अनेक मंदिर तथा उनकी दीवारों पर मूर्तियाँ बनाई जाती थी। वास्तुकला में इंडो-इस्लामिक शैली का प्रयोग किया गया।
- कमल महल तथा हाथियों के अस्तबल जैसी संरचनाओं को देखने से यह पता चलता है कि विजयनगर साम्राज्य की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी रही होगी।
स्थापत्य की कौन-कौन सी परंपराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रेरित किया? उन्होंने इन परंपराओं में किस प्रकार बदलाव किए?
विजयनगर के वास्तुविदों को प्रभावित करने वाली स्थापत्य परंपराएँ:
- विजयनगर की स्थापत्य कला दक्षिण भारत के एक बड़े भाग तक फ़ैली हुई थी और सबसे प्रसिद्ध हम्पी के स्मारक हैं। विजयनगर के वास्तुविदों को यहाँ के विशाल मंदिर, महल तथा दुर्ग जैसी संरचनाओं ने काफ़ी हद तक प्रभावित किया।
- दक्षिण भारत में प्रचलित मंदिर निर्माण की अनेक शैलियाँ इस साम्राज्य ने संकलित की तथा विजयनगर स्थापत्य कला प्रदान की। दक्षिण भारत के विभिन्न सम्प्रदाय तथ भाषाओं के मिलने के कारण इस नई प्रकार की मंदिर निर्माण की वास्तुकला को प्रेरणा मिली।
- स्थानीय पत्थर का प्रयोग करके पहले दक्कन तथा उसके बाद द्रविड़ स्थापत्य सैली में मंदिरों का निर्माण हुआ।
- विजयनगर जो कि ʻविजय का शहरʼ कहा जाता था उसमें एक महानतम शासक था जिसका नाम कृष्णदेवराय था। उसके समय में विजयनगर की स्थापत्य परंपरा का बहुत विकास हुआ। कृष्णदेव राय ने अपनी माता के नाम पर विजयनगर के निकट नगलपुरम् नामक उपनगर की स्थापना की, जिसमें उसने अनेक भव्य मंदिरों तथा भवनों का निर्माण करवाया था।
- किलेबंद क्षेत्रों में जाने के लिए प्रवेश द्वार बनाए गए। मेहराब तथा द्वार बने गुम्बद इस काल के प्रवेश द्वार की महत्वपूर्ण स्थापत्य कला थी। महल के मेहरबों में इंडो-इस्लामी तकनीकों का प्रभाव देखने के मिला हे।
- विजयनगर के विरूपाक्ष के मंदिरों में गोपुरम् तथा मंडप जैसी विशाल संरचनाओं ने इस काल की वास्तुकला में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- स्थापत्य की सभी परंपराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रभावित किया। इनमें कुछ परिवर्तन भी किए गए। उपरोक्त, स्थापत्य की परंपराओं ने विजयनगर के वास्तुविदों को प्रभावित किया।
अध्याय के विभिन्न विवरणों से आप विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन की क्या छवि पाते हैं?
विजयनगर के सामान्य लोगों का जीवन:
- विजयनगर का समाज सुव्यवस्थित था। समाज में वर्ण-व्यवस्था का प्रचलन था। ब्राह्मणों को समाज में विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त थी। पुजारी वर्ग भी समाज का एक प्रतिष्ठित भाग था।
- 16वीं शताब्दी में पुर्तगाली यात्री बारबोसा ने विजयनगर के सामान्य लोगों के आवास का वर्णन किया है तथा लिखा है – ʻलोगों के अन्य आवास छप्पर के हैं, पर फिर भी सुदृढ़ हैं और व्यवसाय के आधार पर कई खुले स्थानों वली लम्बी गलियों में व्यवस्थित हैं।ʼ
- विजयनगर में किसान सामाजिक व्यवस्था का आधार था। इसी पर समाज के बाकी सभी वर्ग निर्भर थे। विभिन्न अभिलेखों में चेट्टी नामक एक समहू का उल्लेख मिलता है जो मुख्य रूप से व्यापारी वर्ग था। यह धनी तथा संपन्न वर्ग था।
- समाज में स्त्रीयों के लिए शिक्षा की व्यवस्था थी। स्त्रीयाँ नृत्य, संगीत तथा अन्य कलाओं में पुरूषों की अपेक्षा अधिक कुशल थीं। संपन्न वर्गों में बहुविवाह प्रथा प्रचलित थी। इसके अतिरिक्त समाज में सती प्रथा तथा बाल विवाह भी प्रचलन में थे।
- विजयनगर में विभिन्न सम्प्रदाय जैसे – हिन्दू, शैव, वैष्णव, जैन, बौद्ध तथा इस्लाम धर्म के लोग निवास करते थे। विभिन्न भाषाओं जैसे- तमिल, तेलगु, कन्नड़ तथा संस्कृत आदि का प्रयोग करने वाले लोग निवास करते थे।
- विजयनगर साम्राज्य में दास प्रथा का भी प्रचलन था। दास-दासियों का क्रय-विक्रय होता था।
- विजयनगर साम्राज्य में उद्योग-धंधे तथा व्यापार उन्नत था। अब्दुर्रज्ज़ाक के अनुसार विजयनगर साम्राज्य में तीन सौ बंदरगाह थे। विशेष वस्तुओं के अलग व्यापार होते थे। उपरोक्त विवरण से विजयनगर के सामान्य लोगों के जीवन के बारे में पर्याप्त जानकारी मिलती है।