एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 23
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 23 पोचमपल्ली (कक्षा 4 पर्यावरण पाठ 23) पर्यावरण अध्ययन (आस पास) हिंदी मीडियम और अंग्रेजी में सीबीएसई और राजकीय बोर्ड के विद्यार्थी सत्र 2024-25 के लिए यहाँ से प्राप्त कर सकते हैं। पाठ को विस्तार से समझने के लिए कक्षा 4 के विद्यार्थी यहाँ दिए गए विडियो समाधान का प्रयोग कर सकते हैं। इससे कक्षा 4 ईवीएस का पाठ 23 आसानी से समझ आ जाता है।
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 4 ईवीएस अध्याय 23
परिवार में बड़ों से सीख
तेलंगाना राज्य के पोचमपल्ली कस्बे के पास मुख्तापुर गाँव में रहने वाले वाणी और प्रसाद अपने परिवार के सभी लोगों के साथ बुनाई का काम करते हैं। उनके घर में रंग-बिरंगे धागों का ढेर लगा ही रहता है। उनकी बुनाई बहुत ही सुंदर और अपने-आप में अनोखी होती है।
यहाँ ज़्यादातर परिवार बुनकर हैं। इसलिए इस बुनाई को पोचमपल्ली नाम से पहचाना जाता है। इन गाँवों के लोग बहुत पुराने समय से यह काम कर रहे हैं। वाणी और प्रसाद ने भी यह कला अपने परिवार के बड़ों से सीखी है। अब ये दोनों भी स्कूल से आकर अपने अम्मा-अप्पा की मदद करते हैं।
कारीगरी के हुनर सीखना
पारंपरिक व्यवसाय की बात की जाए तो अधिकतर काम घर में ही सीखे जाते हैं। इसमें पोचमपल्ली कारीगरी की तरह बहुत सारे हुनर सीखने होते हैं। इसी तरह के अन्य पारंपरिक व्यवसाय जैसे- कालीन बनाना, इत्र बनाना और खिलौने बनाना इत्यादि हैं।
साड़ियाँ बनाने की कला
वाणी के अप्पा पोचमपल्ली से घागे की लड़ियाँ लाते हैं। अम्मा लड़ियों को उबलते पानी में डालकर उनकी गंदगी और दाग धोतीं हैं। फिर सब मिलकर घागों को सुंदर रंगों में रंगते हैं। सुखाकर उनकी गठ्ठी बनाते हैं। धागे की गठियों को करघे पर लपेटी जाती हैं।
करघे में कई सुइयाँ होती हैं। डिज़ाइन के हिसाब से सुइयों का नंबर घटता-बढ़ता है। चमकदार रंगों की बहुत ही सुंदर पोचमपल्ली साड़ियाँ बुनते हैं। इन कारीगरों ने अपनी इस कला से इलाके का नाम दुनियाभर में मशहूर कर दिया है।
बुनकर कला को खोने का कारण
ऐसी साड़ी बुनने के लिए अच्छी कारीगरी चाहिए जिसके लिए कई दिनों तक कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। फिर भी साड़ी का सही दाम नहीं मिलता है। बड़े दुकानदार बुनकरों को कम पैसे देते हैं। खुद वे भाव बढ़ा-चढ़ा कर बेचते हैं। इसलिए कई बुनकर यह काम छोड़ रहे हैं और गाँव छोड़कर शहरों में मज़दूरी करने जा रहे हैं। जिस कारण बरसों पुरानी यह कला धीरे-धीरे खोती जा रही है।
पुश्तैनी काम
आज वाणी और प्रसाद जैसे कई बच्चों ने अपने परिवारों से यह सुंदर कला सीख ली है। यदि उन्हें उनकी मेहनत का सही दाम मिलता है तो वे ज़रूर इस कला के हुनर को अपने बच्चों को सिखाएंगे। आज भी लोग अपने पुश्तेनी काम जैसे लुहार, बढ़ई, दरजी और कुम्हार अपने बच्चों को सिखाते हैं।