एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 24
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 24 दूर देश की बात (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 24) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी और अंग्रेजी में सीबीएसई सिलेबस 2024-25 के अनुसार संशोधित रूप में यहाँ दिए गए हैं। कक्षा चार ईवीएस के पाठ को पढ़ना और उसे समझना आसान बनाने के लिए, पाठ की व्याख्या करते हुए विडियो भी यहाँ दी गई हैं। यह विडियो समाधान बच्चों को पाठ समझने में मददगार सिद्ध होगा।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 24
मालू के घर चहल-पहल
मालू के घर बहुत चहल-पहल थी। उसके चाचा और उनका परिवार पांच साल बाद घर आए थे। पांच साल पहले उसके चाचा की नौकरी अबू धाबी में लगी थी। तभी से वे वहीं रह रहे थे। मालू और उसके पिता, चाचा के परिवार को लेने हवाई-अड्डे गए थे।
चाचा के परिवार का आगमन
चाचा के परिवार में कुल चार सदस्य थे। चाची, कुंज्म्मा और उनकी दो लडकियाँ शांता और शशि। पूरा परिवार हवाई-अड्डे से बहार आता दिखाई दे रहा था। उन्हें देख कर मालू के अप्पा ने कहा शांता और शशि कितनी बड़ी हो गई हैं। फिर सब टैक्सी में समान रख कर मालू के घर की ओर चल दिए।
हवाई-जहाज़ का सफ़र
मालू ने शांता से पूछा, तुम इतने लंबे सफ़र के बाद बहुत थक गई होगी क्योंकि अबू धाबी तो भारत से बहुत दूर है। तब शांता ने बताया कि अरे नहीं हम तो बिलकुल नहीं थके। हमें तो केवल दो घंटे लगे। हवाई-जहाज़ बहुत तेज़ जो उड़ता है। मालू यह सुनकर बहुत हैरान हुई क्योंकि वह जब कोच्ची से चिन्नई ट्रेन से गई थी तो उसे बारह घंटे लगे थे। नक़्शे में तो ये दोनों जगह उसे आस-पास ही दिखाई दी थी। हवाई-अड्डे से घर तक के रास्ते में मालू, शांता और शशि ने बहुत सारी बातें की।
रेत का रंग बदलना
मालू ने पूछा क्या तुमने हवाई जहाज़ से बहुत-सी मज़ेदार चींजें देखीं थी। शांता ने बताया कि ज्यादातर हवाई जहाज़ से बादल ही बादल दिखाई देते हैं। हवाई जहाज़ बादलों से बहुत ऊपर उड़ रहा था। इससे पहले कुछ समय तक नीचे रेत-ही-रेत दिखाई दी। पर रेत का रंग बदलता रहा। कभी रेत सफ़ेद, कभी भूरा तो कभी पीला, लाल और काला हो रहा था। कहीं तो रेत के पहाड़ भी दिखाई दिए। फिर नीचे ज़मीन दिखाई देनी बंद हो गई।
रेत ही रेत
मालू ने कहा कि मैंने तो केवल समुंद्र के किनारे पर ही रेत देखी है। यह बात सुनकर मालू के चाचा बोले तब तो तुम्हें अबू धाबी ज़रूर आना चाहिए। चाचा ने बताया कि अबू धाबी और आस-पास के देश रेगिस्तानी इलाके हैं।
शहर से थोड़ी दूर पर ही रेत-ही रेत दिखाई देती है। वहाँ न कोई पेड़, न ही कोई हरियाली है। तभी चाची कुंजम्मा बोली कि केरल में बने अपने घर के आस-पास की हरियाली और ठंडे पानी को मैं वहाँ बहुत याद करती थी। अब यहाँ आकर बहुत अच्छा लग रहा है।
पेट्रोल पानी से सस्ता
मालू ने फिर पूछा कि वहाँ बारिश कैसी होती है। चाचा ने कहा यह बात तो शांता और शशि भूल ही गए हैं। वैसे भी रेगिस्तान में बारिश नहीं होती। वहाँ पानी सचमुच बहुत कीमती है। वहाँ न बारिश है, न नदी है और न ही कोई तालाब व झील हैं। तब शशि ने बीच में बोलते हुए कहा लेकिन, वहाँ रेतीली ज़मीन के नीचे तेल होता है। तभी चाचा बोले इसलिए तो वहाँ पेट्रोल आसानी से मिल जाता है। वहाँ पेट्रोल पानी से सस्ता है।
खजूर के पेड़
सब बातें करते-करते मालू के घर पहुँच गए। टैक्सी से उतरते ही शशि और शांता आस-पास इतने सारे फलों के पेड़ देखकर हैरान रह गए। वहाँ पर नारियल, केले, पपीते, सुपारी, कटहल और ऐसे ही कितने तरह के पेड़ थे। शशि ने बताया कि अबू धाबी में तो सिर्फ़ खजूर के ही पेड़ दिखाई देते हैं क्योंकि वही एक ऐसा पेड़ है, जो वहाँ उग सकता है।
नोट और सिक्के
सबसे मिलने के बाद कुंजम्मा चाची ने अटैची खोल कर सभी को तोहफ़े दिए, जो वह अबू धाबी से लाई थी। चाची ने सभी को मीठे-मीठे स्वादिष्ट खजूर भी दिए। शशि ने मालू को अबू धाबी में चलने वाले नोट और सिक्के भी दिखाए। शांता ने बताया की वहाँ अलग-अलग तरह के रूपये होते हैं। जिन्हें दिरहम कहा जाता है। उन पर वहां की अरबी भाषा में कुछ लिखा होता है।
उन्होंने अपने आस-पास की जगहों की तस्वीरें भी दिखाई। तभी चाचा ने मालू को एक ग्लोब निकालकर दिया और कहा मालू इसमें देखों अबू धाबी कहाँ है और केरल कहाँ है। सब बच्चे ग्लोब पर अलग-अलग जगह ढूंढ रहे थे। मालू ने चेन्नई और कोच्ची को भी ढूंढने का प्रयास किया।
तस्वीर से अपने शहर की तुलना
शाम को बरामदे में बैठ कर सभी ठंडी-ठंडी हवा का मज़ा ले रहे थे और अबू धाबी की तस्वीरें देख रहे थे। तस्वीरें ऊँची-ऊँची इमारतों की थी। जिन पर बड़ी-बड़ी शीशे की खिड़कियाँ लगी हुई थी। उनको देख मालू झट बोली इन खिडकियों से कितनी ठंडी-ठंडी हवा आती होगी। चाचा ने बताया कि अबू धाबी में गर्मी अधिक होती है।
वहाँ तो एयर-कंडिशन चलते हैं। गर्मी की वजह से वहाँ के लोग ढीले-ढीले सूती कपड़े, पहनते हैं। पूरा शरीर और सिर भी ढँककर रखते हैं। इससे वे तेज़ धूप से बच जाते हैं। मालू को वहाँ की तस्वीरों को देखने के साथ बहुत सारी नई-नई बातें सुनने को मिली थी। वह हर तस्वीर से अपने शहर की तुलना भी कर रही थी।