एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत पाठ 1 शुचिपर्यावरणम्
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 1 – प्रथम: पाठ: शुचिपर्यावरणम् शेमुषी भाग 2 के प्रश्न उत्तर हिंदी अनुवाद सीबीएसई सत्र 2025-26 के लिए विद्यार्थी यहाँ से निशुल्क प्राप्त कर सकते हैं। कक्षा 10 संस्कृत के पाठ 1 अभ्यास के सभी प्रश्न उत्तरों के साथ साथ, पूरे पाठ का हिंदी अनुवाद भी दिया गया है ताकि किसी विद्यार्थी को अध्याय समझने में कोई दिक्कत न आए। तिवारी अकादमी वेबसाइट तथा ऐप में ये सभी समाधान मुफ़्त दिए गए हैं।
कक्षा 10 संस्कृत अध्याय 1 के लिए एनसीईआरटी समाधान
एनसीईआरटी समाधान कक्षा 10 संस्कृत प्रथम: पाठ: शुचिपर्यावरणम्
संस्कृत में वाक्य | हिन्दी में अनुवाद |
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दुर्वहमत्र जीवितं जातं प्रकृतिरेव शरणम्। | जीवित रहना (जीवन) कठिन हो गया, अब प्रकृति की ही शरण है। |
शुचि-पर्यावरणम्॥ | शुद्ध पर्यावरण ही हमारा आश्रय है। |
महानगरमध्ये चलदनिशं कालायसचक्रम्। | महानगरों के बीच रात-दिन काले लोहे का पहिया (चक्का) चल रहा है। |
मन: शोषयत् तनू: पेषयद् भ्रमति सदा वक्रम्॥ | जो मन को सुखाते हुए और शरीर को पीसते हुए सदा टेढ़ा चलता रहता है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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दुर्दान्तैर्दशनैरमुना स्यान्नैव जनग्रसनम्। शुचि…॥1॥ | इसके द्वारा (इससे) अपने कठोर (भयानक) दाँतों से जनता का नाश न हो, इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारा आश्रय है। |
कज्जलमलिनं धूमं मुञ्चति शतशकटीयानम्। | आज देश में सैकड़ों मोटरगाड़ियाँ काजल की तरह मैले (काले) धुएँ को छोड़ रही हैं। |
वाष्पयानमाला संधावति वितरन्ती ध्वानम्॥ | अनेकानेक रेलगाड़ियाँ चारों और शोर करती हुईं दौड़ रही हैं। |
यानानां पङ्क्तयो ह्यनन्ता: कठिनं संसरणम्। शुचि…॥2॥ | गाड़ियों की पंक्तियाँ अनंत हैं, जिससे चलना कठिन हो गया है। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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वायुमण्डलं भृशं दूषितं न हि निर्मलं जलम्। | आज वायुमण्डल बहुत दूषित हो गया है और जल (पानी) शुद्ध नहीं रहा। |
कुत्सितवस्तुमिश्रितं भक्ष्यं समलं धरातलम्॥ | खाने योग्य सारी वस्तुएँ आज अशुद्ध (विषैली) वस्तुओं से मिलावटी हो गई हैं। तथा सारी धरती मैली (अशुद्ध) हो चुकी है। |
करणीयं बहिरन्तर्जगति तु बहु शुद्धीकरणम्। शुचि…॥3॥ | इन सभी अशुद्धियों (मैल) को दूर बाहर करके अंतर्जगत अर्थात मन व बुद्धि आदि को बहुत अधिक शुद्ध करना चाहिए। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है। |
कञ्चित् कालं नय मामस्मान्नगराद् बहुदूरम्। | कुछ समय को (के लिए) मुझे इस (प्रदूषित) नगर से बहुत दूर ले चलिए। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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प्रपश्यामि ग्रामान्ते निर्झर-नदी-पय:पूरम्॥ | जहाँ गाँव की सीमा पर जल से भरी हुई नदी और झरने को देखूँ। |
एकान्ते कान्तारे क्षणमपि मे स्यात् सञ्चरणम्। शुचि…॥4॥ | निर्जन जंगल में मेरा क्षण भर के लिए भी भ्रमण होवे। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है। |
हरिततरूणां ललितलतानां माला रमणीया। | हरे- भरे वृक्षों की, सुन्दर लताओं की सुन्दर माला |
कुसुमावलि: समीरचालिता स्यान्मे वरणीया॥ | हवा से हिलाई गई फूलों कि पंक्ति (गुच्छे) मेरे लिए सुन्दर हो। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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नवमालिका रसालं मिलिता रुचिरं संगमनम्। शुचि…॥5॥ | आम की नई पंक्ति रुचिपूर्वक (मुझे) प्राप्त रहे। |
अयि चल बन्धो! खगकुलकलरवगुञ्जितवनदेशम्। | हे मित्र (बन्धु/भाई)! पक्षियों के समूह की आवाज़ से गुंजायमान वन में चलो। |
पुर-कलरवसम्भ्रमितजनेभ्यो धृतसुखसन्देशम्॥ | नगर की आवाज़ (कोलाहल) से परेशान लोगों को धैर्य के सुख का सन्देश दो |
चाकचिक्यजालं नो कुर्याज्जीवितरसहरणम्। शुचि…॥6॥ | नगरों की चकाचौंध भरी दुनिया कहीं हमारे जीवन के रस का हरण न कर ले। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है। |
संस्कृत वाक्य | हिन्दी अनुवाद |
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प्रस्तरतले लतातरुगुल्मा नो भवन्तु पिष्टा:। | पत्थर के तल (नीचे) पर लताएँ, पेड़ और झाड़ियाँ पिसें नहीं। |
पाषाणी सभ्यता निसर्गे स्यान्न समाविष्टा॥ | प्राकृति में पथरीली सभ्यता समाविष्ट (सम्मिलित) न हो। |
मानवाय जीवनं कामये नो जीवन्मरणम्। शुचि…॥7॥ | मैं मनुष्य के लिए जीवन की कामना करता हूँ, जीवित मृत्यु की नहीं। इसलिए शुद्ध पर्यावरण ही हमारी शरण है। |